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दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 | सीआरपीसी की धारा 321 | Section 321 CrPC in hindi

सीआरपीसी की धारा 321 — अभियोजन वापस लेना–

किसी मामले का भारसाधक कोई लोक अभियोजक या सहायक लोक अभियोजक निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी समय किसी व्यक्ति के अभियोज़न को या तो साधारणतः या उन अपराधों में से किसी एक या अधिक के बारे में जिनके लिए उस व्यक्ति का विचारण किया जा रहा है, न्यायालय की सम्मति से वापस ले सकता है और ऐसे वापस लिए जाने पर– 

(क) यदि यह आरोप विरचित किए जाने के पहले किया जाता है तो अभियुक्त ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में उन्मोचित कर दिया जाएगा ।

(ख) यदि वह आरोप विरचित किए जाने के पश्चात् या जब इस संहिता द्वारा कोई आरोप अपेक्षित नहीं है,

तब किया जाता है तो वह ऐसे अपराध या अपराधों के बारे में दोषमुक्त कर दिया जाएगा;

परन्तु जहाँ–

(i) ऐसा अपराध किसी ऐसी बात से संबंधित किसी विधि के विरुद्ध है जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है, अथवा

(ii) ऐसे अपराध का अन्वेषण दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम, 1946 (1946 का 25) के अधीन दिल्ली विशेष पुलिस द्वारा किया गया है, अथवा

(iii) ऐसे अपराध में केन्द्रीय सरकार को किसी संपत्ति का दुर्विनियोग, नाश या नुकसान अंतर्ग्रस्त है, अथवा

(iv) ऐसा अपराध केन्द्रीय सरकार की सेवा में किसी व्यक्ति द्वारा किया गया है, जब वह अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य करना तात्पर्यित है,

और मामले का भारसाधक अभियोजक केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त नहीं किया गया है, तो वह जब तक केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे ऐसा करने की अनुज्ञा नहीं दी जाती है, अभियोजन को वापस लेने के लिए न्यायालय से उसकी सम्मति के लिए निवेदन नहीं करेगा तथा न्यायालय अपनी सम्मति देने के पूर्व, अभियोजक को यह निदेश देगा कि वह अभियोजन को वापस लेने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा दी गई अनुज्ञा उसके समक्ष पेश करे।

राज्य संशोधन

उत्तरप्रदेश — धारा 321 में “किसी मामले का भारसाधक कर सकेगा” शब्दों के स्थान पर “इस आशय की राज्य सरकार की लिखित अनुमति पर (जो न्यायालय में दाखिल की जाएगी)” शब्द अन्त:स्थापित किए जाएंगे।

[देखें उत्तरप्रदेश एक्ट संख्या 18 सन् 1991, धारा 3 (16-2-1991 से प्रभावशील)]


Section 321 CrPC — Withdrawal from prosecution —

The Public Prosecutor or Assistant Public Prosecutor in charge of a case may, with the consent of the Court, at any time before the judgment is pronounced, withdraw from the prosecution of any person either generally or in respect of any one or more of the offences for which he is tried; and, upon such withdrawal

(a) if it is made before a charge has been framed, the accused shall be discharged in respect of such offence or offences;

(b) if it is made after a charge has been framed, or when under this Code no charge is required, he shall be acquitted-in respect of such offence or offences : Provided that where such offence सीआरपीसी की धारा 321

(i) was against any law relating to a matter to which the executive power of the Union extends, or

(ii) was investigated by the Delhi Special Police Establishment under the Delhi Special Police Establishment Act, 1946 (25 of 1946), or सीआरपीसी की धारा 321

(iii) involved the misappropriation or destruction of, or damage to, any property belonging to the Central Government, or

(iv) was committed by a person in the service of the Central Government while acting or purporting to act in the discharge of his official duty, सीआरपीसी की धारा 321

and the Prosecutor in charge of the case has not been appointed by the Central Government, he shall not, unless he has been permitted by the Central Government to do so, move the Court for its consent to withdraw from the prosecution and the Court shall, before according consent, direct the Prosecutor to produce before it the permission granted by the Central Government to withdraw from the prosecution.

STATE AMENDMENT

Uttar Pradesh — In section 321, after the words “in charge of a case may” the words “on the written permission of the State Government to that effect (which shall be filed in Court)” shall be inserted.

[Vide Uttar Pradesh Act 18 of 1991, sec. 3 (w.e.f. 16-2-1991)]

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