सीआरपीसी की धारा 325 — प्रक्रिया जब मजिस्ट्रेट पर्याप्त कठोर दण्ड का आदेश नहीं दे सकता —
(1) जब कभी अभियोजन और अभियुक्त का साक्ष्य सुनने के पश्चात् मजिस्ट्रेट की यह राय है कि अभियुक्त दोषी है और उसे उस प्रकार के दण्ड से भिन्न प्रकार का दण्ड या उस दण्ड से अधिक कठोर दण्ड, जो वह मजिस्ट्रेट देने के लिए सशक्त है, दिया जाना चाहिए अथवा द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट होते हुए उसकी यह राय है कि अभियुक्त से धारा 106 के अधीन बंध-पत्र निष्पादित करने की अपेक्षा की जानी चाहिए तब वह अपनी राय अभिलिखित कर सकता है और कार्यवाही तथा अभियुक्त को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को, जिसके वह अधीनस्थ हो, भेज सकता है।
(2) जब एक से अधिक अभियुक्तों का विचारण एक साथ किया जा रहा है और मजिस्ट्रेट ऐसे अभियुक्तों में से किसी के बारे में उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करना आवश्यक समझता है तब वह उन सभी अभियुक्तों को, जो उसकी राय में दोषी हैं, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेज देगा।
(3) यदि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके पास कार्यवाही भेजी जाती है, ठीक समझता है तो पक्षकारों की परीक्षा कर सकता है और किसी साक्षी को, जो पहले ही मामले में साक्ष्य दे चुका है, पुनः बुला सकता है और उसकी परीक्षा कर सकता है और कोई अतिरिक्त साक्ष्य मांग सकता है और ले सकता है और मामले में ऐसा निर्णय, दण्डादेश या आदेश देगा, जो वह ठीक समझता है और जो विधि के अनुसार है।
Section 325 CrPC — Procedure when Magistrate cannot pass sentence sufficiently severe —-
(1) Whenever a Magistrate is of opinion, after hearing the evidence for the prosecution and the accused, that the accused is guilty, and that he ought to receive a punishment different in kind from, or more severe than, that which such Magistrate is empowered to inflict, or, being a Magistrate of the second class, is of opinion that the accused ought to be required to execute a bond under section 106, he may record the opinion and submit his proceedings, and forward the accused, to the Chief Judicial Magistrate to whom he is subordinate. सीआरपीसी की धारा 325
(2) When more accused than one are being tried together, and the Magistrate considers it necessary to proceed under sub-section (1), in regard to any of such accused, he shall forward all the accused, who are in his opinion guilty, to the Chief Judicial Magistrate.
(3) The Chief Judicial Magistrate to whom the proceedings are submitted may, if he thinks fit, examine the parties and recall and examine any witness who has already given evidence in the case and may call for and take any further evidence, and shall pass such judgment, sentence or order in the case as he thinks fit, and as is according to law.