सीआरपीसी की धारा 389 — अपील लम्बित रहने तक दण्डादेश का निलम्बन; अपीलार्थी का जमानत पर छोड़ा जाना —
(1) अपील न्यायालय, ऐसे कारणों से, जो उसके द्वारा अभिलिखित किए जाएंगे, आदेश दे सकता है कि उस दण्डादेश या आदेश का निष्पादन, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा की गई अपील के लंबित रहने तक निलंबित किया जाए और यदि वह व्यक्ति परिरोध में है तो यह भी आदेश दे सकता है कि उसे जमानत पर या उसके अपने बंधपत्र पर छोड़ दिया जाए :
परन्तु अपील न्यायालय ऐसे दोषसिद्ध व्यक्ति को जो मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अन्यून अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जमानत पर या उसके अपने बन्धपत्र पर छोड़ने से पूर्व, लोक अभियोजक को ऐसे छोड़ने के विरुद्ध लिखित में कारण दर्शाने का अवसर देगा :
परन्तु यह और कि ऐसे मामलों में जहाँ किसी दोषसिद्ध व्यक्ति को जमानत पर छोड़ा जाता है वहाँ लोक अभियोजक जमानत रद्द किए जाने के लिए आवेदन फाइल कर सकेगा।
(2) अपील न्यायालय को इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग उच्च न्यायालय भी किसी ऐसी अपील के मामले में कर सकता है जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति द्वारा उसके अधीनस्थ न्यायालय में की गई है।
(3) जहाँ दोषसिद्ध व्यक्ति ऐसे न्यायालय का जिसके द्वारा वह दोषसिद्ध किया गया है यह समाधान कर देता है कि वह अपील प्रस्तुत करना चाहता है वहाँ वह न्यायालय:–
(i) उस दशा में जब ऐसा व्यक्ति, जमानत पर होते हुए, तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है, या
(ii) उस दशा में जब वह अपराध, जिसके लिए ऐसा व्यक्ति दोषसिद्ध किया गया है जमानतीय है और वह जमानत पर है,
यह आदेश देगा कि दोषसिद्ध व्यक्ति को इतनी अवधि के लिए जितनी से अपील प्रस्तुत करने और उपधारा (1) के अधीन अपील न्यायालय के आदेश प्राप्त करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा जमानत पर छोड़ दिया जाए जब तक कि जमानत से इंकार करने के विशेष कारण न हों और जब तक वह ऐसे जमानत पर छूटा रहता है तब तक कारावास का दण्डादेश निलम्बित समझा जाएगा।
(4) जब अंततोगत्वा अपीलार्थी को किसी अवधि के कारावास या आजीवन कारावास का दण्डादेश दिया जाता है, तब वह समय, जिसके दौरान वह ऐसे छूटा रहता है, उस अवधि की संगणना करने में, जिसके लिए उसे ऐसा दण्डादेश दिया गया है, हिसाब में नहीं लिया जाएगा।
Section 389 CrPC — Suspension of sentence pending the appeal; release of appellant on bail —
(1) Pending any appeal by a convicted person, the Appellate Court may, for reasons to be recorded by it in writing, order that the execution of the sentence or order appealed against be suspended and, also, if he is in confinement, that he be released on bail, or on his own bond:
1[Provided that the Appellate Court shall, before releasing on bail or on his own bond a convicted person who is convicted of an offence punishable with death or imprisonment for life or imprisonment for a term of not less than ten years, shall give opportunity to the Public Prosecutor for showing cause in writing against such release:
Provided further that in cases where a convicted person is released on bail it shall be open to the Public Prosecutor to file an application for the cancellation of the bail.] सीआरपीसी की धारा 389
(2) The power conferred by this section on a Appellate Court may be exercised also by the High Court in the case of an appeal by a convicted person to a Court subordinate thereto.
(3) Where the convicted person satisfies the Court by which he is convicted that he intends to present an appeal, the Court shall, सीआरपीसी की धारा 389
(i) where such person, being on bail, is sentenced to imprisonment for a term not exceeding three years, or
(ii) where the offence of which such person has been convicted is a bailable one, and he is on bail, सीआरपीसी की धारा 389
order that the convicted person be released on bail, unless there are special reasons for refusing bail, for such period as will afford sufficient time to present the appeal and obtain the orders of the Appellate Court under sub-section (1); and the sentence of imprisonment shall, so long as he is so released on bail, be deemed to be suspended.
(4) When the appellant is ultimately sentenced to imprisonment for a term or to imprisonment for life, the time during which he is so released shall be excluded in computing the term for which he is so sentenced.