सीआरपीसी की धारा 406 — मामलों और अपीलों को अंतरित करने की उच्चतम न्यायालय की शक्ति —
(1) जब कभी उच्चतम न्यायालय को यह प्रतीत कराया जाता है कि न्याय के उद्देश्यों के लिए यह समीचीन है कि इस धारा के अधीन आदेश किया जाए, तब वह निदेश दे सकता है कि कोई विशिष्ट मामला या अपील एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय के अधीनस्थ दण्ड न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय के अधीनस्थ समान या वरिष्ठ अधिकारिता वाले दूसरे दण्ड न्यायालय को अंतरित कर दी जाए।
(2) उच्चतम न्यायालय भारत के महान्यायवादी या हितबद्ध पक्षकार के आवेदन पर ही इस धारा के अधीन कार्य कर सकता है और ऐसा प्रत्येक आवेदन समावेदन द्वारा किया जाएगा जो उस दशा में सिवाय, जबकि आवेदक भारत का महान्यायवादी या राज्य का महाधिवक्ता है, शपथपत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा।
(3) जहाँ इस धारा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिए कोई आवेदन खारिज कर दिया जाता है वहाँ, यदि उच्चतम न्यायालय की यह राय है कि आवेदन तुच्छ या तंग करने वाला था तो वह आवेदक को आदेश दे सकता है कि वह एक हजार रुपए से अनधिक इतनी राशि, जितनी वह न्यायालय उस मामले की परिस्थितियों में समुचित समझे, प्रतिकर के तौर पर उस व्यक्ति को दे जिसने आवेदन का विरोध किया था।
Section 406 CrPC — Power of Supreme Court to transfer cases and appeals —
(1) Whenever it is made to appear to the Supreme Court that an order under this section is expedient for the ends of justice, it may direct that any particular case or appeal be transferred from one High Court to another High Court or from a Criminal Court subordinate to one High Court to another Criminal Court of equal or superior jurisdiction subordinate to another High Court.
(2) The Supreme Court may act under this section only on the application of the Attorney-General of India or of a party interested, and every such application shall be made by motion, which shall, except when the applicant is the Attorney-General of India or the Advocate-General of the State, be supported by affidavit or affirmation. सीआरपीसी की धारा 406
(3) Where any application for the exercise of the powers conferred by this section is dismissed, the Supreme Court may, if it is of opinion that the application was frivolous or vexatious, order the applicant to pay by way of compensation to any person who has opposed the application such sum not exceeding one thousand rupees as it may consider appropriate in the circumstances of the case.