IPC की धारा 104 — ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है –
यदि वह अपराध, जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है, जो पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का न हो, तो उस अधिकार का विस्तार स्वेच्छया मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता, किन्तु उसका विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है।
आईपीसी (IPC) की धारा 104 के प्रमुख अवयव क्या हैं? |
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यदि वह अपराध- 1. जिसके किए जाने या जिसके किए जाने के प्रयत्न से प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, 2. ऐसी चोरी, रिष्टि या आपराधिक अतिचार है, जो पूर्वगामी अंतिम धारा में प्रगणित भांतियों में से किसी भांति का न हो, 3. तो उस अधिकार का विस्तार स्वेच्छया मृत्यु कारित करने तक का नहीं होता, 4. किन्तु उसका विस्तार धारा 99 में वर्णित निर्बधनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का होता है। |
IPC की धारा 104 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
बलजीत सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1976 क्रि० लॉ ज० 1745 सु. को.
यह अभिनिर्णीत हुआ कि यदि विवादग्रस्त भूमि का वास्तविक कब्जा अभियुक्त के पास है तो उस भूमि को बचाये रखने का उसे अधिकार है। किन्तु यदि इस अधिकार का प्रयोग करते समय आक्रमणकारी पर प्रहार भी किया जाता है जिससे उसे घातक चोट पहुँचती है तो यह माना जायेगा कि उसने अपने इस अधिकार की सीमा का उल्लंघन कर दिया है।
कृष्ण कुमार बनाम म० प्र० राज्य, 2000 (1) ज0 लॉ ज0 336 (म0प्र0)
शरीर और संपत्ति की निजी सुरक्षा के दौरान क्षति की पहुंच हुई। इसके आधार पर निर्धारित किया जा सकता है कि यह मामला आईपीसी (IPC) की धारा 104 के अंतर्गत आएगा।
जय भगवान बनाम स्टेट आफ हरियाणा 1999 क्रि० लॉ ज. 1634 (एस. सी. )
अभियुक्त नं० 2 उस खेत का सह-स्वामी और कब्जाधारी था जहाँ पर घटना घटी थी। उसने खतरनाक अस्त्र से घोर उपहति कारित किया था। यह अभिनिर्णीत किया गया कि विवादित खेत का एक सह-स्वामी और कब्जाधारी होने के नाते अभियुक्त आईपीसी (IPC) की धारा 104 के अधीन सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का दावा करने का हकदार था और इस कारण उसकी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अधीन दोषसिद्धि को निरस्त कर दिया गया।
IPC की धारा 104 FAQ
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IPC की धारा 104 किस प्रकार की अपहानि को न्यायसंगत ठहराती है ?
आईपीसी (IPC) की धारा 104 सम्पत्ति के प्रतिकूल वैयक्तिक प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में मृत्यु से भिन्न कोई अन्य अपहानि कारित करने को न्यायसंगत ठहराती है यदि कारित या प्रयतित अपराध सामान्य चोरी रिष्टि या आपराधिक अतिचार है।
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IPC की धारा 104 क्या हैं ?
IPC की धारा 104 के अनुसार – ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है –
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ऐसे अधिकार का विस्तार मृत्यु से भिन्न कोई अपहानि कारित करने तक का कब होता है आईपीसी की किस धारा में दिया गया हैं ?
IPC की धारा 104 में |
IPC Section 104 — When such right extends to causing any harm other than death –
If the offence, the committing of which, or the attempting to commit which, occasions the exercise of the right of private defence, be theft, mischief, or criminal trespass, not of any of the description, enumerated in the last preceding section, that right does not extend to the voluntary causing of death, but does extend, subject to the restrictions mentioned in section 99, to the voluntary causing to the wrong-doer of any harm other than death.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]