सीआरपीसी की धारा 357 — प्रतिकर देने का आदेश —
(1) जब कोई न्यायालय जुर्माने का दण्डादेश देता है या कोई ऐसा दण्डादेश (जिसके अन्तर्गत मृत्यु दण्डादेश भी है) देता है जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय वह न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि वसूल किए गए सब जुर्माने या उसके किसी भाग का उपयोजन :–
(क) अभियोजन में उचित रूप से उपगत व्ययों को चुकाने में किया जाए।
(ख) किसी व्यक्ति को उस अपराध द्वारा हुई किसी हानि या क्षति का प्रतिकर देने में किया जाए, यदि न्यायालय की राय में ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिकर सिविल न्यायालय में वसूल किया जा सकता है;
(ग) उस दशा में, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करने के, या ऐसे अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करने के लिए दोषसिद्ध किया जाता है, उन व्यक्तियों को, जो ऐसी मृत्यु से अपने को हुई हानि के लिए दण्डादिष्ट व्यक्ति से नुकसानी वसूल करने के लिए घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 (1855 का 13) के अधीन हकदार है, प्रतिकर देने में किया जाए।
(घ) जब कोई व्यक्ति, किसी अपराध के लिए, जिसके अन्तर्गत चोरी, आपराधिक दुर्विनियोग, आपराधिक न्यासभंग या छल भी है, या चुराई हुई संपत्ति को उस दशा में जब वह यह जानता है या उसको यह विश्वास करने का कारण है कि वह चुराई हुई है बेईमानी से प्राप्त करने या रखे रखने के लिए या उसके व्ययन में स्वेच्छया सहायता करने के लिए, दोषसिद्ध किया जाए, तब ऐसी संपत्ति के सद्भावपूर्ण क्रेता को, ऐसी संपत्ति उसके हकदार व्यक्ति के कब्जे में लौटा दी जाने की दशा में उसकी हानि के लिए, प्रतिकर देने में किया जाए।
(2) यदि जुर्माना ऐसे मामले में किया जाता है जो अपीलनीय है तो ऐसा कोई संदाय, अपील उपस्थित करने के लिए अनुज्ञात अवधि के बीत जाने से पहले या यदि अपील उपस्थित की जाती है तो उसके विनिश्चय के पूर्व, नहीं किया जाएगा।
(3) जब न्यायालय ऐसा दण्ड अधिरोपित करता है जिसका भाग जुर्माना नहीं है तब न्यायालय निर्णय पारित करते समय, अभियुक्त व्यक्ति को यह आदेश दे सकता है कि उस कार्य के कारण जिसके लिए उसे ऐसा दण्डादेश दिया गया है, जिस व्यक्ति को कोई हानि या क्षति उठानी पड़ी है, उसे वह प्रतिकर के रूप में इतनी रकम दे जितनी आदेश में विनिर्दिष्ट है।
(4) इस धारा के अधीन आदेश, अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा भी किया जा सकेगा जब वह अपनी पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो।
(5) उसी मामले से संबंधित किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में प्रतिकर अधिनिर्णीत करते समय न्यायालय ऐसी किसी राशि को, जो इस धारा के अधीन प्रतिकर के रूप में दी गई है या वसूल की गई है, हिसाब में लेगा।
राज्य संशोधन
बिहार –– उपधारा (1) में अग्रलिखित उपबंध परिवर्धित किए जाएंगे, अर्थात् :
परन्तु यह कि व्यक्ति जिसके विरुद्ध अपराध कारित हुआ है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (24) और (25) में परिभाषित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है न्यायालय निर्णय पारित करते समय आदेश देगा कि जुर्माने की वसूल की गई राशि या इसका कोई भाग पूरी राशि मुआवजे के रूप में व्यक्ति के लाभार्थ उपयोग में लाई जाएगी।
[देखें बिहार एक्ट संख्या 9 सन् 1985, धारा 2 (13-8-1985 से प्रभावशील)]
मध्यप्रदेश :
धारा 357 में–
(i) उपधारा (1) में कोष्ठक, अंक और शब्दों “जब कोई न्यायालय जुर्माना का दण्डादेश देता है या ऐसा कोई दण्डादेश (जिसके अन्तर्गत मृत्यु दण्डादेश भी है) देता है, जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय न्यायालय वसूल किया गया जुर्माने का संपूर्ण या कोई भाग उपयोग करने के लिए आदेशित कर सकेगा” के स्थान पर कोष्ठक अंक और शब्द “(1) जब कोई न्यायालय जुर्माना का दण्डादेश देता है या ऐसा कोई दण्डादेश (जिसके अन्तर्गत मृत्यु दण्डादेश भी है) देता है, जिसका भाग जुर्माना भी है, तब निर्णय देते समय न्यायालय यह आदेश दे सकता है और जहाँ व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध किया गया है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (24) और (25) में यथा परिभाषित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का हो, सिवाय उस दशा के जब अभियुक्त व्यक्ति और वह व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध किया गया है, प्रत्येक अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के हैं, न्यायालय निर्णय देते समय आदेश देगा कि वसूली की गई जुर्माना की राशि पूरी या उसका कोई भाग उपयोज्य होगी” प्रतिस्थापित किए जाएंगे।
