धारा 43D यूएपीए एक्ट — संहिता के कतिपय उपबंधों का उपातंरित रूप में लागू होना-
(1) संहिता या किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध संहिता की धारा 2 के खंड (ग) के अर्थ के भीतर संज्ञेय अपराध समझा जाएगा और उस खंड में यथा परिभाषित “संज्ञेय मामला” का तद्नुसार अर्थ लगाया जाएगा ।
(2) संहिता की धारा 167 ऐसे किसी मामले के संबंध में, जिसमें इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध अंतर्वलित है, इस उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगी कि उपधारा (2) में,-
(क) “पन्द्रह दिन”, “नब्बे दिन” और “साठ दिन” के प्रतिनिर्देशों का, जहां कहीं वे आते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमशः “तीस दिन”, “नब्बे दिन” और “नब्बे दिन” के प्रतिनिर्देश है; और
(ख) परंतुक के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंतःस्थापित किए जाएंगे, अर्थात्: –
“परंतु यह और कि यदि नब्बे दिन की उक्त अवधि के भीतर अन्वेषण पूरा करना संभव नहीं है तो न्यायालय, यदि वह लोक अभियोजक की अन्वेषण की प्रगति और नब्बे दिनों की उक्त अवधि से परे, अभियुक्त को निरुद्ध रखने के लिए विनिर्दिष्ट कारणों को उपदर्शित करने वाली रिपोर्ट से संतुष्ट है, उक्त अवधि को एक सौ अस्सी दिन तक विस्तारित कर सकेगा:
परन्तु यह भी कि यदि इस अधिनियम के अधीन अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए, न्यायिक अभिरक्षा में स्थित किसी व्यक्ति को न्यायिक अभिरक्षा से पुलिस अभिरक्षा में सौंपने का अनुरोध करता है तो वह ऐसा करने के कारणों का कथन करते हुए एक शपथपत्र फाइल करेगा और ऐसी पुलिस अभिरक्षा का अनुरोध करने के लिए किसी विलंब, यदि कोई हो, को भी स्पष्ट करेगा ।” ।
(3) संहिता की धारा 268 ऐसे किसी मामले के संबंध में जिसमें इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध अंतर्वलित है, इस उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू होगी कि,-
(क) उसकी उपधारा (1) में, –
(i) “राज्य सरकार” के प्रतिनिर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह “केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार” के प्रतिनिर्देश है;
(ii) “राज्य सरकार के आदेश” के प्रतिनिर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह “यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के आदेश” के प्रतिनिर्देश है; और
(ख) उसकी उपधारा (2) में “राज्य सरकार” के प्रतिनिर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह “यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार” के प्रतिनिर्देश है ।
(4) संहिता की धारा 438 में की कोई बात, किसी ऐसे मामले के संबंध में लागू नहीं होगी जिसमें किसी ऐसे अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी अंतर्वलित है, जिसने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया है ।
(5) संहिता में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अध्याय 4 और अध्याय 6 के अधीन दंडनीय किसी अपराध का अभियुक्त कोई व्यक्ति, यदि वह अभिरक्षा में है, जमानत पर या अपने ही बंधपत्र पर तब तक नहीं छोड़ा जाएगा जब तक लोक अभियोजक को ऐसे छोड़े जाने के लिए आवेदन पर सुनवाई का अवसर न दे दिया गया हो:
परंतु ऐसा अभियुक्त व्यक्ति जमानत पर या अपने ही बंधपत्र पर छोड़ा नहीं जाएगा यदि न्यायालय की केस डायरी या संहिता की धारा 173 के अधीन दी गई रिपोर्ट के परिशीलन पर यह राय है कि यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त आधार है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध अभियोग प्रथमदृष्ट्या सही है ।
(6) उपधारा (5) में विनिर्दिष्ट जमानत मंजूर किए जाने पर निर्बंधन, संहिता या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जमानत मंजूर करने संबंधी निर्बंधनों के अतिरिक्त हैं ।
(7) उपधारा (5) और उपधारा (6) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई जमानत इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति को अतिआपवादिक परिस्थितियों में के सिवाय और ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएं, मंजूर नहीं की जाएगी, यदि वह भारत का नागरिक नहीं है और उसने देश में अप्राधिकृत रूप से या अवैध-रूप से प्रवेश किया है ।
Section 43D UAPA Act — Modified application of certain provisions of the Code.–
(1) Notwithstanding anything contained in the Code or any other law, every offence punishable under this Act shall be deemed to be a cognizable offence within the meaning of clause (c) of section 2 of the Code, and “cognizable case” as defined in that clause shall be construed accordingly.
(2) Section 167 of the Code shall apply in relation to a case involving an offence punishable under this Act subject to the modification that in sub-section (2),–
(a) the references to “fifteen days”, “ninety days” and “sixty days”, wherever they occur, shall be construed as references to “thirty days”, “ninety days” and “ninety days” respectively; and
(b) after the proviso, the following provisos shall be inserted, namely:–
“Provided further that if it is not possible to complete the investigation within the said period of ninety days, the Court may if it is satisfied with the report of the Public Prosecutor indicating the progress of the investigation and the specific reasons for the detention of the accused beyond the said period of ninety days, extend the said period up to one hundred and eighty days:
Provided also that if the police officer making the investigation under this Act, requests, for the purposes of investigation, for police custody from judicial custody of any person in judicial custody, he shall file an affidavit stating the reasons for doing so and shall also explain the delay, if any, for requesting such police custody.
(3) Section 268 of the Code shall apply in relation to a case involving an offence punishable under this Act subject to the modification that–
(a) the reference in sub-section (1) thereof
(i) to “the State Government” shall be construed as a reference to “the Central Government or the State Government.”;
(ii) to “order of the State Government” shall be construed as a reference to “order of the Central Government or the State Government, as the case may be”; and
(b) the reference in sub-section (2) thereof, to ‘the State Government” shall be construed as a reference to “the Central Government or the State Government, as the case may be”. धारा 43D यूएपीए एक्ट
(4) Nothing in section 438 of the Code shall apply in relation to any case involving the arrest of any person accused of having committed an offence punishable under this Act.
(5) Notwithstanding anything contained in the Code, no person accused of an offence punishable under Chapters IV and VI of this Act shall, if in custody, be released on bail or on his own bond unless the Public Prosecutor has been given an opportunity of being heard on the application for such release: धारा 43D यूएपीए एक्ट
Provided that such accused person shall not be released on bail or on his own bond if the Court, on a perusal of the case diary or the report made under section 173 of the Code is of the opinion that there are reasonable grounds for believing that the accusation against such person is prima facie true.
(6) The restrictions on granting of bail specified in sub-section (5) is in addition to the restrictions under the Code or any other law for the time being in force on granting of bail. धारा 43D यूएपीए एक्ट
(7) Notwithstanding anything contained in sub-sections (5) and (6), no bail shall be granted to a person accused of an offence punishable under this Act, if he is not an Indian citizen and has entered the country unauthorisedly or illegally except in very exceptional circumstances and for reasons to be recorded in writing.]