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IPC की धारा 87 | धारा 87 भारतीय दण्ड संहिता | 87 IPC In Hindi

IPC की धारा 87 — सम्मति से किया गया कार्य जिससे मृत्यु या घोर उपहति कारित करने का आशय न हो और न उसकी सम्भाव्यता का ज्ञान हो–

कोई बात, जो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से न की गई हो और जिसके बारे में कर्ता को यह ज्ञात न हो कि उससे मृत्यु या घोर उपहति कारित होना संभाव्य है, किसी ऐसी अपहानि के कारण अपराध नहीं है जो उस बात से अठारह वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को, जिसने वह अपहानि सहन करने की चाहे अभिव्यक्त चाहे विवक्षित सम्मति दे दी हो, कारित हो या कारित होना कर्ता द्वारा आशयित हो अथवा जिसके बारे में कर्ता को ज्ञात हो कि वह उपर्युक्त जैसे किसी व्यक्ति को, जिसने उस अपहानि की जोखिम उठाने की सम्मति दे दी है, उस बात द्वारा कारित होनी संभाव्य है

दृष्टांत –

क और य आमोदार्थ आपस में पटेबाजी करने को सहमत होते हैं। इस सहमति में किसी अपहानि को, जो ऐसी पटेबाजी में खेल के नियम के विरुद्ध न होते हुए कारित हो, उठाने की हर एक की सम्मति विवक्षित है, और यदि क यथानियम पटेबाजी करते हुए य को उपहति कारित कर देता है, तो क कोई अपराध नहीं करता है।
IPC की धारा 87 के प्रमुख अवयव क्या हैं?
1. कार्य न तो मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के आशय से किया गया और न इस ज्ञान से कि मृत्यु या घोर उपहति होने की संभावना है, 
2. किसी व्यक्ति को क्षति उसकी सहमति से कारित की गयी,
3. सहमति देने वाला व्यक्ति 18 वर्ष से अधिक आयु का है,
4. सहमति स्पष्ट या विवक्षित हो सकती है।

IPC की धारा 87 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

अलीसन 114
जहाँ कोई कार्य अपने आप में अवैध है वहीं सहमति को भी बचाव के रूप में नहीं स्वीकार किया जायेगा। परन्तु इस नियम के कुछ अपवाद हैं। यह धारा सामान्यतया कुछ खेलों जैसे, मुक्केबाजी, फुटबाल, वनेठी से लड़ना (Fencing) आदि को सुरक्षा प्रदान करती है। इसका कारण यह है कि खेलों का प्रमुख उद्देश्य शारीरिक क्षति पहुँचाना नहीं होता है। किन्तु इस धारा के अन्तर्गत बचाव हासिल करने के लिये आवश्यक है कि दोनों तरफ से स्वच्छ खेल का प्रदर्शन हो तथा खेल में पर्याप्त सावधानी बरतना आवश्यक है। परन्तु यदि कोई अनुचित लाभ उठाने का प्रयास किया जाता है तो कार्य मानव वध के समतुल्य होगा। 
रेक्स बनाम टुन्डा, ए0 आई0 आर0 1950 इला0 95
जब एक कुश्ती में दो पहलवानों के बीच मुकाबला होता है और एक पहलवान अपनी चाल से दूसरे पहलवान को पटकता है, जिससे उसका सिर नोकदार पक्के चबूतरे से टकरा जाता है और वह मर जाता है, तो उस व्यक्ति को हत्या के लिए दोषी नहीं माना जाएगा और उसे उपहति पहुंचाने का आरोप लगाया नहीं जाएगा। इस प्रकार की स्थिति में, सहमति (आईपीसी (IPC) की धारा 87)
की उपस्थिति की विश्वासनीयता का अनुमान लगाया जाएगा।

कोनी (1882) 8 क्यू० बी० डी० 543.
एक निर्णायक हाथापाई अवैध है तथा उसमें सहायता प्रदान करने वाला एक उकसाने वाला प्रत्येक व्यक्ति प्रहार का दोषी है तथा लड़ाई में यथार्थ रूप से सम्मिलित व्यक्तियों की सहमति इस आरोप के लिये उपयुक्त उत्तर न होगी। किन्तु उक्त स्थल पर विद्यमान प्रत्येक व्यक्ति विधितः मात्र अपनी मौजूदगी की वजह से इस अपराध के लिये दोषी नहीं ठहराया जायेगा। 

खल्लुर रहमान, 34 क्रि० लॉ ज0 696
अभिरक्षा का तर्क आईपीसी (IPC) की धारा 87 
के अंतर्गत प्रस्तुत किया जा सकता है केवल जब यह सम्मति 18 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति से प्राप्त होती है। 12 वर्षीय आयु वाले बालक द्वारा दी गई सम्मति को इस धारा के संदर्भ में मान्य अभिरक्षा का आधार नहीं माना जाएगा।

IPC की धारा 87 FAQ

  1. जो सम्मति देता है उसे क्षति नहीं पहुंचती है रोमन विधिशास्त्र की यह उक्ति भारतीय दण्ड संहिता की किस धारा का आधार है ?

    IPC की धारा 87 (भारतीय दण्ड संहिता की धारा 87)

  2. सहमति किन अपराधों के विरुद्ध एक अच्छा बचाव है ?

    सहमति सम्मति के विरुद्ध कारित सभी अपराधों के लिए एक अच्छा बचाव है, परन्तु मानव शरीर के विरुद्ध कारित अपराधों में मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के अलावा अन्य में बचाव है। 

  3. ‘अ’ और ‘व’ आमोदार्थ सट्टेबाजी करने को सहमत होते हैं। सहमति किसी अपहानि के लिए विवक्षित है, जो ऐसे खेल में वैधता होती है, ‘अ’ यथानियम सट्टेबाजी करते हुए ‘व’को उपहति कारित करता है, ‘अ’ ने कौन-सा अपराध किया?

    भारतीय दण्ड संहिता की धारा 87 के दृष्टांत के अनुसार ‘अ’ ने कोई अपराध नहीं किया। 

  4. सहमति (IPC की धारा 87) द्वारा बचाव किन अवधारणाओं पर आधारित है?

    सहमति द्वारा बचाव दो अवधारणाओं पर आधारित है- 
    1. यह कि प्रत्येक व्यक्ति अपने हित का सर्वोच्च निर्णायक है।
    2. यह कि कोई व्यक्ति जिस कार्य को अपने लिए हानिकारक समझता है, उसके लिए अपनी सहमति कभी नहीं देगा। 

  5. आईपीसी की कौन-सी धारायें सहमति सम्बन्धी नियम प्रतिपादित करती हैं?

    आईपीसी की धारायें 87, 88 एवं 89


IPC Section 87 –Act not intended and not known to be likely to cause death or grievous hurt, done by consent –

Nothing which is not intended to cause death, or grievous hurt, and which is not known by the doer to be likely to cause death or grievous hurt, is an offence by reason of any harm which it may cause, or be intended by the doer to cause, to any person, above eighteen years of age, who has given consent, whether express or implied, to suffer that harm; or by reason of any harm which it may be known by the doer to be likely to cause to any such person who has consented to take the risk of that harm.

Illustration

A and Z agree to fence with each other for amusement. This agreement implies the consent of each to suffer any harm which, in the course of such fencing, may be caused without foul play; and if A, while playing fairly, hurts Z, A commits no offence. 

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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