लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984
(1984 का अधिनियम संख्यांक 3)
[16 मार्च, 1984]
लोक संपत्ति के नुकसान के निवारण का
और उससे सम्बन्धित विषयों का
उपबन्ध करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के पैंतीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ- (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984 है ।
(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है ।
(3) यह 28 जनवरी, 1984 को प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा ।
2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “रिष्टि” का वही अर्थ होगा जो भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 425 में है;
(ख) “लोक संपत्ति” से अभिप्रेत है ऐसी कोई संपत्ति, चाहे वह स्थावर हो या जंगम (जिसके अन्तर्गत कोई मशीनरी है), जो निम्नलिखित के स्वामित्व या कब्जे में या नियंत्रण के अधीन है :-
(i) केन्द्रीय सरकार; या
(ii) राज्य सरकार; या
(iii) स्थानीय प्राधिकारी; या
(iv) किसी केन्द्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित निगम; या
(v) कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में परिभाषित कम्पनी; या
(vi) ऐसी संस्था, समुत्थान या उपक्रम, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ;
परन्तु केन्द्रीय सरकार इस उपखण्ड के अधीन किसी संस्था, समुत्थान या उपक्रम को तभी विनिर्दिष्ट करेगी जब ऐसी संस्था, समुत्थान या उपक्रम का केन्द्रीय सरकार द्वारा अथवा एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा अथवा भागतः केन्द्रीय सरकार द्वारा और भागतः एक या अधिक राज्य सरकारों द्वारा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपबन्धित निधियों द्वारा पूर्णतः या पर्याप्ततः वित्तपोषण किया जाता है ।
3. लोक संपत्ति को नुकसान कारित करने वाली रिष्टि- (1) जो कोई उपधारा (2) में निर्दिष्ट प्रकार की लोक संपत्ति से भिन्न किसी लोक संपत्ति की बाबत कोई कार्य करके रिष्टि करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, दण्डित किया जाएगा ।
(2) जो कोई ऐसी किसी संपत्ति की बाबत जो-
(क) कोई ऐसा भवन, प्रतिष्ठान या अन्य संपत्ति है, जिसका उपयोग जल, प्रकाश, शक्ति या ऊर्जा के उत्पादन, वितरण या प्रदाय के संबंध में किया जाता है ;
(ख) कोई तेल प्रतिष्ठान है ;
(ग) कोई मल संकर्म है ;
(घ) कोई खान या कारखाना है ;
(ङ) लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन है या उसके संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान या अन्य संपत्ति है,
कोई कार्य करके रिष्टि करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से कम की नहीं होगी किन्तु पांच वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, दण्डित किया जाएगा :
परन्तु न्यायालय, ऐसे कारणों से जो उसके निर्णय में लेखबद्ध किए जांएगे, छह मास से कम की किसी अवधि के कारावास का दण्डादेश दे सकेगा ।
4. अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा लोक संपत्ति को नुकसान कारित करने वाली रिष्टि – जो कोई धारा 3 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन कोई अपराध, अग्नि या विस्फोटक पदार्थ द्वारा करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, दण्डित किया जाएगा :
परन्तु न्यायालय, ऐसे विशेष कारणों से जो उसके निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, एक वर्ष से कम की किसी अवधि के कारावास का दण्डादेश दे सकेगा ।
5. जमानत के बारे में विशेष उपबन्ध – कोई व्यक्ति जो धारा 3 या धारा 4 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का अभियुक्त है या उसके लिए सिद्धदोष ठहराया गया है, यदि अभिरक्षा में है तो, जमानत पर या उसके स्वयं के बन्धपत्र पर तभी छोड़ा जाएगा जब अभियोजन-पक्ष को ऐसे छोड़े जाने के लिए आवेदन का विरोध करने का अवसर दे दिया गया है ।
6. व्यावृत्ति- इस अधिनियम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त होंगे, न कि उनके अल्पीकरण में, और इस अधिनियम की कोई बात किसी व्यक्ति को ऐसी किसी कार्यवाही से (चाहे वह अन्वेषण के रूप में हो या अन्यथा) छूट नहीं देगी जो, यदि यह अधिनियम नहीं होता तो, उसके विरुद्ध संस्थित की जाती या की गई होती ।
7. निरसन और व्यावृत्ति- (1) लोक संपत्ति नुकसान निवारण अध्यादेश, 1984 (1984 का 3) इसके द्वारा निरसित किया जाता है ।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी यह है कि उक्त अध्यादेश के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन की गई समझी जाएगी ।