धारा 21 परिसीमा अधिनियम — नया वादी या प्रतिवादी प्रतिस्थापित करने या जोड़ने का प्रभाव-
(1) जहां कि वाद संस्थित होने के पश्चात् कोई नया वादी या प्रतिवादी प्रतिस्थापित किया या जोड़ा जाए वहां वाद, जहां तक कि उसका संबंध है, तब संस्थित किया जाएगा जब वह इस प्रकार पक्षकार बनाया गया था:
परन्तु जहां कि न्यायालय का समाधान हो जाए कि नए वादी या प्रतिवादी को अन्तर्विष्ट करने में लोप सद्भावपूर्वक की गई भूल से हुआ था, वहां वह यह निदेश दे सकेगा कि वाद, जहां तक ऐसे वादी या प्रतिवादी का संबंध है, किसी पूर्ववर्ती तारीख से संस्थित किया गया समझा जाएगा ।
(2) उपधारा (1) की कोई बात ऐसे मामले को लागू न होगी जिसमें वाद के लम्बित रहने के दौरान हुए किसी हित के समनुदेशन या न्यागमन के कारण कोई पक्षकार जोड़ा या प्रतिस्थापित किया जाए या जिसमें कि वादी को प्रतिवादी या प्रतिवादी को वादी बनाया जाए ।
Section 21 Limitation Act — Effect of substituting or adding new plaintiff or defendant–
(1) Where after the institution of a suit, a new plaintiff or defendant is substituted or added, the suit shall, as regards him, be deemed to have been instituted when he was so made a party:
Provided that where the court is satisfied that the omission to include a new plaintiff or defendant was due to a mistake made in good faith it may direct that the suit as regards such plaintiff or defendant shall be deemed to have been instituted on any earlier date.
(2) Nothing in sub-section (1) shall apply to a case where a party is added or substituted owing to assignment or devolution of any interest during the pendency of a suit or where a plaintiff is made a defendant or a defendant is made a plaintiff.