धारा 5 यूएपीए एक्ट – अधिकरण-
(1) केन्द्रीय सरकार, जब आवश्यक हो, एक अधिकरण का गठन, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा कर सकेगी जो विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिकरण के नाम से ज्ञात होगा और जिसमें एक व्यक्ति होगा, जिसकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाएगी :
परन्तु किसी भी व्यक्ति को ऐसे नियुक्त न किया जाएगा जब तक कि वह किसी उच्च न्यायालय का न्यायधीश न हो ।
(2) यदि अधिकरण के पीठासीन अधिकारी के पद में (अस्थायी अनुपस्थिति से भिन्न) कोई रिक्ति किसी भी कारणवश हो जाती है तो केन्द्रीय सरकार उस रिक्ति को भरने के लिए इस धारा के उपबन्धों के अनुसार किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त करेगी और कार्यवाहियों को अधिकरण के समक्ष उस प्रक्रम से चालू किया जा सकेगा जिस प्रक्रम पर वह रिक्ति भरी गई हो ।
(3) केन्द्रीय सरकार, अधिकरण को ऐसे कर्मचारिवृन्द उपलभ्य करेगी जो इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हो ।
(4) अधिकरण के संबंध मे उपगत सभी व्यय भारत की संचित निधि में से चुकाए जाएंगे ।
(5) धारा 9 के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, अधिकरण को अपने कृत्यों के निर्वहन से उद्भूत होने वाले सभी मामलों में जिनके अन्तर्गत वह स्थान या वे स्थान आते हैं जहां वह अपनी बैठकें करेगा, अपनी प्रक्रिया विनियमित करने की शक्ति होगी ।
(6) इस अधिनियम के अधीन कोई जांच करने के प्रयोजन के लिए अधिकरण की शक्तियां निम्नलिखित जिलों के संबंध में वही होंगी जो किसी वाद के विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित होती हैं, अर्थात् :-
(क) किसी साक्षी को समन करना और हाजिर कराना तथा उसकी शपथ पत्र पर परीक्षा करना ;
(ख) साक्ष्य के रूप में पेश की जाने योग्य किसी दस्तावेज या अन्य भौतिक पदार्थ का प्रकटीकरण और उसका पेश किया जाना ;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य लेना ;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख को मंगाना ;
(ङ) साक्षियों की परीक्षा के लिए कोई कमीशन निकालना ।
(7) अधिकरण के समक्ष की गई कार्यवाही भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और 228 के अर्थ के अन्दर न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी और अधिकरण को संहिता की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा ।
Section 5 UAPA Act – Tribunal —
(1) The Central Government may, by notification in the Official Gazette, constitute, as and when necessary, a tribunal to be known as the “Unlawful Activities (Prevention) Tribunal” consisting of one person, to be appointed by the Central Government:
Provided that no person shall be so appointed unless he is a Judge of a High Court.
(2) If, for any reason, a vacancy (other than a temporary absence) occurs in the office of the presiding officer of the Tribunal, then, the Central Government shall appoint another person in accordance with the provisions of this section to fill the vacancy and the proceedings may be continued before the Tribunal from the stage at which the vacancy is filled.
(3) The Central Government shall make available to the Tribunal such staff as may be necessary for the discharge of its functions under this Act.
(4) All expenses incurred in connection with the Tribunal shall be defrayed out of the Consolidated Fund of India.
(5) Subject to the provisions of section 9, the Tribunal shall have power to regulate its own procedure in all matters arising out of the discharge of its functions including the place or places at which it will hold its sittings.
(6) The Tribunal shall, for the purpose of making an inquiry under this Act, have the same powers as are vested in a civil court under the Code of Civil Procedure, 1908 (5 of 1908), while trying a suit, in respect of the following matters, namely:
(a) the summoning and enforcing the attendance of any witness and examining him on oath;
(b) the discovery and production of any document or other material object producible as evidence; धारा 5 यूएपीए एक्ट
(c) the reception of evidence on affidavits;
(d) the requisitioning of any public record from any court or office;
(e) the issuing of any commission for the examination of witnesses.
(7) Any proceeding before the Tribunal shall be deemed to be a judicial proceeding within the meaning of sections 193 and 228 of the Indian Penal Code (45 of 1860) and the Tribunal shall be deemed to be a civil court for the purposes of section 195 and 1 [Chapter XXVI] of the 2[Code]. धारा 5 यूएपीए एक्ट
1. Subs. by Act 29 of 2004, s. 5, for “Chapter XXXV” (w.e.f. 21-9-2004).
2. Subs. by s. 3, ibid., for “Code of Criminal Procedure, 1898 (5 of 1898)” (w.e.f. 21-9-2004).