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स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 | Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985 in hindi

स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985

(1985 का अधिनियम संख्यांक 61)

[16 सितम्बर, 1985]

स्वापक औषधियों से संबंधित विधि का समेकन और संशोधन करने के लिए,

स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों से संबंधित संक्रियाओं के

नियंत्रण और विनियमन के लिए स्वापक औषधि और मनःप्रभावी

पदार्थों के अवैध व्यापार से प्राप्त या उसमें प्रयुक्त संपत्ति के

समपहरण का उपबंध करने के लिए, स्वापक औषधि और

मनःप्रभावी पदार्थों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के

उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए तथा

उससे संबंधित विषयों के लिए कड़े

उपबन्ध करने के लिए

अधिनियम

भारत गणराज्य के छत्तीसवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय 1

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ– (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 है ।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है  और यह–

(क) भारत के बाहर भारत के सभी नागरिकों को ;

(ख) भारत में रजिस्ट्रीकृत पोतों पर सभी व्यक्तियों को,

वे जहां भी हों, भी लागू होता है ।

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिए और भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति निर्देश का किसी राज्य के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है ।

2. परिभाषाएं- इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(i) ‘व्यसनी” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ पर आश्रित है ;

(ii) “बोर्ड” से केन्द्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963 (1963 का 54) के अधीन गठित केन्द्रीय उत्पाद-शुल्क और सीमा-शुल्क बोर्ड अभिप्रेत है ;

(iii) कैनेबिस (हैम्प)” से अभिप्रेत है,-

(क) “चरस” अर्थात् कच्चा या शोधित किसी भी रूप में पृथक् किया गया रेजिन जो कैनेबिस के पौधे से प्राप्त किया गया हो और इसके अन्तर्गत हशीश तेल या द्रव हशीश के नाम से ज्ञात सांद्रित निर्मिति और रेजिन है ;

(ख) “गांजा” अर्थात् कैनेबिस के पौधे के फूलने और फलने वाले सिरे (इनके अन्तर्गत बीज और पत्तियां जब वे सिरे के साथ न हों, नहीं हैं) चाहे वे किसी भी नाम से ज्ञात या अभिहित हों ; और

(ग) उपरोक्त किसी भी प्रकार के कैनेबिस का कोई मिश्रण चाहे वह किसी निष्प्रभावी पदार्थ सहित या उसके बिना हो, या उससे निर्मित कोई पेय ;

(iv) “कैनेबिस का पौधा” से कैनेबिस वंश का कोई पौधा अभिप्रेत है ;

(ivक)” केन्द्रीय सरकार के कारखानों” से केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन कारखाने या किसी ऐसी कंपनी के, जिसमें केन्द्रीय सरकार समादत्त शेयर पूंजी का कम से कम इक्यावन प्रतिशत धारण करती है, स्वामित्वाधीन कारखाने अभिप्रेत हैं ;

(v) “कोका के व्युत्पाद” से अभिप्रेत है-

(क) कच्चा कोकेन, अर्थात् कोका की पत्ती का कोई सार जिसका कोकेन के विनिर्माण के लिए प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उपयोग किया जा सकता है ;

(ख) ऐकगोनिन और ऐकगोनिन के सभी व्युत्पाद, जिनसे उसे प्राप्त किया जा सकता है ;

(ग) कोकेन, अर्थात् बेंजायल-ऐकगोनिन का मेथिल एस्टर और उसके लवण ; और

(घ) सभी निर्मितियां जिनमें 0.1 प्रतिशत से अधिक कोकेन हो ;

(vi) “कोका की पत्ती” से अभिप्रेत है-

(क) कोका के पौधे की पत्ती, सिवाय उस पत्ती के जिससे सभी ऐकगोनिन, कोकेन और कोई अन्य ऐकगोनिन ऐल्केलाइड निकाल लिए गए हैं ;

(ख) उनका कोई मिश्रण चाहे वह निष्प्रभावी पदार्थ सहित या उसके बिना हो,

किन्तु इसके अन्तर्गत कोई ऐसी निर्मिति नहीं है जिसमें 0.1 प्रतिशत से अनधिक कोकेन है ;

(vii) “कोका का पौधा” से ऐरिथ्रोजाइलान वंश की किसी जाति का पौधा अभिप्रेत है ;

 (viiक) स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ के संबंध में “वाणिज्यक मात्रा” से केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट मात्रा से उच्चतर कोई मात्रा अभिप्रेत है ;

(viiख) “नियंत्रित परिदान” से स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या उनके लिए प्रतिस्थापित पदार्थों के अवैध या संदिग्ध परेषणों को इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किए जाने में अंतर्वलित व्यक्तियों की पहचान करने की दृष्टि से इस निमित्त सशक्त या धारा 50- क के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अधिकारी की जानकारी में या उसके पर्यवेक्षण के अधीन भारत के राज्यक्षेत्र से बाहर ले जाने, उससे होकर निकालने या उसमें लाने के लिए अनुज्ञात करने की तकनीक अभिप्रेत है ;

(viiग) “तत्स्थानी विधि” से इस अधिनियम के उपबंधों की तत्स्थानी कोई विधि अभिप्रेत है ;

 (viiघ)] “नियंत्रित पदार्थ” से ऐसा पदार्थ अभिप्रेत है जिसे केन्द्रीय सरकार, स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों के उत्पादन या विनिर्माण में उसके संभावित प्रयोग के बारे में या किसी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के किसी उपबंध के बारे में उपलब्ध जानकारी को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियंत्रित पदार्थ घोषित करे ;

(viii) “प्रवहण” से किसी भी प्रकार का कोई प्रवहण अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत कोई वायुयान, यान या जलयान है ;

(viiiक) “आवश्यक स्वापक औषधि” से केंद्रीय सरकार द्वारा चिकित्सीय और वैज्ञानिक उपयोग के लिए अधिसूचित कोई स्वापक औषधि अभिप्रेत है ;

(viiiख)] स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थों के संबंध में “अवैध व्यापार” से निम्नलिखित अभिप्रेत है,  अर्थात् :-

(i) कोका के पौधे की खेती करना या कोका के पौधे के किसी भाग का संग्रह करना ;

(ii) अफीम पोस्त या किसी कैनेबिस के पौधे की खेती करना ;

(iii) स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों के उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, भांडागारण, छिपाव, उपयोग या उपभोग, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, भारत में आयात, भारत से निर्यात या यानांतरण का कार्य करना ;

(iv) स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों के उपखंड (i) से उपखंड (iii) तक में निर्दिष्ट क्रियाकलापों ,से भिन्न किन्हीं क्रियाकलापों में व्यवहार करना ; या

(v) उपखंड (i) से उपखंड (iv) तक में निर्दिष्ट किसी क्रियाकलापों के लिए परिसर का प्रबंध करना या उसे किराए पर देना;

सिवाय उनके जिन्हें इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किए गए आदेश, या जारी की गई किसी अनुज्ञप्ति की किसी शर्त, निबंधन या प्राधिकरण के अधीन अनुज्ञात किया गया है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं-

(1) पूर्व वर्णित क्रियाकलापों में से किसी का प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः वित्तपोषण करना ;

(2) पूर्व वर्णित क्रियालापों में से किसी के करने को अग्रसर करने में या समर्थन में दुष्प्रेरण या षड्यंत्र करना ; और

(3) पूर्व वर्णित क्रियाकलापों में से किसी में लगे व्यक्तियों को संश्रय देना ;

(ix) “अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन” से अभिप्रेत है,-

(क) स्वापक औषधि एकल कन्वेंशन, 1961, जो संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा मार्च, 1961 में न्यूयार्क में अंगीकार किया गया था ;

(ख) उपखंड (क) में वर्णित कन्वेंशन का संशोधन करने वाला प्रोटोकाल, जो संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा मार्च, 1972 में जेनेवा में अंगीकार किया गया था ;

(ग) मनःप्रभावी पदार्थ कन्वेंशन, 1971, जो संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन द्वारा फरवरी, 1971 में वियना में अंगीकार किया गया था ; और

(घ) स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों से संबंधित किसी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन का संशोधन करने वाला कोई अन्य अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन या प्रोटोकाल या अन्य लिखत जिसका इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् भारत द्वारा अनुसमर्थन या अंगीकार किया जाए ;

(x) स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों के संबंध में “विनिर्माण” के अंतर्गत निम्नलिखित हैं,-

(1) उत्पादन से भिन्न ऐसी सभी प्रक्रियाएं जिनके द्वारा ऐसी औषधियां या पदार्थ प्राप्त किए जाएं ;

(2) ऐसी औषधियों या पदार्थों का परिष्करण ;

(3) ऐसी औषधियों या पदार्थों का रूपांतरण ; और

(4) ऐसी औषधियों या पदार्थों के साथ या उनको अंतर्विष्ट करने वाली निर्मितियों का (नुस्खे के आधार पर किसी फार्मेसी में से अन्यत्र) बनाया जाना ;

(xi) “विनिर्मित औषधि” से अभिप्रेत है-

(क) कोका के सभी व्युत्पाद, औषधीय कैनेबिस, अफीम के व्युत्पाद और पोस्त तृण सांद्र ;

(ख) ऐसा कोई अन्य स्वापक पदार्थ या निर्मिति, जिसको केन्द्रीय सरकार, उसकी प्रकृति के बारे में उपलब्ध जानकारी को या किसी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के अधीन किसी विनिश्चय को यदि कोई हो, ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्मित औषधि घोषित करे,

किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसा कोई स्वापक पदार्थ या निर्मिति नहीं है जिसे केन्द्रीय सरकार, उसकी प्रकृति के बारे में उपलब्ध जानकारी को या किसी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के अधीन उसकी प्रकृति के या किसी विनिश्चय के बारे में उपलब्ध जानकारी को ध्यान में रखते हुए, राजपत्र में अधिसचूना द्वारा, विनिर्मित औषधि न घोषित करे ;

(xii) “औषधीय कैनेबिस” अर्थात् औषधीय हैम्प से कैनेबिस (हैम्प) का कोई सार या टींक्चर अभिप्रेत है ;

(xiii) “स्वापक आयुक्त” से धारा 5 के अधीन नियुक्त स्वापक आयुक्त अभिप्रेत है ;

(xiv) “स्वापक औषधि” से कोका की पत्ती, कैनेबिस (हैम्प), अफीम, पोस्त तृण अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत सभी विनिर्मित औषधियां हैं ;

(xv) “अफीम” से अभिप्रेत है,-

(क) अफीम पोस्त या स्कंदित रस ; और

(ख) अफीम पोस्त के स्कंदित रस का कोई मिश्रण चाहे वह निष्प्रभावी पदार्थ सहित या उसके बिना हो,

किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसी कोई निर्मिति नहीं है जिसमें 0.2 प्रतिशत से अनधिक मार्फीन हो ;

(xvi) “अफीम के व्युत्पाद” से अभिप्रेत है,-

(क) औषधीय अफीम अर्थात् ऐसी अफीम जिसका भारतीय भेषजकोष या केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित किसी अन्य भेषजकोष की अपेक्षाओं के अनुसार औषधीय प्रयोग के लिए अनुकूलित करने के लिए आवश्यक प्रसंस्कार कर दिया गया है, चाहे वह चूर्ण के रूप में या कणिका के रूप में या अन्यथा हो अथवा निष्प्रभावी पदार्थों से मिश्रित हो ;

(ख) निर्मित अफीम अर्थात् अफीम को ध्रूमपान के उपयुक्त सार में रूपांतरित करने के लिए परिकल्पित किन्हीं क्रमबद्ध संक्रियाओं द्वारा अभिप्राप्त अफीम का कोई उत्पाद और अफीम का धूम्रपान करने के पश्चात् बचा हुआ कोई मंडूर या अन्य अवशेष ;

(ग) फिनेंथ्रन ऐल्केलाइड, अर्थात् मार्फीन, कोडीन, थिबेन और उनके लवण ;

(घ) डाइऐसीटल मार्फीन अर्थात् ऐल्केलाइड जिसे डाइ-मार्फीन या हिरोइन कहा जाता है और उसका लवण ; और

(ङ) सभी निर्मितियां, जिनमें 0.2 प्रतिशत से अधिक मार्फीन या डाइऐसीटल मार्फीन हो ;

(xvii) “अफीम पोस्त” से अभिप्रेत है,-

(क) पैपेवर सोम्नीफेरम एल० जातियों का पौधा ; और

(ख) पैपेवर की किसी अन्य जाति का पौधा जिससे अफीम या फिनेंथ्रन ऐल्केलाइड निकाला जा सकता है और जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए अफीम पोस्त    घोषित करे ;

(xviii) “पोस्त तृण” से फसल कटाई के पश्चात् अफीम पोस्त के (बीजों के सिवाय) सभी भाग अभिप्रेत हैं चाहे वे मूल रूप में या कटे हुए, संदलित या चूर्णित हों और चाहे उनमें से रस निकाला गया हो या न निकाला गया हो ;

(xix) “पोस्त तृण सांद्र” से अभिप्रेत है उस समय उत्पन्न पदार्थ जब पोस्त तृण का उसके ऐल्केलाइड के सांद्रण के लिए प्रसंस्कार प्रारम्भ कर दिया गया हो ;

(xx) स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के सम्बन्ध में “निर्मिति” से अभिप्रेत है खुराक के रूप में कोई एक या अधिक ऐसी औषधियां या पदार्थ या ऐसी एक या अधिक औषधियां या पदार्थ को अन्तर्विष्ट करने वाला कोई घोल या मिश्रण चाहे वह किसी भी भौतिक स्थिति में हो ;

(xxi) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है ;

(xxii) “उत्पादन” से अफीम, पोस्त तृण कोका की पत्तियों या कैनेबिस का ऐसे पौधों से, जिनसे वे प्राप्त होते हैं, पृथक् किया जाना अभिप्रेत है ;

(xxiii) “मनःप्रभावी पदार्थ” से अभिप्रेत है कोई प्राकृतिक या संश्लिष्ट पदार्थ या कोई प्राकृतिक सामग्री अथवा ऐसे पदार्थ या सामग्री का कोई लवण जो अनुसूची में विनिर्दिष्ट मनःप्रभावी पदार्थों की सूची में सम्मिलित निर्मिति ;

(xxiiiक) स्वापक औषधी और मनःप्रभावी पदार्थ के संबंध में “अल्प मात्रा” से केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट मात्रा से न्यूनतर कोई मात्रा अभिप्रेत है ;

(xxiv) “अंतर्राज्यिक आयात” से भारत के किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में भारत के किसी दूसरे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र से लाना अभिप्रेत है ;

(xxv) “भारत में आयात” से उसके व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित, भारत के बाहर के किसी स्थान से भारत में लाना अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत भारत में किसी पत्तन या विमानपत्तन या स्थान में ऐसी कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ लाना है, जिसे ऐसे किसी जलयान, वायुयान, यान या किसी अन्य प्रवहण से, जिसमें उसका वहन किया जा रहा है, हटाए बिना भारत के बाहर ले जाने का आशय है ।

स्पष्टीकरण- इस खंड और खंड (xxvi) के प्रयोजनों के लिए “भारत” के अन्तर्गत भारत के राज्यक्षेत्रीय सागरखंड हैं ;

(xxvi) “भारत से निर्यात” से, उसके व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित, भारत के बाहर किसी स्थान तक भारत से बाहर में ले जाना अभिप्रेत है ;

(xxvii) “अंतर्राज्यिक निर्यात” से भारत के किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र से भारत के किसी दूसरे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में ले जाना अभिप्रेत है ;

(xxviii) “परिवहन” से उसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना अभिप्रेत है ;

(xxviiiक) स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थों के संबंध में, “उपयोग” से व्यक्तिगत उपयोग को छोड़कर किसी भी प्रकार का उपयोग अभिप्रेत है ;

(xxix) उन शब्दों और पदों के, जो इसमें प्रयुक्त हैं और परिभाषित नहीं हैं, किन्तु दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो उस संहिता में हैं ।

स्पष्टीकरण- खण्ड (v), खण्ड (vi), खण्ड (xv) और खण्ड (xvi)के प्रयोजनों के लिए द्रव निर्मितियों की दशा में प्रतिशतता का परिकलन इस आधार पर किया जाएगा कि उस निर्मिति से जिसमें पदार्थ का एक प्रतिशत है ऐसी निर्मिति अभिप्रेत है जिसमें उस पदार्थ का, यदि वह ठोस है तो, एक ग्राम या उस पदार्थ का यदि वह द्रव है तो एक मिलीलीटर, उस निर्मिति के प्रत्येक एक सौ मिलीलीटर में अन्तर्विष्ट है और यही अनुपात किसी अधिक या कम प्रतिशतता के लिए होगा :

                परन्तु केन्द्रीय सरकार, द्रव निर्मितियों में प्रतिशतताओं की संगणना की पद्धतियों के क्षेत्र में हुए विकासों को ध्यान में रखते हुए, नियमों द्वारा, ऐसे कोई अन्य आधार विहित कर सकेगी जो वह ऐसी संगणना के लिए समुचित समझे ।

3. मनःप्रभावी पदार्थों की सूची में जोड़ने या उससे लोप करने की शक्ति – यदि केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि-

(क) ऐसी जानकारी और साक्ष्य के आधार पर, जो उसे किसी पदार्थ (प्राकृतिक या संश्लिष्ट) या प्राकृतिक सामग्री की अथवा ऐसे पदार्थों या सामग्री के किसी लवण या निर्मिति की प्रकृति और प्रभाव तथा उसके दुरुपयोग या दुरुपयोग की गुंजाइश के संबंध में उपलब्ध हुए हैं ; और

(ख) ऐसे “उपान्तरणों” या उपबन्धों के (यदि कोई हों) आधार पर , जो ऐसे पदार्थ प्राकृतिक सामग्री अथवा ऐसे पदार्थ या सामग्री के लवण या निर्मिति के संबंध में किसी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन में किए गए हैं,

ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, अनुसूची में विनिर्दिष्ट मनःप्रभावी पदार्थों की सूची में ऐसे पदार्थ या प्राकृतिक सामग्री अथवा ऐसे पदार्थ या सामग्री के लवण या निर्मिति को, यथास्थिति, जोड़ सकेगी या उससे उसका लोप कर सकेगी ।

अध्याय 2

प्राधिकरण और अधिकारी

4. स्वापक औषधियों आदि के दुरुपयोग और अवैध व्यापार के निवारण और उसकी रोकथाम के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा अध्युपायों का किया जाना- (1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, केन्द्रीय सरकार स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के दुरुपयोग तथा उनके अवैध व्यापार के निवारण और रोकथाम के प्रयोजनों के और उनके चिकित्सीय और वैज्ञानिक उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए ऐसे सभी अध्युपाय करेगी जो वह आवश्यक और समीचीन समझे ।

(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे अध्युपायों के अन्तर्गत जो केन्द्रीय सराकर इस उपधारा के अधीन करे, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के संबंध में अध्युपाय हैं, अर्थात् :-

(क) विभिन्न अधिकारियों, राज्य सरकारों और अन्य प्राधिकरणों द्वारा-

(i) इस अधिनियम के अधीन, या

(ii) इस अधिनियम के उपबन्धों के प्रवर्तन के संबंध में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीकार्रवाइयों का समन्वय ;

(ख) अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों के अधीन बाध्यताएं ;

(ग) स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों में अवैध व्यापार के निवारण और दमन के लिए समन्वय और सर्वव्यापी कार्रवाई को सुकर बनाने की दृष्टि से विदेशों से संबंधित प्राधिकरणों और संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सहायता ;

(घ) व्यसनियों की पहचान, उपचार, शिक्षा, पश्चात्वर्ती देख-रेख, पुनर्वास और समाज में पुनः मिलाना ;

(घक) चिकित्सीय और वैज्ञानिक उपयोग के लिए स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों की उपलब्धता ;

(ङ) ऐसे अन्य विषय, जो केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबन्धों का प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने तथा स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के दुरुपयोग और उनके व्यापार के निवारण और रोकथाम के प्रयोजनों के लिए आवश्यक या समीचीन समझे ।

(3) केन्द्रीय सरकार, यदि वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे तो राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार की ऐसी शक्तियों और कृत्यों का उपयोग करने के प्रयोजन के लिए और उपधारा (2) में निर्दिष्ट ऐसे विषयों के संबंध में अध्युपाय करने के लिए जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, तथा केन्द्रीय सरकार के पर्यवेक्षण और नियंत्रण तथा ऐसे आदेश के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, ऐसे नाम या नामों से, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, कोई प्राधिकरण या प्राधिकरणों का अधिक्रम गठित कर सकेगी और ऐसा या ऐसे प्राधिकरण आदेश में इस प्रकार वर्णित शक्तियों का प्रयोग और अध्युपाय कर सकेगा या कर सकेंगे मानो ऐसा या ऐसे प्राधिकरण उन शक्तियों का प्रयोग और ऐसे अध्युपाय करने के लिए इस अधिनियम द्वारा सशक्त किया गया या किए गए हों ।

5. केन्द्रीय सरकार के अधिकारी- (1) धारा 4 की उपधारा (3) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार, एक स्वापक आयुक्त नियुक्त करेगी और ऐसे अन्य अधिकारियों को भी, ऐसे पदाभिधानों से नियुक्त करेगी जो वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ठीक समझे ।

(2) स्वापक आयुक्त या तो स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से अफीम पोस्त की खेती और अफीम के उत्पादन के अधीक्षण से संबंधित सभी शक्तियों का प्रयोग और सभी कृत्यों का पालन करेगा तथा ऐसी शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन भी करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा उसे सौंपे जाएं ।

(3) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त अधिकारी, केन्द्रीय सरकार के, या यदि उस सरकार द्वारा ऐसा निदेश दिया जाए तो बोर्ड या किसी अन्य प्राधिकरण या अधिकारी के भी साधारण नियंत्रण और निदेशन के अधीन होंगे ।

