एससी एसटी एक्ट 1989 | SC ST Act 1989 in Hindi
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति
(अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989
( क्र. 33 सन् 1989 )
[ 11 सितंबर, 1989 ]
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करने का निवारण करने के लिए, ऐसे अपराधों के विचारण के लिए विशेष न्यायालयों और अनन्य विशेष न्यायालयों का तथा ऐसे अपराधों से पीड़ित व्यक्तियों को राहत देने का और उनके पुनर्वास का तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम ।
भारत गणराज्य के चालीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :
अध्याय -1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ- (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 है।
(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे।
2. परिभाषाएं — (1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो-
(क) “अत्याचार” से धारा 3 के अधीन दग्नीय अपराध अभिप्रेत है;
(ख) “संहिता” से दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) अभिप्रेत है;
(खख). “आश्रित” से पीड़ित का ऐसा पति या पत्नी, बालक, माता -पिता भाई और बहिन जो ऐसे पीड़ित पर अपनी सहायता और भरण पोषण के लिए पूर्णत: या मुख्यतः आश्रित हैं;
(खग). “आर्थिक बहिष्कार” से निम्नलिखित अभिप्रेत है,-
(i). अन्य व्यक्ति से भाड़े पर कार्य से संबंधित संव्यवहार करने या कारबार करने से इन्कार करना; या
(ii) अवसरों का प्रत्याख्यान करना जिनमें सेवाओं तक पहुंच या प्रतिफल के लिए सेवा प्रदान करने हेतु संविदाजन्य अवसर सम्मिलित हैं; या
(iii) ऐसे निबंधनों पर कोई बात करने से इंकार करना जिन पर कोई बात, कारबार के सामान्य अनुक्रम में सामान्यतया की जाएगी; या
(iv) ऐसे वृत्तिक या कारबार संबंधों में प्रतिविरत रहना, जो किसी अन्य व्यक्ति से रखे जाएं ;
(खघ) “अनन्य विशेष न्यायालय”से इस अधिनियम के अधीन अपराधों का अनन्य रूप से विचारण करने के लिए धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित अनन्य विशेष न्यायालय अभिप्रेत है ;
(खड.) “वन अधिकार” का वह अर्थ होगा, जो अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (2007 का 2) की धारा 3 की उपधारा (1) में है ;
(खच) “हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी” का वह अर्थ होगा, जो हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (2013 का 25) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (छ) में उसका है;
(खछ) “लोक सेवक” से भारतीय दंड संहिता, 1860(1860 का 45) की धारा 21 के अधीन यथापरिभाषित लोकसेवक और साथ ही तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन लोक सेवक समझा गया कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है और जिनमें, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के अधीन उसकी पदीय हैसियत में कार्यरत कोई व्यक्ति सम्मिलित है;
(ग) “अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों” के वही अर्थ है जो संविधान के अनुच्छेद 366 के बैंक (24) और खंड (25) में है;
(घ) “विशेष न्यायालय” से धारा 14 में विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायालय अभिप्रेत है;
(ङ) “विशेष लोक अभियोजक” से विशेष लोक अभियोजक के रूप में विनिर्दिष्ट लोक अभियोजक या धारा 15 में निर्दिष्ट अधिवक्ता अभिप्रेत है;
(ड.क) “अनुसूची” से इस अधिनियम से उपाबध्य अनुसूची अभिप्रेत है;
(ड.ख) “सामाजिक बहिष्कार” से कोई रुढ़िगत सेवा अन्य व्यक्ति को देने के लिए या उससे प्राप्त करने के लिए या ऐसे सामाजिक संबंधों से प्रतिविरत रहने के लिए, जो अन्य व्यक्ति से बनाए रखें जाएं या अन्य व्यक्तियों से उसको अलग करने के लिए किसी व्यक्ति को अनुज्ञात करने से इंकार करना अभिप्रेत है;
(ड.ग) “पीड़ित” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो धारा 2 की उपधारा (1), के खंड (ग) के अधीन ‘अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति’की परिभाषा के भीतर आता है तथा जो इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के होने के परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या धनीय हानि या उसकी संपत्ति को हानि वहन या अनुभव करता है और जिसके अंतर्गत उसके नातेदार, विधिक संरक्षक और विधिक वारिस भी है;
(ड.घ) “साक्षी” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अधीन अपराध से अंतर्वलित किसी अपराध के अन्वेषण, जांच या विचारण के प्रयोजन के लिए तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित है या कोई जानकारी रखता है या आवश्यक ज्ञान रखता है और जो ऐसे मामले के अन्वेषण, जांच या विचारण के दौरान जानकारी देने या कथन करने या कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए अपेक्षित हैं या अपेक्षित हो सकेगा और जिसमें ऐसे अपराध का पीड़ित सम्मिलित है;
(च) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किंतु परिभाषित नहीं है और, यथास्थिति, भारतीय दंड संहिता, 1860 (1860 का 45), भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872(1872 का 1) या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में परिभाषित है, वही अर्थ होना समझा जाएगा जो उन अधिनियमितियों में है।
(2) इस अधिनियम में किसी अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति किसी निर्देश का अर्थ, किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवृत्त नहीं है, यह लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि, यदि कोई हो, के प्रति निर्देश है।
अध्याय -2
अत्याचार के अपराध
(3) अत्याचार के अपराधों के लिए दंड – (1) कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है,-
(क) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के मुख में कोई अखाध या घृणाजनक पदार्थ रखता है या ऐसे सदस्य को ऐसे अखाध या घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूर करेगा;
