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दहेज प्रतिषेध अधिनियम,1961 | Dowry prohibition act, 1961 in hindi

दहेज प्रतिषेध अधिनियम,1961

(1961 का अधिनियम संख्यांक 28)

[20 मई,1961]

दहेज का देना या लेना प्रतिषध्द करने के लिए अधिनियम

भारत गणराज्य के बारहवें वर्ष में संसद दवारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ- (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 है ।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है ।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

2. दहेज” की परिभाषा- इस अधिनियम में, “दहेज” से कोई ऐसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति अभिप्रेत है जो विवाह के समय या उसके पूर्व [या पश्चात्‌ किसी समय] –
(क) विवाह के एक पक्षकार द्वारा विवाह के दूसरे पक्षकार को ; या
(ख) विवाह के किसी भी पक्षकार के माता-पिता द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के किसी भी पक्षकार को या किसी अन्य व्यक्ति को,
[उक्त पक्षकारों के विवाह के संबंध में] या तो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः दी गई है या दी जाने के लिए करार की गई है, किन्तु उन व्यक्तियों के संबंध में जिन्हें मुस्लिम स्वीय विधि (शरीयत) लागू होती है, मेहर इसके अंतर्गत नहीं है।

स्पष्टीकरण:- “मूल्यबान प्रतिभूति” का वही अर्थ है जो भारतीय दंड संहिता 1890 का 45 की धारा 30 में है |

3. दहेज देने या दहेज लेने के लिए शास्ति – (1) यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात्‌ दहेज देगा या लेगा अथवा दहेज देना या लेना दुष्प्रेरित करेगा [तो वह कारावास से, जिसकी अवधि [पांच वर्ष से कम की नहीं होगी, और जुर्माने से, जो पन्द्रह हजार रुपए से या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम तक का, इनमें से जो भी अधिक हो, कम नहीं होगा] दण्डनीय होगा :

परन्तु न्यायालय, ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, [पांच वर्ष] से कम की किसी अवधि के कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा।

(2) उपधारा (1) की कोई बात, –
(क) ऐसी भेंटों को, जो वधू को विवाह के समय (उस निमित्त कोई मांग किए बिना) दी जाती है या उनके संबंध में लागू नहीं होंगी :

परन्तु यह तब जब कि ऐसी भेंटें इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार रखी गई सूची में दर्ज की जाती हैं ;

(ख) ऐसी भेंटों को जो वर को विवाह के समय (उस निमित्त कोई मांग किए बिना) दी जाती हैं या उनके संबंध में लागू नहीं होगी :

परन्तु यह तब जब कि ऐसी भेंटें, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों के अनुसार रखी गई सूची में दर्ज की जाती है :

परन्तु यह और कि जहां ऐसी भेंटें जो वधू द्वारा या उसकी ओर से या किसी व्यक्ति द्वारा जो वधू का नातेदार है दी जाती है वहां ऐसी भेंटें रूढ़िगत प्रकृति की हैं और उनका मूल्य, ऐसे व्यक्ति की वित्तीय प्रास्थिति को ध्यान में रखते हुए, जिसके द्वारा या जिसकी ओर से ऐसी भेंटें दी गई हैं अधिक नहीं हैं।

4. दहेज मांगने के लिए शास्ति – यदि कोई व्यक्ति, यथास्थिति, वधू या वर के माता-पिता या अन्य नातेदार या संरक्षक, से किसी दहेज की प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से मांग करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किन्तु दो वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा :

परन्तु न्यायालय ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, छह मास से कम की किसी अवधि के कारावास का दण्डादेश अधिरोपित कर सकेगा।

4(क ). विज्ञापन पर पाबंदी- यदि कोई व्यक्ति

(क) अपने पुत्र या पुत्री या किसी अन्य नातेदार के विवाह के प्रतिफलस्वरूप किसी समाचारपत्र, नियतकालिक पत्रिका, जरनल या किसी अन्य माध्यम से, अपनी संपत्ति या किसी धन के अंश या दोनों के किसी कारबार या अन्य हित में किसी अंश की प्रस्थापना करेगा;

(ख) खण्ड (क) में निर्दिष्ट कोई विज्ञापन मुद्रित करेगा या प्रकाशित करेगा या परिचालित करेगा,
तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी, किन्तु जो पांच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पन्द्रह हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा :

परन्तु न्यायालय, ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, छह मास से कम की किसी अवधि के कारावास का दंडादेश अधिरोपित कर सकेगा।

