IPC की धारा 335 — प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना –
जो कोई गंभीर और अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, यदि न तो उसका आशय उस व्यक्ति से भिन्न, जिसने प्रकोपन दिया था, किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करने का हो और न वह अपने द्वारा ऐसी उपहति कारित किया जाना संभाव्य जानता हो, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि चार वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
स्पष्टीकरण – अंतिम दो धाराएँ उन्ही परन्तुकों के अध्यधीन हैं,जिनके अध्यधीन धारा 300 का अपवाद है|
अपराध का वर्गीकरण — इस धारा के अधीन अपराध, संज्ञेय, जमानतीय और प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। द.प्र.सं. (संशोधन) अधिनियम, 2008 ( क्र. 5 सन् 2009) की धारा 23 (i) द्वारा दिनांक 31-12-2009 से इस धारा के अधीन अपराध को उस व्यक्ति द्वारा शमनीय बनाया गया है जिसे उपहति कारित की गई है। उक्त संशोधन के पूर्व यह न्यायालय की अनुमति से उस व्यक्ति द्वारा शमनीय था जिसे उपहति कारित की गई है। |
PC Section 335 — Voluntarily causing grievous hurt on provocation –
Whoever voluntarily causes grievous hurt on grave and sudden provocation, if he neither intends nor knows himself to be likely to cause grievous hurt to any person other than the person who gave the provocation, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to one month, or with fine which may extend to five hundred rupees, or with both.