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संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69A | Section 69A TPA in hindi

संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69A – रिसीवर की नियुक्ति–

(1) धारा 69 के अधीन विक्रय की शक्ति के प्रयोग का अधिकार रखने वाले बन्धकदार को. उपधारा (2) के उपबन्धों के अध्यधीन यह हक होगा कि वह बन्धक-सम्पत्ति या उसके किसी भाग की आय का रिसीवर अपने द्वारा या अपनी ओर से हस्ताक्षरित लेख द्वारा नियुक्त करे।

(2) जो व्यक्ति रिसीवर के रूप में कार्य करने के लिए बन्धक बिलेख में नामित है और उस रूप में कार्य करने के लिए रजामन्द और योग्य है, वह बन्धकदार द्वारा नियुक्त किया जा सकेगा।

यदि कोई भी व्यक्ति ऐसे नामित न किया गया हो या यदि वह नामित व्यक्ति कार्य करने के लिए अयोग्य हो या रजामन्द न हो या मर चुके हो, तो बन्धकदार ऐसे किसी व्यक्ति को नियुक्त कर सकेगा जिसकी नियुक्ति के लिए बन्धककर्ता भी सहमत हो, ऐसी सहमति न होने पर बन्धकदार न्यायालय से रिसीवर की नियुक्ति करने के लिए आवेदन करने का हकदार होगा और न्यायालय द्वारा नियुक्त कोई भी व्यक्ति बन्धकदार द्वारा सम्यक् रूप से नियुक्त किया गया समझा जाएगा।

रिसीवर किसी समय भी ऐसे लेख द्वारा, जो बन्धककर्ता और बन्धकदार द्वारा या उनकी ओर से हस्ताक्षरित हो, अथवा दोनों में से किसी पक्षकार द्वारा आवेदन पर और सम्यक् हेतुक दर्शित किए जाने पर न्यायालय द्वारा हटाया जा सकेगा।

रिसीवर का पद खाली होने पर उसकी पूर्ति इस उपधारा के उपबंधों के अनुक़ूल की जा सकेगी।

(3) इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अधीन नियुक्त रिसीवर बन्धककर्ता का अभिकर्ता समझा जाएगा तथा रिसीवर के कार्यों या व्यतिक्रमों के लिए बन्धककर्ता अकेले ही उत्तरदायी होगा जब तक कि बन्धक विलेख में अन्यथा उपबन्धित न हो या जब तक कि ऐसे कार्य या व्यतिक्रम बन्धकदार के अनुचित मध्यपेक्ष के कारण न हुए हाँ।

(4) रिसीवर को यह शक्ति होगी कि वह उस समस्त आय की, जिनके लिए वह रिसीवर नियुक्त किया गया है, उस हित के, जिसका व्ययन बन्धककर्ता कर सकता था, पूरे विस्तार तक, मांग और वसूली या तो बन्धककर्ता के या बन्धकदार के नाम में वाद लाकर या निष्पादन करा के या अन्यथा करे और उसके लिए तद्नुकूल विधिमान्य रसीदें दे और ऐसी किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करे जो उसमें बन्धकदार द्वारा इस धारा के उपबन्धों के अनुकूल प्रत्यायोजित हों।

(5) रिसीवर को धन देने वाले व्यक्ति को यह जांच करने की आवश्यकता नहीं है कि रिसीवर की नियुक्ति विधिमान्य थी या नहीं।

(6) रिसीवर का यह हक होगा कि वह उसे प्राप्त समस्त धन की रकम पर कमीशन पांच प्रतिशत से अनधिक ऐसी दर से, जैसी उसके नियुक्ति-पत्र में विनिर्दिष्ट है, और यदि कोई दर ऐसे विनिर्दिष्ट न हो तो उस कुल रकम पर पांच प्रतिशत की दर से या ऐसी दर से, जैसे न्यायालय रिसीवर द्वारा उस प्रयोजन के लिए किए गए आवेदन पर अनुज्ञात करना ठीक समझे उस किसी रकम में से, जो उसे प्राप्त हुई है, अपने पारिश्रमिक के लिए और रिसीवर के तौर पर स्वयं द्वारा उपगत सब खर्चों, प्रभारों और व्ययों की तुष्टि के लिए रख ले।

