हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 – विवाह-विच्छेद-
(1) कोई भी विवाह, वह इस अधिनियम के प्रारम्भ के चाहे पूर्व अनुष्ठापित हुआ हो चाहे पश्चात्, पति अथवा पत्नी द्वारा उपस्थापित अर्जी पर विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा इस आधार पर विघटित किया जा सकेगा कि-
(i) दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात् अपने पति या अपनी पत्नी से भिन्न किसी व्यक्ति के साथ स्वेच्छया मैथुन किया है; या
(iक) दूसरे पक्षकार ने विवाह के अनुष्ठान के पश्चात् अर्जीदार के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है; या
(iख) दूसरे पक्षकार ने अर्जी के पेश किए जाने के अव्यवहित पूर्व कम से कम दो वर्ष की निरन्तर कालावधि पर अर्जीदार के अभित्यक्त रखा है; या
(ii) दूसरा पक्षकार अन्य धर्म में संपरवर्तित हो जाने के कारण हिन्दू नहीं रह गया है; या
(iii) दूसरा पक्षकार असाध्य रूप से विकृत-चित्त रहा है अथवा निरन्तर या आंतरायिक रूप से इस प्रकार के और इस हद तक मानसिक विकार से पीड़ित रहा है कि अर्जीदार से युक्तियुक्त रूप से यह आशा नहीं की जा सकती है कि वह प्रत्यर्थी के साथ रहे ।
स्पष्टीकरण- इस खण्ड में, –
(क) “मानसिक विकार” पद से मानसिक बीमारी, मस्तिष्क का संरोध या अपूर्ण विकास, मनोविकृति या मस्तिष्क का कोई अन्य विकार या निःशक्तता अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत विखंडित मनस्कता भी है;
(ख) ”मनोविकृति” पद से मस्तिष्क का दीर्घ स्थायी विकार या निःशक्तता (चाहे इसमें वृद्धि की अवसामान्यता हो या नहीं) अभिप्रेत है जिसके परिणामस्वरूप दूसरे पक्षकार का आचरण असामान्य रूप से आक्रामक या गंभीर रूप से अनुत्तरदायी हो जाता है और चाहे उसके लिए चिकित्सीय उपचार अपेक्षित हो या नहीं अथवा ऐसा उपचार किया जा सकता हो या नहीं; या
(iv) उग्र और असाध्य कुष्ठ से पीड़ित रहा है; या
(v) संचारी रूप से रतिज रोग से पीड़ित रहा है; या
(vi) दूसरा पक्षकार किसी धार्मिक पंथ के अनुसार प्रव्रज्या ग्रहण कर चुका है; या
(vii) दूसरा पक्षकार जीवित है या नहीं इसके बारे में सात वर्ष या उससे अधिक की कालावधि के भीतर उन्होंने कुछ नहीं सुना है जिन्होंने उसके बारे में यदि वह पक्षकार जीवित होता तो स्वभाविकतः सुना होता ;
स्पष्टीकरण- इस उपधारा में ”अभित्यजन” पद से विवाह के दूसरे पक्षकार द्वारा अर्जीदार का ऐसा अभित्यजन अभिप्रेत है जो युक्तियुक्त कारण के बिना और ऐसे पक्षकार की सम्मति के बिना या इच्छा के विरुद्ध हो और इसके अन्तर्गत विवाह के दूसरे पक्षकार द्वारा जानबूझकर अर्जीदार की उपेक्षा करना भी है और इस पद के व्याकरिणक रूपभेदों तथा सजातीय पदों के अर्थ तदनुसार लगाए जाएंगे ।
(1क) विवाह का कोई भी पक्षकार, विवाह इस अधिनियम के प्रारंभ के चाहे पूर्व अनुष्ठापित हुआ हो चाहे पश्चात्, विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह के विघटन के लिए इस आधार पर भी अर्जी उपस्थापित कर सकेगा-
(i) कि ऐसी कार्यवाही में पारित, जिसके उस विवाह के पक्षकार, पक्षकार थे, न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के पश्चात् एक वर्ष या उससे ऊपर की कालावधि भर, उन पक्षकारों के बीच सहवास का कोई पुनरारंभ नहीं हुआ है; या
(ii) कि ऐसी कार्यवाही में पारित, जिसके उस विवाह के पक्षकार, पक्षकार थे, दाम्पत्याधिकार के प्रत्यास्थापन की डिक्री के पश्चात् एक वर्ष या उससे ऊपर की कालावधि भर, उन पक्षकारों के बीच दाम्पत्याधिकारों का कोई प्रत्यास्थापन नहीं हुआ है।
(2) पत्नी विवाह-विच्छेद की डिक्री द्वारा अपने विवाह के विघटन के लिए इस आधार पर भी अर्जी उपस्थापित कर सकेगी-
(i) कि इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व अनुष्ठापित विवाह की दशा में, पति ने ऐसे प्रारंभ के पूर्व फिर विवाह कर लिया था या कि अर्जीदार के विवाह के अनुष्ठान के समय पति की कोई ऐसी दूसरी पत्नी जीवित थी जिसके साथ उसका विवाह ऐसे प्रारंभ के पूर्व हुआ था:
परन्तु यह तब जब कि दोनों दशाओं में दूसरी पत्नी अर्जी के उपस्थान के समय जीवित हो; या
(ii) कि पति विवाह के अनुष्ठापन के पश्चात् बलात्संग, गुदामैथुन या पशुगमन का दोषी रहा है; या
(iii) कि हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (1956 का 78) की धारा 18 के अधीन वाद में या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 125 के अधीन [या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की तत्समान धारा 488 के अधीन] कार्यवाही में, पत्नी को भरण-पोषण दिलवाने के लिए पति के विरुद्ध, यथास्थिति, डिक्री या आदेश इस बात के होते हुए भी पारित किया गया है कि वह अलग रहती थी और ऐसी डिक्री या आदेश के पारित किए जाने के समय से एक वर्ष या उससे ऊपर की कालावधि भर पक्षकारों के बीच सहवास का पुनरारम्भ नहीं हुआ है;
(iv) कि उसका विवाह (चाहे विवाहोत्तर संभोग हुआ हो या नहीं) उसकी पन्द्रह वर्ष की आयु हो जाने के पूर्व अनुष्ठापित किया गया था और उसने पन्द्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात् किन्तु अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पूर्व विवाह का निराकरण कर दिया है ।
स्पष्टीकरण- यह खण्ड उस विवाह को भी लागू होगा जो विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम, 1976 (1976 का 68) के प्रारंभ के पूर्व या उसके पश्चात् अनुष्ठापित किया गया है ।
Section 13 Hindu Marriage Act – Divorce –
(1) Any marriage solemnized, whether before or after the commencement of this Act, may, on a petition presented by either the husband or the wife, be dissolved by a decree of divorce on the ground that the other party–
1[(i) has, after the solemnization of the marriage, had voluntary sexual intercourse with any person other than his or her spouse; or