(ख) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा दखलकृत परिसरों में या परिसरों के प्रवेश-द्वार पर मल-मूत्र, मल, पशु-शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करेगा;
(ग) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति करने, अपमानित करने या क्षुब्ध करने के आशय से उसके पड़ोस में मल-मूत्र, कूड़ा, पशु-शव या कोई अन्य घृणाजनक पदार्थ इकट्ठा करेगा;
(घ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जूतों की माला पहनाएगा या नग्न या अर्ध-नग्न घुमाएगा;
(ङ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य पर बलपूर्वक ऐसा कोई कार्य करेगा जैसे व्यक्ति के कपड़े उतारना, बलपूर्वक सिर का मुण्डन करना, मूंछे हटाना, चेहरे या शरीर को पोतना या ऐसा कोई अन्य कार्य करना, जो मानव गरिमा के विरुद्ध है;
(च) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के स्वामित्वाधीन या उसके कब्जे में या उसको आबंटित या किसी सक्षम अधिकारी द्वारा उसको आबंटित किए जाने के लिए अधिसूचित किसी भूमि को सदोष अधिभोग में लेगा या उस पर खेती करेगा या ऐसी भूमि को अंतरित करा लेगा;
(छ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी भूमि या परिसरों से सदोष बेकब्जा करेगा या किसी भूमि या परिसरों या जल या सिंचाई सुविधाओं पर वन अधिकारों सहित उसके अधिकारों के उपभोग में हस्तक्षेप करेगा या उसकी फसल को नष्ट करेगा या उसके उत्पाद को ले जाएगा;
स्पष्टीकरण– खंड (च) और इस खंड के प्रयोजनों के लिए, “सदोष” पद में निम्नलिखित सम्मिलित हैं,
(अ) व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध;
(आ) व्यक्ति की सहमति के बिना;
(इ) व्यक्ति की सहमति से, जहां ऐसी सहमति, व्यक्ति या किसी ऐसे अन्य व्यक्ति को, जिसके व्यक्ति हितबद्ध है, मृत्यु या उपहति का भय दिखाकर, अभिप्राप्त की गई है; या
(ई) ऐसी भूमि के अभिलेखों को बनाना;
(ज) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को ‘बेगार‘ करने के लिए या सरकार द्वारा लोक प्रयोजनों के लिए अधिरोपित किसी अनिवार्य सेवा से भिन्न अन्य प्रकार के बलातश्रम या बंधुआ श्रम करने के लिए तैयार करेगा;
(झ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को मानव या पशु-शबों की अंत्येष्टि या ले जाने या कब्रों को खोदने के लिए विवश करेगा;
(ञ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को हाथ से सफाई करने के लिए तैयार करेगा या ऐसे प्रयोजन के लिए ऐसे सदस्य का नियोजन करेगा या नियोजन को अनुज्ञात करेगा;
(ट) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की स्त्री को, किसी देवदासी के रूप में पूजा, मंदिर या किसी अन्य धार्मिक संस्थान की देवी, मूर्ति या पात्र के समर्पण को या वैसी ही किसी अन्य प्रथा को निष्पादित या संवर्धन करेगा या पूर्वोक्त कार्यों को अनुज्ञात करेगा;
(ठ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को निम्नलिखित के लिए मजबूर या अभित्रस्त या निवारित करेगा :
(अ) मतदान न करने या किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने या विधि द्वारा उपबंधित से भिन्न रीति से मतदान करने,
(आ) किसी अभ्यर्थी के रूप में नामनिर्देशन फाइल न करने या ऐसे नामनिर्देशन को प्रत्याह्र्त करने; या
(इ) किसी निर्वाचन में अभ्यर्थी के रूप में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के नामनिर्देशन का प्रस्ताव या समर्थन नहीं करेंगे;
(ड) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी ऐसे सदस्य को, जो संविधान के भाग 9 के अधीन पंचायत या संविधान के भाग 9 (क) के अधीन नगरपालिका का सदस्य या अध्यक्ष या किसी अन्य पद का धारक है, उसके सामान्य कर्तव्यों या कृत्यों के पालन में मजबूर या अभित्रस्त या बाधित करेगा;
(ढ) मतदान के पश्चात्, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उपहति या घोर उपहति या हमला करेगा या सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार अधिरोपित करेगा या अधिरोपित करने की धमकी देगा या किसी ऐसी लोक सेवा के उपलब्ध फायदों से, निवारित करेगा, जो उसको प्राप्य हैं;
(ण) किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने या उसको मतदान नहीं करने या विधि द्वारा उपबंधित रीति से मतदान करने के लिए अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करेगा;
(त) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरुद्ध मिथ्या, द्वेषपूर्ण या तंग करने वाला बाद या दांडिक या अन्य विधिक कार्यवाहियां संस्थित करेगा;
(थ) किसी लोक सेवक को कोई मिथ्या या तुच्छ सूचना देगा जिससे ऐसा लोक सेवक अपनी विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति करने या क्षुब्ध करने के लिए करेगा;
(द) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अवमानित करने के आशय से लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर अपमानित या अभित्रस्त करेगा;
(ध) लोक दृष्टि में आने वाले किसी स्थान पर जाति के नाम से अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गाली गलौज करेगा;
(न) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा सामान्यतया धार्मिक मानी जाने वाली या अति श्रद्धा से ज्ञात किसी वस्तु को नष्ट करेगा, हानि पहुंचाएगा या अपवित्र करेगा;
स्पष्टीकरण – इस खंड के प्रयोजनों के लिए, “वस्तु” पद से अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत मूर्ति, फोटो और रंगचित्र है;
(प) अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध शत्रुता, घृणा या वैमनस्य की भावनाओं की या तो लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या चिह्नों द्वारा या दृश्य रूपण द्वारा या अन्यथा, अभिवृद्धि करेगा या अभिवृद्धि करने का प्रयत्न करेगा;
(फ) अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों द्वारा अति श्रद्धा से माने जाने वाले किसी दिवंगत व्यक्ति का या तो लिखित या मौखिक शब्दों द्वारा या किसी अन्य साधन से अनादर करेगा;
