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IPC की धारा 84 | धारा 84 भारतीय दण्ड संहिता | IPC 84 In Hindi

IPC की धारा 84 — विकृतचित्त व्यक्ति का कार्य –

कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है।


धारा 84 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं?
कोई बात अपराध नहीं है जो-
1. कार्य एक अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति द्वारा किया गया होना चाहिए,
2. ऐसा व्यक्ति कार्य की प्रकृति या यह कि कार्य विधि विरुद्ध था या यह कि कार्य दोषपूर्ण था समझने में निश्चित रूप से असमर्थ था,
3. ऐसी अक्षमता अपराधी के अस्वस्थ मस्तिष्क के कारण है। 

IPC की धारा 84 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

सुरेन्द्र मिश्रा बनाम स्टेट आफ झारखंड, 2011 (1) क्राइम्स 192 (एस0 सी0 )
जहाँ एक अभियुक्त को जो आईपीसी की धारा 84 के अधीन एक कार्य के दायित्व से दोषमुक्त किये जाने की मांग करता है, विधिक पागलपन को साबित करना पड़ता है, न कि चिकित्सीय पागलपन को, वहाँ मिर्गी के रोग से ग्रस्त अपीलार्थी को धारा 84 का लाभ देने से इंकार कर दिया गया।
आर० बनाम आर्नल्ड (1724) 16 सेंट ट्री० 695.
के वाद में अभियुक्त को लार्ड आन्स्लो को घायल करने तथा उनकी हत्या के प्रयास के लिये विचारित किया गया। अभियुक्त की मस्तिष्कीय विक्षिप्तता का पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध था। इस प्रकरण में ट्रेसी जज ने निम्नलिखित परीक्षण प्रतिपादित किया-
"यदि वह ईश्वरीय प्रभाव के अन्तर्गत था तथा उचित और अनुचित में विभेद करने में असमर्थ था और वह यह नहीं जानता था कि उसने क्या किया है, यद्यपि उसने एक असामान्य अपराध कारित किया, फिर भी वह किसी विधि के अन्तर्गत किसी अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जा सकता।"

अमृत भूषण गुप्ता बनाम भारत संघ तथा अन्य, ए0 आई0 आर0 1977 सु० को0 608 (661)
विकृतता अथवा मत्तता आपराधिक दायित्व के विरुद्ध तभी मान्यता प्राप्त अपवाद (आईपीसी (IPC) की धारा 84 )माना जायेगा जबकि अभियुक्त कार्य की प्रकृति को उस स्थिति में जबकि वह अपराध कर रहा था जानने से असमर्थ रहा हो।
ए0 आई0 आर0 1968 उड़ीसा 226
जहाँ अभियुक्त अपनी पत्नी की हत्या करके घटना स्थल से भाग जाता है, तो यह माना जायेगा कि कार्य को करते समय वह कार्य की प्रकृति को जानने में समर्थ था कि वह जो कुछ कर रहा है विधिविरुद्ध या दोष पूर्ण है । आईपीसी की धारा 84 का बचाव नहीं ले सकता |
बाउलर (1812) 1 कोलिसन ल्युनेसी 673.
के वाद में "उचित और अनुचित" में विभेद की क्षमता की प्रकल्पना की गयी। इस वाद में ली ब्लांक जज ने जूरी पर यह दायित्व सौंपा कि वह निश्चित करे कि क्या अपराध कारित करते समय अभियुक्त उचित और अनुचित में विभेद करने में असमर्थ था या किसी भ्रान्ति से पीड़ित था जिसने उसके विवेक को इस सीमा तक प्रभावित किया कि वह अपने द्वारा किये जाने वाले कार्य की प्रकृति को नहीं समझ सका। वाउलर के वाद में दिये गये निर्णय के समय से ही न्यायालय अभियुक्त की उचित और अनुचित में विभेद करने की शक्ति पर अधिक बल देते थे यद्यपि वे सन् 1843 तक मैक्नाटेन के वाद में दिये गये निर्णय के पूर्व इस सिद्धान्त को निश्चित रूप से प्रतिपादित नहीं कर पाये थे।
इन रे वाला गोपाल 1976 क्रि० लॉ ज० 1978.
के मामले में अभियुक्त अपनी पत्नी के साथ बड़े मेजजोल से रह रहा था और उसके साथ मित्रवत् व्यवहार करता था। उसने एक चाकू से घोप कर अपनी पत्नी और पुत्र की हत्या कर दी। हत्या के पीछे किसी हेतु का पता नहीं चला। डाक्टरी सलाह भी इस निश्चित आशय की थी कि अभियुक्त कार्य की प्रकृति को समझने की स्थिति में नहीं था इस कारण विकृत चित्त का तर्क उसके बचाव हेतु मान लिया गया। अतः IPC की धारा 84 का बचाव मिला |
सुरेन्द्र मिश्रा बनाम स्टेट आफ झारखंड, 2011 क्रि० लॉ ज0 1161 (एस० सी० ) 
इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि आपराधिक दायित्व से दोषमुक्ति के लिए अभियुक्त को विधिक पागलपन को साबित करना पीड़ित है न कि चिकित्सीय पागलपन के। चूंकि वर्तमान मामले में मृतका का कार्य प्रकट करता है कि अभियुक्त अपने कार्य की प्रकृति को जानता था इसलिए उसको आपराधिक दायित्व से पागलपन के आधार पर दोषमुक्त किये जाने से इंकार कर दिया गया।
फूला बाई बनाम महाराष्ट्र राज्य 1976 क्रि० लॉ ज० 1519.
के मामले में भी अपराधी को विकृतचित्त का बचाव मान्य किया गया क्योंकि वह पुरानी और असाध्य बीमारी से पीड़ित था। इस मामले में अभियुक्त आत्महत्या के प्रयास में अपने बच्चे के साथ एक कुयें में कूद गयी, जिसमें बच्चे की मृत्यु हो गयी। अपराधी के बचाव में विकृतचित्त होने का तर्क प्रस्तुत किया गया। परन्तु डाक्टरी साक्ष्य इस आशय का नहीं था विकृतचित्त का तर्क इस कारण स्वीकार किया गया कि डाक्टरी साक्ष्य का अभाव सामान्य ज्ञान के अपवर्जन को उचित नहीं ठहराता है। 

IPC की धारा 84 FAQ

  1. भारतीय दण्ड संहिता (IPC) में विकृतचितता से सम्बन्धित धारा कौन सी है?

