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IPC की धारा 28 | धारा 28 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 28 In Hindi

IPC की धारा 28 — “कूटकरण” –

जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रवंचना करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह ‘कूटकरण’ करता है, यह कहा जाता है।

स्पष्टीकरण 1 - कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो।
स्पष्टीकरण 2 - जबकि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सदृश ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सदृश द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह संभाव्य जानता था कि एतद्वारा प्रवंचना की जाएगी।

कूटकरण’ (IPC की धारा 28) के आवश्यक तत्व क्या है ?
(1) एक वस्तु को दूसरे के सदृश बनाना जिससे धोखा हो सके,
(2) ऐसे सादृश्य से धोखा करने का आशय हो,
(3) इस बात की जानकारी हो कि इस कार्य से धोखा दिये जाने की संभावना है।

IPC की धारा 28 से संबंधित महत्वपूर्ण केस

लाल चन्द्र बनाम सम्राट, 13 क्रि० लॉ ज0 252
यदि नकली सिक्के इस आशय से निर्मित किए गए हों कि उन्हें पड़ोसी दुश्मन के घर में डालकर उसे अनायासिक अपराध में फंसाया जाए, तो उस स्थिति में नकली सिक्कों के निर्माण को छल करने की क्रिया को मान्य नहीं किया जाता है, और न ही सिक्कों को कूटकृत सिक्का माना जाता है।
रामराव बनाम झारखण्ड राज्य, 2004 क्रि० लॉ ज0 1738
शब्द "कूटकरण" की परिभाषा यह दर्शाती है कि कूटकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक वस्तु को ऐसे बनाया जाता है जो दूसरी वस्तु के सदृश्य को प्रतिष्ठापित करती है। इस प्रक्रिया का मूल उद्देश्य होता है कि वह मूल वस्तु के समान लगे और इसके द्वारा धोखा दिया जा सके, और इस प्रकार की जानकारी देती है कि धोखा देने का कार्य किया जाएगा। इस तरह के मामले में आवश्यक नहीं होता कि वास्तविकता में धोखा दिया जाए, बल्कि एक वस्तु को दूसरी वस्तु के सदृश्य में बदलकर धोखा देने का उद्देश्य प्राप्त हो, जिसके लिए धारा 489-क द्वारा अपराध का गठन करना पर्याप्त होता है।
नारायण मारुती वागमोड़े बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र, 2011 क्रि० लॉ ज0 3318 ( बम्बई )
जहाँ यह आवश्यक नहीं है कि इसको असली रूप में इसके देखे जाने के, प्राथमिक आशय के साथ निर्मित किया जाना चाहिए वहाँ मात्र यह पर्याप्त होता है कि इसको वास्तविक करेंसी नोट के सदस्य इस प्रकार कारित किया जाता है कि इसको ऐसे रूप में चलाया जा सके और ऐसे मामले में विशेषज्ञ के साक्ष्य पर विचार किया जा सकता है।
शहीद सुल्तानखान बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र, 2007 क्रि० लॉ ज0 568 (बम्बई)
उपकरण का कब्जा पर्याप्त नहीं होता अगर अभियोजन इस साबित करने में असमर्थ हो जाता है कि उपकरण का प्रयोग कूटकृत सिक्के का निर्माण करने के लिए किया गया था।

IPC की धारा 28 FAQ

  1. “कूटकरण” को भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की किस धारा में परिभाषित किया गया है?

    IPC की धारा 28

  2. आईपीसी (IPC) की धारा 28 में किसकी परिभाषा दी गयी हैं?

    “कूटकरण”

  3. कूटकरण क्या है?

    आईपीसी की धारा 28 के अनुसार,जो व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश इस आशय से करता है कि वह उस सदृश से प्रवंचना करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी, वह ‘कूटकरण’ करता है, यह कहा जाता है।

  4. कूटकरण के लिए क्या आवश्यक नहीं है ?

    कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो।

IPC Section 28 — “Counterfeit” –

A person is said to “counterfeit” who causes one thing to resemble another thing, intending by means of that resemblance to practise deception, or knowing it to be likely that deception will thereby be practised.

Explanation 1 – It is not essential to counterfeiting that the imitation should be exact.

Explanation 2 – When a person causes one thing to resemble another thing, and the resemblance is such that a person might be deceived thereby, it shall be presumed, until the contrary is proved, that the person so causing the one thing to resemble the other thing intended by means of that resemblance to practise deception or knew it to be likely that deception would thereby be practised

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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