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IPC की धारा 85 | धारा 85 भारतीय दण्ड संहिता | IPC 85 In Hindi

IPC की धारा 85 — ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है –

कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय मत्तता के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है, परन्तु यह तब जबकि वह चीज, जिससे उसकी मत्तता हुई थी, उसको अपने ज्ञान के बिना या इच्छा के विरुद्ध दी गई थी।


धारा 85 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं?
कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो-
1. कार्य करते समय मत्तता के कारण वह समझने में असमर्थ था कि
(क) कार्य की प्रकृति या
(ख) यह कि वह जो कुछ कर रहा था वह दोषपूर्ण या विधिविरुद्ध था और
2. यह कि जिस वस्तु ने उसे उन्मत किया था वह या तो उसके ज्ञान के बिना अथवा इच्छा के विरुद्ध उसे दी गयी थी। 

IPC की धारा 85 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

जेठूराम बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1960 क्रि० लॉ ज0 1096
मत्तता को अपराधी के ज्ञान या उसकी इच्छा के विरुद्ध होना आवश्यक है। आईपीसी की धारा 85 में प्रयुक्त शब्दावली "बिना उसके ज्ञान" का अभिप्राय यह है कि वह उस तथ्य से अनभिज्ञ रहा हो कि उसे क्या दिया जा रहा है या दिये गये मादक पदार्थ में क्या मिलाया गया है।
रेगिना बनाम दोहटी 16 काक्स सी० सी० 306, पृ० 308.  
के वाद में स्टीफेन जज ने कहा कि "मत्तता या मदिरापान अपराध के लिये कोई बचाव साबित नहीं हो सकता फिर भी यदि अपराध ऐसा है कि इसे कारित करने वाले पक्षकार का आशय इसका एक अवयव है तो इस तथ्य के निर्धारण हेतु कि क्या अपराध गठित करने के लिये आवश्यक आशय उस व्यक्ति का था, हम इस विषय पर ध्यान दे सकते हैं कि वह व्यक्ति नशे में था । "
वारिस अली बनाम 13 क्रि0 लॉ ज0 167 
आईपीसी की धारा 85 के प्रवर्तन में यह दर्शित करना होगा कि जब अभियुक्त अपराध कारित किया था तब वह मत्तता या नशे की हालत में था जिसके कारण वह कार्य की प्रकृति या यह कि वह जो कुछ कर रहा है दोषपूर्ण हैं या विधि के प्रतिकूल जानते में असमर्थ था।
सोहन माँझी बनाम राज्य, ए0 आई0 आर0 1970 पटना 303
आईपीसी (IPC) की धारा 85 धारा अस्वैच्छिक मत्तता की दशा में किये गये कार्यों में लागू मानी जायेगी, जहाँ पर अस्वैच्छिक मत्तता का तथ्य युक्तिसंगत साक्ष्यों द्वारा साबित न हो सका हो वहाँ पर यह धारा लागू नहीं मानी जायेगी।

बोधी खान (1866) 5 डब्ल्यू० आर० ( क्रि०) 79.
स्वैच्छिक मदिरापान अपराध कारित करने के लिये कोई बचाव नहीं है
ए0 आई0 आर0 1934 रंगून 10
स्वैच्छिक मत्तता (आईपीसी (IPC) की धारा 85) क्षम्यता का आधार नहीं होगी किन्तु दण्ड की कमी में यह प्रमुख रूप से प्रभावशाली मानी जायेगी।
डायरेक्टर आफ पब्लिक प्राजीक्यूशन बनाम बियर्ड 1920 ए० सी० 479.
इस मामले में आरोपी ने नशे में धुत होकर एक नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म किया. उसने अपना हाथ लड़की के मुंह पर रखा और दूसरा उसके गले पर। नतीजतन, दम घुटने से लड़की की मौत हो गई और उसने दलील दी कि वह कार्य के परिणामों को समझने में असमर्थ है। लेकिन अदालत ने उसे धारा 300 के तहत हत्या के अपराध का दोषी पाया क्योंकि दम घुटने का यह कृत्य बलात्कार के कृत्य से अलग था और यह लड़की को मारने का इरादा रखता था।

IPC की धारा 85 FAQ

  1. भा.दं.सं. की कौन सी धारा अनैच्छिक मत्तता के प्रतिरक्षा से सम्बन्धित है? 

    IPC की धारा 85

  2. कौन सा वाद मत्तता के आधार पर प्रतिरक्षा से सम्बन्धित है? 

    डॉयरेक्टर ऑफ पब्लिक प्राजीक्यूशन बनाम वियर्ड (1920) ACI ( अन्य वाद वासुदेव बनाम पैपेसू राज्य व आर. बनाम टैण्डी)

  3. वासुदेव बनाम पैपेसू राज्य, AIR 1956 SC किस विषय पर निर्णीत एक सूचक निर्णय है ?

    मद्यपान (नशे) पर। ( IPC की धारा 85)

  4. IPC की धारा 85 के अंतर्गत आपराधिक दायित्व से उन्मुक्ति हेतु अभियुक्त को क्या स्थापित करना होगा? 

    1. यह कि कार्य करते समय मत्तता के कारण वह समझने में असमर्थ था कि कार्य की प्रकृति या यह कि वह जो कुछ कर रहा था वह दोषपूर्ण या विधिविरुद्ध था और
    2. यह कि जिस वस्तु ने उसे उन्मत किया था वह या तो उसके ज्ञान के बिना अथवा इच्छा के विरुद्ध उसे दी गयी थी। 

  5. IPC की धारा 85 से आप क्या समझते है ?

    ऐसे व्यक्ति का कार्य जो अपनी इच्छा के विरुद्ध मत्तता में होने के कारण निर्णय पर पहुंचने में असमर्थ है

  6. IPC की धारा 85 किससे संबंधित है ?

    अनैच्छिक मत्तता के प्रतिरक्षा से

IPC Section 85 — Act of a person incapable of judgment by reason of intoxication caused against his will –

Nothing is an offence which is done by a person who, at the time of doing it, is, by reason of intoxication, incapable of knowing the nature of the act, or that he is doing what is either wrong, or contrary to law; provided that the thing which intoxicated him was administered to him without his knowledge or against his will.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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