6. स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ परामर्श समिति – (1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, “स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ परामर्श समिति” के नाम से ज्ञात एक सलाहकार समिति (जिसे इस धारा में इसके पश्चात् समिति कहा गया है) केन्द्रीय सरकार को, इस अधिनियम के प्रशासन से संबंधित ऐसे विषयों पर, जो उस सरकार द्वारा, समय-समय पर, उसे निर्देशित किए जाएं, सलाह देने के लिए गठित कर सकेगी ।

(2) समिति, एक अध्यक्ष और बीस से अनधिक ऐसे अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगी जो केन्द्रीय सरकार नियुक्त करे ।

(3) समिति की बैठक तब की जाएगी जब केन्द्रीय सरकार ऐसा करने की अपेक्षा करे और उसे अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति होगी ।

(4) समिति, यदि वह अपने किन्हीं कृत्यों के दक्ष पालन के लिए ऐसा करना समीचीन समझे तो, एक या अधिक उप-समितियां गठित कर सकेगी और ऐसी किन्हीं उप-समितियों में, ऐसे किसी व्यक्ति को (जिसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति है जो पदधारी नहीं है), जो समिति का सदस्य नहीं है, साधारणतया या किसी विशिष्ट विषय पर विचार करने के लिए, नियुक्त कर सकेगी ।

(5) अध्यक्ष और समिति के अन्य सदस्यों की पदावधि, उनके पदों में आकस्मिक रिक्तियां भरने की रीति और उन्हें संदेय भत्ते यदि कोई हों, तथा ऐसी शर्तें और निर्बन्धन, जिनके अधीन रहते हुए समिति ऐसे किसी व्यक्ति को, जो समिति का सदस्य नहीं है, अपनी किसी उप-समिति में से किसी को सदस्य के रूप में नियुक्त कर सकेगी, ऐसे होंगे जो केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा विहित किए जाएं ।

7. राज्य सरकार के अधिकारी- (1) राज्य सरकार, ऐसे अधिकारियों का, ऐसे पदाभिधानों सहित, जो वह इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ठीक समझे, नियुक्त कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त अधिकारी, राज्य सरकार के, या यदि वह सरकार ऐसा निदेश दे तो किसी अन्य प्राधिकरण या अधिकारी के भी साधारण नियंत्रण और निदेशन के अधीन होंगे ।

अध्याय 2क

औषधि के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय निधि

7क. औषधि के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय निधि – (1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक निधि स्थापित कर सकेगी जो राष्ट्रीय औषधि दुरुपयोग नियंत्रण निधि (जिसे इस अध्याय में इसके पश्चात् निधि कहा गया है) कहलाएगी और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) वह रकम जो केंद्रीय सरकार, इस निमित्त संसद् की विधि द्वारा विनियोग के पश्चात् उपलब्ध कराए;

(ख) अध्याय 5क के अधीन समपहृत किसी सम्पत्ति के विक्रय आगम;

(ग) ऐसे कोई अनुदान जो किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा दिए जाएं;

(घ) पूर्वोक्त उपबंधों के अधीन निधि में जमा की गई रकम के विनिधान से कोई आय ।

(2) निधि का उपयोजन केन्द्रीय सरकार द्वारा निम्नलिखित के लिए किए गए अध्युपायों के संबंध में उपगत व्यय की पूर्ति के लिए किया जाएगा, –

(क) स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों या नियंत्रित पदार्थों के अवैध व्यापार की रोकथाम करना;

(ख) स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के दुरुपयोग का नियंत्रण करना;

(ग) व्यसनियों की पहचान करना, उनका उपचार करना, पुनर्वास करना;

(घ) औषधि के दुरुपयोग का निवारण करना;

(ङ) औषधि के दुरुपयोग के विरुद्ध जनता को शिक्षित करना; और

(च) व्यसनियों को औषधि प्रदाय करना जहां ऐसा प्रदाय चिकित्सीय आवश्यकता है ।

(3) केन्द्रीय सरकार, उस सरकार को सलाह देने के लिए और केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचित सीमा के अधीन रहते हुए उक्त निधि से धन निकालने की मंजूरी देने के लिए एक ऐसे शासी निकाय का, जैसा वह ठीक समझे, गठन कर सकेगी ।

(4) शासी निकाय में एक अध्यक्ष (जो केंद्रीय सरकार के अपर सचिव की पंक्ति से नीचे का नहीं होगा) और छह से अनधिक ऐसे अन्य सदस्य होंगे जो केंद्रीय सरकार नियुक्त करे ।

(5) शासी निकाय को अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करने की शक्ति होगी ।

7ख. निधि के अधीन वित्तपोषित क्रियाकलापों की वार्षिक रिपोर्ट – केंद्रीय सरकार, प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, राजपत्र में, एक रिपोर्ट प्रकाशित करवाएगी जिसमें लेखाओं के विवरण सहित, वित्तीय वर्ष के दौरान धारा 7क के अधीन वित्तपोषित क्रियाकलापों का लेखा-जोखा दिया जाएगा ।

अध्याय 3

प्रतिषेध, नियंत्रण और विनियमन

8. कुछ संक्रियाओं का प्रतिषेध – कोई व्यक्ति-

(क) किसी कोका के पौधे की खेती या कोका के पौधे के किसी भाग का संग्रह; या

(ख) अफीम पोस्त या किसी कैनेबिस के पौधे की खेती; या

(ग) किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, भाण्डागारण, उपयोग, उपभोग, अंतर्राज्य आयात, अंतर्राज्य निर्यात, भारत में आयात, भारत से बाहर निर्यात या यानान्तरण,

चिकित्सीय या वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए और इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों या निकाले गए आदेशों के उपबंधों द्वारा उपबंधित रीति से और विस्तार तक ही और ऐसी किसी दशा में जहां ऐसे किसी उपबंध में अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, या प्राधिकार के रूप में कोई अपेक्षा अधिरोपित की गई है वहां ऐसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार के निबन्धनों और शर्तों के अनुसार भी करेगा अन्यथा नहीं:

                परन्तु इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, गांजा के उत्पादन के लिए कैनेबिस के पौधे की खेती या चिकित्सीय और वैज्ञानिक प्रयोजनों से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए गांजा के उत्पादन, कब्जे, उपयोग, उपभोग, क्रय, विक्रय, परिवहन, भाण्डागारण, अंतर्राज्यिक आयात और अंतर्राज्यिक निर्यात के विरुद्ध प्रतिषेध केवल उस तारीख से प्रभावी होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे:

                 परंतु यह और कि इस धारा की कोई बात आलंकारिक प्रयोजनों के लिए पोस्ततृण के निर्यात को लागू नहीं होगी ।

 8क. अपराध से व्युत्पन्न संपत्ति से संबंधित कतिपय क्रियाकलापों का प्रतिषेध – कोई भी व्यक्ति, –

(क) किसी संपत्ति का यह जानते हुए कि ऐसी संपत्ति, उस संपत्ति का अवैध उद्गम छिपाने या उसके रूपान्तरण के प्रयोजन के लिए या अपराध के किए जाने में किसी व्यक्ति की सहायता करने के लिए या विधिक परिणामों से बचने के लिए, इस अधिनियम के अधीन या किसी अन्य देश की किसी अन्य तत्स्थानी विधि के अधीन किए गए किसी अपराध से या ऐसे अपराध में भाग लेने के किसी कार्य से व्युत्पन्न की गई है, संपरिवर्तन या अंतरण नहीं करेगा; या

(ख) किसी संपत्ति की सही प्रकृति, स्रोत, अवस्थिति, व्ययन को, यह जानते हुए कि ऐसी सम्पत्ति इस अधिनियम के अधीन या किसी अन्य देश की किसी अन्य तत्स्थानी विधि के अधीन किए गए किसी अपराध से व्युत्पन्न की गई है, नहीं छिपाएगा या उसका रूप नहीं बदलेगा; या

(ग) जानते हुए कि ऐसी संपत्ति का, जो इस अधिनियम के अधीन या किसी अन्य देश की किसी अन्य तत्स्थानी विधि के अधीन किए गए किसी अपराध से व्युत्पन्न की गई थी, अर्जन नहीं करेगा, उसे कब्जे में नहीं रखेगा या उसका उपयोग नहीं करेगा ।

9. अनुज्ञा देने, नियंत्रण और विनियमन करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति – (1) धारा 8 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, केन्द्रीय सरकार, नियमों द्वारा-

(क) निम्नलिखित के लिए अनुज्ञा दे सकेगी और उनका विनियमन कर सकेगी- 

(i) कोका के पौधे की खेती या उसके किसी भाग का संग्रह (जब ऐसी खेती या संग्रह केवल केन्द्रीय सरकार के लिए ही हो) या कोका की पत्तियों का उत्पादन, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, उपयोग या उपभोग;

(ii) अफीम पोस्त की खेती (जब ऐसी खेती केन्द्रीय सरकार के लिए ही हो);

(iii) अफीम का उत्पादन और विनिर्माण तथा पोस्त तृण का उत्पादन;

(iiiक) ऐसे पौधों से, जिनसे चीरा लगाकर रस नहीं निकाला गया है, उत्पादित पोस्त तृण का कब्जा रखने, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, भांडागारण, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग;

(iv) भारत से निर्यात या राज्य सरकारों या विनिर्माण करने वाले रसायनज्ञों को विक्रय के लिए केन्द्रीय सरकार का कारखानों से अफीम और अफीम के व्युत्पादों का विक्रय;

(v) विनिर्मित औषधियों (निर्मित अफीम से भिन्न) का विनिर्माण किन्तु इसके अन्तर्गत औषधीय अफीम या ऐसी सामग्री से, जिसका कब्जा रखने के लिए बनाने वाला विधिसम्मत रूप से हकदार है, विनिर्मित औषधि अंतर्विष्ट करने वाली किसी निर्मिति का विनिर्माण नहीं है;

(vक) आवश्यक स्वापक औषधियों का विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग:

परंतु जहां किसी आवश्यक स्वापक औषधि की बाबत, राज्य सरकार ने स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 2014 के प्रारंभ से पूर्व धारा 10 के उपबंधों के अधीन अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र दिया है, वहां ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र, उसकी समाप्ति की तारीख तक या ऐसे प्रारंभ से बारह मास की अवधि तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, विधिमान्य बना रहेगा;

(vi) मनःप्रभावी पदार्थों का विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग या उपयोग;

(vii) स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों का भारत में आयात और भारत से निर्यात तथा यानान्तरण;

(ख) खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट किसी विषय पर केन्द्रीय सरकार का प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए अपेक्षित कोई अन्य विषय विहित कर सकेगी;

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम-

(क) केन्द्रीय सरकार को, समय-समय पर, ऐसी सीमाएं नियत करने के लिए सशक्त कर सकेंगे जिनके अन्दर अफीम पोस्त की खेती के लिए अनुज्ञप्ति दी जा सकेगी;

(ख) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि सभी अफीम, ऐसी भूमि के सभी उत्पाद, जिस पर अफीम पोस्त की खेती की गई है, खेतिहरों द्वारा ऐसे अधिकारियों को परिदत्त किए जाएंगे जिन्हें केन्द्रीय सरकार इस निमित्त प्राधिकृत करे;

(ग) अफीम पोस्त की खेती के लिए और अफीम के उत्पादन और विनिर्माण के लिए अनुज्ञप्तियों के प्ररूप और शर्तें, ऐसी फीसें जो उनके लिए प्रभारित की जा सकेंगी, ऐसे प्राधिकरण, जिनके द्वारा ऐसी अनुज्ञप्तियां अनुदत्त, प्रतिधारित, इंकार और रद्द की जा सकेगी और ऐसे प्राधिकरण जिनके समक्ष अनुज्ञप्तियों के प्रतिधारण, इंकार या रद्दकरण के आदेशों के विरुद्ध अपीलें की जा सकेंगी, विहित कर सकेंगे;

(घ) वह विहित कर सकेंगे कि अफीम को उसकी क्वालिटी और गाढ़ेपन के अनुसार ऐसे अधिकारियों द्वारा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किए जाएं, खेतिहर द्वारा परिदान के समय खेतिहर की उपस्थिति में तोला जाएगा, उसकी परीक्षा की जाएगी और उसका वर्गीकरण किया जाएगा;

(ङ) केन्द्रीय सरकार को सशक्त कर सकेंगे कि वह परिदत्त की गई अफीम के लिए खेतिहर को संदत्त की जाने वाली कीमत समय-समय पर नियत करे;

(च) कारखाने में प्राप्त अफीम का उसकी क्वालिटी और गाढ़ेपन के अनुसार तौल, परीक्षा और वर्गीकरण के लिए तथा ऐसी परीक्षा के परिणाम के अनुसार मानक कीमत में की जाने वाली कटौतियों या परिवर्धनों (यदि कोई हों) के लिए; और ऐसे प्राधिकरणों का, जिनके द्वारा तौल, परीक्षा, वर्गीकरण, कटौतियों, या परिवर्धनों के बारे में विनिश्चय किया जाएगा और ऐसा प्राधिकरणों का, जिनके समक्ष ऐसे विनिश्चय के विरुद्ध अपीलें की जाएंगी, उपबंध कर सकेंगे;

(छ) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि किसी खेतिहर द्वारा परिदत्त अफीम यदि केन्द्रीय सरकार के कारखाने की परीक्षा में परिणामस्वरूप अपमिश्रित पाई जाती है तो इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारियों द्वारा अधिहृत की जा सकेगी;

(ज) विनिर्मित औषधियों के विनिर्माण के लिए अनुज्ञप्तियों के प्ररूप और शर्तें, ऐसे प्राधिकरण, जिनके द्वारा ऐसी अनुज्ञप्तियां दी जाएंगी और ऐसी फीसें, जो उनके लिए प्रभारित की जा सकेंगी, विहित कर सकेंगे;      

(जक) आवश्यक स्वापक औषधियों के विनिर्माण, कब्जे, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग के लिए अनुज्ञप्तियों या अनुज्ञापत्रों के प्ररूप और शर्तें, ऐसे प्राधिकारी, जिनके द्वारा ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र दिया जा सकेगा और वह फीस, जो उसके लिए प्रभारित की जा सकेगी, विहित कर सकेंगे;

(झ) मनःप्रभावी पदार्थों के विनिर्माण, कब्जे, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग या उपयोग के लिए अनुज्ञप्तियों या अनुज्ञापत्रों के प्ररूप और शर्तें, वे प्राधिकरण, जिनके द्वारा ऐसी अनुज्ञप्तियां या अनुज्ञापत्र दिए जा सकेंगे और वे फीसें, जो उनके लिए प्रभारित की जा सकेंगी, विहित कर सकेंगे|

(ञ) ऐसे पत्तन और अन्य स्थान, जिन पर किसी प्रकार की स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों का भारत में आयात या भारत से निर्यात या यानांतरण किया जा सकेगा; ऐसे आयात या निर्यात या यानांतरण के लिए, यथास्थिति, प्रमाणपत्र, प्राधिकारों या अनुज्ञापत्रों के प्ररूप और शर्तें, वे प्राधिकरण, जिनके द्वारा ऐसे प्रमाणपत्र, प्राधिकार या अनुज्ञापत्र दिए जा सकेंगे और वे फीस, जो उनके लिए प्रभारित की जा सकेंगी, विहित कर सकेंगे ।

 9क. नियंत्रित पदार्थों को नियंत्रित और विनियमित करने की शक्ति – (1) यदि केंद्रीय सरकार की यह राय है कि किसी स्वापक ओषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के उत्पादन या विनिर्माण में किसी नियंत्रित पदार्थ के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए, लोकहित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह, आदेश द्वारा, उसके उत्पादन, विनिर्माण, प्रदाय और वितरण तथा उसके व्यापार और वाणिज्य को विनियमित या प्रतिषिद्ध करने का उपबंध कर सकेगी ।

(2) उपधारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उसके अधीन किया गया कोई आदेश किसी नियंत्रित पदार्थ के उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग, उपयोग, भंडारण, वितरण, व्ययन या उसके अर्जित करने की अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र द्वारा या अन्यथा विनियमित करने क्रय का उपबंध कर सकेगा ।

10. अनुज्ञा देने, नियंत्रण और विनियमन करने की राज्य सरकार की शक्ति – (1) धारा 8 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य सरकार, नियमों द्वारा-

(क) निम्नलिखित के लिए अनुज्ञा दे सकेगी और उनका विनियमन कर सकेगी-

(i) पोस्त तृण का ऐसे पौधों से, जिनसे चीरा लगाकर रस नहीं निकाला गया है, उत्पादित पोस्त तृण के सिवाय, कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, भाण्डागारण, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग;

(ii) अफीम का कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग;

(iii) किसी कैनेबिस पौधे की खेती, कैनेबिस ;(जिसके अन्तर्गत चरस नहीं है) का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग या उपयोग;

(iv) ऐसी सामग्री से, जिसका कब्जा करने के लिए बनाने वाला विधि-सम्मत रूप से हकदार है औषधीय अफीम का या किसी विनिर्मित औषधि को अन्तर्विष्ट करने वाली किसी निर्मिति का विनिर्माण;

(v) विनिर्मित औषधियों (विनिर्मित अफीम और आवश्यक स्वापक औषधियों से भिन्न) का तथा कोका की पत्ती का और किसी विनिर्मित औषधि को अन्तर्विष्ट करने वाली किसी निर्मिति का कब्जा, परिवहन, क्रय, विक्रय, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, उपयोग या उपभोग;

(vi) चिकित्सीय सलाह के आधार पर राज्य सरकार के पास रजिस्ट्रीकृत किसी व्यसनी द्वारा अपने वैयक्तिक उपभोग के लिए विधिसम्मत रूप से कब्जे में रखी गई अफीम से निर्मित अफीम का विनिर्माण और कब्जा:

परन्तु उपखण्ड (iv) और (v) के अधीन बनाए गए नियमों में, जहां तक अभिव्यक्त रूप में उपबंधित किया जाए उसके सिवाय, धारा 8 की कोई बात ऐसी विनिर्मित औषधियों को , जो सरकार की संपत्ति हैं और उसके कब्जे में हैं, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, परिवहन, कब्जा, क्रय, विक्रय, उपयोग या उपभोग को लागू नहीं होगी:

परन्तु यह और कि ऐसी औषधियों का, जो पूर्ववर्ती परन्तुक में निर्दिष्ट हैं, ऐसे किसी व्यक्ति को विक्रय या अन्यथा परिदान नहीं किया जाएगा जो पूर्वोक्त उपखंडों के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन उनके कब्जे के लिए हकदार नहीं है;

(ख) खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट किन्हीं विषयों पर राज्य सरकार का प्रभावी नियन्त्रण रखने के लिए अपेक्षित किसी अन्य विषय का उपबन्ध कर सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम-

(क) किसी स्थान को भांडागार घोषित करने के लिए, जिसमें स्वामी का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे सभी पोस्त तृण को, जिसका विधिसम्मत रूप से अंतर्राज्यिक आयात किया गया है और जिसका अंतर्राज्यिक निर्यात या भारत से निर्यात किए जाने का आशय है, निक्षेप करे ; भांडागारित ऐसे पोस्त तृण को सुरक्षित अभिरक्षा का और विक्रय या अंतर्राज्यिक निर्यात या भारत से निर्यात के लिए ऐसे पोस्त तृण के हटाने का विनियमन करने के लिए ; ऐसे भांडागारण के लिए फीसें उद्गृहीत करने के लिए और वह रीति जिससे और वह अवधि, जिसके पश्चात् भांडागारित पोस्त तृण का फीसों के संदाय के व्यतिक्रम में व्ययन किया जाएगा, विहित करने के लिए राज्य सरकार को सशक्त कर सकेंगे ;

(ख) यह उपबन्ध कर सकेंगे कि वह सीमा जिसके भीतर किसी कैनेबिस के पौधे की खेती के लिए अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी राज्य सरकार द्वारा या उसके आदेश के अधीन, समय-समय पर, नियत की जाएंगी;

(ग) यह उपबन्ध कर सकेंगे कि राज्य सरकार के विहित प्राधिकरण द्वारा अनुज्ञप्त खेतिहर ही किसी कैनेबिस के पौधे की खेती में लगने के लिए प्राधिकृत होंगे;

(घ) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि सभी कैनेबिस, और ऐसी भूमि की उपज जिस पर कैनेबिस के पौधे की खेती की गई है, खेतिहरों द्वारा राज्य सरकार के ऐसे अधिकारियों को, परिदत्त की जाएंगी जो इस निमित्त प्राधिकृत किए गए हैं;

(ङ) परिदत्त कैनेबिस के लिए खेतिहरों को संदत्त की जाने वाली कीमत समय-समय पर नियत करने के लिए राज्य सरकार को सशक्त कर सकेंगे;

(च) उपधारा (1) के खण्ड (क) के उपखण्ड (i) से उपखण्ड (vi) में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए अनुज्ञप्तियों या अनुज्ञापत्रों के प्ररूप और शर्तें तथा ऐसे प्राधिकरण जिसके द्वारा ऐसी अनुज्ञप्तियां या अनुज्ञापत्र दिए जा सकेंगे और ऐसी फीसें जो उनके लिए प्रभारित की जा सकेगी, विहित कर सकेंगे ।

11. स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों आदि का करस्थम् या कुर्की के दायित्वाधीन न होना – किसी विधि या संविदा में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, कोई स्वापक औषधि, मनःप्रभावी पदार्थ, कोका का पौधा, अफीम पोस्त या कैनेबिस का पौधा किसी न्यायालय या प्राधिकारी के किसी आदेश या डिक्री के अधीन किसी धन की वूसली के लिए या अन्यथा किसी व्यक्ति द्वारा करस्थम् या कुर्की के दायित्वाधीन नहीं होगा ।

