संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 55 – क्रेता और विक्रेता के अधिकार और दायित्व-
तत्प्रतिकूल संविदा न हो तो स्थावर सम्पत्ति का क्रेता और विक्रेता क्रमश: उन दायित्वों के अध्यधीन और उन अधिकारों से युक्त होंगे जो कि ठीक नीचे लिखे नियमों में, या उनमें से ऐसी में, जो बेची गई सम्पत्ति को लागू हों, वर्णित हैं
(1) विक्रेता आबद्ध है कि वह –
(क) उस सम्पत्ति में या विक्रेता के उस सम्पत्ति पर के हक में किसी ऐसी तात्त्विक त्रुटि को, जिसे विक्रेता जानता हो और क्रेता नहीं जानता हो और क्रेता जिसका पता मामूली सावधानी से नहीं लगा सकता था, क्रेता को प्रकट करे,
(ख) उस सम्पत्ति सम्बन्धी जो हक की दस्तावेजों विक्रेता के कब्जे या शक्ति में हों, उन सब को क्रेता को उसकी प्रार्थना पर परीक्षा के लिए पेश करे,
(ग) उस सम्पत्ति या उस पर के हक के बारे में क्रेता द्वारा उससे पूछे गए सभी सुसंगत प्रश्नों का उत्तर अपनी पूरी जानकारी से दे,
(घ) कीमत की बाबत शोध्य रकम के संदाय या निविदा पर सम्पत्ति का उचित हस्तांतरण-पत्र निष्पादित करे जबकि क्रेता उसे उचित समय और स्थान पर निष्पादन के लिए विक्रेता को निविदत्त करे,
(ङ) विक्रय-संविदा और उस सम्पत्ति के परिदान की तारीखों के बीच उस सम्पत्ति को और उस पर के हक सम्बन्धी सब दस्तावेजों को, जो उसके कब्जे में हों, ऐसी सावधानी से रखे जैसी मामूली प्रज्ञा वाला स्वामी ऐसी सम्पत्ति और दस्तावेजों को रखता,
(च) ऐसे अपेक्षित किए जाने पर क्रेता या तन्निदिष्ट व्यक्ति को उस सम्पत्ति पर ऐसे कब्जा दे जैसा सम्पत्ति को प्रकृति के अनुसार दिया जा सकता है.
(छ) सम्पत्ति पर विक्रय की तारीख तक प्रोद्भूत शोध्य सब लोक प्रभारों और भाटक को, ऐसी सम्पत्ति पर सब बिल्लंगमों पर के ब्याज को, जो ऐसी तारीख को शोध्य हो, दे और सिवाय उस दशा के जहां कि सम्पत्ति विल्लंगमों के अध्यधीन बेची गई हो सम्पत्ति पर उस समय वर्तमान सब बिल्लंगमों को उन्मोचित कर दे।
(2) यह समझा जाएगा कि विक्रेता क्रेता से यह संविदा करता है कि वह हित, जिसे विक्रेता क्रेता को अन्तरित करने की प्रव्यंजना करता है, अस्तित्वयुक्त है और उसे अन्तरित करने की शक्ति विक्रेता रखता है :
- परन्तु जहां कि विक्रय किसी व्यक्ति द्वारा अपनी वैश्वासिक हैसियत में किया जाता है, वहां यह समझा जाएगा कि वह व्यक्ति क्रेता से यह संविदा करता है कि विक्रेता ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया है जिससे सम्पत्ति विल्लंगमित हो गई है या जिससे वह उसे अन्तरित करने से प्रतिबाधित हो गया है।
इस नियम में वर्णित संविदा का फायदा अन्तरिती की हैसियत में उस अन्तरिती के हित के साथ उपाबद्ध रहेगा और जाएगा और ऐसे हर एक व्यक्ति द्वारा प्रवर्तित कराया जा सकेगा जिसमें समय-समय पर वह हित सम्पूर्णतः या उसका कोई भाग निहित हो।
(3) जहां कि विक्रेता को पूर्ण क्रय-धन दे दिया गया है, वहां वह क्रेता को सम्पत्ति से सम्बन्धित सब ऐसी हक की दस्तावेजों का भी परिदान करने के लिए आबद्ध है, जो विक्रेता के कब्जे या शक्ति में हों :
- परन्तु, (क) जहां कि विक्रेता ऐसी दस्तावेजों में समाविष्ट सम्पत्ति के किसी भाग को अपने पास प्रतिधृत करता है, वहां वह उन सब दस्तावेजों का प्रतिधारण करने का हकदार है, और(ख) जहां कि ऐसी सम्पूर्ण सम्पत्ति विभिन्न क्रेताओं को बेची जाती है, वहां सार्वाधिक मूल्य वाले टुकड़े का क्रेता उन दस्तावेजों का हकदार है। किन्तु (क) दशा में विक्रेता; और (ब) दशा में सार्वाधिक मूल्य वाले टुकड़ों का क्रेता, यथास्थिति, क्रेता की या अन्य क्रेताओं में से किसी एक की हर युक्तियुक्त प्रार्थना पर और प्रार्थना करने वाले व्यक्ति के खर्चे पर उक्त दस्तावेजों को पेश करने और उनकी ऐसी सही प्रतियां या उनमें से ऐसे उद्धरण, जैसों की वह अपेक्षा करे, देने के लिए आबद्ध है और इस बीच, यथास्थिति, विक्रेता या सार्वाधिक मूल्य वाले टुकड़े के क्रेता को उक्त दस्तावेजों, यदि वह ऐसा करने से अग्नि या अनिवार्य दुर्घटना द्वारा निवारित हो जाए, सुरक्षित, अरद्द और अविरूपित रखने होंगे।
(4) विक्रेता हकदार है-
(क) सम्पत्ति के तब तक के भाटकों और लाभों का जब तक उसका स्वामित्व क्रेता को संक्रान्त न हो जाए,
(ख) जहां कि सम्पत्ति का स्वामित्व, पूरा क्रय-धन दिए जाने के पूर्व, क्रेता को संक्रान्त हो गया है वहां क्रयधन की रकम या उसके असंदत्त शेष भाग के लिए और उस तारीख से, जिसको कब्जा परिदान किया गया है. ऐसी रकम या भाग पर ब्याज के लिए क्रेता या किसी भी अप्रतिफल अन्तरिती या क्रय-धन के असंदाय की सूचना रखने वाले किसी अन्तरिती के हाथ में की उस सम्पत्ति पर भार का।
