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संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 130 | Section 130 TPA in hindi

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 130 – अनुयोज्य दावों का अंतरण—

(1) अनुयोज्य दावे का अन्तरण चाहे वह प्रतिफल सहित या रहित हो ऐसी लिखत के निष्पादन द्वारा ही किया जाएगा जो अन्तरक या उसके सम्यक् रूप से प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित है, वह ऐसी लिखत के निष्पादन पर पूरा और प्रभावी हो जाएगा और तदुपरि अन्तरक के सब अधिकार और उपचार चाहे वे नुकसान के तौर पर हों या अन्यथा हों, अन्तरिती में निहित हो जाएंगे, चाहे अन्तरण की ऐसी सूचना, जैसी एतस्मिन्पश्चात् उपबंधित है, दी गई हो या न दी गई हो :

  • परन्तु ऋण या अन्य अनुयोज्य दावे के बारे में हर व्यवहार, जो ऋणी द्वारा या अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया है। जिससे या जिसके विरुद्ध अन्तरक यथापूर्वोक्त अन्तरण की लिखत के अभाव में ऐसा ऋण या अन्य अनुयोज्य दावा वसूल करने या प्रवर्तित कराने का हकदार होता, ऐसे अन्तरण के मुकाबले में विधिमान्य होगा (सिवाय वहां के जहां कि ऋणी या अन्य व्यक्ति उस अन्तरण का पक्षकार है या उसकी ऐसी अभिव्यक्त सूचना पा चुका है जैसी एतस्मिन्पश्चात् उपबन्धित हो)।

(2) अनुयोज्य दावे का अन्तरिती अन्तरण की यथापूर्वोक्त लिखत के निष्पादन पर उसके लिए वाद या कार्यवाहियां करने के लिए अन्तरक की सम्मति अभिप्राप्त किए बिना और उसे उनमें का पक्षकार बनाए बिना स्वयं अपने नाम से ऐसा वाद ला सकेगा या ऐसी कार्यवाहियां संस्थित कर सकेगा।

अपवाद– इस धारा की कोई भी बात किसी समुद्री बीमा या अग्नि बीमा पॉलिसी के अन्तरण को लागू नहीं है और न बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4) की धारा 38 के उपबंधों पर प्रभाव डालती है।

दृष्टांत

(i) ख का क देनदार है । ख वह ऋण ग को अन्तरित कर देता है । तब क से ऋण के चुकाने के लिए ख तकाजा करता है। अन्तरण की क को धारा 131 में यथा विहित सूचना नहीं मिली है और वह ख को संदाय कर देता है। यह संदाय विधिमान्य है,और ग उस ऋण के लिए क पर वाद नहीं ला सकता।

(ii) क एक बीमा कम्पनी से अपने जीवन के लिए पॉलिसी लेता है और उस पॉलिसी को वर्तमान या भावी ऋण का संदाय प्रतिभूत करने के लिए किसी बैंक को समनुष्टि करता है। यदि क की मृत्यु हो जाती है, तो बैंक धारा 130 की उपधारा (1) के परन्तुक और धारा 132 के उपबंधों के अध्यधीन क के निष्पादक की सहमति के बिना पॉलिसी की रकम पाने और उसके आधार पर वाद लाने का हकदार है।


Section 130 TPA -Transfer of actionable claim –

1(1) The transfer of an actionable claim 2[whether with or without consideration] shall be effected only by the execution of an instrument in writing signed by the transferor or his duly authoriZed agent, 3*** shall be complete and effectual upon the execution of such instrument, and thereupon all the rights and remedies of the transferor, whether by way of damages or otherwise, shall vest in the transferee, whether such notice of the transfer as is hereinafter provided be given or not:

  • Provided that every dealing with the debt or other actionable claim by the debt or or other person from or against whom the transferor would, but for such instrument of transfer as aforesaid, have been entitled to recover or enforce such debt or other actionable claim, shall (save where the debtor or other person is a party to the transfer or has received express notice thereof as hereinafter provided) be valid as against such transfer.

(2) The transferee of an actionable claim may, upon the execution of such instrument of transfer as aforesaid, sue or institute proceedings for the same in his own name without obtaining the transferor’s consent to such suit or proceedings and without making him a party thereto.

Exception.– Nothing in this section applies to the transfer of a marine or fire policy of insurance 4[or affects the provisions of section 38 of the Insurance Act, 1938 (4 of 1938).] संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 130

Illustrations

(i) A owes money to B, who transfers the debt to C. B then demands the debt from A, who, not having received notice of the transfer, as prescribed in section 131, pays B. The payment is valid, and C cannot sue A for the debt. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 130

(ii) A effects a policy on his own life with an Insurance Company and assigns it to a Bank for securing the payment of an existing or, future debt. If A dies, the Bank is entitled to receive the amount of the policy and to sue on it without the concurrence of A’s executor, subject to the proviso in sub-section (1) of section 130 and to the provisions of section 132. पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 130


1. Subs. by Act 2 of 1900, s. 4, for the original Chapter VIII.

2. Ins. by Act 20 of 1929, s. 62.

3. The words and figures “and notwithstanding anything contained in section 123” ins. by Act 38 of 1925, s. 2, omitted by Act 20 of 1929, s. 62.

4. Added by Act 4 of 1938, s. 121 (w.e.f. 1-7-1939).

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