5. दहेज देने या लेने के लिए करार का शून्य होना- दहेज देने या लेने के लिए करार शून्य होगा।

6. दहेज का पत्नी या उसके वारिसों के फायदे के लिए होना- (1) जहां कोई दहेज ऐसी स्त्री से भिन्न, जिसके विवाह के संबंध में वह दिया गया है, किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त किया जाता है, वहां वह व्यक्ति, उस दहेज को, –

(क) यदि वह दहेज विवाह से पूर्व प्राप्त किया गया था तो विवाह की तारीख के पश्चात्‌ [तीन मास] के भीतर ; या

(ख) यदि वह दहेज विवाह के समय या उसके पश्चात्‌ प्राप्त किय़ा गया था, तो उसकी प्राप्ति की तारीख के पश्चात्‌ [तीन मास] के भीतर; या

(ग) यदि वह उस समय जब स्त्री अवयस्क थी तब प्राप्त किया गया था तो उसके अठारह वर्ष आयु प्राप्त करने के पश्चात्‌ [तीन मास] के भीतर, स्त्री को अन्तरित कर देगा और ऐसे अन्तरण तक उसे न्यास के रूप में स्त्री के फायदे के लिए धारण करेगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) द्वारा अपेक्षित किसी संपत्ति का, उसके लिए विनिर्दिष्ट परिसीमा काल के भीतर [या उपधारा (3) द्वारा अपेक्षित] अन्तरण करने में असमर्थ रहेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, [जो पांच हजार रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु दस हजार रुपए तक का हो सकेगा] या दोनों से, दंडनीय होगा।

(3) जहां उपधारा (1) के अधीन किसी संपत्ति के लिए हकदार स्त्री की उसे प्राप्त करने के पूर्व मृत्यु हो जाती है, वह स्त्री के वारिस उसे तत्समय धारण करने वाले व्यक्ति से दावा करने के हकदार होंगे :

[परन्तु जहां ऐसी स्त्री की मृत्यु उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर प्राकृतिक कारणों से अन्यथा हो जाती है वहां ऐसी संपत्ति, –

(क) यदि उसकी कोई संतान नहीं है तो उसके माता-पिता को अंतरित की जाएगी, या

(ख) यदि उसकी संतान है तो उसकी ऐसी संतान को अंतरित की जाएगी और ऐसे अंतरण तक ऐसी संतान के लिए न्यास के रूप में धारण की जाएगी ।

(3क) जहां उपधारा (1) [या उपधारा (3)] द्वारा अपेक्षित संपत्ति का अंतरण करने में असफल रहने के लिए, उपधारा (2) के अधीन सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति ने, उस उपधारा के अधीन उसके सिद्धदोष ठहराए जाने के पूर्व, ऐसी संपत्ति का, उसके लिए हकदार स्त्री को या, यथास्थिति, [उसके वारिसों, माता-पिता या संतान को अंतरण नहीं किया है वहां, न्यायालय उस उपधारा के अधीन दण्ड अधिनिर्णीत करने के अतिरिक्त, लिखित आदेश द्वारा, यह निदेश देगा कि ऐसा व्यक्ति, ऐसी संपत्ति का, यथास्थिति, ऐसी स्त्री या [उसके वारिसों, माता-पिता या संतान को ऐसी अवधि के भीतर जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, अंतरण करे और यदि ऐसा व्यक्ति ऐसे निदेश का इस प्रकार विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर अनुपालन करने में असफल रहेगा तो संपत्ति के मूल्य के बराबर रकम उससे ऐसे वसूल की जा सकेगी मानो वह ऐसे न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो और उसका, यथास्थिति, उस स्त्री या [उसके वारिसों, माता-पिता या संतानट को संदाय किया जा सकेगा ।

(4) इस धारा की कोई बात धारा 3 या धारा 4 के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगी ।

7. अपराधों का संज्ञान- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, –

(क) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा;

(ख) कोई न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का संज्ञान, –
(i) अपनी जानकारी पर या ऐसे अपराध को गठित करने वाले तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट पर, या
(ii) अपराध से व्यथित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति के माता-पिता या अन्य नातेदार द्वारा अथवा किसी मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन द्वारा किए गए परिवाद पर, ही करेगा, अन्यथा नहीं;

(ग) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के विरुद्ध, इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत कोई दण्डादेश पारित करे ।

स्पष्टीकरण – इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, “मान्यताप्राप्त कल्याण संस्था या संगठन” से कोई ऐसी समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है जिसे इस निमित्त केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा मान्यता दी गई है ।