    IPC की धारा 84

  2. IPC धारा 84 में विकृतचित्त व्यक्ति के कार्य के सम्बन्ध में क्या प्रावधान किया गया है। 

    कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो उसे करते समय चित्तविकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है।

  3. कौन सा वाद उन्मत्तता के आधार पर प्रतिरक्षा से सम्बन्धित है?

    मैकनॉटन का वाद (1843) विकृतचितता पर निर्णीत वाद (IPC की धारा 84 )  

  4. किस वाद में ‘वाइल्ड वेस्ट टेस्ट'(Wild Beast Test) को प्रतिपादित किया गया था?

    आर. बनाम आरनॉल्ड (1724) के वाद में।

  5. ‘वाइल्ड वेस्ट टेस्ट'(Wild Beast Test) क्या है ?

    एक व्यक्ति दायित्व से उन्मुक्ति की माँग कर सकता है यदि चित्त की विकृतता के कारण वह उचित और अनुचित में विभेद करने में असमर्थ था और यह भी नहीं जानता था कि उसने क्या किया। इस परीक्षण को बाइल्ड बीस्ट टेस्ट (Wild Beast Test) के नाम से भी जाना जाता है।

  6. आपराधिक दायित्व से छूट पाने के लिए कौन सी उन्मत्तता प्रतिरक्षा का आधार है ?

    केवल विधिक उन्मत्तता (न कि चिकित्सीय उन्मत्तता) (IPC की धारा 84 )  

  7. उन्मत्तता (पागलपन) क्या है?

    किसी कृत्य की प्रकृति को समझने में असमर्थता (IPC की धारा 84 )  

  8. ऐसे व्यक्ति जिन्हें स्वस्थ चित्त के नहीं कहा जा सकता है, कैसे हो सकते हैं?

    जड़, विक्षिप्त, बीमारी द्वारा विकृत मस्तिष्क वाले व्यक्ति। 

  9. विकृतचित्तता की दशा को साबित करने का भार किस पर होता है? 

    अभियुक्त पर।

  10. आर बनाम अर्नाल्ड मामले के अनुसार एक व्यक्ति दायित्व से उन्मुक्ति की मांग कब कर सकता है?

    एक व्यक्ति दायित्व से उन्मुक्ति की मांग कर सकता है यदि चित्त की विकृत्तता के कारण वह उचित और अनुचित में विभेद करने में असमर्थ था और यह भी नहीं जानता था कि उसने क्या किया।

  11. किस प्रकरण में “विक्षिप्त भ्रान्ति परीक्षण” (Insane Delusion Test) प्रतिपादित किया गया? 

    हैड फील्ड 1800 के प्रकरण में।

  12. मैकनाटेन का प्रमुख वाद किस धारा से सम्बन्धित है?

    IPC की धारा 84 से |

  13. विक्षिप्तता और पागलपन से सम्बन्धित आधुनिक विधि का आधार कौन से नियम हैं?

    हाउस ऑफ लार्ड्स द्वारा मैकनाटेन प्रकरण को 15 न्यायाधीशों की एक बेंच को सौंपकर विक्षिप्तता के प्रकरणों में आपराधिक दायित्व सम्बन्धी सिद्धान्तों की प्रतिपरीक्षा करने को कहा गया, जिन प्रश्नों का उत्तर इससे निकले वे मैकनाटेन के नियम के नाम से जाने गये, और जो से सम्बंधित आधुनिक विधि के आधार हैं।

  14. जड़ कौन होता है?

    एक व्यक्ति जो जन्म से ही चिरस्थाई जीर्णता के कारण बिना किसी स्पष्ट अंतराल के विक्षिप्त स्मृति वाला हो, वह जड़ कहा गया है। ऐसा व्यक्ति भी जो 20 तक गिनती गिनना अथवा सप्ताह के दिनों को बताना अथवा अपने माता-पिता आदि के विषय में न जानता हो जड़ कहा जाता है।

  15. कौन व्यक्ति विक्षिप्त कहलाता है ? 

    वह व्यक्ति जो समय-समय पर मानसिक असंतुलन का शिकार रहता है और फिर स्वस्थ हो जाता है, विक्षिप्त कहलाता है। 

  16. विक्षिप्तता और जड़ता में क्या अंतर है?

    विक्षिप्तता अथवा पागलपन उपार्जित पागलपन है तथा मूढ़ता स्वाभाविक या प्राकृतिक पागलपन है। 

  17. “उचित और अनुचित” में विभेद की प्रकल्पना किस वाद में की गयी ?

    बाउलर 1812″ के वाद में प्रकल्पना की गयी। 

IPC Section 84 — Act of a person of unsound mind –

Nothing is an offence which is done by a person who, at the time of doing it, by reason of unsoundness of mind, is incapable of knowing the nature of the act, or that he is doing what is either wrong or contrary to law.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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