(ब) (i) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री को साशय, यह जानते हुए स्पर्श करेगा कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, जबकि स्पर्श करने का ऐसा कार्य, लैंगिक प्रकृति का है और प्राप्तिकर्ता की सहमति के बिना है;
(ii) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की किसी स्त्री के बारे में, यह जानते हुए कि वह अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है, लैंगिक प्रकृति के शब्दों, कार्यों या अंगविक्षेपों का उपयोग करेगा;
स्पष्टीकरण – उपखंड (i) के प्रयोजनों के लिए, “सहमति” पद से कोई सुस्पष्ट स्वैच्छिक करार अभिप्रेत है, जब कोई व्यक्ति शब्दों, अंगविक्षेपों या अमौखिक संसूचना के किसी रूप में विनिर्दिष्ट कार्य में भागीदारी की रजामंदी को संसूचित करता है :
परन्तु अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की कोई स्त्री, जो लैंगिक प्रकृति के किसी कार्य में शारीरिक अवरोध नहीं करती है, केवल इस तथ्य के कारण लैंगिक क्रियाकलाप में सहमति के रूप में नहीं माना जाएगा:
परन्तु यह और कि स्त्री का, अपराधी के साथ सहित, लैंगिक इतिहास, सहमति विवक्षित नहीं करता है या अपराध को कम नहीं करता है;
(भ) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य द्वारा सामान्यत: उपयोग किए जाने वाले किसी स्त्रोत, जलाशय या किसी अन्य स्त्रोत के जल को दूषित या गंदा करेगा जिससे वह ऐसे प्रयोजन के लिए कम उपयुक्त हो जाए जिसके लिए वह साधारणतया उपयोग किया जाता है;
(म) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को लोक समागम के किसी स्थान से गुजरने के किसी रूढ़िजन्य अधिकार से इंकार करेगा या ऐसे सदस्य को लोक समागम के ऐसे स्थान का उपयोग करने या उस पर पहुंच रखने से निवारित करने के लिए बाधा पहुंचाएगा जिसमें जनता या उसके किसी अन्य वर्ग के सदस्यों को उपयोग करने और पहुंच रखने का अधिकार है;
(य) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को उसका गृह, ग्राम या निवास का अन्य स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या मजबूर करवाएगा :
परन्तु इस खंड की कोई बात किसी लोक कर्तव्य के निर्वहन में की गई किसी कार्रवाई को लागू नहीं होगी;
(यक) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को निम्नलिखित के संबंध में किसी रीति से बाधित या निवारित करेगा, –
(अ) किसी क्षेत्र के सम्मिलित संपत्ति संसाधनों का या अन्य व्यक्तियों के साथ समान रूप से कब्रिस्तान या श्मशान भूमि का उपयोग करना या किसी नदी, सरिता, झरना, कुंआ, तालाब, कुंड, नल या अन्य जलीय स्थान या कोई स्नान घाट, कोई सार्वजनिक परिवहन, कोई सड़क या मार्ग का उपयोग करना;
(आ) साइकिल या मोटर साइकिल आरोहण या सवारी करना या सार्वजनिक स्थानों में जूते या नए कपड़े पहनना या विवाह की शोभा यात्रा निकालना या विवाह की शोभा यात्रा के दौरान घोड़े या किसी अन्य यान पर आरोहण करना;
(इ) जनता या समान धर्म के अन्य व्यक्तियों के लिए खुले किसी पूजा स्थल में प्रविष्ट करना या जाटरस सहित किसी धार्मिक, सामाजिक या सांस्कृतिक शोभा यात्रा में भाग लेना या उसको निकालना;
(ई) किसी शैक्षणिक संस्था, अस्पताल, औषधालय, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, दुकान या लोक मनोरंजन या किसी अन्य लोक स्थान में प्रविष्ट होने या जनता के लिए खुले किसी स्थान में सार्वजनिक उपयोग के लिए अभिप्रेत कोई उपकरण या वस्तुएं; या
(उ) किसी वृत्तिक में व्यवसाय करना या किसी ऐसी उपजीविका, व्यापार, कारबार या किसी नौकरी में नियोजन करना, जिसमें जनता या उसके किसी वर्ग के अन्य लोगों को उपयोग करने या उस तक पहुंच का अधिकार है;
(यख) जादू-टोना करने या डाइन होने के अभिकथन पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को शारीरिक हानि पहुंचाएगा या मानसिक यंत्रणा देगा; या
(यग) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी व्यक्ति या कुटुंब या उसके किसी समूह का सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार करेगा या उसकी धमकी देगा,
वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किंतु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुमनि से, दंडनीय होगा ।
(2) कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है-
(i) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लिए जो तत्समय प्रवृत्त विधि द्वारा मृत्यु दंड से दंडनीय है, दोषसिद्ध कराना है या यह जानता है कि इससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगा और यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी निर्दोष सदस्य को ऐसे मिथ्या या गढ़े हुए साक्ष्य के फलस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है और फांसी दी जाती है तो वह व्यक्ति, जो ऐसा मिथ्या साक्ष्य देता या गढ़ता है, मृत्यु दंड से दंडनीय होगा;
(ii) मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को ऐसे अपराध के लिए जो मृत्यु दंड से दंडनीय नहीं है किन्तु सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है, दोषसिद्ध कराना है या वह यह जानता है कि उससे उसका दोषसिद्ध होना संभाव्य है, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकेगी और जुमाने से, दंडनीय होगा;
(iii) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की किसी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाना है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, दंडनीय होगा;
(iv) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि करेगा जिससे उसका आशय किसी ऐसे भवन को जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता है, नष्ट करता है या वह यह जानता है कि उससे ऐसा होना संभाव्य है, वह आजीवन कारावास से, और जुर्माने से, दंडनीय होगा;
(v) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध यह जानते हुए करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य हैं या ऐसी संपत्ति ऐसे सदस्य की है, वह आजीवन कारावास से, और जुर्माने से दंडनीय होगा;
