संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 68 – बंधक धन के लिए बाद लाने का अधिकार-
(1) बन्धक धन के लिए वाद लाने का अधिकार बन्धकदार को निम्नलिखित दशाओं में ही है, अन्य दशाओं में नहीं, अर्थात् :
(क) जहां कि बन्धककर्ता बन्धक धन के प्रतिसंदाय के लिए अपने आपको आबद्ध करता है,
(ख) जहां कि बन्धककर्ता या बन्धकदार के सदोष कार्य या व्यतिक्रम से भिन्न किसी हेतुक से बन्धक-सम्पत्ति पूर्णतः या भागतः नष्ट हो जाती है या प्रतिभूति धारा 66 के अर्थ के अन्दर अपर्याप्त हो जाती है और बन्धकदार ने बन्धककर्ता को इतनी अतिरिक्त प्रतिभूति देने के लिए, जितनी से कुल प्रतिभूति पर्याप्त हो जाए, युक्तियुक्त अवसर दिया है, और बन्धककर्ता ऐसा करने में असफल रहा है,
(ग) जहां कि बन्धकदार अपनी पूर्ण प्रतिभूति से या उसके किसी भाग से बन्धककर्ता के सदोष कार्य या व्यतिक्रम के द्वारा या परिणामस्वरूप वंचित कर दिया गया है,
(घ) जहां कि बन्धकदार बन्धक-सम्पत्ति पर कब्जे का हकदार है, वहां यदि बन्धककर्ता उसे उसका परिदान करने में अथवा बन्धककर्ता या बन्धककर्ता के हक से वरिष्ठ हक के अधीन दावा करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किए गए विघ्न के बिना उस पर कब्जा सुनिश्चित कराने में असफल रहता है:
परन्तु खण्ड (क) में निर्देशित दशा में, बन्धककर्ता का या उसके विधिक प्रतिनिधि का कोई अन्तरिती इस दायित्व के अधीन न होगा कि बन्धक धन के लिए उस पर वाद चलाया जाए।
(2) जहां कि वाद उपधारा (1) के खंड (क) या खंड (ख) के अधीन लाया जाता है, वहां यदि बन्धकदार अपनी प्रतिभूति का परित्याग नहीं कर देता और यदि आवश्यकता हो तो बन्धक-सम्पत्ति का प्रति-अन्तरण नहीं कर देता वाद और उसमें की सब कार्यवाहियों को, किसी तत्प्रतिकूल संविदा के होते हुए भी, न्यायालय स्वविवेक में तब तक के लिए रोक सकेगा जब तक बन्धकदार बन्धक-सम्पत्ति, या उसमें से शेष जो बची हो उसके विरुद्ध अपने सब उपलभ्य उपचारों को निःशेष नहीं कर देता है।
Section 68 TPA – Right to sue for mortgage-money.—
(1) The mortgagee has a right to sue for the mortgage-money in the following cases and no others, namely:–
(a) where the mortgagor binds himself to repay the same;
(b) where, by any cause other than the wrongful act or default of the mortgagor or mortgagee, the mortgaged property is wholly or partially destroyed or the security is rendered insufficient within the meaning of section 66, and the mortgagee has given the mortgagor a reasonable opportunity of providing further security enough to render the whole security sufficient, and the mortgagor has failed to do so;
(c) where the mortgagee is deprived of the whole or part of his security by or in consequence of the wrongful act or default of the mortgagor; संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 68
(d) where, the mortgagee being entitled to possession of the mortgaged property, the mortgagor fails to deliver the same to him, or to secure the possession thereof to him without disturbance by the mortgagor or any person claiming under a title superior to that of the mortgagor: संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 68
- Provided that, in the case referred to in clause (a), a transferee from the mortgagor or from his legal representative shall not be liable to be sued for, the mortgage-money. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 68
(2) Where a suit is brought under clause (a) or clause (b) of sub-section (1), the Court may, at its discretion, stay the suit and all proceedings therein, notwithstanding any contract to the contrary, until the mortgagee has exhausted all his available remedies against the mortgaged property or what remains of it, unless the mortgagee abandons his security and, if necessary, re-transfers the mortgaged property.