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IPC की धारा 34 | धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 34 In Hindi

IPC की धारा 34 — सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य –

जबकि कोई आपराधिक कार्य कई व्यक्तियों द्वारा अपने सब के सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है, तब ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति उस कार्य के लिए उसी प्रकार दायित्व के अधीन है, मानो वह कार्य अकेले उसी ने किया हो।


आईपीसी की धारा 34 के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
(1) एक आपराधिक कार्य,
(2) आपराधिक कार्य एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा किया गया हो,
(3) सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने के लिए किया गया है। 
(4) ऐसे व्यक्तियों के बीच सामान्य आशय पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार हो, 
(5) अपराध में सभी अभियुक्त किसी न किसी रूप में सम्मिलित है।

IPC की धारा 34 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

सम्राट बनाम वीरेन्द्र कुमार घोष, ए0 आई0 आर0 1924 कल0 25
यदि दो या दो से अधिक अभियुक्त व्यक्ति साशय डकैती डालने के प्रयोजनार्थ घातक हथियारों से लैस होकर आशायित स्थान पर जाते हैं तथा उन अभियुक्त व्यक्तियों में से कोई व्यक्ति सामान्य आशय के अग्रसरण में किसी व्यक्ति पर गोली चला देता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है तो ऐसी दशा में सभी अभियुक्त व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 सपठित आईपीसी की धारा 34 के अधीन हत्या के अपराध के लिए संयुक्त रूप से उत्तरदायी माने जायेंगे।
अली अकबर मण्डल बनाम स्टेट आफ वेस्ट बंगाल, 2011 क्रि० लॉ ज० (एन० ओ० सी०) 312 (कल0)
जहां अभियुक्त बम से सुसजजित होकर साथ-साथ आये और मृतक के भवन में अतिचार किये वहाँ सामान्य आशय का अनुमान लगाया जा सकता था।
जीतमल बनाम स्टेट आफ राजस्थान, 2006 क्रि० लॉ ज0 1208 (राज0)
जहां खुली लड़ाई का मामला हो, वहां अभियुक्तों को केवल उनके व्यक्तिगत कृत्यों के लिये ही दोषी माना जा सकता है, ऐसी स्थिति में आईपीसी की धारा 34 अथवा 149 लागू नहीं किया जा सकता।
श्रीमती बदामी देवी बनाम राज्य, 1980 क्रि० लॉ ज० 318
आईपीसी की धारा 34 की प्रयोज्यता के लिए केवल अपराध की परिकल्पना में भाग लेना पर्याप्त न होगा, अपितु अपराध के किये जाने में भाग लेना भी आवश्यक है। यह उचित नहीं है कि कई अभियुक्त अपराध के किये जाने के सामान्य आशय में भाग ले अपितु उन्हें सभी के सामान्य आशय को सफल करने की दिशा में अपराध को पूर्णता प्रदान करने हेतु कुछ किया जाना भी आवश्यकता है।
पंडुरंग बनाम हैदराबाद राज्य ,1955 
न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी व्यक्ति का अपराध करने का उद्देश्य साझा नहीं था तो दूसरे व्यक्ति के कार्यों के लिए वह परोक्ष रूप से ज़िम्मेदार नहीं हो सकता। यदि उनका व्यवहार दूसरे के कार्य से स्वतंत्र होता है तो यह सामान्य आशय नहीं होगा। 
राम बिलास सिंह बनाम बिहार राज्य केस,1963 
न्यायालय ने तय किया कि सामान्य आशय के साथ उस कार्य में शामिल होने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए सज़ा की अवधि उस अपराध के प्रकार और गंभीरता से निर्धारित की जाती है।
राम कृष्ण बनाम स्टेट ऑफ यू0 पी0, 1977 एस० सी० सी० (क्रि0) 636, 637
जहाँ पर अभियुक्तों ने केवल लाठी ली हो, एवं उन्होंने हमले में किसी भी प्रकार की भागीदारी निभायी हो तो ऐसी दशा में सामान्य आशय की विद्यमानता नहीं मानी जायेगी तथा वे आईपीसी (IPC) की 34 के साथ संयुक्तता दोषी नहीं माने जायेंगे ।
गिरिन्द सिंह यादव बनाम स्टेट आफ यू0 पी0, 2008 क्रि० लॉ ज0 1978 (इला0)
आईपीसी की धारा 34 को मात्र तभी आकर्षित किया जाता है जब कार्य सभी अभियुक्त के सामान्य आशय को अग्रसर करने में किया जाता है। स्थल पर मात्र अभियुक्त की उपस्थिति यह अनुमान लगाने का आधार नहीं हो सकता है कि उसने मृतक की हत्या करने में भाग लिया।

IPC की धारा 34 FAQ

  1. यह कथन किस वाद के सम्बन्ध में है कि सामान्य आशय घटना स्थल पर भी उत्पन्न हो सकता है?

    ऋषिदेव पाण्डेय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य ।

  2. सामान्य आशय से सम्बन्धित प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता (IPC) की किस धारा में दिए गए हैं?

    IPC की धारा 34 में

  3. IPC की धारा 34 क्या निर्धारित करती है?

    संयुक्त उत्तरदायित्व |

  4. IPC की धारा 34 में वाक्यांश ‘सभी के सामान्य आशय के अग्रसरण में’ कब जोड़ा गया ?

    1870 के संशोधन अधिनियम के द्वारा।

  5. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) के कौन से प्रावधान संयुक्त दायित्व से सम्बन्धित है?

    धारा 34,35 एवं 149 

  6. IPC की धारा 34 के अंतर्गत दायित्व कैसा होता है?

    पृथक एवं संयुक्त (दोनों)।

  7. चार आदमी संयुक्त आशय से कोई अपराध करते हैं। वे सभी किस प्रकार दायी होंगे?

    पृथक व संयुक्त रूप से।

  8. IPC की धारा 34 के अधीन सामान्य आशय का क्या अर्थ है ?

    आशय जो आपराधिक कृत्य करने वाले लोगों को ज्ञात है। सभी के द्वारा आशय में भागीदारी।

  9. सामान्य आशय के आधार पर ‘संयुक्त दायित्व का सिद्धांत’ के लागू होने के लिए आपराधिक कार्य किसके द्वारा किया जाना चाहिए? 

    एक से अधिक व्यक्तियों के द्वारा।

  10. सामान्य आशय के सिद्धान्त की विवेचना किस वाद (केस) के अन्तर्गत की गयी थी?

    महबूब शाह बनाम किंग इम्परर (1943) PC. (सिन्धु नदी वाद) जिसमें “दिमागों का पूर्वमिलन” आवश्यक व ‘समान आशय’ और ‘सामान्य आशय’ में अन्तर स्पष्ट किया गया।

  11. IPC की धारा 34 पर प्रसिद्ध वाद कौन सा है ? 

    वारीन्द्र कुमार घोष बनाम इम्परर
    निर्णीत- लार्ड समनर अपराधों में वे भी सहायक होते हैं जो केवल खड़े रहते हैं और प्रतीक्षा करते रहते हैं। पोस्ट मास्टर हत्याकांड। 

  12. किस वाद में निर्णीत किया गया कि IPC की धारा 34 को लागू होने के लिए सभी की शारीरिक उपस्थिति द्वारा भाग लेना अनिवार्य नहीं है ?

    जे. एम. देसाई बनाम बम्बई राज्य | 

  13. किस वाद में IPC की धारा 34 और धारा 149 में अन्तर स्पष्ट किया गया ? 

    नानक चंद बनाम पंजाब राज्य में |

IPC Section 34 — Acts done by several persons in furtherance of common intention –

When a criminal act is done by several persons in furtherance of the common intention of all, each of such persons is liable for that act in the same manner as if it were done by him alone.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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