(5) क्रेता आबद्ध है कि वह –
(क) सम्पत्ति में विक्रेता के हित की प्रकृति या विस्तार के बारे में ऐसा तथ्य, जिसे क्रेता जानता है किन्तु जिसे उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि विक्रेता नहीं जानता है और जिससे ऐसे हित के मूल्य में तात्त्विक वृद्धि होती है, विक्रेता को प्रकट करे,
(ख) विक्रय के पूरा होने के समय और स्थान पर विक्रेता या तन्निदिष्ट व्यक्ति को क्रय-धन का संदाय या निविदा करे परन्तु जहां कि सम्पत्ति विल्लंगमों से मुक्त बेची जाती है, वहां विक्रय की तारीख पर सम्पत्ति पर वर्तमान किन्हीं विल्लंगमों की रकम क्रेता क्रय-धन में से प्रतिधारित कर सकेगा, और इस प्रकार प्रतिधारित रकम का संदाय उन व्यक्तियों को करेगा जो उसके लिए हकदार हैं,
(ग) जहां कि सम्पत्ति का स्वामित्व क्रेता को संक्रान्त हो गया है, वहां सम्पत्ति के ऐसे नाश, ऐसी क्षति या मूल्य में ऐसी गिरावट से, जो विक्रेता द्वारा कारित न हो, उद्भूत किसी हानि को सहे,
(घ) जहां कि सम्पत्ति का स्वामित्व क्रेता को संक्रांत हो गया है वहां, जहां तक कि उसका और विक्रेता के बीच का सम्बन्ध है, वे सब लोक प्रभार और भाटक जो उस सम्पत्ति के बारे में देय हो जाएं, और जिन किन्हीं विल्लंगमों के अध्यधीन सम्पत्ति बेची गई है उन मद्धे शोध्य मूलधन और उन पर तत्पश्चात् प्रोद्भवमान शोध्य ब्याज दे।
(6) क्रेता हकदार है-
(क) जहां कि सम्पत्ति का स्वामित्व उसको संक्रांत हो गया है, वहां सम्पत्ति में किसी अभिवृद्धि का या उस सम्पत्ति के मूल्य में वृद्धि का फायदा उठाने का और उसके भाटकों और लाभों का,
(ख) जब तक कि उसने सम्पत्ति का परिदान प्रतिगृहीत करने से अनुचित रूप से इन्कार न कर दिया हो, विक्रेता और उससे व्युत्पन्न अधिकाराधीन दावा करने वाले सब व्यक्तियों के विरुद्ध सम्पत्ति में विक्रेता के हित के विस्तार तक किसी क्रय-धन की उस रकम का, जो क्रेता ने परिदान की पूर्वाशा में उपयुक्त रूप से दे दी हो और ऐसी रकम पर ब्याज का भार उस सम्पत्ति पर डालने का तथा जबकि उसने परिदान प्रतिगृहीत करने के लिए उपयुक्त रूप से इन्कार कर दिया हो तब अग्रिम धन का भी, यदि कोई हो, भार और संविदा का विनिर्दिष्ट पालन कराने के या उसके विखंडनार्थ डिक्री अभिप्राप्त करने के वाद के उसके पक्ष में अधिनिर्णीत खर्चे का भी, यदि कोई हो, भार उस सम्पत्ति पर डालने का।
जिन बातों के प्रकट करने का इस धारा के पैरा (1) खंड (क) और पैरा (5) खंड (क) में वर्णन है, उनके प्रकट करने का लोप करना कपटपूर्ण है
Section 55 TPA – Rights and liabilities of buyer and seller –
In the absence of a contract to the contrary, the buyer and the seller of immoveable property respectively are subject to the liabilities, and have the rights, mentioned in the rules next following, or such of them as are applicable to the property sold:
(1) The seller is bound–
(a) to disclose to the buyer any material defect in the property 1[or in the seller’s title title thereto] of which the seller is, and the buyer is not, aware, and which the buyer could not with ordinary care discover;
(b) to produce to the buyer on his request for examination all documents of title relating to the property which are in the seller’s possession or power;
(c) to answer to the best of his information all relevant questions put to him by the buyer in respect to the property or the title thereto;
(d) on payment or tender of the amount due in respect of the price, to execute a proper conveyance of the property when the buyer tenders it to him for execution at a proper time and place;
(e) between the date of the contract of sale and the delivery of the property, to take as much care of the property and all documents of title relating thereto which are in his possession, as an owner of ordinary prudence would take of such property and documents;
(f) to give, on being so required, the buyer, or such person as he directs, such possession of the property as its nature admits;
(g) to pay all public charges and rent accrued due in respect of the property up to the date of the sale, the interest on all incumbrances on such property due on such date, and, except where the property is sold subject to incumbrances, to discharge all incumbrances on the property then existing.
