IPC की धारा 89 — संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य –
कोई बात, जो बारह वर्ष से कम आयु के या विकृतचित्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक उसके संरक्षक के, या विधिपूर्ण भारसाधक किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा, या की अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से की जाए, किसी ऐसी अपहानि के कारण, अपराध नहीं है जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो, या कारित करने का कर्ता का आशय हो या कारित होने की सम्भाव्यता कर्ता को ज्ञात हो :
परन्तुक — परन्तु —
पहला --इस अपवाद का विस्तार साशय मृत्युकारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;
दूसरा -- इस अपवाद का विस्तार मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्युकारित होना संभाव्य है;
तीसरा -- इस अपवाद का विस्तार स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने या घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा जब तक कि वह मृत्यु या घोर उपहति के निवारण के, या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य से मुक्त करने के प्रयोजन से न की गई हो;
चौथा -- इस अपवाद का विस्तार किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण पर न होगा जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है।
दृष्टांत –
क सद्भावपूर्वक, अपने शिशु के फायदे के लिए अपने शिशु की सम्मति के बिना, यह संभाव्य जानते हुए कि शल्यकर्म से उस शिशु की मृत्युकारित होगी, न कि इस आशय से कि उस शिशु की मृत्युकारित कर दे, शल्य चिकित्सक द्वारा पथरी निकलवाने के लिए अपने शिशु की शल्यक्रिया करवाता है। क का उद्देश्य शिशु को रोगमुक्त कराना था, इसलिए वह इस अपवाद के अन्तर्गत आता है।
IPC की धारा 89 के प्रमुख अवयव क्या हैं ?
धारा 89 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं? |
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कोई बात, जो- 1. 12 वर्ष से कम आयु के शिशु या विकृतचित्त वाले व्यक्ति के लाभ के लिए किया गया हो, 2. कार्य सद्भावपूर्वक किया जाना चाहिए, 3. कार्य अभिभावक द्वारा या अभिभावक की सहमति से या उस व्यक्ति पर विधिक अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो, 4. सहमति या तो अभिव्यक्त या विवक्षित हो। |
IPC की धारा 89 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
ननकू, ए0 आई0 आर0 1935 इला0 916
धारा 89 आईपीसी के लाभ की प्राप्ती हेतु यह साबित किया जाना आवश्यक होगा कि कार्य 12 वर्ष से कम आयु वाले बालक के हित के लिए किया गया था।
नटेसन बनाम मद्रास राज्य, ए आई0 आर0 1962 मद्रास 216,
एक स्कूल के अध्यापक द्वारा नन्हें शिष्य को दिया गया दंड इस धारा के तहत संरक्षित माना जाएगा, जो न केवल विद्यालय के परिसर में किए गए अपराधों के लिए है, बल्कि ऐसे अपराधों के लिए भी हो सकता है जो विद्यालय के परिसर से बाहर किए गए हों। हालांकि, यदि स्कूल की लंबी छुट्टी की स्थिति में बंदी नियमित छुट्टियों के दौरान है, तो नन्हें शिष्य को दंडित नहीं किया जा सकेगा।
IPC की धारा 89 FAQ
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IPC की धारा 89 किस प्रकार के कार्य को संरक्षा प्रदान करती है?
IPC की धारा 89 संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किये गये कार्य को संरक्षा प्रदान करती है।
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धारा 89 के अंतर्गत बचाव प्राप्त करने के लिए कौन सी शर्तें पूरी की जानी आवश्यक हैं?
निम्न शर्तें-
1. कार्य 12 वर्ष से कम आयु के शिशु या विकृतचित्त वाले व्यक्ति के लाभ के लिए किया गया हो,
2.कार्य सद्भावपूर्वक किया जाना चाहिए,
3. कार्य अभिभावक द्वारा या अभिभावक की सहमति से या उस व्यक्ति पर विधिक अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो,
4. सहमति या तो अभिव्यक्त या विवक्षित हो। -
सहमति के संदर्भ में धारा 88 एवं 89 में क्या अंतर है?
IPC की धारा 88 के अन्तर्गत सहमति क्षतिग्रस्त व्यक्ति की स्वयं की होती है जबकि धारा 89 में शिशु अथवा विकृतचित्त वाले व्यक्ति के अभिभावक की सहमति होती है।
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‘अ’ सद्भाव में अपनी पुत्री के लाभ के लिए साशय उसकी हत्या कर देता है, ताकि वह डाकुओं के हाथ में पड़ने से बच जाय, क्या वह धारा 89 का लाभ प्राप्त कर सकेगा ?
नहीं। क्योंकि आईपीसी (IPC) की धारा 89 के परन्तुक के अनुसार-धारा 89 के अपवाद का विस्तार साशय मृत्यु या मृत्यु के प्रयत्न पर न होगा, अतः ‘अ’ ने हत्या की है।
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‘क’ अपने पुत्र के लाभ हेतु सद्भावपूर्वक बिना उसकी सहमति के पथरी निकलवाने हेतु उसका आपरेशन करा देता है, यह ज्ञान रखते हुए कि आपरेशन से बच्चे की मृत्यु कारित होने की संभावना है, किन्तु बच्चे की मृत्यु कारित करने का उसका आशय नहीं है। ‘क’ ने कौन सा अपराध किया है?”
‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया है, क्योंकि उसका आशय बच्चे को मृत्यु या गंभीर चोट से बचाना था। ‘क’ आईपीसी (IPC) की धारा 89 के अंतर्गत प्रतिरक्षित है।
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भा.दं.सं. की धारा 89 के अधीन प्रतिरक्षा कब उपलब्ध नहीं होगा?
अ, अपने शिशु के आर्थिक लाभ के लिए उसे नपुंसक बना देता है (IPC की धारा 89, परन्तुक 3)
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‘क’ की आयु 12 वर्ष से कम है। उसको बहुत पीड़ा है। वह मरने वाला है। ख ने सद्भावना से क के संरक्षक की सहमति से उसे मार डालता है। क्या ‘ख’ दोषी है?
हाँ, क्योंकि उक्त परिस्थितियों में इरादतन किसी की हत्या करनी चाहिए, ऐसा नहीं माना गया है (आईपीसी (IPC) की धारा 89 ) |
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IPC की धारा 89 क्या है?
संरक्षक द्वारा या उसकी सम्मति से शिशु या उन्मत्त व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य |
IPC Section 89 — Act done in good faith for benefit of child or insane person, by or by consent of guardian –
Nothing which is done in good faith for the benefit of a person under twelve years of age, or of unsound mind, by or by consent, either express or implied, of the guardian or other person having lawful charge of that person, is an offence by reason of any harm which it may cause, or be intended by the doer to cause or be known by the doer to be likely to cause to that person:
Provisos – Provided –
First – That this exception shall not extend to the intentional causing of death, or to the attempting to cause death;
Secondly – That this exception shall not extend to the doing of anything which the person doing it knows to be likely to cause death, for any purpose other than the preventing of death or grievous hurt, or the curing of any grievous disease or infirmity; IPC की धारा 89
Thirdly – That this exception shall not extend to the voluntary causing of grievous hurt, or to the attempting to cause grievous hurt, unless it be for the purpose of preventing death or grievous hurt, or the curing of any grievous disease or infirmity;
Fourthly – That this exception shall not extend to the abetment of any offence, to the committing of which offence it would not extend.
Illustration –
A, in good faith, for his child’s benefit without his child’s consent, has his child cut for the stone by a surgeon. Knowing it to be likely that the operation will cause the child’s death, but not intending to cause the child’s death. A is within the exception, inasmuch as his object was the cure of the child.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]