IPC की धारा 86 — किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है –
उन दशाओं में, जहां कि कोई किया गया कार्य अपराध नहीं होता जब तक कि वह किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से न किया गया हो, कोई व्यक्ति जो वह कार्य मत्तता की हालत में करता है, इस प्रकार बरते जाने के दायित्व के अधीन होगा, मानो उसे वही ज्ञान था जो उसे होता यदि वह मत्तता में न होता जब तक कि वह चीज, जिससे उसे मत्तता हुई थी, उसे उसके ज्ञान के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो।
धारा 86 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं? |
---|
कोई किया गया कार्य अपराध नहीं होगा जब – 1. वह किसी विशिष्ट ज्ञान या आशय से न किया गया हो, 2. कोई व्यक्ति जो वह कार्य मत्तता की हालत में करता है, 3. इस प्रकार बरते जाने के दायित्व के अधीन होगा, मानो उसे वही ज्ञान था जो उसे होता यदि वह मत्तता में न होता, 4. जिससे उसे मत्तता हुई थी, उसे उसके ज्ञान के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध न दी गई हो। |
IPC की धारा 86 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
भगवान तुकाराम डांगे बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र, 2014 (11) ए0 सी0 जे0 358
एक व्यक्ति जो पूर्णतः नशे में होता है, वह अपनी कार्रवाई और कार्यों के परिणामों के बारे में जानकारी रखता है और यह तय नहीं किया जा सकता कि उसका मुख्य उद्देश्य मृत्यु करना था। इसलिए, मद्यपान को किसी दंडित या अपराधिक आरोप के रूप में मानना सही नहीं होगा। यदि अभियुक्त एक आदतवान पीनेवाला नहीं है, तो इसे कम करने वाली परिस्थिति के रूप में देखा जा सकता है, अन्यथा उसे परिस्थिति को बिगाड़ने वाले के रूप में माना जाएगा।
वासुदेव बनाम पैप्सू राज्य 1956
वासुदेव एक अवकाश प्राप्त सेना का जमादार था। लगभग 15 या 16 वर्ष का एक लड़का उसके साथ एक बारात में गया। जब वे खाना खाने गये अपीलकर्ता ने लड़के से कहा कि वह थोड़ा खिसक जाये ताकि वह सुविधाजनक स्थान ग्रहण कर ले। किन्तु लड़का अपने स्थान में खिसका नहीं। इस पर अपीलकर्ता को क्रोध आ गया और उसने अपनी पिस्तौल निकाल कर लड़के के पेट में गोली चला दिया। लड़के की मृत्यु हो गयी। अपीलकर्ता उस समय नशे में था। प्रश्न यह था कि यह मामला संहिता की धारा 302 या 304 के अन्तर्गत आयेगा । उच्चतम न्यायालय ने अभियुक्त को हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए अवधारित किया कि -" जहाँ तक ज्ञान का प्रश्न है उन्मत्त व्यक्ति को उसी ज्ञान से युक्त माना जाये जिससे कि एक सामान्य प्रज्ञा वाला व्यक्ति होता है, किन्तु जहाँ तक आशय का प्रश्न है, इसका निर्धारण मामले की सामान्य परिस्थितियों में मत्तता की मात्रा को उचित स्थान देते हुए किया जाना चाहिए।
दासाकन्धा बनाम स्टेट, 1976 कटक लॉ टा0 499
अभिवचन के आधार सबूत का अधिभार अभियुक्त पर होगा। सामान्य रूप से यह उपधारणा की जाती है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य से उत्पन्न होने वाले परिणामों का पूर्ण आशय रखता है, किन्तु अभियुक्त साक्ष्य को प्रस्तुत करके अपनी मत्तता को साबित करते हुए कि वह नशे के कारण इस सीमा तक धुत था कि अपराध के आशय का गठन नहीं कर सकता था, उपधारणा को खण्डित कर सकता है। (आईपीसी (IPC) की धारा 86)
IPC की धारा 86 FAQ
-
स्वैच्छिक मत्तता सम्बन्धी भारतीय दण्ड संहिता की किस धारा में वर्णित है ?
IPC धारा 86 में।
-
स्वैच्छिक मत्तता से संबंधित इंग्लिश वाद कौन से हैं?
आर. बनाम मीड 1988 एवं ए.जी. फार नार्दन आयरलैंड बनाम गल्लाधर 1963
-
IPC धारा 86 के अंतर्गत यदि एक व्यक्ति स्वेच्छा से मत्त हुआ है तो उसके बारे में क्या प्रकल्पित किया जायेगा ?
यदि एक व्यक्ति स्वेच्छा से मत्त हुआ है तो यह प्रकल्पित किया जायेगा कि उसे वही ज्ञान था जो उसे रहा होता यदि वह मत्त नहीं हुआ होता।
-
ऐच्छिक मत्तता की स्थिति में एक व्यक्ति से किस तरह व्यवहार किया जाता है ?
ऐच्छिक मत्तता की स्थिति में एक व्यक्ति को उस ज्ञान से युक्त माना जाता है जैसे कि एक सामान्य प्रज्ञा वाले या अमत्त व्यक्ति के मामले में किन्तु उसी आशय से नहीं।
-
IPC की धारा 86 किन मामलों में बचाव प्रदान नहीं करती ?
IPC की धारा 86 उन मामलों में कोई बचाव नहीं प्रदान करती, जिसमें अपराध गठित करने के लिए मात्र आवश्यक ज्ञान का अभाव है, यद्यपि कि इसका प्रयोग यह दिखाने के लिए किया जा सकता है, कि यदि किसी आशय की आवश्यकता थी तो वह अनुपस्थित था।
-
IPC की धारा 86 पर भारत का कौन सा प्रमुख प्रकरण है?
वासुदेव बनाम पैप्सू राज्य, 1956
-
वासुदेव नाम पेप्सू राज्य के प्रकरण के आलोक में डॉ. एच. एस. गौड़ ने मत्तता से सम्बंधित क्या निष्कर्ष प्रतिपादित किया?
1. अनैच्छिक मत्तता एक बचाव होगी
2. ऐच्छिक मत्तता केवल आशय के सम्बन्ध में ही बचाव है।
3. ऐच्छिक मत्तता उन अपराधों के लिए बचाव नहीं होती जिनमें आशय से अलग मात्र ज्ञान की उपस्थिति आवश्यक है। -
मत्तता की स्थिति’ से क्या तात्पर्य है ?
“वह मत्तता जो एक व्यक्ति को अपने कार्य की प्रकृति को समझने में असमर्थ बना देती है, या यह समझने में असमर्थ बना देती है कि जो कुछ वह कर रहा है या तो दोषपूर्ण या विधि विरुद्ध है।”
-
IPC की धारा 86 क्या है ?
किसी व्यक्ति द्वारा, जो मत्तता में है, किया गया अपराध जिसमें विशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है
IPC Section 86 — Offence requiring a particular intent or knowledge committed by one who is intoxicated —
In cases where an act done is not an offence unless done with a particular knowledge or intent, a person who does the act in a state of intoxication shall be liable to be dealt with as if he had the same knowledge as he would have had if he had not been intoxicated, unless the thing which intoxicated him was administered to him without his knowledge or against his will.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]