(va ) अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई अपराध किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध, यह जानते हुए करेगा कि ऐसा व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है या वह संपत्ति ऐसे सदस्य की है, वह ऐसे अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता के अधीन यथा विनिर्दिष्ट दंड से दंडनीय होगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ।
(vi) यह जानते हुए या यह विश्वास करने का कारण रखते हुए कि इस अध्याय के अधीन कोई अपराध किया गया है, वह अपराध किए जाने के किसी साक्ष्य को अपराधी को विधिक दंड से बचाने के आशय से गायब करेगा या उस आशय से अपराध के बारे में कोई ऐसी जानकारी देगा जो वह जानता है या विश्वास करता है कि वह मिथ्या है, वह उस अपराध के लिए उपबंधित दंड से दंडनीय होगा; या
(vii) लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगी, दंडनीय होगा।
(4) कर्तव्य उपेक्षा के लिए दंड– (1) कोई भी लोकसेवक, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है, अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन उसके द्वारा पालन किए जाने के लिए अपेक्षित अपने कर्तव्यों की जानबूझकर उपेक्षा करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि 6 मास से कम कि नहीं होगी, किंतु जो 1 वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट लोक सेवक के कर्तव्यों में निम्नलिखित सम्मिलित होगा,–
(क) पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी द्वारा सूचनाकर्ता के हस्ताक्षर लेने से पहले मौखिक रूप से दी गई सूचना को, सूचनाकर्ता को पढ़कर सुनाना और उसको लेखबध्द करना;
(ख) इस अधिनियम और अन्य सुसंगत को उपबंधों के अधीन शिकायत या प्रथम सूचना रिपोर्ट को रजिस्टर करना और अधिनियम की उपयुक्त धाराओं के अधीन उसको रजिस्टर करना;
(ग) इस प्रकार अभिलिखित की गई सूचना की एक प्रति सूचनाकर्ता को तुरंत प्रदान करना;
(घ) पीड़ितों या साक्षियों के कथन को अभिलिखित करना;
(ड़) अन्वेषण करना और विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय में 60 दिन की अवधि के भीतर आरोप-पत्र फाइल करना तथा विलंब, यदि कोई हो, लिखित में स्पष्ट करना;
(च) किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को सही रूप से तैयार, विरचित करना तथा उसका अनुवाद करना;
(छ) इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट किसी अन्य कर्तव्य का पालन करना;
परंतु लोक सेवक के विरुद्ध इस संबंध में आरोप, प्रशासनिक जांच की सिफारिश पर अभिलिखित किए जाएंगे।
(3) लोक सेवक द्वारा उपधारा (2) में निर्दिष्ट कर्तव्य की अवहेलना के संबंध में संज्ञान विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय द्वारा लिया जाएगा और लोक सेवक के विरुद्ध दांडिक कार्यवाहियों के लिए निर्देश दिया जाएगा।
5. पश्चातवर्ती दोषसिद्धि के लिए वर्धित दंड – कोई व्यक्ति जो, इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए पहले ही दोषसिद्ध हो चुका है, दूसरे अपराध या उसके पश्चात्वर्ती किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, वह कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी किंतु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दंड तक हो सकेगी, दंडनीय होगा।
6. भारतीय दंड संहिता के कतिपय उपबंधों का लागू होना – इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 34, अध्याय 3, अध्याय 4, अध्याय 5, अध्याय 5क, धारा 149 और अध्याय 23 के उपबंध जहां तक हो सके, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे भारतीय दंड संहिता के प्रयोजनों के लिए लागू होते हैं।
7. कतिपय व्यक्तियों की संपत्ति का समपहरण – (1) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है वहाँ विशेष न्यायालय, कोई दंड देने के अतिरिक्त, लिखित रूप में आदेश द्वारा, यह घोषित कर सकेगा कि उस व्यक्ति की कोई सम्पत्ति, स्थावर या जंगम या दोनों, जिनका उस अपराध को करने में प्रयोग किया गया है, सरकार को समपहृत हो जाएगी।
(2) जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त है, वहां उसका विचारण करने वाला विशेष न्यायालय ऐसा आदेश करने के लिए स्वतन्त्र होगा कि उसकी सभी या कोई संपत्ति, स्थावर या जंगम या दोनों, ऐसे विचारण की अवधि के दौरान, कुर्क की जाएंगी और जहां ऐसे विचारण का परिणाम दोषसिद्धि है वहां इस प्रकार कुर्क की गई सम्पत्ति उस सीमा तक समपहरण के दायित्वाधीन होगी जहां तक वह इस अध्याय के अधीन अधिरोपित किसी जुर्माने की वसूली के प्रयोजन के लिए अपेक्षित है।
8. अपराधों के बारे में उपधारणा – इस अध्याय के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन में, यदि यह साबित हो जाता है कि-
(क) अभियुक्त ने इस अध्याय के अधीन अपराध करने के अभियुक्त व्यक्ति द्वारा या युक्तियुक्त रूप से संदेहास्पद व्यक्ति द्वारा किये गये अपराधों के सम्बन्ध में कोई वित्तीय सहायता की है तो विशेष न्यायालय, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने उस अपराध का दुष्प्रेरण किया है;
(ख) व्यक्तियों के किसी समूह ने इस अध्याय के अधीन अपराध किया है और यदि यह साबित हो जाता है कि किया गया अपराध भूमि या किसी अन्य विषय के बारे में किसी विद्यमान विवाद का फल है तो यह उपधारणा की जाएगी कि यह अपराध सामान्य आशय या सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करने के लिए किया गया था।
(ग) अभियुक्त , पीड़ित या उसके कुटुंब का व्यक्तिगत ज्ञान रखता था, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि जब तक अन्यथा साबित न हो,अभियुक्त को पीड़ित की जाति या जनजातीय पहचान का ज्ञान था।
9. शक्तियों का प्रदान किया जाना – (1) संहिता में या इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध में किसी बात के होते हुए भी यदि राज्य सरकार ऐसा कसा आवश्यक या समीचीन समझती है तो वह-
