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IPC की धारा 102 | धारा 102 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 102 In Hindi

IPC की धारा 102 — शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना –

शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है, जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह अपराध किया न गया हो और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है।


धारा 102 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं?
शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार-
1. उसी क्षण प्रारंभ हो जाता है,
a. जब अपराध करने के प्रयत्न या,
b. धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है,
2. और तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है।
3. चाहे वह अपराध किया न गया हो |

IPC की धारा 102 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

स्टेट बनाम कोली हरी बोगा, 1961 (1) क्रि० लॉ ज0 57 
समान्य–शरीर के विरुद्ध वैयक्तिक प्रतिरक्षा का अधिकार त्यों ही प्रारम्भ हो जाता है, जैसे ही शरीर के प्रति मृत्यु खतरे की आशंका युक्तियुक्त रूप में प्रतीत होने लगती है तथा उसी क्षण समाप्त हो जाता है जबकि दूसरा पक्षकार अपने हथियारों को व्यनित कर देता है। (IPC की धारा 102)
विक्टर सुलेमान, 1966 क्रि० लॉ ज0 846]
जहाँ एक व्यक्ति घातक हथियारों को छीन कर अपने को इस तरह लैस करता है कि उसकी तैयारी से यह आशय स्पष्ट होता हो कि वह तुरन्त हिंसा पर उतारू होने वाला है तो यह कार्य वैयक्तिक प्रतिरक्षा के प्रयोग का न्यायोचित आधार नहीं माना जायेगा।
नवीन चन्द्र बनाम उत्तरांचल राज्य  2007 क्रि० लॉ ज० 874 (एस० सी०).
प्रात:काल, एक दुर्घटना के दिन, दो भाईयों के बीच पारिवारिक विवाद हुआ। इस संदर्भ में, कुछ समय पहले ही दोनों परिवारों के बीच कुछ तकरारी बातचीत हुई थी, जिसमें सुनी गई थी। दुर्घटना के दिन, मृतक को सिर पर चोटें लगी थीं। इस घटना के पश्चात, एक पंचायत का आयोजन हुआ, जहां पारिवारिक मसला हल करने की कोशिश की गई थी। पंचायत के दौरान, मृतक जिसे प्रात:काल सिर पर चोटें आई थीं, उत्तेजित हो गया और अभियुक्त को गालियाँ देने लगा। नतीजतन, यह वाक्युद्ध के दौरान अभियुक्त ने दो लोगों को जो घायल हो चुके थे, चोटें पहुँचाई और परिवार के अन्य सदस्यों को भी आक्रमण किया। इस परिस्थिति में, यह मान्यता प्राप्त हुई कि अभियुक्त को इस घटना के दौरान निजी स्वरक्षण का अधिकार नहीं था। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट किया गया कि प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार स्वयं की सुरक्षा के लिए होता है और इसे दण्डात्मक, आक्रामक और प्रतिशोधात्मक अपराधों के लिए नहीं उपयोग किया जा सकता है।

IPC की धारा 102 FAQ

  1. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार कब प्रारम्भ हो जाता है और कब तक बना रहता है?

    शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारम्भ हो जाता है जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह किया न गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है। 

  2. IPC की धारा 102 क्या हैं ?

    IPC की धारा 102 के अनुसार शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उसी क्षण प्रारम्भ हो जाता है जब अपराध करने के प्रयत्न या धमकी से शरीर के संकट की युक्तियुक्त आशंका पैदा होती है, चाहे वह किया न गया हो, और वह तब तक बना रहता है जब तक शरीर के संकट की ऐसी आशंका बनी रहती है। 

  3. शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना आईपीसी (IPC) की किस धारा में दिया गया हैं ?

    आईपीसी (IPC) की धारा 102 में |

IPC Section 102 — Commencement and continuance of the right of private defence of the body –

The right of private defence of the body commences as soon as a reasonable apprehension of danger to the body arises from an attempt or threat to commit the offence though the offence may not have been committed; and it continues as long as such apprehension of danger to the body continues.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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