धारा 4 भारतीय साक्ष्य अधिनियम – “उपधारणा कर सकेगा” —
जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह उपबंधित है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा, वहां न्यायालय या तो ऐसे तथ्य को साबित हुआ मान सकेगा, यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है, या उसके सबूत की मांग कर सकेगा :
“उपधारणा करेगा” — जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह निर्दिष्ट है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा करेगा, वहां न्यायालय ऐसे तथ्य को साबित मानेगा यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है।
”निश्चायक सबूत” — जहां कि इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया गया है, वहां न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित मानेगा और उसे नासाबित करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य दिए जाने की अनुज्ञा नहीं देगा।
FAQ
साक्ष्य अधिनियम में उपधारणायें कितने प्रकार की है?
तीन प्रकार की
‘उपाधारणा’ का क्या अर्थ है?
उपधारणा एक तथ्य का अनुमान है जो किन्हीं अन्य जाने हुए या साबित किये हुए तथ्यों से निकाला जाता है। इस तरह यह एक अनुमान है जो विपरीत साक्ष्य न मिलने पर की जाती है।
न्यायालय किन तथ्यों की उपधारणा कर सकेगा?
साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 के अनुसार जहाँ कहीं इस अधिनियम द्वारा यह उपबन्धित है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा, वहां न्यायालय या तो ऐसे तथ्य को साबित हुआ मान सकेगा यदि और जब तक वह साबित नहीं किया जाता है या उसके सबूत की मांग कर सकेगा।
साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत “उपधारणा करेगा” से क्या तात्पर्य है?
जहां कहीं इस अधिनियम द्वारा यह निर्दिष्ट है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा करेगा, वहां न्यायालय ऐसे तथ्य को साबित मानेगा यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है।
निश्चायक सबूत क्या है ?
साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 के अनुसार — जहां कि इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया गया है, वहां न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित मानेगा और उसे नासाबित करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य दिए जाने की अनुज्ञा नहीं देगा।
निश्चायक सबूत को साक्ष्य अधिनियम में कहा परिभाषित किया गया है ?
साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 मेंl
विधि की उपधारणा एवं तथ्य की उपधारणा में क्या अन्तर है?
विधि की उपधारणा एवं तथ्य की उपधारणा में निम्न अंतर है–
(1) विधिक उपधारणाएँ विधि से अपनी शक्ति प्राप्त करती है। जब कि तथ्य की तर्क से
(2) विधिक उपधारणा निश्चित एवं समान वर्ग को लागू होती है जब कि तथ्य की अनिश्चित एवं परिवर्ती वर्ग को
(3) विधिक उपधारणाएँ न्यायालय के निष्कर्ष है और विपरीत समय के अभाव में उस पक्षकार के हक में निश्चयाक होती है जिनके हक में लागू होती है। जबकि तथ्य की उपधारणाएँ जूरी द्वारा निष्कर्षित होती है जो चाहे जितनी मजबूत हो, उनकी उपेक्षा कर सकती है।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की किन धाराओं में अखण्डनीय उपधारणा का वर्णन है?
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 41, 112, 113, 115,116 और 117 में |
क्या उपधारणाएँ स्वयं में साक्ष्य है?
उपधारणाएं स्वयं में साक्ष्य नहीं है|
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की किन धाराओं में खण्डनीय उपधारणाएं समाहित है?
ये उपधारणाएं अधिनियम की धारा 85 तथा धारा 105 में समाहित हैं।
खण्डनीय उपधारणाओं से क्या तात्पर्य है?
खण्डनीय उपधारण वे निष्कर्ष है जिन्हें न्यायालय निकालने के लिए बाध्य है जब तक कि विपरीत साक्ष्य द्वारा उसे खण्डित नहीं किया जाता
विधि की उपधारणाओं से क्या तात्पर्य है?
विधि की उपधारणाएं कृत्रिम अनुमान है। ये कानूनी और इच्छाधीन अनुमान होते हैं जिन्हें कानून किन्हीं खास तथ्यों से निकालने के लिए न्यायाधीश को निर्दिष्ट करता है।
तथ्य की उपधारणाओं की प्रकृति क्या है?
तथ्य की उपधारणायें सर्वदा विखण्डनीय होती है।
Section 4 Indian Evidence Act –“May presume” –
Whenever it is provided by this Act that the Court may presume a fact, it may either regard such fact as proved, unless and until it is disproved or may call for proof of it :
“Shall presume” – Whenever it is directed by this Act that the Court shall presume a fact, it shall regard such fact as proved, unless and until it is disproved. धारा 4 भारतीय साक्ष्य अधिनियम
“Conclusive proof” – When one fact is declared by this Act to be conclusive proof of another, the Court shall, on proof of the one fact, regard the other as proved, and shall not allow evidence to be given for the purpose of disproving it. धारा 4 भारतीय साक्ष्य अधिनियम