धारा 102 भारतीय साक्ष्य अधिनियम – सबूत का भार किस पर होता है —
किसी वाद या कार्यवाही में सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो असफल हो जाएगा, यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई भी साक्ष्य न दिया जाए।
दृष्टांत
(क) ख पर उस भूमि के लिए क वाद लाता है जो ख के कब्जे में है और जिसके बारे में क प्राख्यान करता है कि वह ख के पिता ग की विल द्वारा क के लिए दी गई थी।
यदि किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाए, तो ख इसका हकदार होगा कि वह अपना कब्जा रखे रहे।
अतः सबूत का भार क पर है।
(ख) ख पर एक बंधपत्र मद्धे शोध्य धन के लिए क वाद लाता है।
उस बंधपत्र का निष्पादन स्वीकृत है, किन्तु ख कहता है कि वह कपट द्वारा अभिप्राप्त किया गया था, जिस बात का क प्रत्याख्यान करता है।
यदि दोनों में से किसी भी ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया जाए, तो क सफल होगा, क्योंकि बंधपत्र विवादग्रस्त नहीं है और कपट साबित नहीं किया गया।
अतः सबूत का भार ख पर है।
Section 102 Indian Evidence Act – On whom burden of proof lies —
The burden of proof in a suit or proceeding lies on that person who would fail if no evidence at all were given on either side.
Illustrations
(a) A sues B for land of which B is in possession, and which, as A asserts, was left to A by the Will of C, B’s father.
If no evidence were given on either side, B would be entitled to retain his possession.
Therefore, the burden of proof is on A.
(b) A sues B for money due: on a bond.
The execution of the bond is admitted, but B says that it was obtained by fraud, which A denies.
If no evidence were given on either side, A would succeed, as the bond is not disputed and the fraud is not proved.
Therefore, the burden of proof is on B.