IPC की धारा 103 — कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है –
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 99 में वर्णित निर्बंधनो के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है एतस्मिन् पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् :-
पहला - लूट;
दूसरा - रात्रि गृह भेदन;
तीसरा - अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है;
चौथा - चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा।
आईपीसी की धारा 103 के अनुसार कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा में मृत्यु कारित की जा सकती हैं ? |
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1. लूट 2. रात्रौ गृह भेदन 3. अग्नि द्वारा रिष्टि, जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जलयान को की गयी है जो मानव आवास के रुप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है। . 4.चोरी, रिष्टि या गृह अतिचार जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है जिससे युक्तियुक्त रूप से आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु घोर उपहति होगी। |
IPC की धारा 103 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
क्याब जान लॉ (1904) क्रि० लॉ ज० 997. एक चोर ने अपराधी के गन्ने के खेत में चोरी करने के लिए घुसपैठ की। चोर ने दाह के सहारे गन्ने काटना शुरू कर दिया। इसकी आवाज सुनकर, अपराधी ने आवाज की दिशा में निशाना लगाकर एक तीर छोड़ दिया। तीर चोर के पास लग गया और उसकी मृत्यु हो गई। इस परिस्थिति में, यह निर्णय लिया गया कि चोर के पास दाह जैसा एक खतरनाक हथियार था, और अतः अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए अपराधी का तीर चलाना न्यायसंगत था। अपराधी ने अपने शरीर और संपत्ति की रक्षा के लिए तीर छोड़ा था। उसे आईपीसी (IPC) की धारा 103 का बचाव प्राप्त हुआ।
सरफराज रहमान बनाम स्टेट, 1976 क्रि0 लॉ ज0 1296 (गौहाटी) जब अपराधी को पकड़ने के लिए अभियुक्त के पास पर्याप्त समय होता है, जिससे वह स्थानीय प्राधिकारियों की सहायता से उसे गिरफ्तार कर सकता है, लेकिन वह इसे नहीं करके अपराधी पर हमला करता है, तो ऐसा कार्य व्यक्तिगत स्वरक्षण की सीमा से बाहर माना जाएगा। आईपीसी (IPC) की धारा 103 का उल्लंघन माना गया |
डीरास्वामी पिल्लई, 27 मद्रास 56
पुलिस कान्सटेबल ने एक व्यक्ति के गृह परिसर में प्रवेश करके उसके दरवाजे को खटखटाया, पुलिस के अनुसार बुलाया गया व्यक्ति संदिग्ध चरित्र का था, घर से निकलने पर कान्सटेबल ने उस व्यक्ति पर छड़ी से कई प्रहार किया, ऐसी दशा में पुलिस कान्सटेविल द्वारा किया गया कार्य पदाभासी अनुक्रम में किया गया नहीं माना गया, तथा तकनीकी दृष्टिकोण से उसे गृह अतिचार के लिए दोषी माना गया।
इस्माइल॰(1926) 6 लाहौर 463.
जब अभियुक्त मध्य रात्रि में जगाये जाने पर मृतक को अपने आंगन में पाता है, और मृतक घर की दीवार को लांघकर घर में प्रवेश करता है, जहां आंगन के दरवाजे पर ताला लगा होता है, और आंगन के एक कमरे में अभियुक्त गंडासे से मृतक के सिर पर हमला करके उसे मार देता है, तो इस निर्णय के अनुसार, आंगन भी एक भवन की मान्यता प्राप्त करता है, हालांकि उसकी छत नहीं होती, और अभियुक्त को यह पता नहीं था कि चोर के पास हथियार हैं या नहीं। इसलिए, अभियुक्त ने मृतक की मृत्यु को गंडासे से कारित करते समय धारा IPC की 103 के खंड 4 के अंतर्गत व्यक्तिगत प्रतिरक्षा के अधिकार की सीमा को पार नहीं किया।
हरवंश बनाम म० प्र० राज्य, 1981
अभियुक्त के शरीर पर गम्भीर क्षतियाँ पायी गयी, मामले में अन्य स्वतन्त्र साक्ष्यों से यह साबित हो रहा था कि उसने संपत्ति को बचाने के प्रयत्न में लड़ाई तथा उसके पति द्वारा कारित अपराध का विरोध किया था, उक्त दशा में यह निष्कर्षित किया गया कि अभियुक्त को प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त था । आईपीसी की धारा 103 का बचाव मिला
IPC की धारा 103 FAQ
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IPC की धारा 103 के सम्बन्ध में कन्चन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1982 क्रि.ला.ज. के प्रकरण में क्या अवधारित किया गया?
इस प्रकरण में कहा गया कि सम्पत्ति के सम्बन्ध में प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर मृत्यु कारित करने की पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है यह मृत्यु या घोर उपहति का युक्तियुक्त भय तथा लोक प्राधिकारियों द्वारा प्रदत्त सहायता द्वारा परिसीमित है|
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IPC की धारा 103 में उ.प्र. विधायिका द्वारा संशोधन करके 1970 में एक पाँचवा खण्ड जोड़ा गया है इस संशोधन का क्या उद्देश्य है?
इस संशोधन का उद्देश्य अग्नि या विस्फोटक द्वारा रिष्टि के कुछ गम्भीर मामले में सम्पत्ति के आत्म प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार करना है।
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IPC की धारा 103 के खण्ड (5) के अनुसार किन मामलों में अपकारी की मृत्यु कारित की जा सकती है ?
ऐसे मामले निम्न हैं, जबकि उसमें अग्नि या विस्फोटक द्वारा रिष्टि की जाती है-
1. शासन या किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी निगम द्वारा प्रयुक्त या प्रयुक्त होने हेतु आशयित कोई सम्पत्ति, या
2. किसी रेलवे या रेलवे स्टोर्स में, या
3. यातायात वाहन इत्यादि। -
आईपीसी (IPC) की धारा 103 क्या हैं ?
IPC की धारा 103 के अनुसार — कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है –
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कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्युकारित करने तक का होता है आईपीसी (IPC) की किस धारा में दिया गया हैं ?
IPC की धारा 103 में |
IPC Section 103 — When the right of private defence of property extends to causing death –
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]