(2) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 36 की कोई बात इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध को लागू नहीं होगी ।

(3) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी बात के होते हुए भी, अपराध से व्यथित व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कथन ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन अभियोजन का भागी नहीं बनाएगा।

8. अपराधों का कुछ प्रयोजनों के लिए संज्ञेय होना तथा जमानतीय और अशमनीय होना- (1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) इस अधिनियम के अधीन अपराधों को वैसे ही लागू होगी मानो वे –

(क) ऐसे अपराधों के अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए; और
(ख) निम्नलिखित से भिन्न विषयों के प्रयोजनों के लिए –

(i) उस संहिता की धारा 42 में विनिर्दिष्ट विषय; और
(ii) किसी व्यक्ति को वारण्ट के बिना या मजिस्ट्रेट के किसी आदेश के बिना गिरफ्तारी, संज्ञेय अपराध हों ।

(2) इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक अपराध [अजमानतीय] और अशमनीय होगा।

8(क). कुछ मामलों में सबूत का भार- जहां कोई व्यक्ति धारा 3 के अधीन कोई दहेज लेने या दहेज का लेना दुष्प्रेरित करने के लिए या धारा 4 के अधीन दहेज मांगने के लिए अभियोजित किया जाता है वहां यह साबित करने का भार उसी पर होगा कि उसने उन धाराओं के अधीन कोई अपराध नहीं किया है।

8(ख). दहेज प्रतिषेध अधिकारी- (1) राज्य सरकार उतने दहेज प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त कर सकेगी जितने वह ठीक समझे और वे क्षेत्र निर्दिष्ट कर सकेगी जिनकी बाबत वे अपनी अधिकारिता और शक्तियों का प्रयोग इस अधिनियम के अधीन करेंगे।

(2) प्रत्येक दहेज प्रतिषेध अधिकारी निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात्‌ :-
(क) यह देखना कि इस अधिनियम के उपबंधों का अनुपालन किया जाता है ;
(ख) दहेज देने या दहेज लेने को दुष्प्रेरित करने या दहेज मांगने को यथासंभव रोकना ;
(ग) इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाले व्यक्तियों के अभियोजन के लिए ऐसा साक्ष्य एकत्र करना जो आवश्यक हो ; और
(घ) ऐसे अतिरिक्त कार्य करना जो राज्य सरकार द्वारा उसे सौंपे जाएं या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।

(3) राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा दहेज प्रतिषेध अधिकारी को किसी पुलिस अधिकारी की ऐसी शक्तियां प्रदत्त कर सकेगी जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग ऐसी परिसीमाओं और शर्तों के अधीन रहते हुए करेगा जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएं।

(4) राज्य सरकार दहेज प्रतिषेध अधिकारी को इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के दक्ष पालन में सलाह देने और सहायता करने के प्रयोजन के लिए, एक सलाहकार बोर्ड नियुक्त कर सकेगी जिसमें उस क्षेत्र से, जिसकी बाबत ऐसा दहेज प्रतिषेध अधिकारी उपधारा (1) के अधीन अधिकारिता का प्रयोग करता है, पांच से अनधिक समाज कल्याण कार्यकर्ता होंगे (जिनमें से कम से कम दो महिलाएं होंगी)।

9. नियम बनाने की शक्ति- (1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकती है ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्‌: –

(क) वह प्ररूप जिसमें और वह रीति जिससे और ऐसे व्यक्ति जिनके द्वारा धारा 3 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट भेंटों की कोई सूची रखी जाएगी और उनसे संबंधित सभी अन्य विषय; और

(ख) इस अधिनियम के प्रशासन की बाबत नीति और कार्रवाई का बेहतर समन्वय।

(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र संसद्‌ के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा [यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व] दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात्‌ वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात्‌ वह निष्प्रभाव हो जाएगा किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

10. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति – (1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजन को कार्यान्वित करने के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियम बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात्‌: –

(क) दहेज प्रतिषेध अधिकारियों द्वारा धारा 8ख की उपधारा (2) के अधीन पालन किए जाने वाले अतिरिक्त कृत्य;

(ख) वे परिसीमाएं और शर्तें जिनके अधीन रहते हुए दहेज प्रतिषेध अधिकारी धारा 8ख की उपधारा (3) के अधीन अपने कृत्यों का प्रयोग कर सकेंगे।

(3) राज्य सरकार द्वारा इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात्‌ यथाशीघ्र राज्य विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा।

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