हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 23 – कार्यवाहियों में डिक्री –
(1) यदि इस अधिनियम के अधीन होने वाली किसी कार्यवाही में, चाहे उसमें प्रतिरक्षा में की गई हो या नहीं, न्यायालय का समाधान हो जाए कि-
(क) अनुतोष अनुदत्त करने के आधारों में से कोई न कोई आधार विद्यमान है और अर्जीदार उन मामलों को छोड़कर, जिनमें उसके द्वारा धारा 5 के खण्ड (ii) के उपखंड (क), उपखण्ड (ख) या उपखण्ड (ग) में विनिर्दिष्ट आधार पर अनुतोष चाहा गया है अनुतोष के प्रयोजन से अपने ही दोष या निर्योग्यता का किसी प्रकार फायदा नहीं उठा रहा या उठा रही है, और
(ख) जहां कि अर्जी का आधार धारा 13 की उपधारा (1) के खण्ड (i) में विनिर्दिष्ट आधार हो वहां न तो अर्जीदार परिवादित कार्य या कार्यों का किसी प्रकार से उपसाधक रहा है और न उसने उनका मौनानुमोदन या उपमर्षण किया है अथवा जहां कि अर्जी का आधार क्रूरता हो वहां अर्जीदार ने उस क्रूरता का किसी प्रकार उपमर्षण नहीं किया है, और
(खख) जब विवाह-विच्छेद पारस्परिक सम्मत्ति के आधार पर चाहा गया है, और ऐसी सम्मति बल, कपट या असयमक् अभियोजित नहीं की जाती है, और
(ग) अर्जी (जो धारा 11 के अधीन पेश की गई अर्जी नहीं है) प्रत्यर्थी के साथ दुस्सन्धि करके उपस्थापित या अभियोजित नहीं की जाती है, और
(घ) कार्यवाही संस्थित करने में कोई अनावश्यक या अनुचित विलम्ब नहीं हुआ है, और
(ङ) अनुतोष अनुदत्त न करने के लिए कोई अन्य वैध आधार नहीं है, तो ऐसी ही दशा में, किन्तु अन्यथा नहीं, न्यायालय तद्नुसार ऐसा अनुतोष डिक्री कर देगा ।
(2) इस अधिनियम के अधीन कोई अनुतोष अनुदत्त करने के लिए अग्रसर होने के पूर्व, यह न्यायालय का प्रथमतः कर्तव्य होगा कि वह ऐसी हर दशा में, जहां कि मामले की प्रकृति और परिस्थितियों से संगत रहते हुए ऐसा करना सम्भव हो पक्षकारों के बीच मेल मिलाप कराने का पूर्ण प्रयास करे:
परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसी कार्यवाही को लागू नहीं होगी जिमसें धारा 13 की उपधारा (1) के खंड (ii), खंड (iii), खंड (iv), खंड (v), खंड (vi) या खंड (vii) में विनिर्दिष्ट आधारों में से किसी आधार पर अनुतोष चाहा गया है ।
(3) ऐसा मेल-मिलाप कराने में न्यायालय की सहायता के प्रयोजन के लिए न्यायालय, यदि पक्षकार ऐसा चाहते तो या यदि न्यायालय ऐसा करना न्यायसंगत और उचित समझे तो, कार्यवाहियों को 15 दिन से अनधिक की युक्तियुक्त कालावधि के लिए स्थगित कर सकेगा और उस मामले को पक्षकारों द्वारा इस निमित्त नामित किसी व्यक्ति को या यदि पक्षकार कोई व्यक्ति नामित करने में असफल रहते हैं तो न्यायालय द्वारा नामनिर्देशित किसी व्यक्ति को इन निदेशों के साथ निर्देशित कर सकेगा कि वह न्यायालय को इस बारे में रिपोर्ट दे कि मेल-मिलाप कराया जा सकता है या नहीं तथा करा दिया गया है या नहीं और न्यायालय कार्यवाही का निपटारा करने में ऐसी रिपोर्ट को सम्यक् रूप से ध्यान में रखेगा ।
(4) ऐसे हर मामले में, जिसमें विवाह का विघटन विवाह-विच्छेद द्वारा होता है, डिक्री पारित करने वाला न्यायालय हर पक्षकार को उसकी प्रति मुफ्त देगा ।
Section 23 Hindu Marriage Act – Decree in proceedings —
(1) In any proceeding under this Act, whether defended or not, if the court is satisfied that
(a) any of the grounds for granting relief exists and the petitioner 1[except in cases where the relief is sought by him on the ground specified in sub-clause (a), sub-clause (b) or sub-clause (c) of clause (ii) of section 5] is not in any way taking advantage of his or her own wrong or disability for the purpose of such relief, and
(b) where the ground of the petition is the ground specified 2* * * in clause (i) of sub-section (1) of section 13, the petitioner has not in any manner been accessory to or connived at or condoned the act or acts complained of, or where the ground of the petition is cruelty the petitioner has not in any manner condoned the cruelty, and
1[(bb) when a divorce is sought on the ground of mutual consent, such consent has not been obtained by force, fraud or undue influence, and]
(c)3[the petition (not being a petition presented under section 11)] is not presented or prosecuted in collusion with the respondent, and हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 23
(d) there has not been any unnecessary or improper delay in instituting the proceeding, and
(e) there is no other legal ground why relief should not be granted, then, and in such a case, but not otherwise, the court shall decree such relief accordingly.
(2) Before proceeding to grant any relief under this Act, it shall be the duty of the court in the first instance, in every case where it is possible so to do consistently with the nature and circumstances of the case, to make every endeavour to bring about reconciliation between the parties: हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 23
4[Provided that nothing contained in this sub-section shall apply to any proceeding wherein relief is sought on any of the grounds specified in clause (ii), clause (iii), clause (iv), clause (v), clause (vi) or clause (vii) of sub-section (1) of section 13.]
5[(3) For the purpose of aiding the court in bringing about such reconciliation, the court may, if the parties so desire or if the court thinks it just and proper so to do, adjourn the proceedings for a reasonable period not exceeding fifteen days and refer the matter to any person named by the parties in this behalf or to any person nominated by the court if the parties fail to name any person, with directions to report to the court as to whether reconciliation can be and has been, effected and the court shall in disposing of the proceeding have due regard to the report. हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 23
(4) In every case where a marriage is dissolved by a decree of divorce, the court passing the decree shall give a copy thereof free of cost to each of the parties.]
1. Ins. by s. 16, ibid. (w.e.f. 27-5-1976).
2. The words, bracket, letter of figure in clause (f) of sub-section (1) of section 10 or omitted by s. 16, ibid. (w.e.f. 27-5-1976).
3. Subs. by s. 16, ibid., for the petition (w.e.f. 27-5-1976).
4. Added by s. 16, ibid. (w.e.f. 27-5-1976).
5. Ins. by Act 68 of 1976, s. 16 (w.e.f. 27-5-1976)