(ii) उपधारा (3) के स्थान पर निम्नलिखित उपधारा प्रतिस्थापित की जाएगी, अर्थात् :
“(3) जब न्यायालय ऐसा दण्डादेश अधिरोपित करता है, जिसका भाग जुर्माना नहीं है, तब न्यायालय निर्णय देते समय अभियुक्त व्यक्ति को आदेशित कर सकेगी और जहाँ व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध किया गया है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (24) और (25) में यथा परिभाषित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है, आदेश देगा कि उस कार्य के कारण जिसके लिए उसे ऐसा दण्डादेश दिया गया है, जिस व्यक्ति को कोई हानि या क्षति उठानी पड़ी है, उसे प्रतिकर के रूप में इतनी रकम दे, जितनी आदेश में विनिर्दिष्ट है :
परन्तु यह कि न्यायालय अभियुक्त व्यक्ति को जुर्माने के रूप में रकम भुगतान के आदेश नहीं कर सकेगा, जहाँ अभियुक्त व्यक्ति और व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध किया गया है, दोनों ही या तो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के हैं।”
[देखें मध्यप्रदेश एक्ट संख्या 29 सन् 1978, धारा 3 (5-10-1978 से प्रभावशील)]
राजस्थान :
धारा 357 में–
(i) उपधारा (1) में पद “न्यायालय कर सकेगा” और पद “निर्णय देते समय” के बीच में पद “और जहाँ व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध किया गया है, अनुसूचित जाति या जनजाति का है, लेकिन अभियुक्त उस जाति का नहीं है, न्यायालय आदेश देगा” प्रतिस्थापित किया जाएगा; और
(ii) उपधारा (3) में पद “न्यायालय कर सकेगा” और पद “निर्णय देते समय” के बीच में पद “और जहाँ व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध किया गया है, अनुसूचित जाति या जनजाति का है, लेकिन अभियुक्त व्यक्ति उस जाति का नहीं है, न्यायालय आदेश देगा” अंतःस्थापित किया जाएगा।
[देखें राजस्थान एक्ट संख्या 3 सन् 1993, धारा 2]
उत्तरप्रदेश :
धारा 357 में–
(क) उपधारा (1) में खण्ड (घ) के पश्चात् अग्रलिखित परन्तुक अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्–
“परन्तु यह कि अगर व्यक्ति जो खण्ड (ख), (ग) और घ) के तहत मुआवजा प्राप्त करता है और वह अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य है और व्यक्ति जिसे दण्डादेश दिया गया है, ऐसी जाति या जनजाति का नहीं है, न्यायालय आदेश देगा कि जुर्माने की वसूल की गई राशि पूरी या भागतः मुआवजे के भुगतान में उपयोजित की जाएगी।”
(ख) उपधारा (3) के स्थान पर अग्रलिखित उपधारा प्रतिस्थापित की जाएगी, अर्थात् :
“(3) जब न्यायालय ऐसा दण्ड अधिरोपित करता है, जिसका भाग जुर्माना नहीं है, तब न्यायालय आदेश दे सकेगा और जहाँ व्यक्ति जिसे कोई हानि या क्षति उठाना पड़ी है, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है और व्यक्ति जिसे दण्डादेश दिया गया है, ऐसी जाति या जनजाति का नहीं है, तब न्यायालय निर्णय देते समय व्यक्ति जिसे दण्डादेश दिया गया, को आदेश देगा कि उस कार्य के कारण जिसके लिए उसे दण्डादेश दिया गया है, उस व्यक्ति को कोई हानि या क्षति उठानी पड़ी है, उसे वह प्रतिकर के रूप में इतनी रकम दे, जितनी आदेश में विनिर्दिष्ट है ।”
(ग) उपधारा (5) के पश्चात् अग्रलिखित स्पष्टीकरण अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :
“स्पष्टीकरण — इस धारा के प्रयोजन के लिए पद अनुसूचित जाति” और “अनुसूचित जनजाति” का अर्थ क्रमशः वही होगा, जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड (24) और (25) में समनुदेशित है।”
[देखें उत्तरप्रदेश एक्ट संख्या 17 सन् 1992, धारा 2)
Section 357 CrPC — Order to pay compensation —
(1) When a Court imposes a sentence of fine or a sentence (including a sentence of death) of which fine forms a part, the Court may, when passing judgment, order the whole or any part of the fine recovered to be applied—
(a) in defraying the expenses of properly incurred in the prosecution;
(b) in the payment to any person of compensation for any loss or injury caused by the offence, when compensation is, in the opinion of the Court, recoverable by such person in a Civil Court;
(c) when any person is convicted of any offence for having caused the death of another person or of having abetted the commission of such an offence, in paying compensation to the persons who are, under the Fatal Accidents Act, 1855 (13 of 1855), entitled to recover damages from the person sentenced for the loss resulting to them from such death;
