IPC की धारा 37 — किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक को करके सहयोग करना –
जब कि कोई अपराध कई कार्यों द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है।
दृष्टांत –
(क) क और ख पृथक्-पृथकू रूप से और विभिन्न समयों पर य को विष की छोटी-छोटी मात्राएं देकर उसकी हत्या करने को सहमत होते हैं। क और ख, य की हत्या करने के आशय से सहमति के अनुसार य को विष देते हैं। य इस प्रकार दी गई विष की कई मात्राओं के प्रभाव से मर जाता है। यहां क और ख हत्या करने में साशय सहयोग करते हैं और क्योंकि उनमें से हर एक ऐसे कार्य करता है, जिससे मृत्यु कारित होती है, वे दोनों इस अपराध के दोषी हैं, यद्यपि उनके कार्य पृथक हैं।
(ख) क और ख संयुक्त जेलर हैं, और अपनी उस हैसियत में वे एक कैदी य का बारी-बारी से एक समय में छ: घण्टे के लिए संरक्षण-भार रखते हैं। य को दिए जाने के प्रयोजन से जो भोजन क और ख को दिया जाता है, वह भोजन इस साशय से कि य की मृत्युकारित कर दी जाए, हर एक अपनी हाजिरी के काल में य को देने का लोप करके वह परिणाम अवैध रूप से कारित करने में जानते हुए सहयोग करते हैं। य भूख से मर जाता है। क और ख दोनों य की हत्या के दोषी हैं।
(ग) एक जेलर क, एक कैदी य का संरक्षण भार रखता है। क, य की मृत्यु कारित करने के आशय से, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है, जिसके परिणामस्वरूप य की शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है, किन्तु यह क्षुधापीड़न उसकी मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। क अपने पद से च्युत कर दिया जाता है और ख उसका उत्तरवर्ती होता है। क से दुस्संधि या सहयोग किए बिना ख यह जानते हुए कि ऐसा करने से संभाव्य है कि वह य की मृत्युकारित कर दे, य को भोजन देने का अवैध रूप से लोप करता है। य भूख से मर जाता है। ख हत्या का दोषी है, किन्तु क ने ख से सहयोग नहीं किया, इसलिए क हत्या करने के प्रयत्न का ही दोषी है।
आईपीसी की धारा 37 के प्रमुख अवयव क्या हैं? |
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जब कि कोई अपराध- 1. कई कार्यों द्वारा किया जाता है, 2. तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर , 3. उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके , 4. अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है। |
आईपीसी की धारा 37 तथा 34 के बीच अन्तर – धारा 34 तब तक लागू होती है जब आपराधिक कृत्य कई – व्यक्तियों के सामान्य आशय को अग्रसर करने हेतु कारित किया जाता है। आईपीसी की धारा 37 साशय सहयोग से सम्बन्धित है जिसमें अपराध कई कार्यों के परिणामस्वरूप होता है तथा उनमें से प्रत्येक अपने आप में अपराध नहीं होता जिसका आरोप अभियुक्त पर लगाया जाता है।
IPC की धारा 37 से संबंधित महत्वपूर्ण केस
विंगले (1821) रस एण्ड आर० वाई० 446.
कई व्यक्तियों ने संयुक्त होकर एक दस्तावेज को कूटकृत करने की योजना बनायी। प्रत्येक ने कूटकरण के एक भाग को स्वयं निष्पादित किया तथा उनमें से सभी उस समय उपस्थित नहीं थे जबकि दस्तावेज पूरा हुआ। यह निर्णीत हुआ कि सभी कूटकरण के लिये प्रमुख (Principal) की तरह दोषी हैं।
वीरेन्द्र कुमार घोष बनाम सम्राट, ए0 आई0 आर0 1925 कल0 56
आईपीसी की धारा 37 के प्रयोजनार्थ सहयोग या सहायता हेतु कोई सक्रिय भागीदारी आवश्यक नहीं मानी जायेगी यह निष्क्रिय रूप में भी हो सकता है।
सैखान, ए0 आई0 आर0 1951 इला0 21
जहाँ पर दो व्यक्ति संयुक्त रूप से एक अन्य व्यक्ति पर आक्रमण करते हैं, जिसमें से एक व्यक्ति सम्बन्धित व्यक्ति पर भारी छड़ी से तथा दूसरा व्यक्ति पत्थर से प्रहार करता है तथा दोनों के प्रहार के परिणामस्वरूप उसकी खोपड़ी की नसों से फटाव (फ्रैक्चर) हो जाता है, तो मूल अपराध के लिए साशय सहयोग प्रदान करने हेतु दोनों व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदायी माने जायेंगे ।
IPC की धारा 37 FAQ
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IPC की धारा 37 क्या हैं ?
IPC की धारा 37 जब कि कोई अपराध कई कार्यों द्वारा किया जाता है, तब जो कोई या तो अकेले या किसी अन्य व्यक्ति के साथ सम्मिलित होकर उन कार्यों में से कोई एक कार्य करके उस अपराध के किए जाने में साशय सहयोग करता है, वह उस अपराध को करता है।
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किसी अपराध को गठित करने वाले कई कार्यों में से किसी एक को करके सहयोग करना किस धारा से संबंधित हैं ?
IPC की धारा 37 से |
IPC Section 37 — Co-operation by doing one of several acts constituting an offence –
When an offence is committed by means of several acts, whoever intentionally co-operates in the commission of that offence by doing any one of those acts, either singly or jointly with any other person, commits that offence.
Illustrations –
(a) A and B agree to murder Z by severally and at different times giving him small doses of poison. A and B administer the poison according to the agreement with intent to murder Z. Z dies from the effects of the several doses of poison so administered to him. Here A and B intentionally co-operate in the commission of murder and as each of them does an act by which the death is caused, they are both guilty of the offence though their acts are separate. IPC की धारा 37
(b) A and B are joint jailors, and as such have the charge of Z, a prisoner, alternatively for six hours at a time. A and B, intending to cause Z’s death, knowingly co-operate in causing that effect by illegally omitting, each during the time of his attendance, to furnish Z with food supplied to them for that purpose, 2 dies of hunger. Both A and B are guilty of the murder of Z. IPC की धारा 37
(c) A, a jailor, has the charge of Z, a prisoner. A, intending to cause Z’s death, illegally omits to supply Z with food; in consequence of which Z is much reduced in strength, but the starvation is not sufficient to cause his death. A is dismissed from his office, and B succeeds him. B, without collusion or cooperation with A, illegally omits to supply Z with food, knowing that he is likely thereby to cause Z’s death. Z dies of hunger. B is guilty of murder, but, as A did not co-operate with B. A is guilty only of an attempt to commit murder. IPC की धारा 37
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]