(2) The seller shall be deemed to contract with the buyer that the interest which the seller professes to transfer to the buyer subsists and that he has power to transfer the same .
Provided that, where the sale is made by a person in a fiduciary character, he shall be deemed to contract with the buyer that the seller has done no act whereby the property is incumbered or whereby he is hindered from transferring it.
The benefit of the contract mentioned in this rule shall be annexed to, and shall go with, the interest of the transferee as such, and may be enforced by every person in whom that interest is for the whole or any part thereof from time to time vested.
(3) Where the whole of the purchase-money has been paid to the seller, he is also bound to deliver to the buyer all documents of title relating to the property which are in the seller’s possession or power:
Provided that, (a) where the seller retains any part of the property comprised in such documents, he is entitled to retain them all, and, (b) where the whole of such property is sold to different buyers the buyers, of the lot of greatest value is entitled to such documents. But in case (a) the seller, and in case (b) the buyer of the lot of greatest value, is bound, upon every reasonable request by the buyer, or by any of the other buyers, as the case may be, and at the cost of the person making the request, to produce the said documents and furnish such true copies thereof or extracts therefrom as he may require; and in the meantime, the seller, or the buyer, of the lot of greatest value, as the case may be, shall keep the said documents safe, uncancelled and undefaced, unless prevented from so doing by fire or other inevitable accident.
(4) The seller is entitled–
(a) to the rents and profits of the property till the ownership thereof passes to the buyer;
(b) where the ownership of the property has passed to the buyer before payment of the whole of the purchase-money, to a charge upon the property in the hands of the buyer, 2[any transferee without consideration or any transferee, with notice of the non-payment], for the amount of the purchase-money, or any part thereof remaining unpaid, and for interest on such amount or part 2[from the date on which possession has been delivered].
(5) The buyer is bound–
(a) to disclose to the seller any fact as to the nature or extent of the seller’s interest in the property of which the buyer is aware, but of which he has reason to believe that the seller is not aware, and which materially increases the value of such interest;
(b) to pay or tender, at the time and place of completing the sale, the purchase -money to the seller or such person, as he directs: provided that, where the property is sold free from incumbrances, the buyer may retain out of the purchase-money the amount of any incumbrances on the property existing at the date of the sale, and shall pay the amount so retained to the persons entitled thereto; संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 55
(c) where the ownership of the property has passed to the buyer, to bear any loss arising from the destruction, injury or decrease in value of the property not caused by the seller; संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 55
(d) where the ownership of the property has passed to the buyer, as between himself and the seller, to pay all public charges and rent which may become payable in respect of the property, the principal moneys due on any incumbrances subject to which the property is sold, and the interest thereon afterwards accruing due.
(6) The buyer is entitled–
(a) where the ownership of the property has passed to him, to the benefit of any improvement in, or increase in value of, the property, and to the rents and profits thereof;
(b) unless he has improperly declined to accept delivery of the property, to a charge on the property, as against the seller and all persons claiming under him 3*** to the extent of the seller’s interest in the property, for the amount of any purchase-money properly paid by the buyer in anticipation of the delivery and for interest on such amount; and, when he properly declines to accept the delivery, also for the earnest (if any) and for the costs (if any) awarded to him of a suit to compel specific performance of the contract or to obtain a decree for its rescission. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 55
An omission to make such disclosures as are mentioned in this section, paragraph (1), clause (a), and paragraph (5), clause (a), is fraudulent.
1. Ins. by Act 20 of 1929, s. 17.
2. Ins. by Act 20 of 1929, s. 17.
3. The words “with notice of the payment” omitted by Act 20 of 1929, s. 17.