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IPC की धारा 30 | धारा 30 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 30 In Hindi

IPC की धारा 30 — “मूल्यवान प्रतिभूति” –

“मूल्यवान प्रतिभूति’ शब्द उस दस्तावेज के द्योतक हैं, जो ऐसा दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित, किया जाए, छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है।

दृष्टांत

क एक विनिमयपत्र की पीठ पर अपना नाम लिख देता है। इस पृष्ठांकन का प्रभाव किसी व्यक्ति को, जो उसका विधिपूर्ण धारक हो जाए, उस विनिमयपत्र पर का अधिकार अन्तरित किया जाना है, इसलिए यह पृष्ठांकन “मूल्यवान प्रतिभूति" है।

आईपीसी की धारा 30 के प्रमुख अवयव क्या हैं ?
मूल्यवान प्रतिभूति’ शब्द उस दस्तावेज के द्योतक हैं, जो-
1. जो ऐसा दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित है,
2. जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित, किया जाए, छोड़ा जाए या
3. जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या
4. अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है।

IPC की धारा 30 से संबंधित महत्वपूर्ण केस

राम हरख पाठक, ए0 आई0 आर0 1926 इला0 57
तलाक विलेख, चूँकि यह पक्षकारों को विधिक अधिकार से आबद्ध करता है। इसलिए यह “मूल्यवान प्रतिभूति" की श्रेणी में आएगा |
एस0 के गुप्ता बनाम राज्य, ए0 आई0 आर0 1967 इला0 527
आयात लाइसेंस, चूँकि यह आयातित वस्तुओं पर विधिक अधिकार सृजित करता है। इसलिए यह “मूल्यवान प्रतिभूति" की श्रेणी में आएगा |
ए0 आई0 आर0 1968 मद्रास 349
पासपोर्ट को भी “मूल्यवान प्रतिभूति" माना गया |
गोविन्द प्रसाद बनाम स्टेट, ए0 आई0 आर0 1971 इला0 279
किसी शैक्षिक संस्थान द्वारा किया गया चरित्र प्रमाणपत्र जो कि किसी विशिष्ट परीक्षा के सन्दर्भ में दिया गया हो,मूल्यवान प्रतिभूति" नही माना गया |
ए आई0 आर0 1963 इला0 131
पक्षकार द्वारा दिया गया ऐसा सुलहपूर्ण आवेदन जो कि न्यायालय द्वारा स्वीकार न किये जाने के कारण आवेदक को वापस कर दिया गया हो। मूल्यवान प्रतिभूति" नही माना गया |

IPC की धारा 30 FAQ

मूल्यवान प्रतिभूति क्या हैं?

मूल्यवान प्रतिभूति ऐसी दस्तावेज है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित विस्तृत, अंतरित, निर्बन्धित, निर्वापित किया जाय, छोड़ा जाये या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है (धारा 30) ।

IPC की धारा 30 क्या है ?

IPC की धारा 30 में “मूल्यवान प्रतिभूति” की परिभाषा दी गयी है |

आईपीसी किस धारा में “मूल्यवान प्रतिभूति” को परिभाषित किया गया है ?

आईपीसी (IPC) की धारा 30 में |

आईपीसी में “मूल्यवान प्रतिभूति” की क्या परिभाषा है ?

“मूल्यवान प्रतिभूति’ शब्द उस दस्तावेज के द्योतक हैं, जो ऐसा दस्तावेज है, या होना तात्पर्यित है, जिसके द्वारा कोई विधिक अधिकार सृजित, विस्तृत, अन्तरित, निर्बन्धित, निर्वापित, किया जाए, छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या अमुक विधिक अधिकार नहीं रखता है।

मूल्यवान प्रतिभूति” के उदाहरण दीजिए ?

उदाहरण – लाटरी टिकट, पासपोर्ट, दूध का कूपन, अभिनिर्धारण आदेश, आवंटन प्रमाण पत्र, लेखबद्ध लेखाओं का अभिनिर्धारण भले ही यह हस्ताक्षरित न हो, सिनेमा टिकट,

IPC Section 30 — “Valuable security” –

The words “valuable security” denote a document which is, or purports to be, a document whereby any legal right is created, extended, transferred, restricted, extinguished or released, or where by any person acknowledges that he lies under legal liability, or has not a certain legal right.

Illustration

A writes his name on the back of a bill of exchange. As the effect of this endorsement is transfer the right to the bill to any person who may become the lawful holder of it, the endorsement is a “valuable security”.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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