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IPC की धारा 20 | धारा 20 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 20 In Hindi

IPC की धारा 20 — “न्यायालय” –

“न्यायालय” शब्द उस न्यायाधीश का, जिसे अकेले ही को न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, या उस न्यायाधीश निकाय का, जिसे एक निकाय के रूप में न्यायिकतः कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जबकि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय न्यायिकतः कार्य कर रहा हो , द्योतक है।

दृष्टान्त

मद्रास संहिता के सन् 1816 के विनियम 7 के अधीन कार्य करने वाली पंचायत जिसे वादों का विचारण करने और अवधारण करने की शक्ति प्राप्त है, न्यायालय है।

आईपीसी की धारा 20 के प्रमुख अवयव क्या हैं?
(a) एक न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय,
(b) न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय विधि द्वारा न्यायिक कार्य करने के लिए सशक्त हो,
(c) न्यायाधीश या न्यायाधीश निकाय प्रश्नगत समय पर न्यायिकतः कार्य कर रहा हो,

IPC की धारा 20 से संबंधित महत्वपूर्ण केस

बी0 एन0 सिंह, ए0 आई0 आर0 1956 सु० को0 66 (69) 
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में, मध्यस्थ के सिवाय सभी न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, और साक्ष्य लेने का अधिकार रखने वाले सभी व्यक्तियों को न्यायालय के रूप में परिभाषित किया गया है। हालांकि, यह परिभाषा केवल साक्ष्य विधि के परिधानों के आधार पर ही सीमित है और पूर्णता की कमी प्रतीत हो सकती है।
एन० एल० गांगुली बनाम के० एन० घोष, ए0 आई0 आर0 1918 कल0 932 (933)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195 के भाषा बोध में न्यायालय शब्द उस रूप में निर्बंधित नहीं है जैसा कि भारतीय दण्ड संहिता के अधीन दी गई परिभाषा में निर्बंधित है।

IPC की धारा 20 FAQ

  1. आईपीसी में “न्यायालय” (कोर्ट ऑफ जस्टिस) शब्द से किसके लिए द्योतक है ? 

    ऐसे न्यायाधीश या न्यायाधीश -निकाय को जिसे न्यायिकतः कार्य करने हेतु विधि द्वारा अधिकृत किया गया है।

  2. आईपीसी (IPC) की धारा 20 में किसकी परिभाषा दी गयी हैं?

    आईपीसी की धारा 20 में “न्यायालय” की परिभाषा दी गयी हैंI

  3. आईपीसी (IPC) की किस धारा में “न्यायालय” की परिभाषा दी गयी हैं?

    आईपीसी की धारा 20 में “न्यायालय” की परिभाषा दी गयी हैंI

IPC Section 20 — “Court of Justice” –

The words “Court of Justice” denote a Judge who is empowered by law to act judicially alone, or a body of Judges which is empowered by law to act judicially as a body, when such Judge or body of Judges is acting judicially.

Illustration

A panchayat acting under Regulation VII, 1816, of the Madras Code, having power to try and determine suits is a Court of Justice.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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