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अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश में अन्तर | Difference between temporary and perpetual injunctions in Hindi

अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश में अन्तर | Difference between temporary and perpetual injunctions in Hindi

अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश में अन्तर

अस्थायी व्यादेश (निषेधाज्ञा) (Temporary Injunction)

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 37 (1) के अनुसार अस्थायी व्यादेश किसी निश्चित समय या न्यायालय के अग्रिम आदेश तक जारी किये जा सकते हैं और वादी और वाद दौरान किसी भी अवस्था में प्रार्थना करने पर जारी किये जा सकते हैं तथा दीवानी प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों द्वारा विनियमित होंगे। दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 के नियम 1 एवं 2 में कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय द्वारा अस्थायी व्यादेश जारी करने का अधिकार प्रावधानित है।

स्थायी व्यादेश ( निषेधाज्ञा ) (Perpetual Injunction)

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 38 स्थायी व्यादेश के सम्बन्ध में प्रावधान करती है। डिक्री के ऊपर में स्थायी व्यादेश उस समय जारी किया जा सकता है जब वाद को गुणों के आधार पर दोनों पक्षों को सुनने के बाद निपटाया जाता है। इसके द्वारा प्रतिवादी को स्थायी रूप से यह आदेश दिया जाता है कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग या किसी कार्य को इस प्रकार से न करे, जिससे वादी के अधिकारों का हनन होता हो।

अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश में अन्तर

अस्थायी व्यादेश स्थायी व्यादेश
1. यह वाद दायर करने के बाद किसी भी अवस्था में प्रदान किया जा सकता है।1. स्थायी व्यादेश तब ही प्रदान किया जाता है जब वादी ने अपने पक्ष में अधिकार के अस्तित्व को सिद्ध कर दिया हो।
2. अस्थायी व्यादेश आदेश से प्रदान किया जाता है।2. यह आज्ञप्ति द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है।
3. अस्थायी व्यादेश वाद के अन्त तक ही रहता है।3. यह पक्षकारों के अधिकारों का निर्णय है तथा प्रतिवादी को शिकायत किये गये कार्य करने से रोकता है।
4. यह अस्थायी प्रकार का उपचार है।4. स्थायी व्यादेश वास्तव में आज्ञप्ति है तथा यह स्थायी उपचार है।
5. इसका उद्देश्य वाद के दौरान विवादित सम्पत्ति को यथास्थिति रखना होता है।5. इसका उद्देश्य वादी के अधिकार की रक्षा करना है।
6. यह व्यवहार प्रक्रिया संहिता से निगमित होता है।6. यह विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम की धारा 38 से 42 तक से निगमित होता है।

अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश में अन्तर FAQ

  1. अस्थायी व्यादेश (निषेधाज्ञा) क्या है ?

    विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 37 (1) के अनुसार अस्थायी व्यादेश किसी निश्चित समय या न्यायालय के अग्रिम आदेश तक जारी किये जा सकते हैं

  2. अस्थायी तथा स्थायी व्यादेश में अंतर क्या है ?

    अस्थायी व्यादेश वाद दायर करने के बाद किसी भी अवस्था में प्रदान किया जा सकता है।स्थायी व्यादेश तब ही प्रदान किया जाता है जब वादी ने अपने पक्ष में अधिकार के अस्तित्व को सिद्ध कर दिया हो।

  3. स्थायी व्यादेश ( निषेधाज्ञा ) क्या है ?

    विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 38 स्थायी व्यादेश के सम्बन्ध में प्रावधान करती है। इसके द्वारा प्रतिवादी को स्थायी रूप से यह आदेश दिया जाता है कि वह अपने अधिकारों का प्रयोग या किसी कार्य को इस प्रकार से न करे, जिससे वादी के अधिकारों का हनन होता हो।

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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