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IPC की धारा 101 | धारा 101 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 101 In Hindi

IPC की धारा 101 — कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है –

यदि अपराध पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है, तो शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार हमलावर की मृत्यु स्वेच्छया कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु इस अधिकार का विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बंधनों के अध्यधीन हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।


धारा 101 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं?
1. अपराध पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का नहीं है,
2. प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु करने तक का नहीं होता
3. इस अधिकार का विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बंधनों के अध्यधीन होगा परन्तु ,
4. हमलावर की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।

NOTE
शरीर सम्बन्धी वैयक्तिक प्रतिरक्षा के अधिकार का अध्ययन करते समय IPC की धारा 101 तथा 100 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिये।

IPC की धारा 101 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

युसुफ खाँ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य,1994
इस प्रकार के मामले में जिसमें तथ्य के निष्कर्षो के आधार पर यह न निश्चित किया जा सके कि कौन सा पक्षकार आक्रामक था वहाँ पर किसी भी पक्षकार को सिद्धदोष नहीं किया जा सकेगा।
योगेन्द्र मोरारजी बनाम गुजरात राज्य ए० आई० आर० 1980 सु० को० 660. 
इस वाद में अभियुक्त तथा मृतक के बीच किसी ऋण की अदायगी तथा एक कुर्वे की खुदायी को लेकर विवाद था। एक बार जब अभियुक्त जीप से घर को वापस लौट रहा था, दो व्यक्तियों ने हाथ उठाकर जीप रोकने का इशारा किया। इसी समय उनके अन्य सहयोगी भी जीप के समीप आ गये, इस पर अभियुक्त ने अपनी पिस्तौल निकाल कर दनादन तीन बार गोलियाँ चलायीं जिससे एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। ऐसा करते समय उन्होंने रुक कर यह सुनिश्चित करने का प्रयत्न नहीं किया कि जल्दी-जल्दी तीन बार गोली चलाने की आवश्यकता थी या नहीं और न ही, उसने इसके प्रभाव को देखना उचित समझा। यह अभिनिर्णीत हुआ कि वह इस धारा द्वारा प्रदत्त अधिकार की सीमा को पार कर गया था।
दीपा बनाम म० प्र० राज्य, 1999 (1) ज0 लॉ ज0 45 (म0प्र0)
एक प्रकरण में मृत्यु कारित करने में सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का अतिक्रमण किया गया। निर्णीत कि अपराध संहिता की धारा 304 भाग 1 के अन्तर्गत आता है।

IPC की धारा 101 FAQ

  1. IPC की धारा 101 क्या है?

    IPC की धारा 101 के अनुसार ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है|

  2. कब ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का होता है आईपीसी (IPC) की कौन सी धारा है ?

    आईपीसी (IPC) की धारा 101

  3. आईपीसी (IPC) की धारा 101 को लागू करने के लिए क्या सिद्ध किया जाना चाहिये ?

    यह सिद्ध करना होगा धारा 99 में प्रतिपादित सीमा का अतिक्रमण नही किया हैं |

IPC Section 101 — When such right extends to causing any harm other than death –

If the offence be not of any of the descriptions enumerated in the last preceding section, the right of private defence of the body does not extend to the voluntary causing of death to the assailant, but does extend, under the restrictions mentioned in section 99, to the voluntary causing to the assailant of any harm other than death.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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