12. स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों के बाह्य व्यवहार पर निर्बंधन – कोई व्यक्ति, केन्द्रीय सरकार के पूर्व प्राधिकार से ही और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो वह सरकार इस निमित्त अधिरोपित करे ऐसे किसी व्यापार में लगेगा या उसका नियन्त्रण करेगा जिसके द्वारा कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ भारत से बाहर अभिप्राप्त किया जाता है और भारत से बाहर किसी व्यक्ति को प्रदाय किया जाता है अन्यथा नहीं ।

13. सुरुचि कर्मक की निर्मिति में उपयोग के लिए कोका के पौधे और कोका की पत्तियों के संबंध में विशेष उपबंध-धारा 8 में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार किसी शर्त सहित या उसके बिना और सरकार की ओर से ऐसे किसी सुरुचि कर्मक की निर्मिति में जिसमें कोई ऐल्केलाइड नहीं है, उपयोग के लिए, और ऐसे उपयोग के लिए आवश्यक विस्तार तक किसी कोका के पौधे की खेती या उसके किसी भाग के संग्रह की या कोका की पत्तियों के उत्पादन, कब्जे, विक्रय, क्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या भारत में आयात की अनुज्ञा दे सकेगी । 

14. कैनेबिस के बारे में विशेष उपबंध – धारा 8 में किसी बात के होते हुए भी, सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो ऐसे आदेश में विहित की जाएं, केवल फाइबर या बीज प्राप्त करने के औद्योगिक प्रयोजनों के लिए या उद्यान-कृषि के प्रयोजनों के लिए किसी कैनेबिस के पौधे की खेती करने की अनुज्ञा दे सकेगी ।

अध्याय 4

अपराध और शास्तियां

15. पोस्त तृण के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई किसी अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में पोस्त तृण का उत्पादन, कब्जा, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपयोग करेगा या उसको भांडागारण में रखने का लोप करेगा या भांडागारित पोस्त तृण को हटाएगा या उसकी बाबत कोई कार्य करेगा, वह –

(क) जहां उल्लंघन अल्प मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से;

(ख) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा;

(ग) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

                परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

16. कोका के पौधे और कोका की पत्तियों के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में किसी कोका के पौधे की खेती करेगा या कोका के पौधे के किसी भाग का संग्रह या कोका की पत्तियों का उत्पादन, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से,  जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

17. निर्मित अफीम के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में निर्मित अफीम का विनिर्माण, कब्जा, क्रय, विक्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा, वह –

(क) जहां उल्लंघन अल्प मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से; या

(ख) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा; या

(ग) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

                परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

18. अफीम पोस्त और अफीम के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में निर्मित अफीम पोस्त की खेती या अफीम का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा, वह, –

(क) जहां उल्लंघन अल्प मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि [एक वर्ष] तक की हो सकेगी, या जुर्माने से जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से;

(ख) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा दंडनीय होगा:

परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा;

(ग) किसी अन्य मामले में, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

19. खेतिहर द्वारा अफीम के गबन के लिए दंड – केन्द्रीय सरकार के लिए अफीम पोस्त की खेती करने के लिए अनुज्ञप्त जो, कोई खेतिहर उत्पादित अफीम या उसके किसी भाग का गबन करेगा या उसका अन्यथा अवैध व्ययन करेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

                परन्तु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

20. कैनेबिस के पौधे और कैनेबिस के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में –

(क) किसी कैनेबिस के पौधे की खेती करेगा; या

(ख) कैनेबिस का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा-

(i) जहां उल्लंघन खंड (क) के संबंध में है वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा; और

(ii) जहां उल्लंघन खंड (ख) के संबंध में है, –

(अ) और अल्पमात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि [एक वर्ष] तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से;

(आ) और जहां वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा;

(इ) और जहां वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

21. विनिर्मित औषधियों और निर्मितियों के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में किसी विनिर्मित औषधि का या किसी विनिर्मित औषधि को अंतर्विष्ट करने वाली किसी निर्मिति का विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा, वह, –

(क) जहां उल्लंघन अल्प मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि [एक वर्ष] तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से;

(ख) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा;

(ग) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा, किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

                परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

22. मनःप्रभावी पदार्थों के संबंध में उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में किसी मनःप्रभावी पदार्थ का विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, अंतर्राज्यिक आयात, अंतर्राज्यिक निर्यात या उपयोग करेगा, वह, –

(क) जहां उल्लंघन अल्प मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि [एक वर्ष] तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से;

(ख) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा;

(ग) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा, किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

          परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

23. स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के अवैध रूप से भारत में आयात, भारत से निर्यात या यानांतरण के लिए दंड – जो कोई, इस अधिनियम के किसी उपबंध या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या दी गई अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र की शर्त या उसके अधीन जारी किए गए प्रमाणपत्र या प्राधिकार के उल्लंघन में किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का भारत में आयात करेगा या भारत से निर्यात करेगा या यानांतरण करेगा, वह, –

(क) जहां उल्लंघन अल्प मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि [एक वर्ष] तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा अथवा दोनों से;

(ख) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से कम किंतु अल्प मात्रा से अधिक मात्रा से संबंधित है, वहां कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा;

(ग) जहां उल्लंघन वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा, किंतु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा:

परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

24. धारा 12 के उल्लंघन में स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों में बाह्य व्यवहार के लिए दंड – जो कोई, किसी ऐसे व्यापार में लगेगा या उसका नियंत्रण करेगा, जिसके द्वारा कोई स्वापक औषधि या कोई मनःप्रभावी पदार्थ केन्द्रीय सरकार के पूर्व प्राधिकार के बिना या धारा 12 के अधीन दिए गए ऐसे किसी प्राधिकार की शर्तों से (यदि कोई हों) अन्यथा भारत के बाहर अभिप्राप्त किया जाता है और उसका भारत से बाहर किसी व्यक्ति को प्रदाय किया जाता है, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किन्तु बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किन्तु दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा :

परन्तु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

 25. किसी अपराध के किए जाने के लिए किसी परिसर, आदि का उपयोग किए जाने की अनुज्ञा देने के लिए दंड – जो कोई, किसी गृह, कक्ष, अहाते, जगह, स्थान, जीव-जंतु या प्रवहण का स्वामी या अधिभोगी होते हुए अथवा उसका नियंत्रण या उपयोग करते हुए उसका किसी अन्य व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के किसी उपबंध के अधीन दंडनीय कोई अपराध करने के लिए उपयोग किए जाने की जानबूझकर अनुज्ञा देगा, वह उस अपराध के लिए उपबंधित दंड से दंडनीय होगा ।

25क. धारा 9क के अधीन किए गए आदेशों के उल्लंघन के लिए दंड- यदि कोई व्यक्ति धारा 9क के अधीन किए गए किसी आदेश का उल्लंघन करेगा तो वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा; दंडनीय होगा:

परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, एक लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

26. अनुज्ञप्तिधारी या उसके सेवकों द्वारा किए गए कुछ कार्यों के लिए दंड – यदि इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश के अधीन दी गई किसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार का धारक अथवा उसके नियोजन में का और उसकी ओर से कार्य करने वाला कोई व्यक्ति-

(क) इस अधिनियम के उपबन्धों या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अनुसार लेखा रखने या विवरणी प्रस्तुत करने का किसी युक्तियुक्त हेतुक के बिना लोप करेगा;

(ख) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा उस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी की मांग पर ऐसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार पेश करने में किसी युक्तियुक्त हेतुक के बिना असफल रहेगा;

(ग) ऐसा कोई लेख रखेगा या ऐसा कोई कथन करेगा जो मिथ्या है अथवा जिसके बारे में वह जानता है या उसे विश्वास करने का कारण है कि वह गलत है; या

(घ) ऐसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार की किसी शर्त को, जिसके लिए इस अधिनियम में अन्यत्र कोई शास्ति विहित नहीं की गई है, भंग करके जानबूझकर और जानते हुए, कोई कार्य करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

27. किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के उपभोग के लिए दंड-जो कोई, किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उपभोग करेगा, वह-

(क) जहां ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ, जिसका उपभोग किया गया है, कोकेन, मार्फिन, डाइऐसीटल मार्फिन या ऐसी कोई अन्य स्वापक औषधि या ऐसा कोई मनःप्रभावी पदार्थ है, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, वहां, कठोर कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो बीस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से; और

(ख) जहां ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उपभोग किया गया है, जो खंड (क) में विनिर्दिष्ट औषधि या पदार्थ से भिन्न है वहां, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा, अथवा दोनों से, दंडनीय होगा ।

 27क. अवैध व्यापार का वित्त पोषण करने और अपराधियों को संश्रय देने के लिए दंड – जो कोई, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः, धारा 2 के खंड (viiiक) के उपखंड (i) से उपखंड (v) तक में विनिर्दिष्ट किसी क्रियाकलाप का वित्तपोषण करने में या पूर्व वर्णित क्रियाकलापों में से किसी क्रियाकलाप में लगे किसी व्यक्ति को संश्रय देने में संलग्न होगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो दो लाख रुपए तक हो सकेगा, दंडनीय होगा :

परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे; दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

27ख. धारा 8क के उल्लंघन के लिए दंड – जो कोई, धारा 8क के उपबंध का उल्लंघन करेगा, ऐसी अवधि के, जो तीन वर्ष से कम की नहीं होगी, किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी, कठोर कारावास से दंडनीय होगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा ।

28. अपराध करने के प्रयत्नों के लिए दंड – जो कोई इस अध्याय के अधीन दंडनीय कोई अपराध करने या ऐसे अपराध का किया जाना कारित करने का प्रयत्न करेगा और ऐसा प्रयत्न करने में उस अपराध के संबंध में कोई कार्य करेगा, वह उस अपराध के लिए उपबन्धित दंड से दंडनीय होगा ।

29. दुष्प्रेरण और आपराधिक षड्यंत्र के लिए दंड – (1) जो कोई इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा या ऐसा कोई अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होगा, वह चाहे ऐसा अपराध ऐसे दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप; या ऐसे आपराधिक षड्यंत्र के अनुसरण में किया जाता है या नहीं किया जाता है और भारतीय दंड संहिता 1860 (1860 का 45) की धारा 116 में किसी बात के होते हुए भी, उस अपराध के लिए उपबन्धित दंड से दंडनीय होगा ।

(2) वह व्यक्ति इस धारा के अर्थ में किसी अपराध का दुष्प्रेरण करता है या ऐसा कोई अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होता है जो भारत में, भारत से बाहर और परे किसी स्थान में ऐसा कोई कार्य किए जाने का भारत में दुष्प्रेरण करता है या ऐसे आपराधिक षड्यंत्र का पक्षकार होता है, जो-

(क) यदि भारत के भीतर किया जाता तो, अपराध गठित करता, या

(ख) ऐसे स्थान की विधियों के अधीन स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों से सम्बन्धित ऐसा अपराध है, जिसमें उसे ऐसा अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित वैसे ही या उसके समरूप सभी विधिक शर्तें हैं जैसी उसे इस अध्याय के अधीन दंडनीय अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित विधिक शर्तें होती यदि ऐसा अपराध भारत में किया जाता ।

30. तैयारी – यदि कोई व्यक्ति, ऐसा कोई कार्य, जो धारा 19, धारा 24 और धारा 27क के किसी उपबंध के अधीन दंडनीय अपराध और किसी ऐसे अपराध के लिए जो किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ की वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित है गठित करता है, करने की तैयारी करेगा या करने का लोप करेगा और मामले की परिस्थितियों से युक्तियुक्त रूप से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह उस अपराध को करने के अपने आशय से कार्यान्वित करने के लिए दृढ़ संकल्प था किन्तु उसे उसकी इच्छा से स्वतंत्र परिस्थितियों द्वारा रोका गया था तो वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि ऐसे कारावास की, जिससे यदि वह ऐसा अपराध करता तो दण्डनीय होता, न्यूनतम अवधि (यदि कोई हो) के आधी से कम की नहीं होगी किन्तु ऐसे कारावास की, अधिकतम अवधि के आधे तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो ऐसे जुर्माने की जिसके वह पूर्वोक्त दशा में दण्डनीय होता, न्यूनतम रकम (यदि कोई हो) के आधे से कम का नहीं होगा किन्तु ऐसे जुर्माने की, जिससे वह साधारणतया (अर्थात्, विशेष कारणों के अभाव में) दण्डनीय होता, अधिकतम रकम के आधे तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा :

                परन्तु न्यायालय ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, उच्चतर जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा ।

31. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् अपराधों के लिए वर्धित दंड – (1) यदि कोई व्यक्ति, जिसको इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध करने या करने का प्रयत्न करने या उसका दुष्प्रेरण करने या करने का आपराधिक षड्यंत्र करने के लिए सिद्धदोष ठहराया गया है, तत्पश्चात् इस अधिनियम के अधीन उतने ही दंड से दंडनीय कोई अपराध करने या करने का प्रयत्न करने या उसका दुष्प्रेरण करने या करने का आपराधिक षड्यंत्र करने के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है तो वह; द्वितीय और प्रत्येक पश्चात्वर्ती अपराध के लिए कठोर कारावास से, जिसकी अवधि कारावास की  अधिकतम अवधि के डेढ़ गुणे तकट की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो जुर्माने की अधिकतम रकम के डेढ़ गुणे तकट का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

(2) जहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट व्यक्ति कारावास की, न्यूनतम अवधि और जुर्माने की न्यूनतम रकम से दंडित किए जाने का भागी है, वहां ऐसे व्यक्ति के लिए न्यूनतम दंड, कारावास की न्यूनतम अवधि का डेढ़ गुणा और जुर्माने की न्यूनतम रकम का डेढ़ गुणा होगा:

परंतु न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो निर्णय में लेखबद्ध किए जाएंगे, उस जुर्माने से अधिक का जुर्माना अधिरोपित कर सकेगा जिसके लिए कोई व्यक्ति दायी है ।

(3) जहां कोई व्यक्ति, तत्स्थानी किसी विधि के अधीन भारत से बाहर दांडिक अधिकारिता वाले किसी सक्षम न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया जाता है वहां, ऐसे व्यक्ति से, ऐसी दोषसिद्धि की बाबत, उपधारा (1) और उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिए, इस प्रकार बरता जाएगा मानो वह भारत में किसी न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया गया हो ।

31क. पूर्व दोषसिद्धि के पश्चात् कुछ अपराधों के लिए मृत्यु दंड – (1) धारा 31 में किसी बात के होते हुए भी, धारा 19, धारा 24, धारा 27क के अधीन दंडनीय किसी अपराध के किए जाने या करने का प्रयत्न करने या दुष्प्ररेण करने या करने का आपराधिक षड्यंत्र करने के लिए और उन अपराधों के लिए जो किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ की वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित हैं| सिद्धदोष कोई व्यक्ति, यदि वह निम्नलिखित से संबंधित अपराध किए जाने या करने का प्रयत्न करने या दुष्प्ररेण करने या करने के आपराधिक षड्यंत्र के लिए तदनंतर सिद्धदोष ठहराया जाता है तो , ऐसे दंड से जो धारा 31 में विनिर्दिष्ट दंड से कम का नहीं होगा या मृत्यु दंड से, दंडित किया जाएगा, अर्थात् :-

(क) नीचे दी गई सारणी के स्तंभ (1) के अधीन विनिर्दिष्ट स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों और उनमें अंतर्वलित मात्रा के, जो उक्त सारणी के स्तंभ (2) में यथाविनिर्दिष्ट ऐसी प्रत्येक औषधि या पदार्थ के सामने उपदर्शित मात्रा के बराबर या उससे अधिक है, उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, भारत में आयात, भारत से निर्यात या यानांतरण में लगे रहने से संबंधित अपराध:

सारणी

 क ओषधियों/ मनःप्रभावी पदार्थों की विशिष्टियामात्रा
  (1)(2)
  (i) अफीम10 किलोग्राम
  (ii) मार्फीन1 किलोग्राम
  (iii) हिरोइन1 किलोग्राम
  (iv) कोडीन1 किलोग्राम
  (v) थिबेन1 किलोग्राम
  (vi) कोकेन500 ग्राम
  (vii) हशीश20 किलोग्राम
 (viii) उपरोक्त ओषधियों में से किसी ओषधि की निष्प्रभावी सामग्री सहित या उससे रहित कोई मिश्रण 2[ऊपर वर्णित सम्मिश्रण के भागरूप संबंधित ऐसी स्वापक ओषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों के सामने जो मात्राएं दी गई हैं उनसे कम मात्रा]
 (ix) एल०एस०डी०, एल०एस०डी०-25 ()-एन, एन-डाइएथिललाइसरजैमाईड (डी-लाइसर्जिक अम्ल डाइथिलएमाइड) 500 ग्राम
 (x) डी०एच०सी० टेट्राहाइड्रोकेनाबिनोल्स, निम्नलिखित समाव्यपी: 6ए (10ए)/ 6ए (7) 7, 8, 9, 10, 9(11) और उनके त्रिविम रासायनिक रूप भेद 1 500 ग्राम
 (xi) मेथेमकेटामिन ()-2-मेथिलामाइन, 1-फनिलप्रोपेन   1, 500 ग्राम
 (xii) मेथाक्वेलोन (2 मेथिल-3-ओ-टोलिल-4-(3एच)-क्विनेजोलिनोन) 1, 500 ग्राम
 (xiii) एम्फ़टेमिन ()-2-एमिनी-1-फेनिलप्रोपेन 1, 500 ग्राम
 (xiv) (ix) से (xiii) में वर्णित मनःप्रभावी पदार्थों के लवण और निर्मितियां 1, 500 ग्राम

(ख) खंड (क) में विनिर्दिष्ट क्रियाकलापों में से किसी क्रियाकलाप का, प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः वित्तपोषण करना ।

(2) जहां कोई व्यक्ति धारा 19, धारा 24 या धारा 27क के उपबंधों के तत्समान किसी विधि के अधीन और किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ की वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित होने वाले अपराधों के लिए, भारत के बाहर किसी दांडिक अधिकारिता वाले सक्षम न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया जाता है, वहां ऐसी दोषसिद्धि की बाबत ऐसे व्यक्ति के बारे में उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए ऐसी कार्यवाही की जाएगी मानो वह भारत में किसी न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया गया हो ।

32. ऐसे अपराधों के लिए दण्ड जिनके लिए दंड का उपबंध नहीं किया गया है – जो कोई इस अधिनियम के किसी उपबन्ध या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश का दी गई किसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार की किसी शर्त का, जिसके लिए इस अध्याय में पृथक् रूप से किसी दंड का उपबन्ध नहीं किया गया है, उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

32क. इस अधिनियम के अधीन दिए गए किसी दंडादेश का निलंबन, परिहार या लघुकरण न होना – दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किंतु धारा 33 के उपबंधों के अधीन रहते हुए इस अधिनियम के अधीन (धारा 27 से भिन्न) दिए गए किसी दंडादेश का निलंबन या परिहार या लघुकरण नहीं किया जाएगा ।

 32ख. न्यूनतम दंड से उच्चतर दंड अधिरोपित करने के लिए विचार में लिए जाने वाली बातें – जहां इस अधिनियम के अधीन किए गए किसी अपराध के लिए कारावास की कोई न्यूनतम अवधि या जुर्माने की रकम विहित है, वहां न्यायालय, कारावास की न्यूनतम अवधि या जुर्माने की रकम से उच्चतर कोई दंड अधिरोपित करने के लिए ऐसी बातों के अतिरिक्त जिन्हें वह ठीक समझे, निम्नलिखित बातों को विचार में ले सकेगा, अर्थात्: –

(क) अपराधी द्वारा हिंसा या आयुध का उपयोग या उसके उपयोग की धमकी;

(ख) यह तथ्य कि अपराधी लोक पद धारण करता है और उसने अपराध करने में उस पद का लाभ उठाया है;

(ग) यह तथ्य कि अपराध द्वारा अवयस्क प्रभावित होते हैं या उस अपराध के किए जाने के लिए अवयस्कों का उपयोग किया जाता है;

(घ) यह तथ्य कि अपराध किसी शिक्षा संस्था या सामाजिक सेवा संकाय में या ऐसी संस्था या संकाय के ठीक निकट या ऐसे अन्य स्थान में, जिसमें विद्यालय के बालक और छात्र शिक्षा, क्रीड़ा और सामाजिक क्रियाकलापों के लिए आते-जाते हैं, किया जाता है;

(ङ) यह तथ्य कि अपराधी संगठित अंतर्राष्ट्रीय या किसी ऐसे अन्य अपराधी समूह का है जो अपराध करने में लगा हुआ है ; और

(च) यह तथ्य कि अपराधी अपराध करके सुकर बनाए गए अन्य अवैध क्रियाकलापों में लगा हुआ है ।

33. दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 360 और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 का लागू होना – दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) की कोई बात इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष किसी व्यक्ति को तब तक लागू नहीं होगी जब तक वह व्यक्ति अठारह वर्ष से कम आयु का नहीं है अथवा वह अपराध, जिसके लिए उस व्यक्ति को सिद्धदोष ठहराया जाता है धारा 26 या धारा 27 के अधीन दंडनीय नहीं है ।

34. अपराध के किए जाने से प्रविरत रहने के लिए प्रतिभूति – (1) जब कभी कोई व्यक्ति अध्याय 4 के किसी उपबन्ध के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जाता है और उसे सिद्धदोष ठहराने वाले न्यायालय को वह राय है कि ऐसे व्यक्ति से इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने से प्रविरत रहने के लिए बन्धपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा की जानी आवश्यक है तो वह न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्ड पारित करते समय उसे आदेश दे सकेगा कि वह तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के दौरान,  जिसे नियत करना वह न्यायालय ठीक समझे, अध्याय 4 के अधीन कोई अपराध करने से प्रविरत रहने के लिए प्रतिभुओं सहित या उनके बिना, अपने साधनों की आनुपातिक राशि के लिए बन्धपत्र निष्पादित करे ।

