धारा 2 परिसीमा अधिनियम — परिभाषाएं-
इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो-
(क) “आवेदक” के अन्तर्गत आता है-
(i) अर्जीदार;
(ii) वह व्यक्ति, जिससे या जिसके माध्यम से आवेदक आवेदन करने का अपना अधिकार व्युत्पन्न करता है;
(iii) वह व्यक्ति जिसकी सम्पदा का प्रतिनिधित्व आवेदक द्वारा निष्पादक, प्रशासक या अन्य प्रतिनिधि के तौर पर किया जाता है;
(ख) “आवेदन” के अन्तर्गत अर्जी आती है;
(ग) “विनिमय पत्र” के अन्तर्गत हुण्डी और चेक आते हैं;
(घ) “बन्धपत्र” के अन्तर्गत ऐसी कोई लिखत आती है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति किसी अन्य को धन देने के लिए अपने को इस शर्त पर बाध्यता के अधीन कर लेता है कि यदि कोई विनिर्दिष्ट कार्य किया जाए या न किया जाए, जैसी भी स्थिति हो, तो वह बाध्यता शून्य हो जाएगी;
(ङ) “प्रतिवादी” के अन्तर्गत आता है-
(i) वह व्यक्ति जिससे या जिसके माध्यम से प्रतिवादी यह दायित्व व्युत्पन्न करता है कि उस पर वाद लाया जा सके;
(ii) वह व्यक्ति जिसकी सम्पदा का प्रतिनिधित्व प्रतिवादी द्वारा निष्पादक, प्रशासक या अन्य प्रतिनिधि के रूप में किया जाता है;
(च) “सुखाचार” के अन्तर्गत आता है संविदा से उद्भूत न होने वाला ऐसा अधिकार जिसके द्वारा कोई व्यक्ति किसी अन्य की भूमि के किसी भाग को या किसी अन्य की भूमि में उगी हुई या उससे संलग्न या उस पर अस्तित्ववान् किसी चीज को हटाने और अपने लाभ के लिए विनियोजित करने का हकदार होता है;
(छ) “विदेश” से अभिप्रेत है भारत से भिन्न कोई भी देश;
(ज) “सद्भाव” कोई भी बात, जो सम्यक् सतर्कता और ध्यान से नहीं की गई है सद्भावपूर्वक की गई नहीं समझी जाएगी;
(झ) “वादी” के अन्तर्गत आता है-
(i) वह व्यक्ति जिससे या जिसके माध्यम से वादी वाद लाने का अपना अधिकार व्युत्पन्न करता है;
(ii) वह व्यक्ति जिसकी सम्पदा का प्रतिनिधित्व वादी द्वारा निष्पादक, प्रशासक या अन्य प्रतिनिधि के रूप में किया जाता है;
(ञ) “परिसीमा काल” से वह परिसीमा काल अभिप्रेत है, जो किसी वाद, अपील या आवेदन के लिए अनुसूची द्वारा विहित है और विहित काल” से वह परिसीमा काल अभिप्रेत है जो उस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार संगणित परिसीमा काल हो;
(ट) “वचनपत्र” से ऐसी लिखत अभिप्रेत है जिसके द्वारा उसका रचयिता किसी अन्य को धन की कोई विनिर्दिष्ट राशि उसमें परिसीमित करते समय पर या मांग की जाने पर या दर्शन पर देने के लिए आत्यन्तिकतः वचनबद्ध होता है;
(ठ) “वाद” के अन्तर्गत अपील या आवेदन नहीं आता है;
(ड) “अपकृत्य” से ऐसा सिविल दोष अभिप्रेत है जो केवल संविदा भंग या न्यासभंग न हो;
(ढ) “न्यासी” के अन्तर्गत बेनामीदार, बंधक की तुष्टि हो जाने के पश्चात् कब्जे में बना रहने वाला बंधकदार या हक के बिना सदोष कब्जा रखने वाला व्यक्ति नहीं आता ।
Section 2 Limitation Act — Definitions —
In this Act, unless the context otherwise requires,–
(a) “applicant” includes–
(i) a petitioner;
(ii) any person from or through whom an applicant derives his right to apply;
(iii) any person whose estate is represented by the applicant as executor, administrator or other representative;
(b) “application” includes a petition;
(c) “bill of exchange” includes a hundi and a cheque;
(d) “bond” includes any instrument whereby a person obliges himself to pay money to another, on condition that the obligation shall be void if a specified act is performed, or is not performed, as the case may be;
(e) “defendant” includes–
(i) any person from or through whom a defendant derives his liability to be sued;
(ii) any person whose estate is represented by the defendant as executor, administrator or other representative;
(f) “easement” includes a right not arising from contract, by which one person is entitled to remove and appropriate for his own profit any part of the soil belonging to another or anything growing in, or attached to, or subsisting upon, the land of another;
(g) “foreign country” means any country other than India;
(h) “good faith”–nothing shall be deemed to be done in good faith which is not done with due care and attention; धारा 2 परिसीमा अधिनियम
(i) “plaintiff” includes–
(i) any person from or through whom a plaintiff derives his right to sue;
(ii) any person whose estate is represented by the plaintiff as executor, administrator or other representative; धारा 2 परिसीमा अधिनियम
(j) “period of limitation” means the period of limitation prescribed for any suit, appeal or application by the Schedule, and “prescribed period” means the period of limitation computed in accordance with the provisions of this Act;
(k) “promissory note” means any instrument whereby the maker engages absolutely to pay a specified sum of money to another at a time therein limited, or on demand, or at sight; धारा 2 परिसीमा अधिनियम
(l) “suit” does not include an appeal or an application;
(m) “tort” means a civil wrong which is not exclusively the breach of a contract or the breach of a trust;
(n) “trustee” does not include a benamidar, a mortgagee remaining in possession after the mortgage has been satisfied or a person in wrongful possession without title.