सीआरपीसी की धारा 308 — क्षमा की शर्तों का पालन न करने वाले व्यक्ति का विचारण —
(1) जहाँ ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसने धारा 306 या धारा 307 के अधीन क्षमा-दान स्वीकार कर लिया है, लोक अभियोजक प्रमाणित करता है कि उसकी राय में ऐसे व्यक्ति ने या तो किसी अत्यावश्यक बात को जानबूझकर छिपाकर या मिथ्या साक्ष्य देकर उस शर्त का पालन नहीं किया है जिस पर क्षमा दान किया गया था, वहाँ ऐसे व्यक्ति का विचारण उस अपराध के लिए, जिसके बारे में ऐसे क्षमा-दान किया गया था या किसी अन्य अपराध के लिए, जिसका वह उस विषय के संबंध में दोषी प्रतीत होता है और मिथ्या साक्ष्य देने के अपराध के लिए भी विचारण किया जा सकता है :
परन्तु ऐसे व्यक्ति का विचारण अन्य अभियुक्तों में से किसी के साथ संयुक्ततः नहीं किया जाएगा :
परन्तु यह और कि मिथ्या साक्ष्य देने के अपराध के लिए ऐसे व्यक्ति का विचारण उच्च न्यायालय की मंजूरी के बिना नहीं किया जाएगा और धारा 195 या धारा 340 की कोई बात उस अपराध को लागू न होगी ।
(2) क्षमा-दान स्वीकार करने वाले ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया और धारा 164 के अधीन किसी मजिस्ट्रेट द्वारा या धारा 306 की उपधारा (4) के अधीन किसी न्यायालय द्वारा अभिलिखित कोई कथन ऐसे विचारण में उसके विरुद्ध साक्ष्य में दिया जा सकता है।
(3) ऐसे विचारण में अभियुक्त यह अभिवचन करने का हकदार होगा कि उसने उन शर्तों का पालन कर दिया है जिन पर उसे क्षमा दान दिया गया था, और तब यह साबित करना अभियोजन का काम होगा कि ऐसी शर्तों का पालन नहीं किया गया है।
(4) ऐसे विचारण के समय न्यायालय —
(क) यदि वह सेशन न्यायालय है तो आरोप अभियुक्त को पढ़कर सुनाए जाने और समझाए जाने के पूर्व;
(ख) यदि वह मजिस्ट्रेट का न्यायालय है तो अभियोजन के साक्षियों का साक्ष्य लिए जाने के पूर्व, अभियुक्त से पूछेगा कि क्या वह यह अभिवचन करता है कि उसने उन शर्तों का पालन किया है जिन पर उसे क्षमादान दिया गया था।
(5) यदि अभियुक्त ऐसा अभिवचन करता है तो न्यायालय उस अभिवाक् को अभिलिखित करेगा और विचारण के लिए अग्रसर होगा और वह मामले में निर्णय देने के पूर्व इस विषय में निष्कर्ष निकालेगा कि अभियुक्त ने क्षमा की शर्तों का पालन किया है या नहीं; और यदि यह निष्कर्ष निकलता है कि उसने ऐसा पालन किया है तो वह इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी, दोषमुक्ति का निर्णय देगा।
Section 308 CrPC — Trial of person not complying with conditions of pardon —
(1) Where, in regard to a person who has accepted a tender of pardon made under section 306 or section 307, the Public Prosecutor certifies that in his opinion such person has, either by wilfully concealing anything essential or by giving false evidence, not complied with the condition on which the tender was made, such person may be tried for the offence in respect of which the pardon was so tendered or for any other offence of which he appears to have been guilty in connection with the same matter, and also for the offence of giving false evidence :
Provided that such person shall not be tried jointly with any of the other accused :
Provided further that such person shall not be tried for the offence of giving false evidence except with the sanction of the High Court, and nothing contained in section 195 or section 340 shall apply to that offence.
(2) Any statement made by such person accepting the tender of pardon and recorded by a Magistrate under section 164 or by a Court under sub-section (4) of section 306 may be given in evidence against him at such trial.
(3) At such trial, the accused shall be entitled to plead that he has complied with the condition upon which such tender was made, in which case it shall be for the prosecution to prove that the condition has not been complied with. सीआरपीसी की धारा 308
(4) At such trial, the Court shall
(a) if it is a Court of Session, before the charge is read out and explained to the accused;
(b) if it is the Court of a Magistrate before the evidence of the witnesses for the prosecution is taken, ask the accused whether he pleads that he has complied with the conditions on which the tender of pardon was made. सीआरपीसी की धारा 308
(5) If the accused does so plead, the Court shall record the plea and proceed with the trial and it shall, before passing judgment in the case, find whether or not the accused has complied with the conditions of the pardon, and, if it finds that he has so complied, it shall, notwithstanding anything contained in this Code, pass judgment of acquittal.