(2) बन्धपत्र ऐसे प्ररूप में होगा जो केन्द्रीय सरकार विहित करे और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबन्ध, जहां तक वे लागू होते हैं, ऐसे बन्धपत्र से संबंधित सभी बातों को इस प्रकार लागू होंगे मानो वे परिशांति बनाए रखने के लिए उस संहिता को धारा 106 के अधीन निष्पादित किए जाने के लिए आदिष्ट बन्धपत्र हों ।

(3) यदि दोषसिद्धि, अपील पर या अन्यथा, अपास्त कर दी जाती है तो इस प्रकार निष्पादित बन्धपत्र शून्य हो जाएगा ।

(4) इस धारा के अधीन कोई आदेश किसी अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय द्वारा या सेशन न्यायाधीश द्वारा भी, जब वह पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा ।

35. आपराधिक मानसिक दशा की उपधारणा – (1) इस अधिनियम के अधीन किसी ऐसे अपराध के किसी अभियोजन में, जिसमें अभियुक्त की मानसिक दशा अपेक्षित है, न्यायालय यह उपधारणा करेगा कि अभियुक्त की ऐसी मानसिक दशा है किन्तु अभियुक्त के लिए यह तथ्य साबित करना एक प्रतिरक्षा होगी कि उस अभियोजन में अपराध के रूप में आरोपित कार्य के बारे में उसकी वैसी मानसिक दशा नहीं थी ।

स्पष्टीकरण – इस धारा में “आपराधिक मानसिक दशा” के अन्तर्गत आशय, हेतु, किसी तथ्य का ज्ञान और किसी तथ्य में विश्वास या उस पर विश्वास करने का कारण है ।

(2) इस धारा के प्रयोजन के लिए कोई तथ्य केवल तभी साबित किया गया कहा जाता है जब न्यायालय युक्तियुक्त संदेह से परे यह विश्वास करे कि वह तथ्य विद्यमान है और केवल इस कारण नहीं कि उसकी विद्यमानता अधिसंभाव्यता की प्रबलता के कारण सिद्ध होती है ।

36. विशेष न्यायालयों का गठन – (1) सरकार, इस अधिनियम के अधीन अपराधों का शीघ्र विचारण करने के प्रयोजन के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उतने विशेष न्यायालयों का, जितने ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए आवश्यक हों, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, गठन कर सकेगी ।

(2) विशेष न्यायालय में एकल न्यायाधीश होगा जिसे सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से नियुक्त किया जाएगा ।

स्पष्टीकरण- इस उपधारा में, “उच्च न्यायालय” से राज्य का ऐसा उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जिसमें किसी विशेष न्यायालय का सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश ऐसे न्यायाधीश के रूप में उसकी नियुक्ति के ठीक पहले कार्य कर रहा था ।

(3) कोई भी व्यक्ति किसी विशेष न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए तब तक अर्हित नहीं होगा जब तक वह ऐसी नियुक्ति के ठीक पहले सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश न हो ।

 36क. विशेष न्यायालयों द्वारा विचारणीय अपराध – (1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी —

(क) इस अधिनियम के अधीन ऐसे सभी अपराध, जो तीन वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय हैं, उस क्षेत्र के लिए, जिसमें अपराध किया गया है, गठित विशेष न्यायालय द्वारा हो या जहां ऐसे क्षेत्र के लिए एक से अधिक विशेष न्यायालय हैं वहां, उनमें से ऐसे एक के द्वारा ही, जिसे सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, विचारणीय होंगे;

(ख) जहां इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के अभियुक्त या उसके किए जाने के संदेहयुक्त किसी व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 167 की उपधारा (2) या उपधारा (2क) के अधीन किसी मजिस्ट्रेट को भेजा जाता है, वहां ऐसे मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में, जो वह उचित समझे, कुल मिलाकर पन्द्रह दिन से अनधिक की अवधि के लिए, जहां ऐसा मजिस्ट्रेट, न्यायिक मजिस्ट्रेट है और कुल मिलाकर सात दिन की अवधि के लिए, जहां ऐसा मजिस्ट्रेट, कार्यपालक मजिस्ट्रेट है, निरोध के लिए प्राधिकृत कर सकेगा :

परंतु ऐसे मामलों में, जो विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं, जहां ऐसे मजिस्ट्रेट का-

(i) जब ऐसा व्यक्ति पूर्वोक्त रूप में उसको भेजा जाता है, या

(ii) उसके द्वारा प्राधिकृत निरोध की अवधि की समाप्ति पर या उसके पूर्व किसी भी समय, यह विचार है कि ऐसे व्यक्ति का निरोध अनावश्यक है, वहां वह ऐसे व्यक्ति को अधिकारिता रखने वाले विशेष न्यायालय को भेजे जाने का आदेश करेगा;

(ग) विशेष न्यायालय, खंड (ख) के अधीन उसको भेजे गए व्यक्ति के संबंध में, उसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा जिसका प्रयोग किसी मामले का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 167 के अधीन, ऐसे मामले में किसी अभियुक्त व्यक्ति के संबंध में, जिसे उस धारा के अधीन उसको भेजा गया है, कर सकता है;

(घ) विशेष न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने वाले तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट का परिशीलन करने पर या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा किए गए परिवाद पर, अपराधी को विचारण के लिए उसको सुपुर्द न किए जाने की दशा में भी उस अपराध का संज्ञान कर सकेगा ।

(2) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करते समय, विशेष न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से भिन्न ऐसे अपराध का भी विचारण कर सकेगा जिसके लिए अभियुक्त को, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन उसी विचारण में आरोपित किया जाए ।

(3) इस धारा की कोई बात दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 439 के अधीन जमानत से संबंधित उच्च न्यायालय की विशेष शक्तियों को प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी और उच्च न्यायालय ऐसी शक्तियों का प्रयोग, जिसके अंतर्गत उस धारा की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन शक्ति भी है, ऐसे कर सकेगा मानो उस धारा में “मजिस्ट्रेट” के प्रति निर्देश के अंतर्गत धारा 36 के अधीन गठित “विशेष न्यायालय” के प्रति निर्देश भी है ।

(4) धारा 19 या धारा 24 या धारा 27क के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्तियों के संबंध में या वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के लिए, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 167 की उपधारा (2) में “नब्बे दिन” के प्रति निर्देशों का, जहां-जहां वे आते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे “एक सौ अस्सी दिन” के प्रति निर्देश हैं:

परंतु यदि अन्वेषण को, उक्त एक सौ अस्सी दिन की अवधि के भीतर पूरा करना संभव नहीं है, तो विशेष न्यायालय उक्त अवधि को लोक अभियोजक की अन्वेषण की प्रगति और उक्त एक सौ अस्सी दिन की अवधि से परे अभियुक्त के निरोध के लिए विनिर्दिष्ट कारणों को उपदर्शित करने वाली रिपोर्ट पर एक वर्ष तक बढ़ा सकेगा ।

(5) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकेगा ।

36ख. अपील और पुनरीक्षण – उच्च न्यायालय, जहां तक लागू हो सके, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अध्याय 29 और अध्याय 30 द्वारा उच्च न्यायालय को प्रदत्त सभी शक्तियों का प्रयोग ऐसे कर सकेगा मानो उच्च न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर कोई विशेष न्यायालय, उच्च न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर मामलों का विचारण करने वाला सेशन न्यायालय है ।

36ग. विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को संहिता का लागू होना – इस अधिनियम में जैसा, अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबंध (जिसके अंतर्गत जमानत और बंधपत्रों से संबंधित उपबंध भी हैं) किसी विशेष न्यायालय के समक्ष कार्यवाहियों को लागू होंगे और उक्त उपबंधों के प्रयोजनों के लिए विशेष न्यायालय, एक सेशन न्यायालय समझा जाएगा, और विशेष न्यायालय के समक्ष अभियोजन संचालित करने वाला व्यक्ति लोक अभियोजक समझा जाएगा ।

36घ. संक्रमणकालीन उपबन्ध – (1) धारा 36 के अधीन किसी विशेष न्यायालय का गठन होने तक, स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 1988 (1989 का 2) के प्रारम्भ पर या उसके पश्चात् इस अधिनियम के अधीन किए गए किसी ऐसे अपराध का, जो किसी विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय है, विचारण दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, सेशन न्यायालय द्वारा किया जाएगा ।

(2) जहां स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 1988 (1989 का 2) के प्रारम्भ पर या उसके पश्चात् इस अधिनियम के अधीन किए गए किसी अपराध से संबंधित कोई कार्यवाही किसी सेशन न्यायालय के समक्ष लम्बित है वहां, उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, ऐसी कार्यवाही की सेशन न्यायालय द्वारा सुनवाई की जाएगी और उसका निपटान किया जाएगा:

परंतु इस उपधारा की किसी बात से दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 407 के अधीन उच्च न्यायालय की, किसी सेशन न्यायालय द्वारा उपधारा (1) के अधीन संज्ञान किए गए किसी मामले या मामलों के वर्ग को अन्तरित करने की, शक्ति प्रभावित नहीं होगी ।

 37. अपराधों का संज्ञेय और अजमानतीय होना– (1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी –

(क) इस अधिनियम के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा ;

(ख) धारा 19 या धारा 24 या धारा 27क के अधीन अपराधों के लिए और वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के लिए भी दंडनीय किसी अपराध के अभियुक्त किसी भी व्यक्ति को जमानत पर या मुचलके पर तभी निर्मुक्त किया जाएगा जब-

(i) लोक अभियोजक को ऐसी निर्मुक्ति के लिए किए गए आवेदन का विरोध करने का अवसर दे दिया गया है, और

(ii) जहां लोक अभियोजक आवेदन का विरोध करता है वहां न्यायालय का यह समाधान हो गया है कि यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हैं कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर होने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध किए जाने की संभावना नहीं है ।

(2) उपधारा (1) के खंड (ख) में विनिर्दिष्ट जमानत मंजूर करने के संबंध में ये परिसीमाएं दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जमानत मंजूर करने की बाबत परिसीमाओं के अतिरिक्त हैं ।

38. कंपनियों द्वारा अपराध – (1) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है वहां प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कंपनी के कारबार के संचालन के लिए उस कंपनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कंपनी भी, उस अपराध के दोषी समझे जाएंगे तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने के भागी होंगे:

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी व्यक्ति को किसी दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए सभी सम्यक् तत्परता बरती थी ।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कंपनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकरी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता है वहां ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, या सचिव या अन्य अधिकारी भी, उस अपराध का दोषी समझा जाएगा तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा ।( स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985)

स्पष्टीकरण– इस धारा के प्रयोजनों के लिए –

(क) “कंपनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम है; और

(ख) फर्म के संबंध में “निदेशक” से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

39. कुछ अपराधियों को परिवीक्षा पर निर्मुक्त करने की न्यायालय की शक्ति – (1) जब किसी व्यसनी को धारा 27 के अधीन या किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ की अल्प मात्रा से संबंधित अपराधों के लिए दंडनीय किसी अपराध का दोषी पाया जाता है और यदि उस न्यायालय की, जिसके द्वारा वह दोषी पाया जाता है, अपराधी की आयु, चरित्र, पूर्ववृत्त अथवा शारीरिक या मानसिक दशा को ध्यान में रखते हुए, यह राय है कि ऐसा करना समीचीन है, तब इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय उसे तत्काल किसी कारावास से दण्डादिष्ट करने की बजाय, उसकी सहमति से यह निदेश दे सकेगा कि उसे सरकार द्वारा चलाए जा रहे या मान्यताप्राप्त किसी अस्पताल या संस्था से निराविषीकरण या निराव्यसन के लिए चिकित्सीय उपचार कराने के लिए और न्यायालय के समक्ष एक वर्ष से अनधिक की अवधि के भीतर हाजिर होने और अपने चिकित्सीय उपचार के परिणाम के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए या इस बीच अध्याय 4 के अधीन किसी अपराध को करने से प्रविरत रहने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित प्ररूप में, प्रतिभुओं सहित या उनके बिना, बन्धपत्र निष्पादित करने पर निर्मुक्त किया जाए ।

(2) यदि चिकित्सीय उपचार के परिणाम के बारे में उपधारा (1) के अधीन प्रस्तुत की गई रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि ऐसा करना समीचीन है तो न्यायालय अपराधी को उसके द्वारा तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के दौरान, जो न्यायालय विनिर्दिष्ट करना ठीक समझे, अध्याय 4 के अधीन कोई अपराध करने से प्रविरत रहने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित प्ररूप में प्रतिभुओं सहित या उनके बिना बन्धपत्र निष्पादित किए जाने पर, सम्यक् भर्त्सना के पश्चात् निर्मुक्त किए जाने, अथवा उसके इस प्रकार प्रविरत रहने में असफल रहने पर न्यायालय के समक्ष हाजिर होने और ऐसी अवधि के दौरान जब अपेक्षा की जाए दण्डादेश प्राप्त करने के लिए निदेश दे सकेगा । (स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985)

40. कुछ अपराधियों के नामों, कारबार के स्थान आदि को प्रकाशित करने की न्यायालय की शक्ति – (1) जहां किसी व्यक्ति को, धारा 15 से धारा 25 (दोनों सहित), धारा 28, धारा 29 या धारा 30 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जाता है वहां उस व्यक्ति को सिद्धदोष ठहराने वाला न्यायालय ऐसे व्यक्ति का नाम और कारबार का स्थान या निवास-स्थान, उल्लंघन की प्रकृति, यह तथ्य कि उस व्यक्ति को इस प्रकार सिद्धदोष ठहराया गया है और ऐसी अन्य विशिष्टियां, जो न्यायालय मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, ऐसे व्यक्ति के व्यय पर ऐसे समाचारपत्रों में या ऐसी रीति से, जो न्यायालय निदिष्ट करे, प्रकाशित कराने के लिए सक्षम होगा ।

(2) उपधारा (1) के अधीन कोई प्रकाशन तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायालय के आदेशों के विरुद्ध अपील करने की अवधि का कोई अपील किए बिना अवसान नहीं हो जाता है या ऐसी अपील किए जाने पर उसका निपटान नहीं कर दिया जाता है ।

(3) उपधारा (1) के अधीन किसी प्रकाशन का व्यय सिद्धदोष ठहराए गए व्यक्ति से इस प्रकार वसूलीय होगा मानो वह न्यायालय द्वारा अधिरोपित जुर्माना हो ।

अध्याय 5

प्रक्रिया

41. वारंट जारी करने की शक्ति और प्राधिकार – (1) महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट या इस निमित्त राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट, किसी ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया है, या किसी ऐसे भवन, प्रवहण या स्थान की, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वहां कोई ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है, या कोई ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु, जो ऐसे अपराध के किए जाने का साक्ष्य हो सकती है, या कोई ऐसी अवैध रूप से अर्जित संपत्ति या कोई ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु, जो अवैध रूप से अर्जित ऐसी कोई संपत्ति धारण करने का साक्ष्य हो सकती है जो इस अधिनियम के अध्याय 5क के अधीन अभिग्रहण या स्थिरीकरण या समपहरण के दायी है, रखी या छिपाई गई है, दिन में या रात में, तलाशी के लिए वारंट जारी कर सकेगा ।

(2) केन्द्रीय उत्पाद- शुल्क, स्वापक, सीमाशुल्क, राजस्व आसूचना विभागों या केन्द्रीय सरकार के किसी अन्य विभाग का, जिसके अन्तर्गत पैरा सैन्य बल या सशस्त्र बल भी हैं, राजपत्रित पंक्ति का ऐसा कोई अधिकारी जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस निमित्त सशक्त किया जाता है, अथवा किसी राज्य सरकार के राजस्व, औषधि नियंत्रण, उत्पाद-शुल्क, पुलिस या किसी अन्य विभाग का कोई ऐसा अधिकारी, जिसे राज्य सरकार के, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस निमित्त सशक्त किया जाता है, यदि उसके पास व्यक्तिगत जानकारी या किसी व्यक्ति द्वारा दी गई और लिखी गई इत्तिला से यह विश्वास करने का कारण है कि किसी व्यक्ति ने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया है अथवा कोई ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है या कोई ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु जो ऐसे अपराध के किए जाने का साक्ष्य हो सकती है या अवैध रूप से अर्जित कोई ऐसी संपत्ति या कोई दस्तावेज या अन्य वस्तु, जो अवैध रूप से अर्जित ऐसी कोई संपत्ति धारण करने का साक्ष्य हो सकती है जो इस अधिनियम के अध्याय 5क के अधीन अभिग्रहण या स्थिरीकरण या समहरण के लिए दायी है किसी भवन, प्रवहण या स्थान में रखी या छिपाई गई है, अपने अधीनस्थ किन्तु किसी चपरासी, सिपाही, या कांस्टेबल की पंक्ति से वरिष्ठ किसी अधिकारी को ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए अथवा किसी भवन, प्रवहण या स्थान की, दिन में या रात में, तलाशी लेने के लिए प्राधिकृत कर सकेगा अथवा स्वयं ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकेगा या ऐसे भवन, प्रवहण या स्थान की तलाशी ले सकेगा ।

(3) ऐसे अधिकारी को, जिसको उपधारा (1) के अधीन कोई वारंट संबोधित किया जाता है और ऐसे अधिकारी को, जो गिरफ्तारी या तलाशी को प्राधिकृत करता है, या ऐसे अधिकारी को, जिसे उपधारा (2) के अधीन इस प्रकार प्राधिकृत किया जाता है, धारा 42 के अधीन कार्य करने वाले अधिकारी की सभी शक्तियां होंगी ।

42. वारंट या प्राधिकार के बिना प्रवेश, तलाशी, अभिग्रहण और गिरफ्तार करने की शक्ति – (1) केन्द्रीय उत्पाद-शुल्क, स्वापक, सीमाशुल्क, राजस्व आसूचना विभागों या केन्द्रीय सरकार के किसी अन्य विभाग का, जिसके अन्तर्गत पैरा सैन्य बल या सशस्त्र बल भी हैं, कोई ऐसा अधिकारी (जो किसी चपरासी, सिपाही या कांस्टेबल की पंक्ति से वरिष्ठ अधिकारी है), जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा, साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस निमित्त सशक्त किया जाता है, अथवा किसी राज्य सरकार के राजस्व, औषधि नियंत्रण, उत्पाद-शुल्क, पुलिस या किसी अन्य विभाग का कोई ऐसा अधिकारी (जो किसी चपरासी, सिपाही या कांस्टेबल की पंक्ति से वरिष्ठ अधिकारी है), जिसे राज्य सरकार के साधारण या विशेष आदेश द्वारा इस निमित्त सशक्त किया जाता है, यदि उसके पास व्यक्तिगत जानकारी या किसी व्यक्ति द्वारा दी गई और लिखी गई इत्तिला से यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसी कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या नियंत्रित पदार्थ जिसकी बाबत इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है, या कोई ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु, जो ऐसे अपराध के किए जाने का साक्ष्य हो सकती है या अवैध रूप से अर्जित कोई ऐसी संपत्ति या कोई ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु, जो अवैध रूप से अर्जित कोई ऐसी संपत्ति धारण करने का साक्ष्य हो सकती है जो इस अधिनियम के अध्याय 5क के अधीन अभिग्रहण या स्थिरीकरण या समपहरण के लिए दायी हैं, किसी भवन, प्रवहण या परिवेष्टित स्थान में रखी या छिपाई गई है, सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच-

(क) किसी ऐसे भवन, प्रवहण या स्थान में प्रवेश कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा;

(ख) प्रतिरोध की दशा में, किसी द्वार को तोड़ सकेगा और ऐसे प्रवेश करने में किसी अन्य बाधा को हटा सकेगा;

(ग) ऐसी औषधि या पदार्थ और उसके विनिर्माण में प्रयुक्त सभी सामग्री तथा किसी अन्य वस्तु और किसी जीवजन्तु या प्रवहण को, जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह इस अधिनियम के अधीन अधिहरणीय है और किसी ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु को, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के किए जाने का साक्ष्य हो सकती है या अवैध रूप से अर्जित कोई ऐसी संपत्ति धारण करने का साक्ष्य हो सकती है जो इस अधिनियम के अध्याय 5क के अधीन अभिग्रहण या स्थिरीकरण या समपहरण के लिए दायी है, अभिगृहीत कर सकेगा ; और

(घ) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया है, निरुद्ध कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा तथा यदि वह उचित समझे तो, उसे गिरफ्तार कर सकेगा:

  परंतु इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किए गए आदेश के अधीन विनिर्मित औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों या नियंत्रित पदार्थों के विनिर्माण के लिए दी गई, अनुज्ञप्ति के धारक के संबंध में ऐसी शक्ति का प्रयोग ऐसे किसी अधिकारी द्वारा किया जाएगा, जो उप निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो: (स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985)

परंतु यह और कि यदि ऐसे अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि तलाशी वारंट या प्राधिकार, साक्ष्य छिपाने के लिए अवसर दिए बिना या किसी अपराधी को निकल भागने के लिए सुविधा दिए बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है तो वह सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच किसी भी समय ऐसे भवन, प्रवहण या परिवेष्टित स्थान में, अपने विश्वास के आधारों को लेखबद्ध करने के पश्चात् प्रवेश कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा ।

(2) जहां कोई अधिकारी, किसी इत्तिला को उपधारा (1) के अधीन लिखता है या अपने विश्वास के आधारों को उसके परन्तुक के अधीन लेखबद्ध करता है, वहां वह उसकी प्रति अपने अव्यवहित पदीय वरिष्ठ को बहत्तर घंटे के भीतर भेजेगा ।

43. लोक स्थान में अभिग्रहण और गिरफ्तार करने की शक्ति – धारा 42 में उल्लिखित किसी विभाग का कोई अधिकारी-

