सीआरपीसी की धारा 333 — जब यह प्रतीत हो कि अभियुक्त स्वस्थचित्त रहा है —
जब अभियुक्त जांच या विचारण के समय स्वस्थचित्त प्रतीत होता है और मजिस्ट्रेट का अपने समक्ष दिए गए साक्ष्य से समाधान हो जाता है कि यह विश्वास करने का कारण है कि अभियुक्त ने ऐसा कार्य किया है, जो यदि वह स्वस्थचित्त होता तो अपराध होता और यह कि वह उस समय जब वह कार्य किया गया था चित्त-विकृति के कारण उस कार्य का स्वरूप या यह जानने में असमर्थ था, कि यह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, तब मजिस्ट्रेट मामले में आगे कार्यवाही करेगा और यदि अभियुक्त का विचारण सेशन न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए तो उसे सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए सुपुर्द करेगा।
Section 333 CrPC — When accused appears to have been of sound mind —
When the accused appears to be of sound mind at the time of inquiry or trial, and the Magistrate is satisfied from the evidence given before him that there is reason to believe that the accused committed an act, which, if he had been of sound mind, would have been an offence, and that he was, at the time when the act was committed, by reason of unsoundness of mind, incapable of knowing the nature of the act or that it was wrong or contrary to law, the Magistrate shall proceed with the case, and, if the accused ought to be tried by the Court of Session, commit him for trial before the Court of Session.