(ia) has, after the solemnization of the marriage, treated the petitioner with cruelty; or
(ib) has deserted the petitioner for a continuous period of not less than two years immediately preceding the presentation of the petition; or]
(ii) has ceased to be a Hindu by conversion to another religion; or
2[(iii) has been incurably of unsound mind, or has been suffering continuously or intermittently from mental disorder of such a kind and to such an extent that the petitioner cannot reasonably be expected to live with the respondent.
Explanation.--In this clause,–
(a) the expression mental disorder means mental illness, arrested or incomplete development of mind, psychopathic disorder or any other disorder or disability of mind and includes schizophrenia;
(b) the expression psychopathic disorder means a persistent disorder or disability of mind (whether or not including subnormality of intelligence) which results in abnormally aggressive or seriously irresponsible conduct on the part of the other party, and whether or not it requires or is susceptible to medical treatment; or]
3* * * * *
(v) has 3* * * been suffering from venereal disease in a communicable form; or
(vi) has renounced the world by entering any religious order; or
(vii) has not been heard of as being alive for a period of seven years or more by those persons who would naturally have heard of it, had that party been alive; 4***
5*** *
6[Explanation.In this sub-section, the expression desertion means the desertion of the petitioner by the other party to the marriage without reasonable cause and without the consent or against the wish of such party, and includes the wilful neglect of the petitioner by the other party to the marriage, and its grammatical variations and cognate expressions shall be construed accordingly.]
7[(1A) Either party to a marriage, whether solemnized before or after the commencement of this Act, may also present a petition for the dissolution of the marriage by a decree of divorce on the ground
(i) that there has been no resumption of cohabitation as between the parties to the marriage for a period of 8[one year] or upwards after the passing of a decree for judicial separation in a proceeding to which they were parties; or
(ii) that there has been no restitution of conjugal rights as between the parties to the marriage for a period of 8[one year] or upwards after the passing of a decree for restitution of conjugal rights in a proceeding to which they were parties.]
(2) A wife may also present a petition for the dissolution of her marriage by a decree of divorce on the ground,– हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13
(i) in the case of any marriage solemnized before the commencement of this Act, that the husband had married again before such commencement or that any other wife of the husband married before such commencement was alive at the time of the solemnization of the marriage of the petitioner:
Provided that in either case the other wife is alive at the time of the presentation of the petition; or
(ii) that the husband has, since the solemnization of the marriage, been guilty of rape, sodomy or 9[bestiality; or] हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13
10[(iii) that in a suit under section 18 of the Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956 (78 of 1956), or in a proceeding under section 125 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974) (or under the corresponding section 488 of the Code of Criminal Procedure, 1898 (5 of 1898), a decree or order, as the case may be, has been passed against the husband awarding maintenance to the wife notwithstanding that she was living apart and that since the passing of such decree or order, cohabitation between the parties has not been resumed for one year or upwards;
(iv) that her marriage (whether consummated or not) was solemnized before she attained the age of fifteen years and she has repudiated the marriage after attaining that age but before attaining the age of eighteen years. हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13
Explanation-This clause applies whether the marriage was solemnized before or after the commencement of the Marriage Laws (Amendment) Act, 1976 (68 of 1976).]
1. Subs. by Act 68 of 1976, s. 7, for clause (i) (w.e.f. 27-5-1976).
2. Subs. by s. 7, ibid., for clause (iii) (w.e.f. 27-5-1976).
3. Clause (iv) omitted by Act 6 of 2019, s. 5 (w.e.f. 1-3-2019).
4. The word or omitted by Act 44 of 1964, s. 2, ibid. (w.e.f. 20-12-1964).
5. Clauses (viii) and (ix) omitted by s. 2, ibid. (w.e.f. 20-12-1964).
6. Ins. by Act 68 of 1976, s. 7 (w.e.f. 27-5-1976).
7. Ins. by Act 44 of 1964, s. 2 (w.e.f. 20-12-1964).
8. Subs. by Act 68 of 1976, s. 7, for two years (w.e.f. 27-5-1976).
9. Subs. by Act 68 of 1976, s. 7, for bestiality (w.e.f. 27-5-1976).
10. Ins. by s. 7, ibid. (w.e.f. 27-5-2976).