(क) किसी लोक स्थान में या अभिवहन में, किसी ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ को, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया गया है और ऐसी औषधि या ऐसे पदार्थ के साथ किसी ऐसे जीवजन्तु या प्रवहण या वस्तु का जो इस अधिनियम के अधीन अधिहरणीय है और किसी ऐसी दस्तावेज या अन्य वस्तु को जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के किए जाने का साक्ष्य हो सकती है या ऐसी किसी दस्तावेज या अन्य वस्तु को, जो अवैध रूप से अर्जित ऐसी किसी संपत्ति को धारण करने का साक्ष्य हो सकती है जो इस अधिनियम के अध्याय 5क के अधीन अभिग्रहण या स्थिरीकरण या समपहरण के लिए दायी है, अभिगृहीत कर सकेगा ;

(ख) ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसने इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई अपराध किया है, निरुद्ध कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा तथा यदि ऐसे व्यक्ति के कब्जे में कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ हैं और ऐसा कब्जा उसे विधिविरुद्ध प्रतीत होता है तो उसे और उसके साथ के किसी अन्य व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “लोक स्थान” पद के अन्तर्गत कोई ऐसा लोक प्रवहण, होटल, दुकान या अन्य स्थान है जो जनता द्वारा प्रयोग किए जाने के लिए आशयित है या जिस तक जनता की पहुंच हो सकती है ।

44. कोका के पौधे, अफीम पोस्त और कैनेबिस के पौधे से संबंधित अपराधों में प्रवेश, तलाशी, अभिग्रहण और गिरफ्तार करने की शक्ति – धारा 41, धारा 42 और धारा 43 के उपबंध जहां तक हो सके, अध्याय 4 के अधीन दण्डनीय और कोका के पौधे, अफीम पोस्त या कैनेबिस के पौधे से संबंधित अपराधों के संबंध में लागू होंगे तथा इस प्रयोजन के लिए उन धाराओं में स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थों  अथवा नियंत्रित पदार्थों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत कोका के पौधे, अफीम पोस्त और कैनेविस के पौधे के प्रति निर्देश हैं ।

45. जहां अधिहरण के लिए दायी माल का अभिग्रहण साध्य नहीं है वहां प्रक्रिया – जहां किसी ऐसे माल का (जिसके अंतर्गत खड़ी फसल है) जो इस अधिनियम के अधीन अधिहरण के लिए दायी है, अभिग्रहण साध्य नहीं है वहां धारा 42 के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत कोई अधिकारी, माल के स्वामी पर या उस पर कब्जा रखने वाले व्यक्ति पर इस आदेश की तामील कर सकेगा कि वह ऐसे अधिकारी की पूर्व अनुज्ञा से ही ऐसे माल को हटाऐगा, उसको विलग करेगा या उसके बारे में अन्यथा कार्रवाई करेगा, अन्यथा नहीं ।

46. अवैध खेती की इत्तिला देने का भू-धारक का कर्तव्य – प्रत्येक भू-धारक किसी ऐसे अफीम पोस्त, कैनेबिस के पौधे या कोका के पौधे के बारे में, जिसकी खेती उसकी भूमि में अवैध रूप से की जाती है, इत्तिला तुरन्त किसी पुलिस अधिकारी या धारा 42 में उल्लिखित किसी विभाग के अधिकारी को देगा और प्रत्येक ऐसा भू-धारक जो जानते हुए ऐसी इत्तिला देने की उपेक्षा करेगा, दंड का भागी होगा ।

47. अवैध खेती की इत्तिला देने का कुछ अधिकारियों का कर्तव्य – सरकार का प्रत्येक अधिकारी और प्रत्येक पंच, सरपंच और किसी भी प्रकार का अन्य ग्राम अधिकारी, जैसे ही उसकी जानकारी में यह आए कि किसी भूमि पर अफीम पोस्त, कैनेबिस के पौधे या कोका के पौधे की अवैध खेती की गई है, उसकी इत्तिला तुरन्त किसी पुलिस अधिकारी को या धारा 42 में उल्लिखित किसी विभाग के किसी अधिकारी को, देगा और सरकार का प्रत्येक ऐसा अधिकारी, पंच, सरपंच और अन्य ग्राम अधिकारी जो ऐसी इत्तिला देने की उपेक्षा करेगा दंड का भागी होगा ।

48. अवैध रूप से की गई खेती की फसल को कुर्क करने की शक्ति – कोई महानगर मजिस्ट्रेट, प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या कोई ऐसा मजिस्ट्रेट, जिसे राज्य सरकार द्वारा धारा 42 के अधीन सशक्त राजपत्रित पंक्ति के किसी अधिकारी इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त किया जाए, किसी ऐसे अफीम पोस्त, कैनेबिस के पौधे, या कोका के पौधे को, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसकी अवैध रूप से खेती की गई है, कुर्क करने का आदेश दे सकेगा और ऐसा करते समय ऐसा आदेश (जिसके अंतर्गत फसल को नष्ट करने का आदेश है) जो वह ठीक समझे, पारित कर सकेगा ।

49. प्रवहण को रोकने और उसकी तलाशी लेने की शक्ति – धारा 42 के अधीन प्राधिकृत कोई अधिकारी, यदि उसके पास यह संदेह करने का कारण है कि किसी जीवजंतु या प्रवहण का उपयोग किसी ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ  अथवा नियंत्रित पदार्थों के परिवहन के लिए किया गया है या किया जाने वाला है जिसके बारे में उसे यह संदेह है कि इस अधिनियम के किसी उपबंध का उल्लंघन किया गया है या किया जा रहा है या किया जाने वाला है तो वह किसी भी समय ऐसे जीवजंतु या प्रवहण को रोक सकेगा अथवा वायुयान की दशा में, उसे भूमि पर उतरने के लिए विवश कर सकेगा और-

(क) प्रवहण की या उसके किसी भाग की छानबीन कर सकेगा और तलाशी ले सकेगा;

(ख) ऐसे जीवजंतु पर के या ऐसे प्रवहण में के किसी माल की परीक्षा कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा;

(ग) यदि ऐसे जीवजंतु या प्रवहण को रोकना आवश्यक हो जाता है तो उसे रोकने के लिए सभी विधिपूर्ण साधनों का उपयोग कर सकेगा और जहां ऐसे साधन असफल रहते हैं वहां ऐसे जीवजंतु या प्रवहण पर गोली चलाई जा सकेगी ।

50. वे शर्तें जिनके अधीन व्यक्तियों की तलाशी ली जाएगी – (1) जब धारा 42 के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत कोई अधिकारी, धारा 41, धारा 42 या धारा 43 के उपबन्धों के अधीन किसी व्यक्ति की तलाशी लेने वाला है तब वह, ऐसे व्यक्ति को यदि ऐसा व्यक्ति ऐसी अपेक्षा करे तो, बिना अनावश्यक विलम्ब के धारा 42 में उल्लिखित किसी विभाग के निकटतम राजपत्रित अधिकारी या निकटतम मजिस्ट्रेट के पास ले जाएगा ।

(2) यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो ऐसा अधिकारी ऐसे व्यक्ति को तब तक निरुद्ध रख सकेगा जब तक वह उसे उपधारा (1) में निर्दिष्ट राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं ले जा सकता ।

(3) यदि ऐसा राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष कोई ऐसा व्यक्ति लाया जाता है, तलाशी के लिए कोई उचित आधार नहीं पाता है तो वह ऐसे व्यक्ति को तत्काल उन्मोचित कर देगा किन्तु अन्यथा यह निदेश देगा कि तलाशी ली जाए ।

(4) किसी स्त्री की तलाशी, स्त्री से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं ली जाएगी ।

(5) जब धारा 42 के अधीन सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उस व्यक्ति को जिसकी तलाशी ली जानी है, उसके कब्जे में की किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ या वस्तु या दस्तावेज को उस व्यक्ति से जिसकी तलाशी ली जानी है, अलग किए बिना निकटतम राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास ले जाना संभव नहीं है, तो वह ऐसे व्यक्ति को निकटतम राजपत्रित अधिकारी या मजिस्ट्रेट के पास ले जाने की बजाय उस व्यक्ति की तलाशी ले सकेगा जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 100 में उपबंधित है ।

(6) उपधारा (5) के अधीन तलाशी लिए जाने के पश्चात् उक्त अधिकारी ऐसे विश्वास के कारणों को लेखबद्ध करेगा, जिसकी वजह से ऐसी तलाशी की आवश्यकता पड़ी थी और उसकी एक प्रति अपने अव्यवहित वरिष्ठ पदधारी को बहत्तर घंटे के भीतर भेजेगा ।

50क. नियंत्रित परिदान जिम्मे लेने की शक्ति – धारा 4 की उपधारा (3) के अधीन गठित स्वापक नियंत्रण ब्यूरो का महानिदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी-

(क) भारत में किसी गंतव्य के लिए;

(ख) विदेश को, ऐसे विदेश के सक्षम प्राधिकारी के परामर्श से, जिसको ऐसा परेषण भेजा जाना है, ऐसी रीति से जो विहित की जाए, किसी परेषण के नियंत्रित परिदान को अपने जिम्मे ले सकेगा ।

51. दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबन्धों का वारन्ट, गिरफ्तारी, तलाशी और अभिग्रहण को लागू होना – दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबन्ध जहां तक वे इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत नहीं है, इस अधिनियम के अधीन जारी किए गए सभी वारण्टों तथा की गई गिरफ्तारियों, तलाशियों और अभिग्रहणों को लागू होंगे । (स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985)

52. गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों और अभिगृहीत वस्तुओं का निपटारा – (1) धारा 41, धारा 42, धारा 43 या धारा 44 के अधीन किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाला कोई अधिकारी यथाशीघ्र, उसे ऐसी गिरफ्तारी के आधारों की इत्तिला देगा ।

(2) धारा 41 की उपधारा (1) के अधीन जारी किए गए वारण्ट के अधीन गिरफ्तार किए गए प्रत्येक व्यक्ति और अभिगृहीत की गई प्रत्येक वस्तु को, अनावश्यक विलम्ब के बिना ऐसे मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा जिसने वारण्ट जारी किया हो ।

(3) धारा 41 की उपधारा (2), धारा 42, धारा 43 या धारा 44 के अधीन गिरफ्तार किए गए प्रत्येक व्यक्ति और अभिगृहीत की गई वस्तु को, अनावश्यक विलम्ब के बिना-

(क) निकटतम पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को; या

(ख) धारा 53 के अधीन सशक्त अधिकारी को, भेजा जाएगा ।

(4) ऐसा प्राधिकारी या अधिकारी, जिसको कोई व्यक्ति या वस्तु उपधारा (2) या उपधारा (3) के अधीन भेजी जाती है, सुविधानुसार शीघ्रता से ऐसे उपाय करेगा जो ऐसे व्यक्ति या वस्तु के विधि के अनुसार निपटारे के लिए आवश्यक हों ।

 52क. अभिगृहीत स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों का व्ययन- (1) केंद्रीय सरकार, किन्हीं स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों के संबंध में, परिसंकटमय प्रकृति, चोरी के लिए अतिसंवेदनशीलता, प्रतिस्थापन, समुचित भंडारण स्थान की विषमता या किसी अन्य सुसंगत महत्व को ध्यान में रखकर, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों अथवा स्वापक औषधियों का वर्ग, मनःप्रभावी पदार्थों का वर्ग, नियंत्रित पदार्थों का वर्ग या हस्तांतरणों का वर्ग विनिर्दिष्ट कर सकेगी, जिनका, उनके अभिग्रहण के पश्चात्, यथाशीघ्र, ऐसे अधिकारी द्वारा और ऐसी रीति में, जो सरकार, समय-समय पर, इसमें इसके पश्चात् विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात् अवधारित करे, व्ययन किया जाएगा ।

(2) जहां कोई स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों को अभिगृहीत कर लिया गया है और निकटतम पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या धारा 53 के अधीन सशक्त किसी अधिकारी को भेज दिया गया है, वहां उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी ऐसी स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणोंट की एक तालिका तैयार करेगा जिसमें उनके वर्णन, क्वालिटी, परिमाण, पैक करने के ढंग, चिह्नांकन, संख्यांक या ऐसे स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणोंट या पैकिंग की , जिनमें वे पैक किए गए हैं, पहचान कराने वाली अन्य विशिष्टियां, उद्भव का देश और अन्य विशिष्टियों से संबंधित ऐसे अन्य ब्यौरे दिए गए हों, जिन्हें उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिकारी, इस अधिनियम के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों में ऐसी स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों या नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणोंट की पहचान के लिए सुसंगत समझे और किसी मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित प्रयोजन के लिए आवेदन करेगा अर्थात् :-

(क) ऐसे तैयार की गई तालिका का सही होना प्रमाणित करने के लिए; या

(ख) ऐसे मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ऐसी औषधियों या पदार्थों या हस्तांतरणों के फोटोचित्र लेने औरे ऐसे फोटोचित्रों का सही होना प्रमाणित करने के लिए; या

(ग) ऐसे मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में ऐसी औषधियों या पदार्थों के प्रतिनिधि नमूने लिए जाने की अनुज्ञा देने के लिए और ऐसे लिए गए नमूनों की किसी सूची का सही होना प्रमाणित करने के लिए ।

(3) जहां उपधारा (2) के अधीन कोई आवेदन किया जाता है वहां ऐसा मजिस्ट्रेट यथाशक्य शीघ्र ऐसा आवेदन मंजूर करेगा ।

(4) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करने वाला प्रत्येक न्यायालय उपधारा (2) के अधीन तैयार की गई और मजिस्ट्रेट द्वारा प्रमाणित तालिका, स्वापक औषधियों, मनःप्रभावी पदार्थों, नियंत्रित पदार्थों या हस्तांतरणों के फोटोचित्रों और नमूनों की सूची को, ऐसे अपराध के संबंध में, प्राथमिक साक्ष्य मानेगा ।

53. पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की शक्तियां कुछ विभागों के अधिकारियों में विनिहित करने की शक्तियां-(1) केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार से परामर्श करने के पश्चात्, राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के अधीन अपराधों के अन्वेषण के लिए पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की शक्तियां, केन्द्रीय उत्पाद-शुल्क, स्वापक, सीमाशुल्क, राजस्व आसूचना या केन्द्रीय सरकार के किसी अन्य विभाग जिसके अंतर्गत परा सैन्य बल या सशस्त्र बल भी है के किसी अधिकारी अथवा ऐसे वर्ग के अधिकारियों में विनिहित कर सकेगी ।

(2) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के अधीन अपराधों के अन्वेषण के लिए किसी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की शक्तियां, औषधि नियंत्रण, राजस्व या उत्पाद-शुल्क विभाग या किसी अन्य विभाग के किसी अधिकारी अथवा ऐसे वर्ग के अधिकारियों में विनिहित कर सकेगी ।

53क. कतिपय परिस्थितियों में कथनों की सुसंगति – (1) अपराधों का अन्वेषण करने के लिए धारा 53 के अधीन सशक्त किसी अधिकारी के समक्ष, ऐसे अधिकारी द्वारा की गई किसी जांच या कार्यवाही के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा किया गया और हस्ताक्षरित कोई कथन उसमें अंतर्विष्ट तथ्यों की सत्यता साबित करने के प्रयोजन के लिए, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए किसी अभियोजन में, सुसंगत होगा –

(क) जब ऐसा कथन करने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो गई है या वह मिल नहीं सकता है या साक्ष्य देने में असमर्थ है या प्रतिपक्ष द्वारा उसे पहुंच के बाहर कर दिया गया है या जिसकी उपस्थिति इतने विलंब या व्यय के बिना जितना कि मामले की परिस्थितियों में, न्यायालय अयुक्तियुक्त समझता है, अभिप्राप्त नहीं की जा सकती है; या

(ख) जब कथन करने वाले व्यक्ति की न्यायालय के समक्ष मामले में साक्षी के रूप में परीक्षा की जाती है और मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय की राय है कि न्याय के हित में, कथन का साक्ष्य में ग्रहण कर लिया जाना चाहिए । 

(2) उपधारा (1) के उपबंध, जहां तक हो सके, इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या आदेशों के अधीन किसी कार्यवाही के संबंध में, जो किसी न्यायालय के समक्ष कार्यवाही से भिन्न है, उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के संबंध में लागू होते हैं ।

54. अवैध वस्तुओं के कब्जे से उपधारणा – इस अधिनियम के अधीन विचारणों में, जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है, यह उपधारणा की जा सकेगी कि अपराधी ने-

(क) किसी ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ;

(ख) किसी ऐसी भूमि पर, जिस पर उसने खेती की है, उगे हुए किसी ऐसे अफीम पोस्त, कैनेबिस के पौधे या कोका के पौधे;

(ग) किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ के विनिर्माण के लिए विशेष रूप से परिकल्पित किसी साधित्र या विशेष रूप से अनुकूलित बर्तनों के किसी ऐसे वर्ग; या

(घ) किसी ऐसी सामग्री, जिस पर किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ के विनिर्माण से संबंधित कोई प्रसंस्करण किया गया है या ऐसी सामग्री से बचे किसी ऐसे अवशिष्ट, जिससे किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ का विनिर्माण किया गया है,

की बाबत, जिसके कब्जे के बारे में वह समाधानप्रद रूप में हिसाब देने में असफल रहता है, इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया है ।

55. अभिगृहीत और परिदत्त वस्तुओं का पुलिस द्वारा अपने भारसाधन में लेना – किसी पुलिस थाने का कोई भारसाधक अधिकारी ऐसी सभी वस्तुओं का, जो उस पुलिस थाने के स्थानीय क्षेत्र के भीतर इस अधिनियम के अधीन अभिगृहीत की जाए और जो उसे परिदत्त की जाए, मजिस्ट्रेट के आदेशों के लम्बित रहने के दौरान, अपने भारसाधन में लेगा और उन्हें सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा तथा किसी ऐसे अधिकारी को जो ऐसी सभी वस्तुओं के साथ पुलिस थाने तक जाए या जो उस प्रयोजन के लिए तैनात किए जाए, ऐसी वस्तुओं पर अपनी मुद्रा लगाने के लिए या उनके या उनमें से नमूना लेने के लिए अनुज्ञात करेगा तथा इस प्रकार लिए गए सभी नमूने भी पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की मुद्रा से मुद्रांकित किए जाएंगे ।

56.  एक दूसरे की सहायता करने की अधिकारियों की बाध्यता – धारा 42 में उल्लिखित विभिन्न विभागों के सभी अधिकारी, सूचना दिए जाने या अनुरोध किए जाने पर, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने में एक दूसरे की सहायता करने के लिए वैध रूप से आबद्ध होंगे ।

57. गिरफ्तारी और अभिग्रहण की रिपोर्ट – जब कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन कोई गिरफ्तारी या अभिग्रहण करता है तब वह, ऐसी गिरफ्तारी या अभिग्रहण के ठीक पश्चात् अड़तालीस घंटों के भीतर, ऐसी गिरफ्तारी या अभिग्रहण की सभी विशिष्टियों की पूरी रिपोर्ट अपने अव्यवहित पदीय वरिष्ठ अधिकारी को देगा ।

57क. अधिसूचित अधिकारी द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की संपत्ति के अभिग्रहण की रिपोर्ट – जब कभी धारा 53 के अधीन अधिसूचित कोई अधिकारी इस अधिनियम के अधीन कोई गिरफ्तारी या अभिग्रहण करता है और अध्याय 5क के उपबंध ऐसी गिरफ्तारी या अभिग्रहण के मामले में संलिप्त किसी व्यक्ति को लागू होते हैं तो अधिकारी, गिरफ्तारी या अभिग्रहण के नब्बे दिन के भीतर, अधिकारिता वाले सक्षम प्राधिकारी को उस व्यक्ति की अवैध रूप से अर्जित संपत्तियों के बारे में एक रिपोर्ट देगा ।

58. तंग करने वाले प्रवेश, तलाशी, अभिग्रहण या गिरफ्तारी के लिए दण्ड – (1) धारा 42 या धारा 43 या धारा 44 के अधीन सशक्त कोई व्यक्ति जो-

(क) सन्देह के किसी युक्तियुक्त आधार के बिना, किसी भवन, प्रवहण या स्थान में प्रवेश करेगा या उसकी तलाशी लेगा अथवा उसमें प्रवेश करवाएगा या उसकी तलाशी करवाएगा;

(ख) इस अधिनियम के अधीन अभिग्रहण के लिए दायी किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ या अन्य वस्तु को अभिगृहीत करने या उसकी तलाशी लेने अथवा धारा 42, धारा 43 या धारा 44 के अधीन अभिग्रहणीय किसी दस्तावेज या अन्य वस्तु को अभिगृहीत करने के बहाने किसी व्यक्ति की सम्पत्ति को, तंग करने की दृष्टि से और अनावश्यक रूप से अभिगृहीत करेगा; या

(ग) किसी व्यक्ति को तंग करने की दृष्टि से या अनावश्यक रूप से निरुद्ध करेगा, उसकी तलाशी लेगा या उसे गिरफ्तार करेगा,

वह कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

(2) कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन जानबूझकर और दुर्भाव से मिथ्या इत्तिला देगा और उसके अधीन इस प्रकार कोई गिरफ्तारी या तलाशी करवाएगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

59. अधिकारी की कर्तव्य में असफलता या इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन में उसकी मौनानुकूलता – (1) कोई अधिकारी, जिस पर इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन कोई कर्तव्य अधिरोपित किया गया है, और जो अपने पद के कर्तव्यों का अनुपालन करने से प्रविरत रहेगा या इंकार करेगा या उससे अपने आप को प्रत्याहृत करेगा, वह जब तक कि उसने अपने पदीय वरिष्ठ की स्पष्ट लिखित अनुज्ञा प्राप्त नहीं कर ली हो या उसके पास ऐसा करने के लिए अन्य विधिपूर्ण हेतुक न हो, कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।

(2) कोई अधिकारी, जिस पर इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन कोई कर्तव्य अधिरोपित किया गया है या कोई   व्यक्ति, जिसे –

