IPC की धारा 88 — किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सम्मति से सदभावपूर्वक किया गया कार्य जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है –
कोई बात, जो मृत्यु कारित करने के आशय से न की गई हो, किसी ऐसी अपहानि के कारण नहीं है, जो उस बात से किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके फायदे के लिए वह बात सद्भावपूर्वक की जाए और जिसने उस अपहानि को सहने, या उस अपहानि की जोखिम उठाने के लिए चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की संभाव्यता कर्ता को ज्ञात है |
दृष्टांत –
क, एक शल्य चिकित्सक यह जानते हुए कि एक विशेष शल्यकर्म से य को, जो वेदनापूर्ण व्याधि से ग्रस्त है, मृत्यु कारित होने की संभाव्यता है, किन्तु य की मृत्युकारित करने का आशय न रखते हुए और सद्भावनापूर्वक य के फायदे के आशय से, य की सम्मति से, य पर वह शल्यकर्म करता है। क ने कोई अपराध नहीं कया है।
IPC की धारा 88 के प्रमुख अवयव क्या हैं ? |
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1. कार्य क्षतिग्रस्त व्यक्ति के लाभ के लिए किया गया हो, 2. कार्य अपहानि बर्दाश्त करने की उस व्यक्ति की सहमति से किया गया हो, 3. सहमति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है, 4. कार्य सदभावपूर्वक किया गया हो, 5.कार्य मृत्यु कारित करने के आशय के बिना किया गया हो, भले ही उसे कारित करते समय यह आशय रहा हो कि ऐसी अपहानि हो सकती है, जिससे मृत्यु संभाव्य है। |
IPC की धारा 88 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
सुकरू कविराज (1887) 14 कल० 566.
के वाद में कविराज ने आन्तरिक बवासीर से पीड़ित एक रोगी का आपरेशन किया जिसके लिये उसने सामान्य चाकू का प्रयोग किया। अत्यधिक रक्तस्राव के कारण रोगी की मृत्यु हो गयी। उपेक्षा एवं अदूरदर्शिता कार्य सम्पादित कर मृत्यु कारित करने के लिये कविराज को अभियोजित किया गया। यह निर्णय दिया गया कि वह इस धारा के अन्तर्गत बचाव का हकदार नहीं है, क्योंकि उसने सद्भावपूर्वक कार्य नहीं किया। फिर भी न्यायालय ने दण्ड को कम कर दिया और कैद की सजा के स्थान पर मात्र जुर्माने से उसे दण्डित किया गया।
सूरजबली 28 ए० डब्ल्यू० एन० 566.
एक महिला की आँख का आपरेशन किया गया जिससे उसकी ज्योति जाती रही। यह सिद्ध किया गया कि आपरेशन जिसके फलस्वरूप उसकी दृष्टि ज्योति समाप्त हो गयी, रोगी की सहमति से सम्पादित किया गया था, तथा सद्भावपूर्वक उसके हित के लिये किया गया था । उसका आपरेशन मान्यता प्राप्त भारतीय पद्धति के अनुसार किया गया था यह निर्णय दिया गया कि कोई अपराध कारित नहीं हुआ है तथा वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 88 के अन्तर्गत बचाव प्राप्त करने का हकदार है परन्तु ऐसे व्यक्ति जो मेडिकल प्रेक्टिशनर्स के रूप में योग्यता प्राप्त नहीं है इस धारा का लाभ उठाने के हकदार नहीं हैं क्योंकि ऐसे व्यक्तियों के विषय में यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने सद्भावपूर्वक जैसा कि इस पदावली को संहिता की धारा 52 में परिभाषित किया है, कार्य किया है।
गनेशचन्द्र शाह वनाम जिवराज सोमानी, एक आई0 आर0 1965 कल0 33
यदि कोई अध्यापक किसी बालक को पीट देता है तो वह इस धारा (आईपीसी (IPC) की धारा 88 )
द्वारा क्षम्य माना जायेगा । किन्तु जहाँ पर विद्यालय का अध्यापक अयुक्तिपूर्ण तरीके से किसी विद्यार्थी बालक को दंडित करता है तो ऐसी दशा में वह इस धारा द्वारा प्रदत्त लाभ का हकदार नहीं माना जायेगा ।
IPC की धारा 88 FAQ
IPC की धारा 88 किस प्रकार के कार्य से सम्बन्धित है ?
IPC की धारा 88 किसी व्यक्ति के फायदे के लिए उसकी सम्मति से सद्भावपूर्वक किये गये ऐसे कार्य से सम्बन्धित है, जिससे मृत्यु कारित करने का आशय नहीं है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 88 किन कार्यों को क्षमा करती है?
जो क्षतिग्रस्त व्यक्ति के फायदे के लिए हैं।
‘अ’ एक सल्य चिकित्सक यह जानते हुए कि एक विशेष शल्य कर्म में ‘ब’ जो कष्टकारक रोग से ग्रस्त है, मृत्यु कारित होने की संभावना है, परन्तु ‘ब’ की मृत्यु का आशय न रखते हुए और सद्भावपूर्वक ‘ब’के फायदे के लिए ‘ब’ की सम्मति से ‘ब’ पर शस्त्रकर्म करता है ‘अ’ किस धारा के अंतर्गत प्रतिरक्षित है?
IPC की धारा 88के तहत।
IPC की धारा 88 के अंतर्गत ‘सद्भावपूर्वक कार्य’ के संबंध में प्रमुख प्रकरण कौन से हैं?
सुकरु कविराज 1887 एवं सूरजबली का
IPC Section 88 — Act not intended to cause death, done by consent in good faith for person’s benefit –
Nothing which is not intended to cause death, is an offence by reason of any harm which it may cause, or be intended by the doer to cause, or be known by the doer to be likely to cause, to any person for whose benefit it is done in good faith, and who has given a consent, whether express or implied, to suffer that harm, or to take the risk of that harm.
Illustration –
A, a surgeon, knowing that a particular operation is likely to cause the death of Z, who suffers under a painful complaint, but not intending to cause Z’s death and intending in good faith, Z’s benefit performs that operation on 2, with Z’s consent. A has committed no offence.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]