संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 2 – अधिनियमों का निरसन–
किन्हीं अधिनियमितियों, प्रसंगतियों, अधिकारों, दायित्वों इत्यादि की व्यावृत्ति-
उन राज्यक्षेत्रों में, जिन पर इस अधिनियम का तत्समय विस्तार हो, वे अधिनियमितियां, जो एतद् उपाबद्ध अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं उनमें वर्णित विस्तार तक निरसित हो जाएंगी। किन्तु एतस्मिन् अन्तर्विष्ट कोई भी बात निम्नलिखित पर प्रभाव डालने वाली न समझी जाएगी
(क) एतद्द्वारा अभिव्यक्त रूप से न निरसित किसी भी अधिनियमिति के उपबन्ध ;
(ख) किसी संविदा के या सम्पत्ति संघटन के, कोई भी निबन्धन और प्रसंगतियां जो इस अधिनियम के उपबन्धों से संगत और तत्समय-प्रवृत्त-विधि द्वारा अनुज्ञात है :
(ग) इस अधिनियम के प्रवृत्त होने से पूर्व गठित किसी विधिक सम्बन्ध से उत्पन्न कोई अधिकार या दायित्व या किसी ऐसे अधिकार या दायित्व के बारे में कोई अनुतोष ; अथवा
(घ) इस अधिनियम की धारा 57 और अध्याय 4 द्वारा यथा उपबन्धित के सिवाय विधि की क्रिया द्वारा या सक्षम अधिकारितायुक्त न्यायालय की डिक्री या आदेश के द्वारा या उसके निष्पादन में हुआ कोई अन्तरण,
और इस अधिनियम के दूसरे अध्याय की कोई भी बात मोहमेडन विधि के किसी नियम पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी।
Section 2 TPA –“Repeal of Acts ”–
Saving of certain enactments, incidents, rights, liabilities, etc.— In the territories to which this Act extends for the time being the enactments specified in the Schedule hereto annexed shall be repealed to the extent therein mentioned. But nothing herein contained shall he deemed to affect—
(a) the provisions of any enactment not hereby expressly repealed;
(b) any terms or incidents of any contract or constitution of property which are consistent with the provisions of this Act, and arc allowed by the law for the time being in force;
(c) any right or liability arising out of a legal relation constituted before this Act comes into force, or any relief in respect of any such right or liability; or
(d) save as provided by section 57 and Chapter IV of this Act, any transfer by operation of law or by, or in execution of, a decree or order of a Court of competent jurisdiction; and nothing in the second Chapter of this Act shall be deemed to affect any rule of Muhammadan law.