संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69 – विक्रय करने की शक्ति कब विधिमान्य होती है—
(1) बन्धकदार को, या उसकी ओर से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति को, इस धारा के उपबन्धों के अध्यधीन निम्नलिखित दशाओं में ही, न कि किन्हीं भी अन्य दशाओं में, यह शक्ति होगी कि बन्धक धन के संदाय में व्यतिक्रम होने पर न्यायालय के मध्यक्षेप के बिना वह बन्धक-सम्पत्ति या उसका कोई भाग बेच दे या बेचे जाने में सहमत हो जाए, अर्थात्-
(क) जहां कि बन्धक अंग्रेजी बन्धक है, और न तो बन्धककर्ता और न बन्धकदार हिन्दू, मुसलमान या बौद्ध या राज्य सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में इस निमित्त समय-समय पर विनिर्दिष्ट किसी अन्य मूलवंश, पंथ, जनजाति या वर्ग का सदस्य है।
(ख) जहां कि बन्धकदार को बन्धक विलेख द्वारा अभिव्यक्त रूप से यह शक्ति प्रदत्त है कि वह न्यायालय के मध्यक्षेप के बिना विक्रय करा सके और बन्धकदार सरकार है :
(ग) जहां कि बन्धकदार को बन्धक विलेख द्वारा अभिव्यक्त रूप से यह शक्ति प्रदत्त है कि वह न्यायालय के मध्यक्षेप के बिना विक्रय करा सके और बन्धक-सम्पत्ति या उसका कोई भाग बन्धक विलेख के निष्पादन की तारीख को कलकत्ता, मद्रास, मुम्बई के नगरों के भीतर स्थित था या किसी अन्य नगर या क्षेत्र में स्थित था जिसे राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस बारे में विनिर्दिष्ट करे।
(2) ऐसी कोई भी शक्ति प्रयोग में न लाई जाएगी यदि और जब तक-
(क) मूलधन के संदाय की अपेक्षा करने वाली लिखित सूचना की तामील बन्धककर्ता या कई बन्धककर्ताओं में से किसी एक पर न कर दी गई हो और मूलधन या उसके किसी भाग का संदाय करने में ऐसी तामील के पश्चात् तीन मास तक व्यतिक्रम न किया गया हो ; अथवा
(ख) बन्धक के अधीन कुछ ब्याज, जिसकी रकम कम से कम पांच सौ रुपए हो, बकाया न हो और शोध्य होने के पश्चात् तीन मास तक अदत्त न रहा हो।
(3) जबकि विक्रय ऐसी शक्ति के प्रव्यंजित प्रयोग में कर दिया गया है तब क्रेता का हक इस आधार पर अधिक्षेपणीय न होगा कि उस विक्रय को प्राधिकृत करने के लिए कोई भी दशा पैदा न हुई थी जिसमें वह विक्रय प्राधिकृत होता या कि सम्यक् सूचना नहीं दी गई थी या कि शक्ति अन्यथा अनुचित या अनियमित रूप से प्रयुक्त की गई थी ; किन्तु इस शक्ति के किसी अप्राधिकृत या अनुचित या अनियमित प्रयोग से क्षतिग्रस्त व्यक्ति को उस शक्ति का प्रयोग करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध नुकसानी प्राप्ति का उपचार उपलब्ध होगा।
(4) बन्धकदार को विक्रय द्वारा जो धन प्राप्त हुआ है, वह उन पूर्विक बिल्लंगमों के, यदि कोई हों, उन्मोचन के पश्चात् जिनके अध्यधीन वह विक्रय नहीं किया गया है, या न्यायालय में धारा 57 के अधीन वह राशि जमा किए जाने के पश्चात्, जो किसी पूर्विक विल्लंगम को चुकाने के लिए पर्याप्त है, तत्प्रतिकूल संविदा न हो, तो प्रथमतः विक्रय या किसी प्रयतित विक्रय के प्रसंगतः अपने द्वारा उचित रूप से उपगत सब खर्चों, प्रभारों और व्ययों का संदाय करने में और द्वितीयतः बन्धक-धन और खर्चे और बन्धक के अधीन शोध्य अन्य धन के यदि कोई हो, भुगतान में अपने द्वारा उपयोजित किए जाने के लिए बन्धकदार न्यासतः धारित रखेगा, और इस प्रकार प्राप्त धन की अवशिष्टि बन्धक-सम्पत्ति के हकदार, या उसके विक्रय के आगमों की रसीद देने के लिए प्राधिकृत ब्यक्ति को दे दी जाएंगी।
(5) इस धारा या धारा 69क की कोई भी बात 1882 की जुलाई के पहले दिन से पूर्व प्रदत्त शक्तियों को लागू नहीं है।
Section 69 TPA – Power of sale when valid-
(1) A mortgagee, or any person acting on his behalf, shall, subject to the provisions of this section, have power to sell or ,concur in selling the mortgaged property, or any part thereof, in default of payment of the mortgage -money, without the intervention of the Court, in the following cases and in no others, namely:–