(क) किसी व्यसनी; या

(ख) किसी अन्य व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए आरोपित किया गया है,

की अभिरक्षा सौंपी गई है और जो इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किसी उपबंध के उल्लंघन में जानबूझकर सहायता करेगा या मौनानुकूल रहेगा, वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की नहीं होगी किंतु जो बीस वर्ष तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, जो एक लाख रुपए से कम का नहीं होगा किंतु जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।

स्पष्टीकरण- इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए, “अधिकारी” पद के अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति है जो धारा 64क के अधीन सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण द्वारा चलाए जा रहे या मान्यताप्राप्त किसी अस्पताल या संस्था में निराव्यसन उपचार करने के लिए नियोजित है ।

(2) कोई न्यायालय उपधारा(1) या उपधारा(2) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान , यथास्थिति,केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार की मंजूरी से किये गये लिखित परिवाद पर ही करेगा ,अन्यथा नहीं|

60. अवैध औषधियों, पदार्थों, पौधों, वस्तुओं और प्रवहणों का अधिहरण किए जाने का दायी होना – (1) जब कभी इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किया गया है तब ऐसी स्वापक औषधि, मनःप्रभावी पदार्थ, नियंत्रित पदार्थ, अफीम पोस्त, कोका के पौधे, कैनेबिस के पौधे, सामग्री, साधित्र और बर्तन जिनकी बाबत या जिनके माध्यम से ऐसा अपराध किया गया है, अधिहरणीय होंगे ।

(2) कोई ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ,  अथवा नियंत्रित पदार्थ जिसका किसी ऐसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ के या उसके अतिरिक्त जो उपधारा (1) के अधीन अधिहरणीय है, अवैध रूप से उत्पादन, अंतर्राज्य आयात, अंतर्राज्य निर्यात, भारत में आयात, परिवहन, विनिर्माण, कब्जा, उपयोग, क्रय या विक्रय किया जाता है और ऐसे पात्र, पैकेज और आवेष्टक जिनमें उपधारा (1) के अधीन अधिहरणीय कोई स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ, अथवा नियंत्रित पदार्थ सामग्री, साधित्र या बर्तन पाया जाता है और ऐसे मात्र या पैकेज की कोई अन्य अन्तर्वस्तु, यदि कोई हो, उसी प्रकार अधिहरणीय होंगी ।

(3) किसी स्वापक औषधि, या मनःप्रभावी पदार्थ, अथवा नियंत्रित पदार्थ या उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन अधिहरणीय किसी वस्तु के वहन में उपयोग में लाया गया कोई जीवजन्तु या प्रवहण अधिहरणीय होगा जब तक कि जीवजन्तु या प्रवहण का स्वामी यह साबित नहीं कर देता है कि उसका इस प्रकार उपयोग स्वयं स्वामी, उसके अभिकर्ता, यदि कोई है, ओर उस जीवजन्तु या प्रवहण के भारसाधक व्यक्ति के ज्ञान या मौनानुकूलता के बिना किया गया था और उनमें से प्रत्येक ने ऐसे उपयोग के विरुद्ध सभी समुचित पूर्वावधानियां बरती थीं ।

61. अवैध औषधियों या पदार्थों को छिपाने के लिए उपयोग में लाए गए माल का अधिहरण – किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ को, जो इस अधिनियम के अधीन अधिहरणीय है, छिपाने के लिए उपयोग में लाया गया कोई माल अधिहरणीय होगा ।

स्पष्टीकरण- इस धारा में, “माल” के अन्तर्गत परिवहन के साधनों के रूप में प्रवहण नहीं है ।

62. अवैध औषधियों या पदार्थों के विक्रय के आगमों का अधिहरण – जहां किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ अथवा नियंत्रित पदार्थ का विक्रय किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिसको यह ज्ञान या विश्वास करने का कारण है कि ऐसी औषधि या पदार्थ इस अधिनियम के अधीन अधिहरणीय है वहां उसके विक्रय का आगम भी अधिहरणीय होगा ।

63. अधिहरण करने की प्रक्रिया – (1) इस अधिनियम के अधीन अपराधों के विचारण में, चाहे अभियुक्त को सिद्धदोष या दोषमुक्त या उन्मोचित किया जाता है, न्यायालय यह विनिश्चय करेगा कि क्या इस अधिनियम के अधीन अभिगृहीत कोई वस्तु या चीज धारा 60 या धारा 61 या धारा 62 के अधीन अधिहरण के लिए दायी है और यदि वह यह विनिश्चय करता है कि वस्तु इस प्रकार अधिहरण के लिए दायी है तो वह तद्नुसार अधिहरण का आदेश कर सकेगा । 

(2) जहां इस अधिनियम के अधीन अभिगृहीत कोई वस्तु या चीज धारा 60 या धारा 61 या धारा 62 के अधीन अधिहरण के लिए दायी प्रतीत होती है किन्तु वह व्यक्ति जिसने उसके संबंध में अपराध किया है, ज्ञात नहीं है या पाया नहीं जा सकता है वहां न्यायालय ऐसे दायित्व के बारे में जांच कर सकेगा तथा तद्नुसार अधिहरण का आदेश कर सकेगा:

परन्तु किसी वस्तु या चीज के अधिहरण का कोई आदेश, अभिग्रहण की तारीख से एक मास की समाप्ति तक या ऐसे किसी व्यक्ति की, जो उसके प्रति किसी अधिकार का दावा करे, सुनवाई के और ऐसे साक्ष्य के, यदि कोई हो, बिना जो वह अपने दावे की बाबत पेश करता है, नहीं किया जाएगा:

परन्तु यह और कि यदि किसी स्वापक औषधि, मनःप्रभावी पदार्थ, नियंत्रित पदार्थ, अफीम पोस्त, कोका के पौधे या कैनेबिस के पौधे से भिन्न कोई वस्तु या चीज शीघ्रतया और प्रकृत्या क्षयशील है या यदि न्यायालय की यह राय है कि उसका विक्रय उसके स्वामी के फायदे के लिए होगा तो वह उसके विक्रय के लिए किसी समय निदेश दे सकेगा और इस उपधारा के उपबंध विक्रय के शुद्ध आगमों को यथाशक्य साध्य रूप में लागू होंगे ।

64. अभियोजन से उन्मुक्ति देने की शक्ति – (1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, यदि उसकी यह राय है (ऐसी राय के लिए कारण लेखबद्ध किए जाएंगे) कि किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य अभिप्राप्त करने की दृष्टि से, जो इस अधिनियम के किन्हीं उपबंधों या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उल्लंघन से प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः संबद्ध या संसर्गित प्रतीत होता है, ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह ऐसे व्यक्ति को, यथास्थिति, इस अधिनियम या भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजन से इस शर्त पर उन्मुक्ति दे सकेगा कि वह ऐसे उल्लंघन से संबंधित संपूर्ण परिस्थितियों का पूर्ण और सही प्रकटीकरण करेगा ।

(2) संबंधित व्यक्ति को दी गई और उसके द्वारा स्वीकार की गई उन्मुक्ति, उस सीमा तक जिस तक उन्मुक्ति का विस्तार है उसे किसी ऐसे अपराध के लिए जिसकी बाबत उन्मुक्ति दी गई थी, अभियोजन से उन्मुक्त कर देगी ।

(3) यदि, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि उस व्यक्ति ने, जिसे इस धारा के अधीन उन्मुक्ति दी गई है, उन शर्तों का, जिनके अधीन उन्मुक्ति दी गई थी, पालन नहीं किया गया है या यह जानबूझकर कोई बात छिपा रहा है या मिथ्या साक्ष्य दे रहा है तो, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उस प्रभाव का निष्कर्ष लेखबद्ध कर सकेगी और तब उन्मुक्ति प्रत्याहृत की गई समझी जाएगी और ऐसे व्यक्ति का उस अपराध के लिए, जिसके लिए उन्मुक्ति दी गई थी या उसी विषय के संबंध में किसी अन्य अपराध के लिए, जिसका वह दोषी प्रतीत होता है, विचारण किया जा सकेगा ।

64क. ऐसे व्यसनियों को अभियोजन से उन्मुक्ति जो स्वेच्छया उपचार कराते हैं – कोई व्यसनी, जिस पर धारा 27 के अधीन दंडनीय अपराध या स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ की अल्प मात्रा से संबंधित अपराधों का आरोप है और जो सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण द्वारा चलाए जा रहे या मान्यता प्राप्त किसी अस्पताल या किसी ऐसी संस्था से निराव्यसन के लिए स्वेच्छया चिकित्सीय उपचार लेना चाहता है और ऐसा उपचार लेता है, धारा 27 के अधीन या किसी अन्य धारा के अधीन स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ की अल्प मात्रा से संबंधित अपराधों के अभियोजन के लिए दायी नहीं होगा :

परन्तु यदि व्यसनी निराव्यसन के लिए पूर्ण उपचार नहीं लेता है तो अभियोजन से उक्त उन्मुक्ति को वापस लिया जा    सकेगा ।

66. कुछ मामलों में दस्तावेजों के बारे में उपधारणा – (1) जहां कोई दस्तावेज-

(i) इस अधिनियम या किसी अन्य विधि के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा पेश की जाती है या दी जाती है अथवा किसी व्यक्ति की अभिरक्षा या नियंत्रण में से अभिगृहीत की जाती है दोनों मामलों में; या

(ii) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के, जिसका किसी व्यक्ति द्वारा किया जाना अभिकथित है, अन्वेषण के अनुक्रम में भारत से बाहर किसी स्थान से (ऐसे प्राधिकरण या व्यक्ति द्वारा और ऐसी रीति से, जो कन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाए, सम्यक् रूप से अधिप्रमाणित रूप में) प्राप्त की जानी है,

और ऐसी दस्तावेज इस अधिनियम के अधीन किसी अभियोजन में उसके विरुद्ध या उसके और ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध जिसका उसके साथ संयुक्त रूप से विचारण किया जाता है, साक्ष्य में पेश की जाती है वहां न्यायालय-

(क) जब तक प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है यह उपधारणा करेगी कि ऐसी दस्तावेज का, जिसका किसी विशिष्ट व्यक्ति के हस्तेलख में होना तात्पर्यित है या जिसके बारे में न्यायालय युक्तियुक्त रूप से यह धारणा करे कि वह किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था, हस्ताक्षर और प्रत्येक अन्य भाग उस व्यक्ति के हस्तलेख में है ; तथा निष्पादित और अनुप्रमाणित दस्तावेज की दशा में यह कि वह उस व्यक्ति द्वारा निष्पादित या अनुप्रमाणित की गई थी जिसके द्वारा उसका इस प्रकार निष्पादित या अनुप्रमाणित किया जाना तात्पर्यित है ;

(ख) किसी दस्तावेज को, यदि ऐसी दस्तावेज साक्ष्य में अन्यथा ग्राह्य है, इस बात के होते हुए भी कि वह सम्यक् रूप से स्टांपित नहीं है, साक्ष्य में ग्रहण करेगा; 

(ग) खंड (i) के अन्तर्गत आने वाले किसी मामले में, जब तक कि प्रतिकूल साबित नहीं कर दिया जाता है ऐसी दस्तावेज की अंतर्वस्तु की सत्यता की भी उपधारणा करेगा ।

67. जानकारी आदि मांगने की शक्ति – धारा 42 में निर्दिष्ट कोई ऐसा अधिकारी, जो केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाता है, इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के उल्लंघन के संबंध में किसी जांच के अनुक्रम में-

(क) अपना यह समाधान करने के प्रयोजन के लिए कि क्या इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबंधों का उल्लंघन हुआ है, किसी व्यक्ति से जानकारी मांग सकेगा;

(ख) किसी व्यक्ति से, जांच के लिए उपयोगी या सुसंगत किसी दस्तावेज या चीज को पेश करने या परिदत्त करने करने की अपेक्षा कर सकेगा;

(ग) मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित किसी व्यक्ति की परीक्षा कर सकेगा ।

68. अपराधों के किए जाने के बारे में इत्तिला – उस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश के किसी उपबंध के अधीन उसमें निहित शक्तियों के प्रयोग में कार्य करने वाला कोई भी अधिकारी यह कहने के लिए विवश नहीं किया जाएगा कि ऐसे किसी अपराध के किए जाने के बारे में कोई इत्तिला उसे कब मिली ।

अध्याय 5क

अवैध रूप से अर्जित संपत्ति का समपहरण

68क. लागू होना-(1) इस अध्याय के उपबंध उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट व्यक्तियों को ही लागू होंगे ।

(2) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट व्यक्ति निम्नलिखित हैं, अर्थात्: –

(क) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के अधीन दस वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है;

(ख) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसे भारत के बाहर दांडिक अधिकारिता वाले किसी सक्षम न्यायालय द्वारा समरूप अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है;

(ग) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसकी बाबत स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अवैध व्यापार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 का 46) के अधीन या जम्मू-कश्मीर स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अवैध व्यापार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 का जम्मू-कश्मीर अधिनियम 23) के अधीन निरोध आदेश किया गया है:

परंतु यह तब जब ऐसा निरोध आदेश उक्त अधिनियमों के अधीन गठित सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट पर वापस न ले लिया गया हो या ऐसा निरोध आदेश सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय द्वारा अपास्त न कर दिया गया हो;

(गग) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन दस वर्ष या इससे अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराध करने के लिए गिरफ्तार किया गया है या जिसके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट या प्राधिकार जारी किया गया है और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो किसी अन्य देश की तत्समान किसी विधि के अधीन कोई ऐसा ही अपराध करने के लिए गिरफ्तार किया गया है या जिसके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट या प्राधिकार जारी किया गया है;

(घ) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ग) या खंड (गग) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति का नातेदार है;

(ङ) खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ग) या खंड (गग)] में निर्दिष्ट व्यक्ति का प्रत्येक सहयुक्त व्यक्ति;

(च) किसी ऐसी सम्पत्ति का, जो पहले किसी समय खंड (क) या खंड (ख) या खंड (ग) या खंड (गग) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति के पास थी, कोई धारक (जिसे इस खंड में इसके पश्चात् “वर्तमान धारक” कहा गया है) तब तक जब तक कि, यथास्थिति, वर्तमान धारक या ऐसा कोई व्यक्ति, जिसके पास ऐसे व्यक्ति के पश्चात् और वर्तमान धारक के पूर्व ऐसी संपत्ति थी, पर्याप्त प्रतिफल के लिए सद्भाविक अंतरिती नहीं है या था ।

68ख. परिभाषाएं – इस अध्याय में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –

(क) “अपील अधिकरण” से धारा 68ढ में निर्दिष्ट अपील अधिकरण अभिप्रेत है;

(ख) किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में, जिसकी संपत्ति इस अध्याय के अधीन समपहृत की जा सकती है,”सहयुक्त” से अभिप्रेत है-

(i) ऐसा कोई व्यक्ति जो ऐसे व्यक्ति के आवासिक परिसर में (जिसके अंतर्गत उपगृह भी है) रह रहा था या रह रहा है;

(ii) ऐसा कोई व्यक्ति जो ऐसे व्यक्ति के कामकाज का प्रबंध करता था या कर रहा है अथवा लेखा रखता था या रख रहा है;

(iii) कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अर्थ में कोई ऐसा व्यक्ति संगम, व्यष्टि-निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कंपनी, जिसका ऐसा व्यक्ति सदस्य, भागीदार या निदेशक रहा था या है;

(iv) ऐसा कोई व्यक्ति जो उपखंड (iii) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति संगम, व्यष्टि-निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कंपनी का किसी भी समय तब सदस्य रहा था या है जब ऐसा व्यक्ति ऐसे संगम, निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कंपनी का सदस्य, भागीदार या निदेशक रहा था या है;

(v) ऐसा कोई व्यक्ति, जो उपखंड (iii) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति संगम, व्यष्टि-निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कंपनी के कामकाज का प्रबंध करता था या कर रहा है अथवा लेखा रखता था या रख रहा है;

(vi) किसी न्यास का न्यासी, जहां-

(1) न्यास ऐसे व्यक्ति द्वारा सृष्ट किया गया है; या

(2) न्यास में ऐसे व्यक्ति द्वारा अभिदाय की गई आस्तियों का उस तारीख को, जिसको आस्तियों का अभिदाय किया गया है, मूल्य (जिसके अंतर्गत उसके द्वारा पहले अभिदाय की गई आस्तियों का, यदि कोई है, मूल्य भी है) उस तारीख को न्यास की आस्तियों के मूल्य के बीस प्रतिशत से कम नहीं है;

(vii) जहां सक्षम प्राधिकारी का उन कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएंगे, यह विचार है कि ऐसे व्यक्ति की संपत्तियां किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उसकी ओर से धारित की जाती हैं, वहां ऐसा अन्य व्यक्ति;

(ग) “सक्षम प्राधिकारी” से केंद्रीय सरकार का कोई ऐसा अधिकारी अभिप्रेत है जो धारा 68घ के अधीन उसके द्वारा प्राधिकृत किया गया हो;

(घ) “छिपाया जाना” से संपत्ति की प्रकृति, स्रोत, व्ययन, संचलन या स्वामित्व का छिपाया जाना या प्रच्छन्न किया जाना अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत इलैक्ट्रानिक पारेषण द्वारा या किसी अन्य साधन द्वारा ऐसी संपत्ति का संचलन या संपरिवर्तन भी है;

(ङ)” रोक लगाना” से धारा 68च के अधीन जारी किए किसी आदेश द्वारा संपत्ति के अंतरण, संपरिवर्तन, व्ययन या संचलन का अस्थायी तौर पर प्रतिषेध करना अभिप्रेत है;

(च) “पहचान करना” के अंतर्गत यह सबूत स्थापित करना है कि संपत्ति अवैध व्यापार से प्राप्त हुई थी या उसमें उसका उपयोग किया गया था;

(छ) किसी ऐसे व्यक्ति के संबंध में जिसे यह अध्याय लागू होता है, “अवैध रूप से अर्जित संपत्ति” से अभिप्रेत है-

(i) ऐसे व्यक्ति द्वारा इस अध्याय के प्रारंभ से पूर्व या उसके पश्चात् अर्जित कोई संपत्ति, जो इस अधिनियम के किन्हीं उपबन्धों के उल्लंघन में प्राप्त या अभिप्राप्त हुई है अथवा उससे हुई मानी जा सकने वाली किसी आय, उपार्जन या आस्तियों से या उनके द्वारा पूर्णतः या भागतः अर्जित की गई है या ऐसी संपत्ति का समतुल्य मूल्य; या

(ii) ऐसे व्यक्ति द्वारा इस अध्याय के प्रारंभ के पूर्व या उसके पश्चात् अर्जित कोई संपत्ति, जो उपखंड (i) में निर्दिष्ट किसी संपत्ति या ऐसी संपत्ति से हुई आय या उपार्जन से पूर्णतः या भागतः हुए माने गए किसी प्रतिफल के लिए या किसी भी साधन से अर्जित की गई है, या ऐसी संपत्ति का समतुल्य मूल्य; या

और इसके अंतर्गत-

(अ) ऐसे व्यक्ति द्वारा धारित ऐसी कोई संपत्ति है जो, उसके किसी पूर्ववर्ती धारक के संबंध में, यदि ऐसा पूर्ववर्ती धारक उसे धारण करने से प्रविरत नहीं हो जाता तो, इस खण्ड के अधीन अवैध रूप से अर्जित संपत्ति होती, जब तक कि ऐसा व्यक्ति या कोई ऐसा अन्य व्यक्ति, जिसने ऐसे पूर्ववर्ती धारक के पश्चात्, या जहां दो या दो से अधिक ऐसे पूर्ववर्ती धारक हैं वहां ऐसे पूर्ववर्ती धारकों में से अंतिम धारक के पश्चात्, किसी समय संपत्ति धारित की थी, पर्याप्त प्रतिफल के लिए सद्भाविक अंतरिती न हो या था ;

(आ) ऐसे व्यक्ति द्वारा इस अध्याय के प्रारंभ के पूर्व या उसके पश्चात् अर्जित ऐसी कोई संपत्ति, जो मद (अ) के अंतर्गत आने वाली किसी संपत्ति से या उससे हुई आय या उपार्जन से पूर्णतः या भागतः हुए माने गए किसी प्रतिफल के लिए या किसी भी साधन से अर्जित की गई है;

(iii) ऐसे व्यक्ति द्वारा, चाहे स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ (संशोधन) अधिनियम, 2014 के प्रारंभ से पूर्व या उसके पश्चात्, ऐसी किसी आय, उपार्जनों या आस्तियों से या द्वारा, जिसका स्रोत नहीं दिया जा सकता है, पूर्णतः या भागतः अर्जित कोई संपत्ति या ऐसी संपत्ति का समतुल्य मूल्य;

(ज) “संपत्ति” से प्रत्येक वर्णन की कोई संपत्ति या आस्तियां, चाहे शाश्वत् या अशाश्वत्, जंगम या स्थावर, मूर्त या अमूर्त हों या नहीं, चाहे कहीं भी अवस्थित हों, अभिप्रेत हैं और इसके अंतर्गत ऐसी संपत्ति या आस्तियों के हक या उसमें हित का साक्ष्य देने वाले विलेख और लिखत भी हैं;

(झ) “नातेदार” से अभिप्रेत है-

                (1) व्यक्ति का पति या पत्नी;

                (2) व्यक्ति का भाई या बहन;

                (3) व्यक्ति की पत्नी या पति का भाई या बहन;

                (4) व्यक्ति का कोई पारंपरिक पुरुष या वंशज;

                (5) व्यक्ति की पत्नी या पति का कोई पारंपरिक पूर्व पुरुष या वंशज;

                (6) उपखंड (2), उपखंड (3), उपखंड (4), या उपखंड (5) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति की पत्नी या पति;