(क) अधिनियम के अधीन किसी अपराध के निवारण के लिए और उससे निपटने के लिए, या
(ख) इस अधिनिमय के अधीन किसी मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए, किसी जिले या उसके किसी भाग में, राज्य सरकार के किसी अधिकारी को राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे जिले या उसके भाग में संहिता के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियां या, यथास्थिति, ऐसे मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए, और विशिष्टतया किसी विशेष न्यायालय के समक्ष व्यक्तियों की गिरफ्तारी, अन्वेषण और अभियोजन की शक्तियां प्रदान कर सकेगी।
(2) पुलिस के सभी अधिकारी और सरकार के अन्य सभी अधिकारी इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम, स्कीम या आदेश के उपबंधों के निष्पादन में उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी की सहायता करेंगे।
(3) संहिता के उपबन्ध, जहां तक हो सके, उपधारा (1) के अधीन किसी अधिकारी द्वारा शक्तियों के प्रयोग के संबंध में लागू होंगे।
अध्याय -3
निष्कासन
10. ऐसे व्यक्ति का हटाया जाना जिसके द्वारा अपराध किए जाने की संभावना है – (1) जहां विशेष न्यायालय का, परिवाद या पुलिस रिपोर्ट पर, यह समाधान हो जाता है कि संभाव्यता है कि कोई व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 244 या धारा 21 की उपधारा (2) के खंड (vii) के उपबन्धों के अधीन पहचान किये गये किसी क्षेत्र में यथानिर्दिष्ट ‘अनुसूचित क्षेत्रों’ या ‘जनजाति क्षेत्रों में सम्मिलित किसी क्षेत्र में इस अधिनियम के अध्याय 2 के अधीन कोई अपराध करेंगा वहां वह, लिखित आदेश द्वारा ;ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकेगा कि वह ऐसे क्षेत्र की सीमाओं से परे, ऐसे मार्ग से होकर और इतने समय के भीतर हट जाए, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, और तीन वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, उस क्षेत्र में जिससे हट जाने का उसे निदेश दिया गया था, वापस न लौटे।
(2) विशेष न्यायालय, उपधारा (1) के अधीन आदेश के साथ, उस उपधारा के अधीन निर्दिष्ट व्यक्ति को वे आधार संसूचित करेगा जिन पर वह आदेश किया गया है।
(3) विशेष न्यायालय, उस व्यक्ति द्वारा जिसके विरुद्ध ऐसा आदेश किया गया है, या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर किए गए अभ्यावेदन पर ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे उपधारा (1) के अधीन किए गए आदेश को प्रतिसंहृत या उपांतरित कर सकेगा।
11. किसी व्यक्ति द्वारा संबंधित क्षेत्र से हटने में असफल रहने और वहां से हटने के पश्चात् उसमें प्रवेश करने की दशा में प्रक्रिया – (1) यदि कोई व्यक्ति जिसको धारा 10 के अधीन किसी क्षेत्र से हट जाने के लिए कोई निदेश जारी किया गया है-
(क) निदेश किये गये रूप में हटने में असफल रहता है, या
(ख) इस प्रकार हटने के पश्चात् उपधारा (2) के अधीन विशेष न्यायालय की लिखित अनुज्ञा के बिना उस क्षेत्र में ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर प्रवेश करता है,
तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार करा सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान पर, जो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करे, पुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा।
(2) विशेष न्यायालय, लिखित आदेश द्वारा, किसी ऐसे व्यक्ति को जिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया है, अनुज्ञा दे सकेगा कि वह उस क्षेत्र में जहां से हट जाने का उसे निदेश दिया गया था ऐसी अस्थायी अवधि के लिए और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो ऐसे आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं, लौट सकता है और अधिरोपित शतों के सम्यक् अनुपालन के लिए उससे अपेक्षा कर सकेगा कि वह प्रतिभू सहित या उसके बिना बंधपत्र निष्पादित करे।
(3) विशेष न्यायालय किसी भी समय ऐसी अनुज्ञा को प्रतिसंहृत कर सकेगा।
(4) ऐसा व्यक्ति, जो ऐसी अनुज्ञा से उस क्षेत्र में वापस आता है, जिससे उसे हटने के लिए निदेश दिया गया था, अधिरोपित शर्तों का अनुपालन करेगा और जिस अस्थायी अवधि के लिए लौटने की उसे अनुज्ञा दी गई थी उसके अवसान पर या ऐसी अस्थाई अवधि के अवसान के पूर्व ऐसी अनुज्ञा के प्रतिसंहृत किए जाने पर ऐसे क्षेत्र से बाहर हट जाएगा और धारा 10 के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के अनवसित भाग के भीतर नई अनुज्ञा के बिना वहां नहीं लौटेगा।
(5) यदि कोई व्यक्ति अधिरोपित शर्तों में से किसी का पालन करने में या तदनुसार स्वयं को हटाने में असफल रहेगा या इस प्रकार हट जाने के पश्चात् ऐसे क्षेत्र में नई अनुज्ञा के बिना प्रवेश करेगा या लौटेगा तो विशेष न्यायालय उसे गिरफ्तार करा सकेगा और उसे उस क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान को, जो विशेष न्यायालय विनिर्दिष्ट करे, पुलिस अभिरक्षा में हटवा सकेगा।
12.ऐसे व्यक्तियों के, जिनके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया है, माप और फोटो आदि लेना – (1) प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिसके विरुद्ध धारा 10 के अधीन आदेश किया गया है विशेष न्यायालय द्वारा ऐसी अपेक्षा की जाने पर, किसी पुलिस अधिकारी को अपने माप या फोटो लेने देगा।
(2) यदि उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति, जिससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने माप या फोटो लेने दे, इस प्रकार माप या फोटो लिये जाने का प्रतिरोध करता है या उससे इन्कार करता है तो यह विधिपूर्ण होगा कि माप या फोटो लिये जाने को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएं।
(3) उपधारा (2) के अधीन लिए जाने वाले माप या फोटो का प्रतिरोध या उससे इंकार करने को भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 186 के अधीन अपराध समझा जाएगा।
(4) जहां धारा 10 के अधीन किया गया आदेश प्रतिसंहृत कर दिया जाता है वहां उपधारा (2) के अधीन लिए गए सभी माप और फोटो (जिसके अंतर्गत नेगेटिव भी हैं) नष्ट कर दिए जाएंगे या उस व्यक्ति को सौंप दिए जाएंगे जिसके विरुद्ध आदेश किया गया था।
13. धारा 10 के अधीन आदेश के अननुपालन के लिए शास्ति – वह व्यक्ति, जो धारा 10 के अधीन किए गए विशेष न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करेगा, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, दंडनीय होगा।
अध्याय –4
विशेष न्यायालय
14. विशेष न्यायालय और अनन्य विशेष न्यायालय– (1) शीघ्र विचारण का उपबंध करने के लिए प्रयोजन के लिए, राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक या अधिक जिलों के लिए एक अनन्य विशेष न्यायालय स्थापित करेगी:
परंतु ऐसे जिलों में जहां अधिनियम के अधीन कम मामले अभिलिखित किए गए हैं, वहां राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे जिलों के लिए सेशन न्यायालय को, इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करने के लिए विशेष न्यायालय होना विनिर्दिष्ट करेगी:
परंतु यह और कि इस प्रकार स्थापित या विनिर्दिष्ट न्यायालय को इस अधिनियम के अधीन अपराधों का सीधे संज्ञान लेने की शक्ति होगी।
(2) राज्य सरकार का, यह सुनिश्चित करने के लिए, पर्याप्त संख्या में न्यायालयों की स्थापना करने का कर्तव्य होगा कि इस अधिनियम के अधीन मामले, यथासंभव, 2 मास की अवधि के भीतर निपटाए गए हैं।
(3) विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय में प्रत्येक विचारण में कार्यवाहीयां, दिन- प्रतिदिन के लिए जारी रहेगी, जब तक कि उपस्थित सभी साक्षियों की अभिलिखित होने वाले कारणों से उसको आगामी दिन से परे स्थगन करना आवश्यक नहीं पाता हो:
परंतु जब विचारण, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से संबंधित है, तब विचारण, यथासंभव, आरोप -पत्र को फाइल करने की तारीख से 2 मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा।
14(क). अपीलें — (1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, किसी विशेष न्यायालय या किसी अनन्य विशेष न्यायालय के किसी निर्णय, दंडादेश या आदेश, जो अंतर्वर्ती आदेश नहीं है, के विरुद्ध अपील तथ्यों और विधि दोनों के संबंध में, उच्च न्यायालय में होगी।
(2) ) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 378 की उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी, विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय के जमानत मंजूर करने या नामंजूर करने के किसी आदेश के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय में होगी।
(3) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस धारा के अधीन प्रत्येक अपील, ऐसे निर्णय दंडादेश या आदेश से, जिससे अपील की गई है, 90 दिन के भीतर की जाएगी:
परंतु उच्च न्यायालय, 90 दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात ऐसी अपील को ग्रहण कर सकेगा यदि उसका समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी के पास 90 दिन के भीतर अपील नहीं करने का पर्याप्त कारण था:
परंतु यह और कि कोई अपील 180 दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात ग्रहण नहीं की जाएगी।
(4) उपधारा (1) में की गई प्रत्येक अपील का निपटारा, यथासंभव, अपील ग्रहण करने की तारीख से 3 मास की अवधि के भीतर होगा।
15. विशेष लोक अभियोजक और अनन्य लोक अभियोजक –– (1) राज्य सरकार, प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया हो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति करेगी।
(2) राज्य सरकार, प्रत्येक अनन्य विशेष न्यायालय के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अनन्य विशेष लोक अभियोजक को विनिर्दिष्ट करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को, जिसने कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि- व्यवसाय किया हो, उस न्यायालय में मामलों के संचालन के प्रयोजन के लिए अनन्य विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी।
अध्याय -4(क )
पीड़ित और साक्षी के अधिकार
15(क). पीड़ित और साक्षी के अधिकार — (1)राज्य का, किसी प्रकार के अभित्रास, प्रपीड़न या उत्प्रेरणा या हिंसा या हिंसा की धमकियों के विरुद्ध पीड़ितों, उसके आश्रितों और साक्षियों के संरक्षण के लिए व्यवस्था करना, कर्तव्य और उत्तरदायित्व होगा।
(2) पीड़ित से निष्पक्षता, सम्मान और गरिमा के साथ तथा किसी ऐसी विशेष आवश्यकता के साथ, जो पीड़ित की आयु या लिंग या शैक्षणिक अलाभ या गरीबी के कारण उत्पन्न होती है, व्यवहार किया जाएगा।
(3) किसी पीड़ित या उसके आश्रित को, किसी न्यायालय की कार्यवाही की युक्तियुक्त, यथार्थ और समय से सूचना का अधिकार होगा, जिसमें जमानत प्रक्रिया सम्मिलित है और विशेष लोक अभियोजक या राज्य सरकार पीड़ित को इस अधिनियम के अधीन किन्ही कार्यवाहियों के बारे में सूचित करेगी।
(4) किसी पीड़ित या उसके आश्रित को, यथास्थिति, विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय को, किन्हीं दस्तावेजों या सारवान साक्षियों को प्रस्तुत करने के लिए पक्षकारों को समन करने या उपस्थित व्यक्तियों की परीक्षा करने के लिए आवेदन करने का अधिकार होगा।
(5) कोई पीड़ित या उसका आश्रित, इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही में अभियुक्त की जमानत, उन्मोचन, निर्मुक्ति, परिवीक्षा, सिद्धदोष या दंडादिष्ट या सिद्धदोष, दोषमुक्त या दंडादिष्ट पर या किसी संबद्ध कार्यवाहियों या बहसों और सिद्धदोष करने के संबंध में कोई संबद्ध कार्यवाहियां या बहसें और लिखित फाइल करने के संबंध में किन्हीं कार्यवाहियों में सुने जाने का हकदार होगा ।
(6) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम अधीन किसी मामले का विचारण करने वाला विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय, पीड़ित, उसके आश्रित, सूचनाकर्ता या साक्षियों को निम्नलिखित प्रदान करेगा, –
(क) न्याय प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण संरक्षण;
(ख) अन्वेषण, जांच और विचारण के दौरान यात्रा तथा भरण-पोषण व्यय; और
(ग) अन्वेषण, जांच और विचारण के दौरान सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास;
(घ) पुनःअवस्थान ।
(7) राज्य, संबद्ध विशेष न्यायालय या अनन्य विशेष न्यायालय को किसी पीड़ित या उसके आश्रित, सूचनाकर्ता या साक्षियों को प्रदान किए गए संरक्षण के बारे में सूचित करेगा और ऐसा न्यायालय प्रस्थापित किए गए संरक्षण का आवधिक रूप में पुनर्विलोकन करेगा तथा समुचित आदेश पारित करेगा ।
(8) उपधारा (6) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संबद्ध विशेष न्यायाल या अनन्य विशेष न्यायालय उसके समक्ष किन्हीं कार्यवाहियों में किसी पीड़ित या उसके आश्रित, सूचनाकर्ता या साक्षी द्वारा या ऐसे पीड़ित, सूचनाकर्ता या साक्षी के संबंध में विशेष लोक अभियोजक द्वारा किए गए आवेदन पर या स्वेच्छा से ऐसे उपाय, जिनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं, कर सकेगा, –
(क) जनता की पहुंच योग्य मामले के उसके आदेशों या निर्णयों में या किन्हीं अभिलेखों में साक्षियों के नाम और पतों को छुपाना;
(ख) साक्षियों की पहचान और पतों का अप्रकटन करने के लिए निदेश जारी करना;
(ग) पीड़ित, सूचनाकर्ता या साक्षी के उत्पीड़न से संबंधित किसी शिकायत के संबंध में तुरंत कार्रवाई करना और उसी दिन, यदि आवश्यक हो, संरक्षण के लिए समुचित आदेश पारित करना :
परन्तु खंड (ग) के अधीन प्राप्त शिकायत में जांच या अन्वेषण ऐसे न्यायालय द्वारा मुख्य मामले से पृथक् रूप से विचारित किया जाएगा और शिकायत की प्राप्ति की तारीख से दो मास की अवधि के भीतर पूरा किया जाएगा:
परन्तु यह और कि जहां खंड (ग) के अधीन कोई शिकायत लोक सेवक के विरुद्ध है, वहां न्यायालय ऐसे लोक सेवक को, न्यायालय की अनुज्ञा के सिवाय, लंबित मामले से संबंधित या असंबंधित किसी विषय में, यथास्थिति, पीड़ित सूचनाकर्ता या साक्षी के साथ हस्तक्षेप से अवरुद्ध करेगा ।
(9) अन्वेषण अधिकारी और थाना अधिकारी का, पीड़ित, सूचनाकर्ता या साक्षियों के अभित्रास, प्रपीड़न या उत्प्रेरणा या हिंसा या हिंसा की धमकियों के विरुद्ध शिकायत को अभिलिखित करने का कर्तव्य होगा, चाहे वह मौखिक रूप से या लिखित में दी गई हो, और प्रथम सूचना रिपोर्ट की एक फोटो प्रति उनको तुरंत निःशुल्क दी जाएगी।
(10) इस अधिनियम के अधीन अपराधों से संबंधित सभी कार्यवाहियां वीडियो अभिलिखित होंगी ।
(11) संबद्ध राज्य का, न्याय प्राप्त करने में पीड़ितों और साक्षियों के निम्नलिखित अधिकारों और हकों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक समुचित स्कीम विनिर्दिष्ट करने का कर्तव्य होगा, जिससे,-
(क) अभिलिखित प्रथम सूचना रिपोर्ट की निःशुल्क प्रति प्रदान की जा सके;
(ख) अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों को नकद या वस्तु में तुरंत राहत प्रदान की जा सके;
(ग) अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों और साक्षियों को आवश्यक संरक्षण प्रदान किया जा सके;
(घ) मृत्यु या उपहति या संपत्ति को नुकसान के संबंध में राहत प्रदान की जा सके;
(ङ) पीड़ितों को खाद्य या जल या कपड़े या आश्रय या चिकित्सीय सहायता या परिवहन सुविधा या प्रति दिन भत्तों की व्यवस्था की जा सके;
(च) अत्याचार से पीड़ितों और उनके आश्रितों को भरण-पोषण व्यय प्रदान किया जा सके; और
(छ) शिकायत करने और प्रथम सूचना रिपोर्ट रजिस्टर करने के समय अत्याचार से पीड़ितों के अधिकारों के बारे में जानकारी प्रदान की जा सके;
(ज) अभित्रास तथा उत्पीड़न के अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों और साक्षियों को संरक्षण प्रदान किया जा सके;
(झ) अन्वेषण और आरोप-पत्र की प्राप्ति पर अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों या सहयुक्त संगठनों को जानकारी प्रदान की जा सके तथा निःशुल्क आरोप-पत्र की प्रति प्रदान की जा सके;
(ञ) चिकित्सीय परीक्षा के समय आवश्यक पूर्वावधानियां की जा सकें;
(ट) राहत रकम के संबंध में अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों या सहयुक्त संगठनों को जानकारी प्रदान की जा सके;
(ठ) अन्वेषण और विचारण की तारीख और स्थान के बारे में अग्रिम रूप से अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों या सहयुक्त संगठनों को जानकारी प्रदान की जा सके;
(ड) अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों या सहयुक्त संगठनों या व्यष्टिकों के मामले पर और विचारण की तैयारी के लिए पर्याप्त टिप्पण दिया जा सके तथा उक्त प्रयोजन के लिए विधिक सहायता प्रदान की जा सके;
(ढ) इस अधिनियम के अधीन कार्यवाहियों के प्रत्येक क्रम पर अत्याचार पीड़ितों या उनके आश्रितों या सहयुक्त संगठनों या व्यष्टिकों के अधिकारों का निष्पादन किया जा सके और अधिकारों के निष्पादन के लिए आवश्यक सहायता प्रदान की जा सके ।
(12) अत्याचार से पीड़ितों या उनके आश्रितों का गैर-सरकारी संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं या अधिवक्ताओं से सहायता लेने का अधिकार होगा ।
अध्याय -5
प्रकीर्ण
16. राज्य सरकार की सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की शक्ति – सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (1955 का 22) की धारा 10क के उपबंध, जहां तक हो सके, इस अधिनियम के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने और उसे वसूल करने के प्रयोजनों के लिए और उससे संबद्ध सभी अन्य विषयों के लिए लागू होंगे।
17. विधि और व्यवस्था तंत्र द्वारा निवारक कार्रवाई – (1) यदि जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट या किसी पुलिस अधिकारी को, जो पुलिस उप – अधीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, इत्तिला प्राप्त होने पर और ऐसी जांच करने के पश्चात् जो वह आवश्यक समझे, यह विश्वास करने का कारण है कि किसी ऐसे व्यक्ति या ऐसे व्यक्तियों के समूह द्वारा, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के नहीं हैं, और जो उसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर किसी स्थान पर निवास करते हैं या बार-बार आते जाते हैं, इस अधिनिमय के अधीन कोई अपराध करने की संभावना है या उन्होंने अपराध करने की धमकी दी है और उसकी यह राय है कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनाए रखने तथा लोक व्यवस्था और प्रशांति बनाए रखने के लिए आवश्यक कार्रवाई कर सकेगा और निवारक कार्रवाई कर सकेगा।
(2) संहिता के अध्याय 8, 10 और 11 के उपबंध जहां तक हो सके, उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए लागू होंगे|
(3) राज्य सरकार, राजपत्र में, अधिसूचना द्वारा, एक या अधिक स्कीमें वह रीति विनिर्दिष्ट करते हुए बना सकेगी जिससे उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी अत्याचारों के निवारण के लिए तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों में सुरक्षा की भावना पुनः लाने के लिए ऐसी स्कीम या स्कीमों में विनिर्दिष्ट समुचित कार्रवाई करेंगे।
18. अधिनियम के अधीन अपराध करने वाले व्यक्तियों को संहिता की धारा 438 का लागू न होना — संहिता की धारा 438 की कोई बात इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने के अभियोग पर किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के किसी मामले के संबंध में लागू नहीं होगी।
18(क) किसी जांच का अनुमोदन का आवश्यक न होना — (1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए:-
(क) किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम इत्तिला रिपोर्ट के रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं होगी ;या
(ख) किसी ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी, यदि आवश्यक हो, से पूर्व अन्वेषक अधिकारी को किसी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी,
जिसके विरुद्ध इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किए जाने का अभियोग लगाया गया है और इस अधिनियम या संहिता के अधीन उपबंधित प्रक्रिया से भिन्न कोई प्रक्रिया लागू नहीं होगी।
(2) किसी न्यायालय के किसी निर्णय या आदेश या निदेश के होते हुए भी, संहिता की धारा 438 के उपबंध इस अधिनियम के अधीन किसी मामले को लागू नहीं होंगे।
19. इस अधिनियम के अधीन अपराध के लिए दोषी व्यक्तियों को संहिता की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के उपबंध का लागू न होना – संहिता की धारा 360 के उपबंध और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) के उपबंध अठारह वर्ष से अधिक आयु के ऐसे व्यक्ति के संबंध में लागू नहीं होंगे जो इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने का दोषी पाया जाता है।
20. अधिनियम का अन्य विधियों पर अध्यारोही होना – इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, इस अधिनियम के उपबंध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या किसी रूढ़ि या प्रथा या किसी अन्य विधि के आधार पर प्रभाव रखने वाली किसी लिखित में उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होंगे।
21. अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का सरकार का कर्तव्य —(1) राज्य सरकार, ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए, इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए ऐसे उपाय करेगी जो आवश्यक हों।
(2) विशिष्टतया, और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे उपायों के अंतर्गत निम्नलिखित हो सकेगा :
(i) ऐसे व्यक्तियों को, जिन पर अत्याचार हुआ है, न्याय प्राप्त करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त सुविधाओं की, जिनके अंतर्गत विधिक सहायता भी है, व्यवस्था;
(ii) इस अधिनियम के अधीन अपराध के अन्वेषण और विचारण के दौरान साक्षियों, जिनके अन्तर्गत अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति भी हैं, यात्रा और भरण-पोषण के व्यय की व्यवस्थाः
(iii) अत्याचारों से पीड़ित व्यक्तियों के आर्थिक और सामाजिक पुनरुद्धार की व्यवस्था;
(iv) इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन के लिए अभियोजन प्रारम्भ करने या उनका पर्यवेक्षण करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति ;
(v) ऐसे समुचित स्तरों पर, जो राज्य सरकार ऐसे उपायों की रचना या उनके क्रियान्वयन के लिए उस सरकार की सहायता करने के लिए ठीक समझे, समितियों की स्थापना करना ;
(vi) इस अधिनियम के उपबंधों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए उपायों का सुझाव देने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबंधों के कार्यकरण का समय-समय पर सर्वेक्षण करने की व्यवस्था;
(vii ) उन क्षेत्रो की पहचान करना जहाँ अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्याचार होने की संभावना है और ऐसे उपाय करना जिससे कि ऐसे सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
(3) केन्द्रीय सरकार, ऐसे उपाय करेगी जो उपधारा (1) के अधीन राज्य सहकारों द्वारा किए गए उपायों में समन्वय करने के लिए यावश्यक हो।
(4) केन्द्रीय सरकार, प्रत्येक वर्ष, संसद् के प्रत्येक सदन के पटल पर इस धारा के उपबंधों के अनुसरण में स्वयं उसके द्वारा और राज्य सरकारों द्वारा किए गए उपायों के संबंध में एक रिपोर्ट रखेगी।
22. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण – इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार के विरुद्ध या, राज्य सरकार या सरकार के किसी अधिकारी या प्राधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी।
23. नियम बनाने की शक्ति – (1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी।
(2) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब यह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।