(d) when any person is convicted of any offence which includes theft, criminal misappropriation, criminal breach of trust, or cheating, or of having dishonestly received or retained, or of having voluntarily assisted in disposing of, stolen property knowing or having reason to believe the same to be stolen, in compensating any bona fide purchaser of such property for the loss of the same if such property is restored to the possession of the person entitled thereto. सीआरपीसी की धारा 357
(2) If the fine is imposed in a case which is subject to appeal no such payment shall be made before the period allowed for presenting the appeal has elapsed, or, if an appeal be presented, before the decision of the appeal.
(3) When a Court imposes a sentence, of which fine does not form a part, the Court may, when passing judgment, order the accused person to pay, by way of compensation, such amount as may be specified in the order to the person who has suffered any loss or injury by reason of the act for which the accused person has been so sentenced. सीआरपीसी की धारा 357
(4) An order under this section may also be made by an Appellate Court or by the High Court or Court of Session when exercising its powers of revision.
(5) At the time of awarding compensation in any subsequent civil suit relating to the same matter, the Court सीआरपीसी की धारा 357
shall take into account any sum paid or recovered as compensation under this section.
STATE AMENDMENTS
Madhya Pradesh
Amendment of section 357.–In section 357 of the Principal Act, —
(i) In sub-section (1), for the brackets, figure and words “(1) When a Court imposes a sentence of fine or a sentence (including a sentence of death) of which fine forms a part, the Court may, when passing judgment, order the whole or any part of the fine recovered to be applied” the brackets, figure and words “(1) When a Court imposes a sentence of fine or a sentence (including a sentence of death) of which fine forms a part, the Court may, and where a person against whom an offence is committed belongs to Scheduled Castes or Scheduled Tribes as defined in clauses (24) and (25) and of Article 366 of the Constitution except when both the accused person and the person against whom an offence is committed belong cither to such Castes or Tribes, the Court shall, when passing judgment, order the whole or any part of the fine recovered to be applied–“shall be substituted; and
(ii) for sub-section (3), the following sub-section shall be substituted, namely:–
“(3) When Court imposes a sentence, of which fine does not form a part, the Court may, and where a person against whom an offence is committed belongs to Scheduled Castes or Scheduled Tribes as defined in clauses (24) and (25) of Article 366 of the Constitution, the Court shall when passing judgment order the accused person to pay, by way of compensation, such amount as may be specified in the order to the person who has suffered any loss or injury by reason of the act for which the accused person has been so sentenced:
“Provided that the Court may not order the accused person to pay by way of compensation any amount if both the accused person and the person against whom an offence is committed belong either to the Scheduled Castes or the Scheduled Tribes.”
[Vide Madhya Pradesh Act 29 of 1978, s. 3.]
Uttar Pradesh
In section 357 of the Code of Criminal Procedure, 1973, —
(a) in sub-section (1), after the clause (d), the following proviso shall be inserted, namely :— “Provided that if a person who may receive compensation under clauses (b), (c) and (d) is a member of the Scheduled Castes or the Scheduled Tribes and the person sentenced is not a member of such Castes or Tribes, the Court shall order the whole or any part of the fine recovered to be applied in payment of such compensation.”
[Vide Uttar Pradesh Act 17 of 1992, s. 2]