(7) यदि रिसीवर को बन्धकदार द्वारा ऐसा करने के लिए लिखित निदेश दिया जाए, तो रिसीवर बन्धक सम्पत्ति या उसके किसी भाग का, जो प्रकृत्या बीमा कराने योग्य है, हानि या नुकसान के लिए, जो अग्नि से हो, उस मात्रा तक, यदि कोई हो, जिस तक बन्धकदार ने उसका बीमा कराया होता, उस धन में से, जो उसे प्राप्त हुआ है, बीमा कराएगा और उसे बीमाकृत रखेगा।

(8) बीमाधन के उपयोजन के बारे में इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रिसीवर अपने द्वारा प्राप्त सब धन को निम्न प्रकार से उपयोजित करेगा, अर्थात्

(i) बन्धक-सम्पत्ति पर पड़ने वाले सब भाटकों, करों, भू-राजस्व, रेटों और निर्गमों के, चाहे वे कैसे ही क्यों न हों, भुगतान में;

(ii) जिस बन्धक के अधिकार के बारे में वह रिसीवर है उस बन्धक से पूर्विकता रखने वाली सब वार्षिक राशियों या अन्य संदायों को और सब मूल राशियों पर ब्याज को नीचा रखने में;

(iii) अपने कमीशन के और अग्नि, जीवन या अन्य प्रकार के बीमाओं के यदि कोई हों, प्रीमियमों के, जो बन्धक विलेख के अधीन या इस अधिनियम के अधीन उचित तौर पर देय है, और बन्धकदार द्वारा लिखित रूप में निर्दिष्ट आवश्यक या उचित मरम्मत में हुए खर्चे के संदाय में;

(iv) बन्धक के अधीन शोध्य होने वाले ब्याज के संदाय में;

(v) मूलधन के भुगतान में या उस मद्धे यदि बन्धकदार द्वारा वह ऐसा करने के लिए लिखित रूप में निर्दिष्ट हो, और जो धन उसे प्राप्त हुआ है, उसकी अवशिष्टि, यदि कोई हो, उस व्यक्ति को देगा, जो यदि रिसीवर का कब्जा न होता, तो उस आय को प्राप्त करने का हकदार होता जिसका वह रिसीवर नियुक्त किया गया है, या जो बन्धक-सम्पत्ति का अन्यथा हकदार है।

(9) उपधारा (1) के उपबन्ध केवल तब और वहीं तक लागू होते हैं, जब और जहां तक कि बन्धक बिलेख में कोई तत्प्रतिकूल आशय अभिव्यक्त नहीं किया गया है, और उपधारा (3) से (8) तक के, जिनके अन्तर्गत दोनों उपधाराएं हैं, उपबन्धों में फेरफार या विस्तारण, बन्धक विलेख द्वारा किए जा सकेंगे और वे उपबंध इस प्रकार फेरफार या विस्तार किए गए रूप में यावत्शक्य उसी प्रकार से और वैसी ही सब प्रसंगतियों, प्रभावों और परिणामों के सहित प्रवर्तित होंगे मानो ऐसे फेरफार या विस्तारण उक्त उपधाराओं में अन्तर्विष्ट थे।

(10) बन्धक-सम्पत्ति के प्रबन्ध या प्रशासन विषयक किसी वर्तमान प्रश्न पर, जो ऐसे कठिनाईपूर्ण या महत्वपूर्ण प्रश्नों से भिन्न हो, जिनके बारे में न्यायालय की राय हो कि वे संक्षिप्त निपटारे के लिए उचित नहीं हैं, न्यायालय की राय, सलाह या निदेश के लिए न्यायालय से आवेदन वाद संस्थित किए बिना किया जा सकेगा। आवेदन में हितबद्ध व्यक्तियों में से उन पर, जिन्हें न्यायालय इस संबंध में ठीक समझे, आवेदन की प्रति की तामील कराई जाएगी और वे उसकी सुनवाई में हाजिर हो सकेगा।

इस उपधारा के अधीन किए गए हर एक आवेदन के खर्चों का अधिनिर्णयन न्यायालय के विवेकाधीन होगा।

(11) इस धारा में न्यायालय से वह न्यायालय अभिप्रेत है जिसे उस बन्धक को प्रवर्तित कराने के वाद में अधिकारिता हो।


Section 69A TPA –“Appointment of receiver”–

(1) A mortgagee having the right to exercise a power of sale under section 69 shall, subject to the provisions of sub-section (2),be entitled to appoint, by writing signed by him or on his behalf, a receiver of the income of the mortgaged property or any part thereof. 

(2) Any person who has been named in the mortgage-deed and is willing and able to act as receiver may be appointed by the mortgagee. 

If no person has been so named, or if all persons named are unable or unwilling to act, or are dead, the mortgagee may appoint any person to whose appointment the mortgagor agrees; failing such agreement, the mortgagee shall be entitled to apply to the Court for the appointment of a receiver, and any person appointed by the Court shall be deemed to have been duly appointed by the mortgagee. 

A receiver may at any time be removed by writing signed by or on behalf of the mortgagee and the mortgagor, or by the Court on application made by either party and on due cause shown. 

A vacancy in the office of receiver may be filled in accordance with the provisions of this sub-section. 

(3) A receiver appointed under the powers conferred by this section shall be deemed to be the agent of the mortgagor; and the mortgagor shall be solely responsible for the receiver’s acts or defaults, unless the mortgage-deed otherwise provides or unless such acts or defaults arc due to the improper intervention of the mortgagee. 

(4) The receiver shall have power to demand and recover all the income of which he is appointed receiver, by suit, execution or otherwise, in the name either of the mortgagor or of the mortgagee to the full extent of the interest which the mortgagor could dispose of, and to give valid receipts accordingly for the same, and to exercise any powers which may have been delegated to him by the mortgagee in accordance with the provisions of this section. 

(5) A person paying money to the receiver shall not be concerned to inquire if the appointment of the receiver was valid or not. 

(6) The receiver shall be entitled to retain out of any money received by him, for his remuneration, and in satisfaction of all costs, charges and expenses incurred by him as receiver, a commission at such rate not exceeding five per cent. on the gross amount of all money received as is specified in his appointment, and, if no rate is so specified, then at the rate of five per cent. on that gross amount, or at such other rate as the Court thinks fit to allow, on application made by him for that purpose. 

(7) The receiver shall, if so directed in writing by the mortgagee, insure to the extent, if any, to which the mortgagee might have insured, and keep insured against loss or damage by fire, out of the money received by him, the mortgaged property or any part thereof being of an insurable nature. 

(8) Subject to the provisions of this act as to the application of insurance money, the receiver shall apply all money received by him as follows, namely:— 

(i) in discharge of all rents, taxes, land revenue, rates and outgoings whatever affecting the mortgaged property; 

(ii) in keeping down all annual sums or other payments, and the interest on all principal sums, having priority to the mortgage in right whereof he is receiver; 

(iii) in payment of his commission, and of the premiums on fire, life or other insurances, if any, properly payable under the mortgage-deed or under this Act, and the cost of executing necessary or proper repairs directed in writing by the mortgagee; संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69A

(iv) in payment of the interest falling due under the mortgage; 

(v) in or towards discharge of the principal money, if so directed in writing by the mortgagee; 

and shall pay the residue, if any, of the money received by him to the person who, but for the possession of the receiver, would have been entitled to receive the income of which he is appointed receiver, or who is otherwise entitled to the mortgaged property. संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69A

(9) The provisions of sub-section (1) apply only if and as far as a contrary intention is not expressed in the mortgage-deed; and the provisions of sub-sections (3) to (8) inclusive may be varied or extended by the mortgage-deed, and, as so varied or extended, shall, as far as may be, operate in like manner and with all the like incidents, effects and consequences, as if such variations or extensions were contained in the said sub-sections.  संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 69A

(10) Application may be made, without the institution of a suit, to the Court for its opinion, advice or direction on any present question respecting the management or administration of the mortgaged property, other than questions of difficulty or importance not proper in the opinion of the Court for summary disposal. A copy of such application shall be served upon, and the hearing thereof may be attended by, such of the persons interested in the application as the Court may think fit. 

The costs of every application under this sub-section shall be in the discretion of the Court. 

(11)In this section, “the Court” means the Court which would have jurisdiction in a suit to enforce the mortgage.

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