धारा 136 भारतीय साक्ष्य अधिनियम – न्यायाधीश साक्ष्य की ग्राह्यता के बारे में निश्चय करेगा —
जबकि दोनों में से कोई पक्षकार किसी तथ्य का साक्ष्य देने की प्रस्थापना करता है, तब न्यायाधीश साक्ष्य देने की प्रस्थापना करने वाले पक्षकार से पूछ सकेगा कि अभिकथित तथ्य, यदि वह साबित हो जाए, किसी प्रकार सुसंगत होगा, और यदि न्यायाधीश यह समझता है कि वह तथ्य यदि साबित हो गया तो सुसंगत होगा, तो वह उस साक्ष्य को ग्रहण करेगा, अन्यथा नहीं।
यदि वह तथ्य, जिसका साबित करना प्रस्थापित है, ऐसा है जिसका साक्ष्य किसी अन्य तथ्य के साबित होने पर ही ग्राह्य होता है, तो ऐसा अंतिम वर्णित तथ्य प्रथम वर्णित तथ्य का साक्ष्य दिए जाने के पूर्व साबित करना होगा, जब तक कि पक्षकार ऐसे तथ्य को साबित करने का वचन न दे दे और न्यायालय ऐसे वचन से संतुष्ट न हो जाए।
यदि एक अभिकथित तथ्य की सुसंगति अन्य अभिकथित तथ्य के प्रथम साबित होने पर निर्भर हो, तो न्यायाधीश अपने विवेकानुसार या तो दूसरे तथ्य के साबित होने के पूर्व प्रथम तथ्य का साक्ष्य दिया जाना अनुज्ञात कर सकेगा, या प्रथम तथ्य का साक्ष्य दिए जाने के पूर्व द्वितीय तथ्य का साक्ष्य दिए जाने की अपेक्षा कर सकेगा।
दृष्टांत
(क) यह प्रस्थापना की गई है कि एक व्यक्ति के, जिसका मृत होना अभिकथित है, सुसंगत तथ्य के बारे में एक कथन को, जो कि धारा 32 के अधीन सुसंगत है, साबित किया जाए।
इससे पूर्व कि उस कथन का साक्ष्य दिया जाए उस कथन के साबित करने की प्रस्थापना करने वाले व्यक्ति को यह तथ्य साबित करना होगा कि वह व्यक्ति मर गया है।
(ख) यह प्रस्थापना की गई है कि ऐसी दस्तावेज़ की अंतर्वस्तु को, जिसका खोई हुई होना कथित है, प्रतिलिपि
द्वारा साबित किया जाए।
यह तथ्य कि मूल खो गया है प्रतिलिपि पेश करने की प्रस्थापना करने वाले व्यक्ति को वह प्रतिलिपि पेश करने से पूर्व साबित करना होगा।
(ग) क चुराई हुई सम्पत्ति को यह जानते हए कि वह चुराई हई है प्राप्त करने का अभियक्त है।
यह साबित करने की प्रस्थापना की गई है कि उसने उस सम्पत्ति के कब्जे का प्रत्याख्यान किया। इस प्रत्याख्यान की सुसंगति सम्पत्ति की अनन्यता पर निर्भर है। न्यायालय अपने विवेकानुसार या तो कब्जे के प्रत्याख्यान के साबित होने से पूर्व सम्पत्ति की पहचान की जानी अपेक्षित कर सकेगा, या संपत्ति की पहचान की जाने के पूर्व कब्जे का प्रत्याख्यान साबित किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा।
(घ) किसी तथ्य (क) के, जिसका किसी विवाद्यक तथ्य का हेतुक या परिणाम होना कथित है, साबित करने की प्रस्थापना की गई है। कई मध्यांतरिक तथ्य (ख), (ग) और (घ) हैं, जिनका इसके पूर्व की तथ्य (क) उस विवाद्यक तथ्य का हेतुक या परिणाम माना जा सके, अस्तित्व में होना दर्शित किया जाना आवश्यक है। न्यायालय या तो ख, ग या घ के साबित किए जाने के पूर्व क के साबित किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगा, या क का साबित किया जाना अनुज्ञात करने के पूर्व ख, ग और घ का साबित किया जाना अपेक्षित कर सकेगा।
Section 136 Indian Evidence Act – Judge to decide as to admissibility of evidence —
When either party proposes to give evidence of any fact, the Judge may ask the party proposing to give the evidence in what manner the alleged fact, if proved, would be relevant; and the Judge shall admit the evidence if he thinks that the fact, if proved, would be relevant, and not otherwise.
If the fact proposed to be proved is one of which evidence is admissible only upon proof of some other fact, such last-mentioned fact must be proved before evidence is given of the fact first-mentioned, unless the party undertakes to give proof of such fact, and the Court is satisfied with such undertaking.
If the relevancy of one alleged fact depends upon another alleged fact being first proved, the Judge may, in his discretion, either permit evidence of the first fact to be given before the second fact is proved, or require evidence to be given of the second fact before evidence is given of the first fact.
Illustrations
(a) It is proposed to prove a statement about a relevant fact by a person alleged to be dead, which statement is relevant under section 32. धारा 136 भारतीय साक्ष्य अधिनियम
The fact that the person is dead must be proved by the person proposing to prove the statement, before evidence is given of the statement.
(b) It is proposed to prove, by a copy, the contents of a document said to be lost.
The fact that the original is lost must be proved by the person proposing to produce the copy, before the copy is produced. धारा 136 भारतीय साक्ष्य अधिनियम
(c) A is accused of receiving stolen property knowing it to have been stolen.
It is proposed to prove that he denied the possession of the property.
The relevancy of the denial depends on the identity of the property. The Court may, in its discretion, either require the property to be identified before the denial of the possession is proved, or permit the denial of the possession to be proved before the property is identified. धारा 136 भारतीय साक्ष्य अधिनियम
(d) It is proposed to prove a fact (A) which is said to have been the cause or effect of fact in issue. There are several intermediate facts (B, C and D) which must be shown to exist before the fact (A) can be regarded as the cause or effect of the fact in issue. The Court may either permit A to be proved before B, C or D is proved, or may require proof of B, C and D before permitting proof of A.