                (7) उपखंड (2) या उपखंड (3) में निर्दिष्ट व्यक्ति का कोई पारंपरिक वंशज;

(ञ) “पता लगाना” से संपत्ति की प्रकृति, स्रोत, व्ययन, संचलन, हक या स्वामित्व का अवधारण करना अभिप्रेत है;

(ट) “न्यास” के अंतर्गत कोई अन्य विधिक बाध्यता भी है ।

68ग. अवैध रूप से अर्जित संपत्ति धारण करने का प्रतिषेध – (1) इस अध्याय के प्रारंभ से, किसी ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसे यह अध्याय लागू होता है, अवैध रूप से अर्जित किसी संपत्ति को स्वयं या अपनी ओर से किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम् से धारण करना विधिपूर्ण नहीं होगा ।

(2) जहां कोई व्यक्ति अवैध रूप से अर्जित कोई संपत्ति उपधारा (1) के उपबंधों के उल्लंघन में धारित करता है, वहां ऐसी संपत्ति इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार केंद्रीय सरकार को समपहृत हो जाएगी:

  परन्तु कोई भी संपत्ति इस अध्याय के अधीन उस दशा में समपहृत नहीं की जाएगी यदि ऐसी संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसको यह अधिनियम लागू होता है, यथास्थिति, उस तारीख से जिसको वह अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध करने के लिए गिरफ्तार किया गया था या उसके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट या प्राधिकार जारी किया गया है अथवा उस तारीख से जिसको निरोध आदेश जारी किया गया था, छह वर्ष की अवधि के पूर्व अर्जित की गई थी ।

68घ. सक्षम प्राधिकारी – (1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, किसी सीमाशुल्क आयुक्त या केंद्रीय उत्पाद-शुल्क आयुक्त या आय-कर आयुक्त या समतुल्य पंक्ति के केंद्रीय सरकार के किसी अन्य अधिकारी को इस अध्याय के अधीन सक्षम प्राधिकारी के कृत्यों का पालन करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगी ।

(2) सक्षम प्राधिकारी ऐसे व्यक्तियो या व्यक्तियों के वर्गों की बाबत अपने कृत्यों का पालन करेंगे जो केंद्रीय सरकार, आदेश द्वारा, निर्दिष्ट करे ।

68ङ. अवैध रूप से अर्जित संपत्ति की पहचान करना – (1) धारा 53 के अधीन सशक्त प्रत्येक अधिकारी और किसी पुलिस थाने का प्रत्येक भारसाधक अधिकारी, ऐसी इत्तिला की प्राप्ति पर यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि कोई ऐसा व्यक्ति जिसको यह अध्याय लागू होता है, अवैध रूप से अर्जित कोई संपत्ति धारित करता है तो ऐसा करने के कारण लेखबद्ध करने के पश्चात्, उस संपत्ति का पता लगाने और उसकी पहचान करने के लिए सभी आवश्यक कार्रवाई करेगा ।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट कार्रवाई के अंतर्गत किसी व्यक्ति, स्थान, संपत्ति, आस्ति, दस्तावेज, किसी बैंक या लोक वित्तीय संस्था में लेखा बहियों या किन्हीं अन्य सुसंगत विषयों की बाबत कोई जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण है ।

(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई जांच, अन्वेषण या सर्वेक्षण उपधारा (1) में उल्लिखित किसी अधिकारी द्वारा ऐसे निदेशों या मार्गदर्शन के अनुसार किया जाएगा जो सक्षम प्राधिकारी इस निमित्त दे या जारी करे ।

68च. अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति का अभिग्रहण या रोक लगाया जाना – (1) जहां धारा 68ङ के अधीन कोई जांच या अन्वेषण करने वाले किसी अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि कोई संपत्ति, जिसके संबंध में कोई ऐसी जांच या अन्वेषण किया जा रहा है, अवैध रूप से अर्जित संपत्ति है और ऐसी संपत्ति के छिपाए जाने, अंतरित किए जाने या उसके संबंध में किसी ऐसी रीति से संव्यवहार किए जाने की संभावना है जिसके परिणामस्वरूप इस अध्याय के अधीन ऐसी संपत्ति के समपहरण के संबंध में कोई कार्यवाही विफल हो जाएगी वहां वह ऐसी संपत्ति का अभिग्रहण करने के लिए आदेश कर सकेगा और जहां ऐसी संपत्ति का अभिग्रहण किया जाना साध्य नहीं है वहां वह यह आदेश कर सकेगा कि ऐसी संपत्ति ऐसा आदेश करने वाले अधिकारी या सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना अंतरित नहीं की जाएगी या उसके संबंध में अन्यथा संव्यहार नहीं किया जाएगा और ऐसे आदेश की प्रति की संबंधित व्यक्ति को तामील की जाएगी :

परंतु सक्षम प्राधिकारी को इस उपधारा के अधीन किए गए किसी आदेश की सम्यक् रूप से जानकारी दी जाएगी और ऐसे आदेश की प्रति आदेश किए जाने के अड़तालीस घंटे के भीतर सक्षम प्राधिकारी को भेजी जाएगी ।

(2) उपधारा (1) के अधीन किए गए किसी आदेश का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक कि उक्त आदेश किए जाने के तीस दिन की अवधि के भीतर उसकी पुष्टि, सक्षम प्राधिकारी के किसी आदेश द्वारा नहीं कर दी जाती है ।

स्पष्टीकरण – इस धारा के प्रयोजनों के लिए, “संपत्ति का अंतरण” से अभिप्रेत है संपत्ति का व्ययन, हस्तांतरण, समनुदेशन, व्यवस्थापन, परिदान, संदाय या कोई अन्य संक्रामण और पूर्वगामी की व्यापकता को परिसीमित किए बिना, इसके अंतर्गत है-

(क) संपत्ति में किसी न्यास का सृजन;

(ख) संपत्ति में किसी पट्टा, बंधक, भार, सुखाचार, अनुज्ञप्ति, शक्ति, भागीदारी या हित की मंजूरी या सृजन;

(ग) किसी ऐसे व्यक्ति में, जो संपत्ति का स्वामी नहीं है, निहित संपत्ति के नियतन की शक्ति का, शक्ति के आदाता से भिन्न किसी व्यक्ति के पक्ष में उसके व्ययन के अवधारण के लिए प्रयोग; और

(घ) किसी व्यक्ति द्वारा इस आशय से किया गया कोई संव्यवहार जिससे उसकी अपनी संपत्ति के मूल्य को प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः कम किया जा सके और किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति के मूल्य को बढ़ाया जा सके ।

68छ. इस अध्याय के अधीन अभिगृहीत या समपहृत संपत्तियों का प्रबंध – (1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, किसी प्रशासक के कृत्यों का पालन करने के लिए अपने उतने अधिकारियों को (जो सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे के न हों) नियुक्त कर सकेगी जो वह ठीक समझे ।

(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त प्रशासक ऐसी संपत्ति को, जिसके संबंध में धारा 68च की उपधारा (1) या धारा 68झ के अधीन कोई आदेश किया गया है, ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाए, प्राप्त करेगा और उसका प्रबंध करेगा ।

(3) प्रशासक ऐसी संपत्ति का जो केंद्रीय सरकार को समपहृत हो गई है, व्ययन करने के लिए ऐसे उपाय भी करेगा जो केंद्रीय सरकार निदिष्ट करे ।

68ज. संपत्ति के समपहरण की सूचना – (1) यदि, सक्षम प्राधिकारी के पास किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसको यह अध्याय लागू होता है, स्वयं अपने द्वारा या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति की मार्फत धारित संपत्तियों के मूल्य, उसकी आय, उपार्जन या आस्तियों के उसके ज्ञात स्रोत और धारा 68ङ के अधीन अन्वेषण करने वाले किसी अधिकारी की रिपोर्ट के परिणामस्वरूप या अन्यथा उसे उपलब्ध किसी अन्य जानकारी या सामग्री को ध्यान में रखते हुए, यह विश्वास करने का कारण है (ऐसे विश्वास के लिए जो कारण हैं वे लेखबद्ध किए जाएंगे) कि ऐसी सभी या कोई संपत्ति अवैध रूप से अर्जित संपत्ति है तो वह ऐसे व्यक्ति को (जिसे इसमें इसके पश्चात् प्रभावित व्यक्ति कहा गया है) सूचना की तामील यह अपेक्षा करते हुए कर सकेगा कि वह सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर अपनी आय, उपार्जन या आस्तियों के ऐसे स्रोतों को, जिससे या जिनके द्वारा उसने ऐसी संपत्ति अर्जित की है, वह साक्ष्य जिस पर वह निर्भर करता है तथा अन्य सुसंगत जानकारी और विशिष्टियां उपदर्शित करे और यह हेतुक दर्शित करे कि ऐसी सभी या कोई संपत्ति क्यों न अवैध रूप से अर्जित की गई संपत्ति घोषित की जाए और इस अध्याय के अधीन केंद्रीय सरकार को समपहृत की जाए ।

(2) जहां किसी व्यक्ति को उपधारा (1) के अधीन दी गई सूचना में किसी संपत्ति के बारे में यह विनिर्दिष्ट किया जाता है कि वह किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसे व्यक्ति की ओर से धारित है वहां सूचना की प्रति ऐसे अन्य व्यक्ति को भी तामील की जाएगी:

            परन्तु समपहरण के लिए ऐसी कोई सूचना, धारा 68क की उपधारा (2) के खंड (गग) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति पर या उस खंड में निर्दिष्ट व्यक्ति के किसी नातेदार या उस खंड में निर्दिष्ट व्यक्ति के सहयुक्त अथवा ऐसी किसी संपत्ति के धारक पर जो कि पूर्व में किसी समय उस खंड में निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा धारित थी, तामील नहीं की जाएगी ।

स्पष्टीकरण – शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि ऐसे मामले में जहां धारा 68ञ के उपबंध लागू होते हैं, इस धारा के अधीन कोई सूचना मात्र इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि वह उस साक्ष्य का उल्लेख करने में असफल रहती है, जिस पर निर्भर किया गया है या वह समपहृत किए जाने की वांछा की गई संपत्ति और इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन में किसी क्रियाकलाप के बीच सीधा संबंध सिद्ध करने में असफल रहती है ।

68झ. कुछ दशाओं में संपत्ति का समपहरण – (1) सक्षम प्राधिकारी, धारा 68ज के अधीन हेतुक दर्शित करने के लिए जारी की गई सूचना के संबंध में दिए गए स्पष्टीकरण पर, यदि कोई हो, और अपने समक्ष उपलब्ध सामग्री पर, विचार करने के पश्चात् तथा प्रभावित व्यक्ति को (और किसी ऐसी दशा में जहां प्रभावित व्यक्ति सूचना में विनिर्दिष्ट कोई संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति की मार्फत धारण करता है वहां ऐसे अन्य व्यक्ति को भी) सुनवाई का उचित अवसर देने के पश्चात्, आदेश द्वारा, यह निष्कर्ष अभिलिखित कर सकेगा कि क्या प्रश्नगत सभी या कोई संपत्ति अवैध रूप से अर्जित संपत्ति है :

                परंतु यदि प्रभावित व्यक्ति (और किसी ऐसी दशा में जहां प्रभावित व्यक्ति सूचना में विनिर्दिष्ट कोई संपत्ति किसी अन्य व्यक्ति की मार्फत धारण करता है वहां ऐसा अन्य व्यक्ति भी) हेतुक दर्शित करने के लिए सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर सक्षम प्राधिकारी के समक्ष हाजिर नहीं होता है या उसके समक्ष अपना मामला व्यपदिष्ट नहीं करता है तो सक्षम प्राधिकारी, अपने समक्ष उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर, इस उपधारा के अधीन एकपक्षीय निष्कर्ष अभिलिखित कर सकेगा ।

(2) जहां सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि हेतुक दर्शित करने के लिए सूचना में निर्दिष्ट कुछ संपत्तियां अवैध रूप से अर्जित संपत्तियां हैं किन्तु वह ऐसी संपत्ति को विनिर्दिष्टत पहचान करने में समर्थ नहीं है वहां सक्षम प्राधिकारी के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह ऐसी संपत्तियों को विनिर्दिष्ट करे जो उसकी सर्वोत्तम विवेकबुद्धि के अनुसार अवैध रूप से अर्जित संपत्तियां हैं और तद्नुसार उपधारा (1) के अधीन निष्कर्ष अभिलिखित करे ।

(3) जहां सक्षम प्राधिकारी, इस धारा के अधीन इस आशय का निष्कर्ष अभिलिखित करता है कि कोई संपत्ति अवैध रूप से अर्जित की गई संपत्ति है, वहां वह घोषित करेगा कि ऐसी संपत्ति इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी विल्लंगमों से मुक्त, केंद्रीय सरकार को समपहृत हो जाएगी|

              परन्तु ऐसे किसी व्यक्ति की, जो धारा 68क की उपधारा (2) के खंड (गग) में निर्दिष्ट है, या उस खंड में निर्दिष्ट व्यक्ति के नातेदार या उस खंड में निर्दिष्ट व्यक्ति के सहयुक्त या ऐसी संपत्ति के धारक की जो पूर्व में किसी समय उस खंड में निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा धारित थी, अवैध रूप से अर्जित संपत्ति समपहृत नहीं होगी ।

(4) जहां किसी कंपनी के शेयर, इस अध्याय के अधीन केंद्रीय सरकार को समपहृत हो जाते हैं, वहां कंपनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में या कंपनी के संगम अनुच्छेदों में किसी बात के होते हुए भी, केंद्रीय सरकार को ऐसे शेयरों के अंतरिती के रूप में तत्काल रजिस्टर करेगी ।

68ञ. सबूत का भार – इस अध्याय के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों में, यह साबित करने का भार कि धारा 68ज के अधीन तामील की गई सूचना में विनिर्दिष्ट कोई संपत्ति अवैध रूप से अर्जित संपत्ति नहीं है प्रभावित व्यक्ति पर होगा ।

68ट. समपहरण के बदले में जुर्माना – (1) जहां सक्षम प्राधिकारी यह घोषणा करता है कि कोई संपत्ति धारा 68झ के अधीन केंद्रीय सरकार को समपहृत हो गई है और वह ऐसा मामला है जिसमें अवैध रूप से अर्जित संपत्ति के केवल किसी भाग का स्रोत ही सक्षम प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप में साबित नहीं किया गया है, वहां वह किसी प्रभावित व्यक्ति को समपहरण के बदले में ऐसे भाग के बाजार मूल्य के बराबर जुर्माने का संदाय करने का विकल्प देते हुए आदेश करेगा । 

(2) उपधारा (1) के अधीन जुर्माना अधिरोपित करने का आदेश करने के पूर्व प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा ।

(3) जहां प्रभावित व्यक्ति, उपधारा (1) के अधीन देय जुर्माने का, ऐसे समय के भीतर जो उस निमित्त अनुज्ञात किया जाए, संदाय करता है, वहां सक्षम प्राधिकारी, आदेश द्वारा, धारा 68झ के अधीन समपहरण की घोषणा को प्रतिसंहृत कर सकेगा, और तब ऐसी संपत्ति निर्मुक्त हो जाएगी ।

68ठ. कुछ न्यास संपत्तियों के संबंध में प्रक्रिया – धारा 68ख के खंड (ख) के उपखंड (vi) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति की दशा में, यदि सक्षम प्राधिकारी के पास, उसे उपलब्ध जानकारी और सामग्रियों के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है (ऐसे विश्वास के लिए जो कारण है उन्हें लेखबद्ध किया जाएगा) कि न्यास के रूप में धारित कोई संपत्ति अवैध रूप से अर्जित संपत्ति है, तो वह, यथास्थिति, न्यासकर्ता को या ऐसी आस्तियों के अभिदाता को जिनसे या जिनके द्वारा ऐसी संपत्ति का अर्जन न्यास और न्यासियों द्वारा किया गया था, सूचना की तामील यह अपेक्षा करते हुए कर सकेगा कि वह सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर, धन या अन्य आस्तियों के ऐसे स्रोत जिनसे या जिनके द्वारा ऐसी संपत्ति अर्जित की गई थी या धन या अन्य आस्तियों के ऐसे स्रोत जिनका ऐसी संपत्ति को अर्जित करने के लिए न्यास को अभिदाय किया गया था, के बारे में स्पष्टीकरण दे और तब ऐसी सूचना के बारे में यह समझा जाएगा कि वह धारा 68ज के अधीन तामील की गई सूचना है और इस अध्याय के अन्य सभी उपबंध तद्नुसार लागू होंगे ।

स्पष्टीकरण– इस धारा के प्रयोजनों के लिए, न्यास के रूप में धारित किसी संपत्ति के संबंध में, “अवैध रूप से अर्जित संपत्ति” के अंतर्गत निम्नलिखित हैं, अर्थात्: –

(i) कोई संपत्ति जो यदि वह न्यासकर्ता या न्यास को ऐसी संपत्ति के अभिदायकर्ता द्वारा न्यास के रूप में धारित रहती, तो वह ऐसे न्यासकर्ता या अभिदायकर्ता के संबंध में अवैध रूप से अर्जित संपत्ति होती;

(ii) किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अभिदायों से न्यास द्वारा अर्जित कोई संपत्ति जो ऐसे व्यक्ति के संबंध में अवैध रूप से अर्जित की गई संपत्ति होती, यदि ऐसे व्यक्ति ने ऐसी संपत्ति को ऐसे अभिदायों से अर्जित किया होता ।

68ड कुछ अंतरणों का अकृत और शून्य होना – जहां धारा 68च की उपधारा (1) के अधीन कोई आदेश करने या धारा 68ज या धारा 68ठ के अधीन सूचना जारी करने के पश्चात् उक्त आदेश या सूचना में निर्दिष्ट किसी संपत्ति का अंतरण किसी भी ढंग से किया गया है, वहां ऐसे अंतरण पर, इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिए ध्यान नहीं दिया जाएगा और यदि उसके बाद ऐसी संपत्ति धारा 68झ के अधीन केंद्रीय सरकार को समपहृत हो जाती है तो ऐसी संपत्ति का अंतरण अकृत और शून्य समझा जाएगा ।

68ढ . अपील अधिकरण – तस्कर और विदेशी मुद्रा छालसाधक ( संपत्ति समपहरण ) अधिनियम , 1976 ( 1976 का 13 ) की धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन गठित अपील अधिकरण , धारा 68च, धारा 68झ, धारा 68ट की उपधारा (1) या धारा 68ठ के अधीन किये गए आदेशों के विरूद्ध अपीलों की सुनवाई के लिए अपील अधिकरण होगा l

68ण. अपील- (1) धारा 68ङ की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई अधिकारी या धारा 68च, धारा 68झ, धारा 68ट की उपधारा (1) या धारा 68ठ के अधीन सक्षम प्राधिकारी द्वारा किए गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उस तारीख से जिसको आदेश उसे तामील की जाती है, पैंतालीस दिन के भीतर अपील अधिकरण को अपील कर सकेगा:

                परन्तु अपील अधिकरण, पूर्वोक्त तारीख से उक्त पैंतालीस दिन की अवधि के पश्चात् किन्तु साठ दिन के अपश्चात्, अपील ग्रहण कर सकेगा यदि उसका समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय से अपील फाइल न किए जाने के लिए पर्याप्त हेतुक से निवारित हुआ था ।

(2) उपधारा (1) के अधीन अपील की प्राप्ति पर, अपील अधिकरण, अपीलार्थी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, यदि वह ऐसी इच्छा करता है, और ऐसी अतिरिक्त जांच करने के पश्चात् जो वह ठीक समझे, ऐसे आदेश का , जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पुष्ट, उपांतरित या अपास्त कर सकेगा ।

(3) अपील अधिकरण की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन अपील अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा गठित और तीन सदस्यों वाले न्यायपीठों द्वारा किया जा सकेगा ।

(4) उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी, जहां अध्यक्ष इस धारा के अधीन अपीलों को शीघ्र निपटाने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझता है वहां वह दो सदस्यों का न्यायपीठ गठित कर सकेगा और इस प्रकर गठित न्यायपीठ अपील अधिकरण की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन कर सकेगा:

                परंतु यदि इस प्रकार गठित न्यायपीठ के सदस्यों में किसी मुद्दे या मुद्दों पर मतभेद है तो वे उस मुद्दे या उन मुद्दों का उल्लेख करेंगे जिन पर उनमें मतभेद है और उसे या उन्हें, ऐसे मुद्दे या मुद्दों की सुनवाई के लिए (अध्यक्ष द्वारा विनिर्दिष्ट) एक तीसरे सदस्य को निर्देशित करेंगे और ऐसा मुद्दा या ऐसे मुद्दे उस सदस्य की राय के अनुसार विनिश्चित किया जाएगा या किए जाएंगे:

  परन्तु यह और कि यदि अध्यक्ष की मृत्यु, त्यागपत्र के कारण या अन्यथा उसका पद रिक्त है या यदि अध्यक्ष अनुपस्थिति, बीमारी के कारण या किसी अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तो केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा किसी सदस्य को, नए अध्यक्ष की नियुक्ति किए जाने और, यथास्थिति, कार्यभार ग्रहण करने या अपने कर्तव्यों को ग्रहण करने तक, अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए नामनिर्देशित कर सकेगी ।

(5) अपील अधिकरण अपनी प्रक्रिया को स्वयं विनियमित कर सकेगा ।

(6) अपील अधिकरण को आवेदन करने पर और विहित फीस का संदाय करने पर, अधिकरण किसी अपील के पक्षकार को या ऐसे पक्षकार द्वारा उसकी ओर से प्राधिकृत किसी व्यक्ति को कार्यालय के समय के दौरान किसी भी समय, अधिकरण के सुसंगत अभिलेखों और रजिस्टरों का निरीक्षण करने के लिए और उनके किसी भाग की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा ।

