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IPC की धारा 105 | धारा 105 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 105 In Hindi

IPC की धारा 105 — संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना –

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार तब प्रारंभ होता है, जब संपत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका प्रारंभ होती है।

संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धत हो जाने तक बना रहता है।
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति, या सदोष अवरोध कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का, या तत्काल उपहति का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का, भय बना रहता है।
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिक अतिचार या रिष्टि के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है।
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार रात्रि गृहभेदन के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरंभ हुआ गृह अतिचार होता रहता है।

IPC की धारा 105 से संबंधित महत्वपूर्ण केस

मीर दाद बनाम सम्राट, ए0 आई0 आर0 1926 लाहौर 74
जब चोर संपत्ति के स्वामी की पहुँच की सीमा से परे हो जाता है तो उस दशा में स्वामी के प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार समाप्त हो जाता है।
राज्य बनाम सिद्ध नाथ राय ए० आई० आर० 1959 इला० 233.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह विचार व्यक्त किया है कि एक लंबी अवधि के बाद चोरी हुई संपत्ति को पुनः कब्जे में लेना न्यायसंगत नहीं होता है और ऐसे मामलों में संपत्ति से संबंधित व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के अधिकार का उपयोग नहीं किया जा सकता है। IPC की धारा 105 के अनुसार, संपत्ति तुरंत प्राप्त होनी चाहिए या अभियुक्त के बाहर पहुंचने से पहले प्राप्त होनी चाहिए।
पंजाब राव बनाम सम्राट, ए0 आई0 आर0 1945 नागपुर 881

संपत्ति के मालिक को अपनी संपत्ति को वापस करने में किसी की एकांतता को भंग नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना या इस तरह का प्रवेश अधिकार अतिचारिक होगा।

IPC की धारा 105 FAQ

  1. आईपीसी की कौन सी धारा सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारम्भ और बने रहने से सम्बन्धित है ? 

    IPC की धारा 105

  2. सम्पत्ति के प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध कब तक बना रहता है? 

    सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी के विरुद्ध, अपराधी के सम्पत्ति सहित पहुँच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता अभिप्राप्त कर लेने या सम्पत्ति प्रत्युद्धृत हो जाने तक बना रहता है। (IPC की धारा 105)

  3. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध कब तक बना रहता है?

    सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार लूट के विरुद्ध तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहति या सदोष अवरोध कारित करता रहता है, या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है अथवा जब तक तत्काल मृत्यु का या तत्काल उपहति का या तत्काल वैयक्तिक अवरोध का भय बना रहता है। (IPC की धारा 105)

  4. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार आपराधिक अतिचार या रिष्टि के विरुद्ध कब तक बना रहता है?

    जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है। ( आईपीसी (IPC) की धारा 105)

  5. सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार रात्रौ गृह भेदन के विरुद्ध कब तक बना रहता है ? 

    जब तक कि ऐसे गृहभेदन से आरम्भ हुआ गृह अतिचार होता रहता है ।( आईपीसी (IPC) की धारा 105)

  6. चोरी के मामले में आत्म प्रतिरक्षा का अधिकार चोरी पूर्ण हो जाने के पश्चात् भी जारी रहता है” यह किस वाद में धारित किया गया ?

    जरहा चमार 1907 के मामले में। ( आईपीसी (IPC) की धारा 105 से संबंधित केस )

  7. आईपीसी की धारा 105 क्या हैं ?

    IPC की धारा 105 संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना से संबंधित हैं |

  8. संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रारंभ और बना रहना आईपीसी (IPC) की किस धारा में दिया गया है ?

    आईपीसी (IPC) की धारा 105 में |

IPC Section 105 — Commencement and continuance of the right of private defence of property –

The right of private defence of property commences when a reasonable apprehension of danger to the property commences.

The right of private defence of property against theft continues till the offender has effected his retreat with the property or either the assistance of the public authorities is obtained, or the property has been recovered.

The right of private defence of property against robbery continues as long as the offender causes or attempts to cause to any person death or hurt or wrongful restraint or as long as the fear of instant death or of instant hurt or of instant personal restraint continues. The right of private defence of property against criminal trespass or mischief continues as long as the offender continues in the commission of criminal trespass or mischief.

The right of private defence of property against house-breaking by night continues as long as the house-trespass which has been begun by such house-breaking continues.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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