IPC की धारा 108 (DHARA 108) — दुष्प्रेरक –
वह व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे कार्य के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होता, यदि वह कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति द्वारा उसी आशय या ज्ञान से, जो दुष्प्रेरक का है, किया जाता।
स्पष्टीकरण 1 - किसी कार्य के अवैध लोप का दुष्प्रेरण अपराध की कोटि में आ सकेगा, चाहे दुष्प्रेरक उस कार्य को करने के लिए स्वयं आबद्ध न हो।
स्पष्टीकरण 2 - दुष्प्रेरण का अपराध गठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित कार्य किया जाए या अपराध गठित करने के लिए अपेक्षित प्रभाव कारित हो।
दृष्टांत
(क) ग की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है। ख वैसा करने से इंकार कर देता है। क हत्या करने के लिए ख के दुष्प्रेरण का दोषी है |
(ख) घ की हत्या करने के लिए ख को क उकसाता है। ख ऐसी उकसाहट के अनुसरण में घ को विद्ध करता है। घ का घाव अच्छा हो जाता है। क हत्या करने के लिए ख को उकसाने का दोषी है।
स्पष्टीकरण 3 -- यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति अपराध करने के लिए विधि अनुसारसमर्थ हो,या उसका वही दूषित आशय या ज्ञान हो, जो दुष्प्रेरक का है, या कोई भी दूषित आशय या ज्ञान हो।
दृष्टांत
(क) क दूषित आशय से एक शिशु या पागल को वह कार्य करने के लिए दुष्प्रेरित करता है, जो अपराध होगा, यदि वह ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाए जो कोई अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ है और वही आशय रखता है जो कि क का है। यहां, चाहे वह कार्य किया जाए, या न किया जाए, क अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है।
(ख) य की हत्या करने के आशय से ख को, जो सात वर्ष से कम आयु का शिशु है, वह कार्य करने के लिए के उकसाता है जिससे य की मृत्यु कारित हो जाती है। ख दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप वह कार्य क की अनुपस्थिति में करता है और उससे य की मृत्यु कारित करता है। यहां यद्यपि ख वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ नहीं था तथापि क उसी प्रकार से दण्डनीय है, मानो ख वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ हो और उसने हत्या की हो, और इसलिए क मृत्युदण्ड से दण्डनीय है।
(ग) ख को एक निवास गृह में आग लगाने के लिए क उकसाता है। ख अपनी चित्तविकृति के परिणामस्वरूप उस कार्य की प्रकृति या यह कि वह जो कुछ कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है जानने में असमर्थ होने के कारण क के उकसाने के परिणामस्वरूप उस गृह में आग लगा देता है। ख ने कोई अपराध नहीं किया है, किन्तु क एक निवासगृह में आग लगाने के अपराध के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उस अपराध के लिए उपबंधित दण्ड से दण्डनीय है।
(घ) क चोरी कराने के आशय से य के कब्जे में से य की संपत्ति लेने के लिए ख को उकसाता है। ख को यह विश्वास करने के लिए क उत्प्रेरित करता है कि वह संपत्ति क की है। ख उस संपत्ति को इस विश्वास से कि वह क की संपत्ति है, य के कब्जे में से सद्भावपूर्वक ले लेता है। ख इस भ्रम के अधीन कार्य करते हुए, उसे बेईमानी से नहीं लेता, और इसलिए चोरी नहीं करता, किन्तु क चोरी के दुष्प्रेरण का दोषी है, और उसी दण्ड से दण्डनीय है, मानो ख ने चोरी की हो।
स्पष्टीकरण 4 - अपराध का दुष्प्रेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है।
दृष्टांत
ग को य की हत्या करने को उकसाने के लिए ख को क उकसाता है। ख तद्नुकूल य की हत्या करने के लिए ग को उकसाता है और ख के उकसाने के परिणामस्वरूप ग उस अपराध को करता है। ख अपने अपराध के लिए हत्या के दण्ड से दण्डनीय है, और क ने उस अपराध को करने के लिए ख को उकसाया, इसलिए क भी उसी दण्ड से दण्डनीय है।
स्पष्टीकरण 5 - षड़यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरक उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर उस अपराध की योजना बनाए। यह पर्याप्त है कि उस षड़यंत्र में सम्मिलित हो जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है।
दृष्टांत
य को विष देने के लिए क एक योजना ख से मिलकर बनाता है। यह सहमति हो जाती है कि क विष देगा। ख तब यह वर्णित करते हुए ग को यह योजना समझा देता है कि कोई तीसरा व्यक्ति विष देगा, किन्तु क का नाम नहीं लेता। ग विष उपाप्त करने के लिए सहमत हो जाता है, और उसे उपाप्त करके समझाए गए प्रकार से प्रयोग में लाने के लिए ख को परिदत्त करता है। क विष देता है, परिणामस्वरूप य की मृत्यु हो जाती है। यहां यद्यपि क और ग ने मिलकर षड़यंत्र नहीं रचा है, तो भी ग उस षड़यंत्र से सम्मिलित रहा है, जिसके अनुसरण में य की हत्या की गई है। इसलिए ग ने इस धारा में परिभाषित अपराध किया है और हत्या के लिए दण्ड से दण्डनीय है।
IPC की धारा 108 से संबंधित महत्वपूर्ण केस
बदगीराम बनाम स्टेट आफ एम0 पी0, 2006 क्रि० लॉ ज० रि0807 (म0प्र0)
जहां अभियुक्त ने मृतका को मात्र एकबार क्लेश पहुंचाया था, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 107 आकर्षित नहीं होता तथा यदि यह मान लिया जाये कि अभियुक्त का व्यवहार मृतका के साथ अच्छा नहीं था तो अधिक से अधिक है किन्तु इसे आत्महत्या कारित करने के दुष्प्रेरण के तुल्य नहीं माना जा सकता है।
महाराष्ट्र राज्य बनाम पाण्डुरंग रामजी, 1978 बी0 एल0 आर0 245
दुष्प्रेरण के गठन के लिए वास्तविक अपराध का कारित किया जाना आवश्यक नहीं होता ।
सुब्रहामनियम बनाम आ० प्र० राज्य, ए0 आई0 आर0 1956 आ0 प्र0 33
प्रधान अपराधी के विरुद्ध आरोपत्र विरचित न होने के उपरान्त भी, दुष्प्रेरक के विरुद्ध अभियोग लगाया जा सकता है।
IPC की धारा 108 FAQ
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दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण अपराध है। यह सीधे किससे निगम्य है?
IPC की धारा 108 (DHARA 108) से।
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‘अ’ ‘ब’ को झूठी गवाही देने के लिए उकसाता है।’ ब’ झूठा साक्ष्य नहीं देता है ‘अ’ किस अपराध का दोषी है?
‘अ’ उकसाने के द्वारा दुष्प्रेरण का दोषी है।
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‘अ’ ‘ब’ से सहमत होता है कि वह ‘ब’ की परीक्षा में नकल करने में उसकी सहायता करेगा। यह कौन सा अपराध है?
आपराधिक षड्यंत्र
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‘अ’ ने अपने नौकर को ‘ब’ की पिटाई करने का आदेश दिया और तद्नुरूप ‘अ’ के नौकर ने ‘ब’ की पिटाई कर दी। ‘अ’ ने क्या अपराध किया?
उकसाकर दुष्प्रेरण करने का |
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दण्ड विधि में अपराध से निकटता का सिद्धान्त जिस अपराध के लिए दायित्व का विनिश्चय करने के लिए असंगत है, वह कौन सा अपराध है?
दुष्प्रेरण और षड्यंत्र |
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किसी भी व्यक्ति के द्वारा कारित किए गए किसी कृत्य का दुष्प्रेरण कब कहा जायेगा ?
जब अपराध कारित करने वाले ने उससे मंत्रणा की हो।
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‘अ’ को जो 18 वर्ष से कम आयु का है, ब उससे स्वेच्छा से आत्महत्या करवाता है। ‘ब’ ने कौन सा अपराध किया?
आत्महत्या का दुष्प्रेरण |
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IPC की धारा 108 का स्पष्टीकरण (5) क्या है ?
यह उद्घोषित करता है कि षडयंत्र के माध्यम से दुष्प्रेरण का अपराध कारित करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरक अपराधकर्ता के साथ सम्बन्ध बनाये रखे। यह पर्याप्त होगा कि यदि वह उस षडयंत्र में भाग लेता है जिसके अनुसरण में अपराध कारित होता है।
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‘दुष्प्रेरक’ को संहिता की किस धारा में परिभाषित किया गया है?
IPC की धारा 108 (DHARA 108) में।
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‘ग’ की हत्या करने के लिए ‘ख’ को ‘क’ उकसाता है। ‘ख’ वैसा करने से इन्कार कर देता है। ‘क’ किस अपराध का दोषी है ?
‘क’ हत्या करने के लिए ‘ख’ के दुष्प्रेरण का दोषी है (स्पष्टीकरण (2) धारा 108 आईपीसी ) |
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‘ध’ की हत्या करने के लिए ‘ख’ को ‘क’ उकसाता है। ‘ख’ ऐसी उकसाहट के अनुसरण में ‘ध’ को विद्व करता है ‘ध’ का घाव अच्छा हो जाता है। ‘क’ किस अपराध का दोषी है ?.
‘क’ हत्या करने के लिए ‘ख’ को उकसाने का दोषी है। (दृष्टांत (ख) स्पष्टीकरण (2) धारा 108 आईपीसी )
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दुष्प्रेरण के अपराध के गठन के लिए क्या दुष्प्रेरित व्यक्ति का – विधि अनुसार समर्थ होना आवश्यक है ?
नहीं! यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरित व्यक्ति अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ हो, या उसका वही दूषित आशय या ज्ञान हो जो दुष्प्रेरक का है या कोई भी दूषित आशय या ज्ञान हो। (स्पष्टीकरण 3 धारा 108)।
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‘क’, ‘ख’ को जो 7 वर्ष से कम आयु का शिशु है, ‘प’ की हत्या करने के आशय से उकसाता है। ‘ख’ दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप वह कार्य, (जिससे ‘प’ की मृत्यु होती है) ‘क’ की अनुपस्थिति में करता है और उससे ‘प’ की मृत्यु कारित करता है। ‘क’ और ‘ख’ ने कौन सा अपराध किया?
‘ख’ ने कोई अपराध नहीं किया क्योंकि वह विधि अनुसार समर्थ नहीं था फिर भी ‘क’ धारा 108 के स्पष्टीकरण (3) के आलोक में उसी प्रकार से दण्डनीय है, मानो ‘ख’ वह अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ हो और उसने हत्या की हो।
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धारा 108 का स्पष्टीकरण 4 क्या है?
अपराध का दुष्प्रेरण अपराध होने के कारण ऐसे दुष्प्रेरण का दुष्प्रेरण भी अपराध है।
108 IPC In Hindi — Abettor –
A person abets an offence, who abets either the commission of an offence, or the commission of an act which would be an offence, if committed by a person capable by law of committing an offence with the same intention or knowledge as that of the abettor.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]