68त. वर्णन में गलती के कारण सूचना या आदेश का अविधिमान्य न होना – इस अध्याय के अधीन जारी की गई या तामील की गई कोई सूचना, की गई कोई घोषणा और पारित कोई आदेश उसमें उल्लिखित संपत्ति या व्यक्ति के वर्णन में किसी गलती के कारण अविधिमान्य नहीं समझा जाएगा, यदि ऐसी संपत्ति या व्यक्ति इस प्रकार उल्लिखित वर्णन से पहचाना जा सकता है ।

68थ. अधिकारिता का वर्जन – इस अध्याय के अधीन पारित कोई आदेश या की गई घोषणा उसमें उपबंधित के सिवाय अपीलीय नहीं होगी और किसी भी सिविल न्यायालय को किसी ऐसे मामले के संबंध में, जिसे अपील अधिकरण या कोई सक्षम प्राधिकारी इस अध्याय द्वारा या उसके अधीन अवधारित करने के लिए सशक्त है, अधिकारिता नहीं होगी, और किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा कोई व्यादेश इस अध्याय द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई के बारे में मंजूर नहीं किया जाएगा ।

68द. सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण के पास सिविल न्यायालय की शक्तियां होना – सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण को निम्नलिखित मामलों के बारे में, सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय, सिविल न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी, अर्थात्: –

                (क) किसी व्यक्ति को समन करना और उसको हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;

                (ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण तथा पेश किए जाने की अपेक्षा करना;

                (ग) शपथ-पत्र पर साक्ष्य लेना;

                (घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि की अध्यपेक्षा करना;

                (ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;

                (च) अन्य कोई विषय, जो विहित किया जाए । 

68ध. सक्षम प्राधिकारी को जानकारी देना – (1) किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, सक्षम प्राधिकारी को केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या स्थानीय प्राधिकरण के किसी अधिकारी या प्राधिकारी से ऐसे व्यक्तियों, मुद्दों या विषयों के बारे में जो सक्षम प्राधिकारी की राय में इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए उपयोगी या सुसंगत होंगे जानकारी देने की अपेक्षा करने की शक्ति होगी ।

(2) धारा 68न में निर्दिष्ट प्रत्येक व्यक्ति, स्वप्रेरणा से ऐसी कोई जानकारी जो उसके पास उपलब्ध हो, सक्षम प्राधिकारी को दे सकेगा यदि उस अधिकारी की राय में ऐसी जानकारी इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए उस सक्षम प्राधिकारी के लिए उपयोगी होगी ।

68न. कतिपय अधिकारियों का प्रशासक, सक्षम प्राधिकारी और अपील प्राधिकरण को सहायता करना – इस अध्याय के अधीन किसी कार्यवाही के प्रयोजनों के लिए निम्नलिखित अधिकारी धारा 68छ के अधीन नियुक्त प्रशासक, सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण की सहायता करने के लिए सशक्त किए जाते हैं, और उनसे अपेक्षा की जाती है, अर्थात्: –

                (क) स्वापक नियंत्रण ब्यूरो के अधिकारी;

                (ख) सीमाशुल्क विभाग के अधिकारी;

                (ग) केन्द्रीय उत्पाद-शुल्क विभाग के अधिकारी;

                (घ) आय-कर विभाग के अधिकारी;

(ङ) विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 (1973 का 46) के अधीन नियुक्त प्रवर्तन अधिकारी;

                (च) पुलिस के अधिकारी;

                (छ) स्वापक विभाग के अधिकारी;

                (ज) केन्द्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो के अधिकारी;

                (झ) राजस्व आसूचना निदेशालय के अधिकारी;

                (ञ) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के ऐसे अन्य अधिकारी जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे ।

68प. कब्जे में लेने की शक्ति – (1) जहां कोई संपत्ति इस अध्याय के अधीन केन्द्रीय सरकार को समपहृत घोषित कर दी गई है या जहां कोई प्रभावित व्यक्ति धारा 68ट की उपधारा (3) के अधीन उसके लिए अनुज्ञात समय के भीतर उस धारा की उपधारा (1) के अधीन देय जुर्माने का संदाय करने में असफल हो गया है, वहां सक्षम प्राधिकारी प्रभावित व्यक्ति को तथा ऐसे किसी अन्य व्यक्ति को, जिसके कब्जे में संपत्ति हो, धारा 68छ के अधीन नियुक्त प्रशासक को या उसके द्वारा इस निमित्त, सम्यक्तः प्राधिकृत किसी व्यक्ति को आदेश की तामील के तीस दिन के भीतर, संपत्ति का अभ्यर्पण करने या कब्जा देने का आदेश दे सकेगा ।

(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन किए गए आदेश का पालन करने से इंकार करता है या पालन करने में असफल हो जाता है तो प्रशासक संपत्ति का कब्जा ले सकेगा और उस प्रयोजन के लिए ऐसे बल का, जो आवश्यक हो, प्रयोग कर सकेगा ।

(3) उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, प्रशासक, उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी संपत्ति का कब्जा लेने के प्रयोजन के लिए, अपनी सहायता के लिए किसी पुलिस अधिकारी की सेवा की अध्यपेक्षा कर सकेगा और ऐसे अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसी अध्यपेक्षा का पालन करे ।

68फ. भूलों की परिशुद्धि – अभिलेख से प्रकट किन्हीं भूलों की परिशुद्धि करने के लिए, यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या अपील अधिकरण उसके द्वारा किए गए किसी आदेश को उस आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर संशोधित कर सकेगा:

               परंतु यदि ऐसे किसी संशोधन से किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है तो वह संशोधन ऐसे व्यक्ति की सुनवाई का उचित अवसर दिए बिना नहीं किया जाएगा ।

68ब. अन्य विधियों के अधीन निकाले गए निष्कर्षों का इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के लिए निश्चायक न होना – किसी अन्य विधि के अधीन किसी अधिकारी या प्राधिकारी का कोई निष्कर्ष इस अध्याय के अधीन किसी कार्यवाही के प्रयोजनों के लिए निश्चायक नहीं होगा ।

68भ. सूचनाओं और आदेशों की तामील – इस अध्याय के अधीन जारी की गई किसी सूचना या किए गए किसी आदेश की तामील निम्नलिखित रूप में की जाएगी: –

(क) उस व्यक्ति को जिसके लिए सूचना या आदेश आशयित है या, उसके अभिकर्ता को सूचना या आदेश निविदत्त करके या रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजकर;

(ख) यदि सूचना या आदेश की तामील खंड (क) में उपबंधित रीति से नहीं की जा सकती है तो उस संपत्ति के, जिसके संबंध में सूचना जारी की गई है या आदेश किया गया है, सहजदृश्य स्थान पर या उस परिसर के, जिसमें वह व्यक्ति, जिसके लिए वह आशयित है, जिसके बारे में ज्ञात है कि वह अंतिम रूप से रहा है या कारबार किया है या लाभ के लिए व्यक्तिगत रूप से काम किया है, किसी सहजदृश्य भाग पर चिपका कर ।

68म. उस सम्पत्ति का, जिसके बारे में इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियां की गई हैं, अर्जन करने के लिए दंड-ऐसा व्यक्ति जिसने किसी भी रीति से ऐसी कोई संपत्ति, जिसके बारे में इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियां लंबित हैं, जानबूझकर अर्जित की हैं, कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्षक की हो सकेगी और जुर्माने से, जो पचास हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।]

68य. कतिपय मामलों में संपत्ति निर्मुक्ति करना – (1) जहां निरुद्ध व्यक्ति का निरोध आदेश अपास्त कर दिया जाता है या वापस ले लिया जाता है वहां इस अध्याय के अधीन अभिगृहीत या स्थिर की गई संपत्तियां निर्मुक्त हो जाएंगी ।

(2) जहां धारा 68क की उपधारा (2) के खंड (क) या खंड (ख) या खंड (गग) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को इस अधिनियम के अधीन या किसी अन्य देश की तत्समान किसी अन्य विधि के अधीन आरोपों से दोषमुक्त या आरोपमुक्त कर दिया गया है और उस दोषमुक्ति के विरुद्ध अपील नहीं की गई थी या जब अपील की गई थी तब उस अपील का निपटारा कर दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप ऐसी संपत्ति समपहृत नहीं की जा सकी थी या ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट या गिरफ्तारी प्राधिकार को वापस ले लिया गया है तब इस अध्याय के अधीन अभिगृहीत या स्थिर की गई संपत्ति निर्मुक्त हो जाएगी ।

अध्याय 6

प्रकीर्ण

69. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिए संरक्षण – इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या इस अधिनियम के अधीन किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने वाले या किन्हीं कृत्यों का निर्वहन करने वाले या कर्तव्यों का अनुपालन करने वाले किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी ।

70. केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों द्वारा नियम बनाते समय अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशनों का ध्यान रखा जाना-इस अधिनियम में जहां कहीं केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को नियम बनाने के लिए सशक्त किया गया है वहां, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार, इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, नियम बनाते समय स्वापक औषधि एकल कन्वेंशन, 1961, उक्त कन्वेंशन का संशोधन करने वाले 1972 के प्रोटोकाल और मनःप्रभावी पदार्थ कन्वेन्शन, 1971, के उपबंधों का जिसका भारत एक पक्षकार है, और स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ से संबन्धित किसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के उपबंधों का ध्यान रख सकेगी ।

71. व्यसनियों की पहचान, उपचार, आदि के लिए तथा स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के प्रदाय के लिए केन्द्र स्थापित करने की सरकार की शक्ति- (1) सरकार, व्यसनियों की पहचान, उपचार, प्रबंधन, शिक्षा, पश्चात्वर्ती देखरेख, पुनर्वास, सामाजिक पुनःएकीकरण के लिए तथा सरकार के पास रजिस्ट्रीकृत व्यवसनियों को और अन्य व्यक्तियों को संबंधित सरकार द्वारा किन्हीं स्वापक औषधियों या मनःप्रभावी पदार्थों का प्रदाय किए जाने के लिए, जहां ऐसा प्रदाय चिकित्सीय आवश्यकता है, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए और ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, उतने केंद्रों को स्थापित कर सकेगी, मान्यता दे सकेगी या अनुमोदित कर सकेगी, जितने वह ठीक समझे ।

(2) सरकार, उपधारा (1) में निर्दिष्ट केन्द्रों की स्थापना, नियुक्ति, अनुरक्षण, प्रबन्ध और अधीक्षण तथा वहां से स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के प्रदाय के लिए और ऐसे केन्द्रों में नियोजित व्यक्तियों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, शक्तियों, कर्तव्यों का उपबन्ध करने के लिए इस अधिनियम से संगत नियम बना सकेगी ।

72. सरकार को शोध्य राशियों की वूसली – (1) इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश के किसी उपबन्ध के अधीन केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार को संदेय कोई अनुज्ञप्ति फीस या किसी प्रकार की कोई अन्य धनराशि की बाबत, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार का ऐसा अधिकारी, जो ऐसी धनराशि के संदाय की अपेक्षा करने के लिए सशक्त है, ऐसे व्यक्ति को, जिससे ऐसी धनराशि वसूलीय या शोध्य है, देय किसी धन में से ऐसी धनराशि की रकम की कटौती कर सकेगा अथवा ऐसी रकम या राशि की वसूली ऐसे व्यक्तियों के माल की कुर्की और विक्रय करके कर सकेगा और यदि उसकी रकम इस प्रकार वसूल नहीं की जाती है तो उसे उस व्यक्ति या उसके प्रतिभू से (यदि कोई हो) इस प्रकार वसूल की जा सकेगी मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।

(2) जब कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी नियम के अनुपालन में, किसी कार्य के पालन के लिए या किसी कार्य से अपने प्रविरत रहने के लिए (धारा 34 और धारा 39 के अधीन किसी बन्धपत्र से भिन्न) कोई बन्धपत्र देता है तब ऐसे पालन या प्रविरति के बारे में यह समझा जाएगा कि वह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 74 के अर्थ में लोक कर्तव्य है ; और उसके द्वारा ऐसे बन्धपत्र की शर्तों के भंग किए जाने पर, उसमें ऐसे भंग की दशा में संदाय की जाने वाली रकम के रूप में नामित सम्पूर्ण धनराशि उससे या उसके प्रतिभू से (यदि कोई हो) इस प्रकार वसूल की जा सकेगी मानो वह भू-राजस्व की बकाया हो ।

73. अधिकारिता का वर्जन – कोई सिविल न्यायालय इस अधिनियम के अधीन या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन किसी अधिकारी या प्राधिकरण द्वारा निम्नलिखित किसी विषय पर किए गए किसी विनिश्चय या पारित किसी आदेश के विरुद्ध कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण नहीं करेगा, अर्थात्: –

(क) अफीम पोस्त की खेती के लिए किसी अनुज्ञप्ति का विचारण, इन्कार या रद्दकरण;

(ख) अफीम की क्वालिटी और उसके गाढ़ेपन के अनुसार तौल, परीक्षा और वर्गीकरण तथा ऐसी परीक्षा के अनुसार मानक कीमत से की गई कोई कटौती या उसमें परिवर्धन;

(ग) ऐसी अफीम का अधिहरण जो किसी भी विजातीय पदार्थ से अपमिश्रित पाई जाए ।

74. संक्रमणकालीन उपबन्ध – इस अधिनियम के प्रारम्भ से ठीक पहले किसी ऐसे विषय के संबंध में, जिसके लिए इस अधिनियम में उपबन्ध नहीं किया गया है, किन्हीं शक्तियों का प्रयोग या कर्तव्यों का पालन करने वाला सरकार का प्रत्येक अधिकारी या अन्य कर्मचारी, ऐसे प्रारम्भ पर, इस अधिनियम के सुसंगत उपबंधों के अधीन, उसी पद और उसी पदाभिधान से, जो वह ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व धारण कर रहा था, नियुक्त किया गया समझा जाएगा|

74क. केंद्रीय सरकार की निदेश देने की शक्ति – केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबंधों का निष्पादन करने के सम्बन्ध में राज्य सरकार को ऐसे निदेश दे सकेगी जो वह आवश्यक समझे, और राज्य सरकार ऐसे निदेशों का पालन करेगी ।

75. प्रत्यायोजन की शक्ति – (1) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (नियम बनाने की शक्ति के सिवाय), जो वह आवश्यक और समीचीन समझे, बोर्ड या किसी अन्य प्राधिकारी या स्वापक आयुक्त को प्रत्यायोजित कर सकेगी ।

(2) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (नियम बनाने की शक्ति के सिवाय), जो वह आवश्यक या समीचीन समझे, उस सरकार के किसी प्राधिकारी या किसी अधिकारी को प्रत्यायोजित कर सकेगी ।

76. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति – (1) इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात्: –

(क) वह पद्धति, जिसके द्वारा धारा 2 के खण्ड (v), खण्ड (vi), खण्ड (xiv) और खण्ड (xv) के प्रयोजनों के लिए द्रव निर्मितियों की दशा में प्रतिशतताओं का परिकलन किया जाएगा;

(ख) उस बन्धपत्र का प्ररूप, जो परिशान्ति बनाए रखने के लिए धारा 34 के अधीन निष्पादित किया जाएगा;

(ग) उस बन्धपत्र का प्ररूप, जो धारा 39 की उपधारा (1) के अधीन चिकित्सीय उपचार के लिए सिद्धदोष किसी व्यसनी व्यक्ति की निर्मुक्ति के लिए निष्पादित किया जाएगा और वह बन्धपत्र, जो उस धारा की उपधारा (2) के अधीन सम्यक् भर्त्सना के पश्चात् ऐसे सिद्धदोष व्यक्ति द्वारा अपनी निर्मुक्ति के पूर्व निष्पादित किया जाएगा;

(गक) वह रीति, जिसमें धारा 50क के अधीन “नियंत्रित परिदान” का जिम्मा लिया जाएगा;

(घ) यह प्राधिकारी या व्यक्ति जिसके द्वारा और वह रीति जिससे भारत से बाहर किसी स्थान से प्राप्त दस्तावेज धारा 66 के खण्ड (ii) के अधीन अधिप्रमाणित की जाएगी;

(घक) वह रीति जिससे और वे शर्तें जिनके अधीन धारा 68छ की उपधारा (2) के अधीन प्रशासक द्वारा संपत्तियों का प्रबंध किया जाएगा;

(घग) वे फ़ीसें जिनका संदाय धारा 68ण की उपधारा (6) के अधीन अपील अधिकरण के अभिलेखों और रजिस्टरों के निरीक्षण के लिए या उनके किसी भाग की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए किया जाएगा;

(घघ) सिविल न्यायालय की शक्तियां जिनका प्रयोग धारा 68द के खंड (च) के अधीन सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण द्वारा किया जा सकेगा;

(घङ) इस अधिनियम के अधीन अधिकृत सभी वस्तुओं या चीजों का निपटारा;

(घच) नमूने लेना और ऐसे नमूनों का परीक्षण और विश्लेषण करना;

(घछ) अधिकारियों, भेदियों और अन्य व्यक्तियों को सदंत्त किए जाने वाले पुरस्कार;

(ङ) वे शर्तें जिनमें और वह रीति जिससे धारा 73 की उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय सरकार के पास रजिस्ट्रीकृत व्यसनियों और अन्य व्यक्तियों को चिकित्सीय आवश्यकता के लिए स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों का प्रदाय किया जा सकेगा;

(च) धारा 71 की उपधारा (1) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित केन्द्रों की स्थापना, नियुक्ति, अनुरक्षण, प्रबन्ध और अधीक्षण तथा ऐसे केन्द्रों में नियोजित व्यक्तियों को नियुक्ति, प्रशिक्षण, शक्तियां और कर्तव्य;

(छ) धारा 6 की उपधारा (5) के अधीन स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ सलाहकार समिति के अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि, आकस्मिक रिक्तियों को भरने की रीति और उनको संदेय भत्ते तथा वे शर्तें और निर्बंन्धन, जिनके अधीन रहते हुए कोई गैर सदस्य किसी उपसमिति में नियुक्त किया जा सकेगा;

(ज) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाता है या विहित किया जाए ।

77. नियमों और अधिसूचनाओं को संसद् के समक्ष रखा जाना- केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और धारा 2 के खंड (viiक), खंड (xi), खंड (xxiiiक), धारा 3, धारा 7क, धारा 9क और धारा 27 के खंड (क) के अधीन निकाली गई प्रत्येक अधिसूचना या निकाला गया प्रत्येक आदेश बनाए या निकाले जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उक्त सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या अधिसूचना में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए या वह अधिसूचना नहीं निकाली जानी चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगी किन्तु उस नियम या अधिसूचना के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

78. नियम बनाने की राज्य सराकर की शक्ति- (1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात्: –

(क) वे शर्तें जिनमें और वह रीति जिससे धारा 71 की उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार के पास रजिस्ट्रीकृत व्यसनियों और अन्य व्यक्तियों को चिकित्सीय आवश्यकता के लिए स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों का प्रदाय किया जा सकेगा;

(ख) धारा 71 की उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार द्वारा स्थापित केन्द्रों की स्थापना, नियुक्ति, अनुरक्षण, प्रबन्ध और अधीक्षण तथा ऐसे केन्द्रों में नियोजित व्यक्तियों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, शक्तियां और कर्तव्य;

(ग) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या विहित किया जाए ।

(3) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, उस राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा ।

79. सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 का लागू होना – स्वापक औषधियों और मनःप्रभावी पदार्थों के भारत में आयात, भारत से निर्यात और यानान्तरणों पर इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन अधिरोपित सभी प्रतिषेध और निर्बन्धन सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52) द्वारा या उसके अधीन अधिरोपित प्रतिषेध और निबंधन समझे जाएंगे और उस अधिनियम के उपबंध तद्नुसार लागू होंगे:

                परन्तु जहां किसी बात का किया जाना उस अधिनियम के अधीन और इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध है वहां उस अधिनियम में या इस धारा में की कोई बात अपराधी को इस अधिनियम के अधीन दण्डित किए जाने से निवारित नहीं करेगी ।

80. औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के लागू होने का वर्जित न होना – इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंध औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23) या उसके अधीन बनाए गए नियमों के अतिरिक्त होंगे न कि उसके अल्पीकरण में ।

81. राज्य और विशेष विधियों की व्यावृत्ति – इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी ऐसे प्रान्तीय अधिनियम की या किसी राज्य विधान-मंडल के ऐसे अधिनियम की अथवा इसके अधीन बनाए गए किसी ऐसे नियम की विधिमान्यता पर प्रभाव नहीं डालेगी जो भारत के भीतर कैनेबिस के पौधे की खेती के लिए अथवा किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ के उपयोग या व्यापार पर कोई ऐसा निर्बन्धन अधिरोपित करता है या ऐसे किसी दण्ड का उपबन्ध करता है जो इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अधिरोपित या उपबन्धित नहीं किया गया है अथवा ऐसा निर्बंधन अधिरोपित करता है या ऐसे दण्ड के लिए उपबन्ध करता है जो इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अधिरोपित तत्स्थानी निर्बंधन या उपबंधित तत्स्थानी दण्ड से बड़ी कोटि का है ।

82. निरसन और व्यावृत्ति – (1) अफीम अधिनियम, 1857 (1857 का 13), अफीम अधिनियम, 1878 (1878 का 1) का और अनिष्टकर मादक द्रव्य अधिनियम, 1930 (1930 का 2) इसके द्वारा निरसित किए जाते हैं ।

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी यह है कि उपधारा (1) द्वारा निरसित किसी अधिनियमिति के अधीन की गई या किए जाने के तात्पर्यित कोई बात या कार्रवाई, जहां तक वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं है, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन की गई समझी जाएगी ।

83. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति – (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत नहीं हैं और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत हों:

परन्तु ऐसा कोई आदेश ऐसी तारीख से, जिसको इस अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, तीन वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं निकाला जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन निकाला गया प्रत्येक आदेश, निकाले जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा ।