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दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 306 | सीआरपीसी की धारा 306 | Section 306 CrPC in hindi

सीआरपीसी की धारा 306 — सह-अपराधी को क्षमा-दान — 

(1) किसी ऐसे अपराध से, जिसे यह धारा लागू होती है, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में संबद्ध या संसर्गित समझे जाने वाले किसी व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट अपराध के अन्वेषण या जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में और अपराध की जांच या विचारण करने वाला प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जांच या विचारण के किसी प्रक्रम में उस व्यक्ति को इस शर्त पर क्षमा-दान कर सकता है कि वह अपराध के संबंध में और उसके किए जाने में चाहे कर्ता या दुष्प्रेरक के रूप में संबद्ध प्रत्येक अन्य व्यक्ति के संबंध में सब परिस्थितियों का, जिनकी उसे जानकारी हो, पूर्ण और सत्य प्रकट न कर दे।

(2) यह धारा निम्नलिखित को लागू होती है–

(क) अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा या दण्ड विधि संशोधन अधिनियम, 1952 (1952 का 46) के अधीन नियुक्त विशेष न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा विचारणीय कोई अपराध;

(ख) ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो या अधिक कठोर दण्ड से दण्डनीय कोई अपराध।

(3) प्रत्येक मजिस्ट्रेट, जो उपधारा (1) के अधीन क्षमा-दान करता है– 

(क) ऐसा करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा;

(ख) यह अभिलिखित करेगा कि क्षमा-दान उस व्यक्ति द्वारा, जिसको कि वह किया गया था स्वीकार कर लिया गया था या नहीं,

और अभियुक्त द्वारा आवेदन किए जाने पर उसे ऐसे अभिलेख की प्रतिलिपि निःशुल्क देगा।

(4) उपधारा(1)के अधीन क्षमा-दान स्वीकार करने वाले–

(क) प्रत्येक व्यक्ति की अपराध का संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट के न्यायालय में और पश्चात्वर्ती विचारण में यदि कोई हो, साक्षी के रूप में परीक्षा की जाएगी;

(ख) प्रत्येक व्यक्ति को, जब तक कि वह पहले से ही जमानत पर न हो, विचारण खत्म होने तक अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाएगा।

(5) जहाँ किसी व्यक्ति ने उपधारा (1) के अधीन किया गया क्षमा-दान स्वीकार कर लिया है और उसकी उपधारा (4) के अधीन परीक्षा की जा चुकी है, वहाँ अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट, मामले में कोई अतिरिक्त जांच किए बिना —

(क) मामले को —

(i) यदि अपराध अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है या यदि संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट है तो, उस न्यायालय को सुपुर्द कर देगा;

(ii) यदि अपराध अनन्यतः दण्ड विधि संशोधन अधिनियम, 1952 (1952 का 46) के अधीन नियुक्त विशेष न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो उस न्यायालय को सुपुर्द कर देगा;

(ख) किसी अन्य दशा में, मामला मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के हवाले करेगा जो उसका विचारण स्वयं करेगा।


Section 306 CrPC — Tender of pardon to accomplice – 

(1) With a view to obtaining the evidence of any person supposed to have been directly or indirectly concerned in or privy to an offence to which this section applies, the Chief Judicial Magistrate or a Metropolitan Magistrate at any stage of the investigation or inquiry into, or the trial of, the offence, and the Magistrate of the first class inquiring into or trying the offence, at any stage of the inquiry or trial, may tender a pardon to such person on condition of his making a full and true disclosure of the whole of the circumstances within his knowledge relative to the offence and to every other, person concerned, whether as principal or abettor, in the commission thereof.

(2) This section applies to

(a) any offence triable exclusively by the Court of Session or by the Court of a Special Judge appointed under the Criminal Law Amendment Act, 1952 (46 of 1952);

(b) any offence punishable with imprisonment which may extend to seven years or with a more severe sentence; सीआरपीसी की धारा 306

(3) Every Magistrate who tenders a pardon under sub-section (1) shall record

(a) his reasons for so doing;

(b) whether the tender was or was not accepted by the person to whom it was made, and shall, on application made by the accused, furnish him with a copy of such record free of cost. सीआरपीसी की धारा 306

(4) Every person accepting a tender of pardon made under sub-section (1)

(a) shall be examined as a witness in the Court of the Magistrate taking cognizance of the offence and in the subsequent trial, if any;

(b) shall, unless he is already on bail, be detained in custody until the termination of the trial;

(5) Where a person has accepted a tender of pardon made under sub-section (1) and has been examined under sub-section (4), the Magistrate taking cognizance of the offence shall, without making any further inquiry in the case सीआरपीसी की धारा 306

(a) commit it for trial (i) to the Court of Session if the offence is triable exclusively by that Court or if the Magistrate taking cognizance is the Chief Judicial Magistrate; (ii) to a Court of Special Judge appointed under the Criminal Law Amendment Act 1952 (46 of 1952), if the offence is triable exclusively by that Court;

(b) in any other case, makeover the case to the Chief Judicial Magistrate who shall try the case himself.

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