(a) where the mortgage is an English mortgage, and neither the mortgagor nor the mortgagee is a Hindu, Muhammadan or Buddhist 4[or a member of any other race, sect, tribe or class from time to time specified in this behalf by 5[the State Government], in the Official Gazette;
(b) where a power of sale without the intervention of the Court is expressly conferred on the mortgagee by the mortgage-deed, and the mortgagee is the Government;
(c) where a power of sale without the intervention of the Court is expressly conferred on the mortgagee by the mortgage-deed, and] the mortgaged property or any part thereof was, on the date of the execution of the mortgage -deed], situate within the towns of Calcutta, Madras, Bombay, or in any other town or area which the State Government may, by notification in the Official Gazette, specify’ in this behalf.
(2) No such power shall be exercised unless and until–
(a) notice in writing requiring payment of the principal money has been served on the mortgagor, or, one of several mortgagors, and default has been made in payment of the principal money, or of part thereof, for three months after such service; or
(b) some interest under the mortgage amounting at least to five hundred repees is in arrear and unpaid for three months after becoming due.
(3)] When a sale has been made in professed exercise of such a power, the title of the purchaser shall not be impeachable on the ground that no case had arisen to authorize the sale, or that due notice was not given, or that the power was otherwise improperly or irregularly ‘exercised; but any person damnified by an unauthorized, or improper, or irregular’ exercise of the power shall have his remedy in damages against the person exercising the power. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69
(4) The money which is received by the mortgagee, arising from the sale, after discharge of prior encumbrances, if any, to which the sale is not made subject, or after payment into Court under section 57 of a sum to meet any prior encumbrance, shall, in the absence of a contract to the contrary, be held by him in trust to be applied by him, first, in payment of all costs, charges and expenses properly incurred by him as incident to the sale or any attempted sale; and, secondly, discharge of the mortgage-money and costs and other money, if any, due under the mortgage; and the residue of the money so received shall be paid to the person entitled to the mortgaged property, or authorized to give receipts for the proceeds of the sale thereof. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69
(4) The money which is received by the mortgagee, arising from the sale, after discharge of prior encumbrances, if any, to which the sale is not made subject, or after payment into Court under section 57 of a sum to meet any prior encumbrance, shall, in the absence of a contract to the contrary, be held by him in trust to be applied by him, first, in payment of all costs, charges and expenses properly incurred by him as incident to the sale or any attempted sale; and, secondly, discharge of the mortgage-money and costs and other money, if any, due under the mortgage; and the residue of the money so received shall be paid to the person entitled to the mortgaged property, or authorized to give receipts for the proceeds of the sale thereof. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69
(5) Nothing in this section or in section 69A applies to powers conferred before the first day of July, 1882.