IPC की धारा 53 (DHARA 53) — “दण्ड” –
अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है, वे ये हैं –
पहला - मृत्यु;
दूसरा - आजीवन कारावास;
तीसरा -[ विलोपित]
चौथा - कारावास, जो दो भाँति का है, अर्थात्:- (1) कठिन, अर्थात् कठोर श्रम के साथ; (2) सादा;
पाँचवाँ -- सम्पत्ति का समपहरण;
छटा -- जुर्माना।
आईपीसी में कितने प्रकार के दण्डों का प्रावधान है ? |
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आईपीसी की धारा 53 में 5 प्रकार के दण्डों का प्रावधान है – (i) मृत्यु (ii) आजीवन कारावास या (iii) कारावास (कठिन / साधारण) (iv) सम्पत्ति का समपहरण (v) जुर्माना |
IPC की धारा 53 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
बेचन सिंह बनाम पंजाब राज्य (1980) क्रि० लॉ ज० 636 सु० को ०.
जिसमें यह मत व्यक्त किया गया कि मृत्यु-दण्ड कुछ चुने हुये (rarest of rare) मामलों में ही दिया जाना है।
गनपति शेट्टी बनाम स्टेट, (बाम्बे) (डी) बी0) (गोआ बेन्च), 2021
हत्या के मामले में, रु0 10,000 अर्थदण्ड के भुगतान 3 साल का सश्रम कारावास का चूक दण्डादेश अत्यधिक है।
एo आई0 आर0 1949 कल0 104
वह दिन जिन पर दण्डादेश पारित किया जाता है वह कारावास के एक दिन के रूप में गिना जायेगा ।
मध्य प्रदेश राज्य बनाम रतन सिंह 1976 क्रि० लॉ ज० 1192.
यह कहा गया कि यदि सरकार द्वारा दण्ड की मात्रा में कोई छूट प्रदान की जाती हैं तो अभियुक्त उसका लाभ उठाने का हकदार है।
स्टेट ऑफ राजस्थान बनाम बद्री, 1977 क्रि० लॉ ज0 1554;
आजीवन कारावास, दण्डादेश दिये जाने की तिथि से शेष जीवन की दोषसिद्धि के रूप में भोगा जायेगा। यह हर एक प्रयोजनों के लिये 20 वर्ष की ही अवधि का नहीं हो सकेगा।
जाहिद हुसैन बनाम पश्चिम बंगाल राज्य 2001 क्रि० लॉ ज० 1692 (एस० सी० ).
उच्चतम न्यायालय ने पूर्व घोषित मत का पुनः प्रतिपादन करते हुये निर्णीत किया कि आजीवन कारावास के दण्ड का परिहार (remission) को शामिल करते हुये 20 वर्ष की कारावास अवधि समाप्त होने के पश्चात् स्वयमेव अन्त नहीं हो जाता है, क्योंकि आजीवन कारावास का अर्थ होता है बन्दी के सम्पूर्ण जीवन का कारावास जब तक कि समुचित सरकार दण्ड का सम्पूर्ण या आंशिक परिहार करने की अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग नहीं करती है।
अटार्नी जनरल आफ इण्डिया बनाम लक्ष्मी देवी 1986 क्रि० लॉ ज० 364 सु० को ०.
उच्चतम न्यायालय ने यह मत व्यक्त किया कि जनता के समक्ष फांसी पर लटकाना बर्बरता है और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है भले ही किसी भी जेल मैनुअल में इस प्रकार की फांसी का विधान हो |
IPC की धारा 53 FAQ
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आईपीसी (IPC) की धारा 53 के अन्तर्गत कौन सा दण्ड नहीं है?
निर्वासन, कालापानी अथवा देश निकाला
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आईपीसी में आजीवन निर्वासन के स्थान पर आजीवन कारावास कब जोड़ा गया ?
1 जनवरी 1956 के दाण्डिक विधि संशोधन अधिनियम द्वारा
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आजीवन कारावास की सजा का क्या अर्थ है?
अभियुक्त के सम्पूर्ण अवशिष्ट जीवन के लिए सजा जब तक कि सजा में पूर्णत: या आंशिक रूप में समुचित सरकार द्वारा छूट नहीं दे दी जाती। आजीवन कारावास की सजा 20 वर्ष की अवधि बीतने पर स्वतः समाप्त नहीं हो जाती।
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IPC की धारा 53 क्या है ?
IPC की धारा 53 के अनुसार “दण्ड” – अपराधी इस संहिता के उपबंधों के अधीन जिन दण्डों से दण्डनीय है, वे ये हैं –
IPC Section 53 — Punishments –
The punishments to which offenders are liable under the provisions of this Code are
First — Death;
Secondly – Imprisonment for life;
Thirdly – Omitted.
Fourthly — Imprisonment, which is of two descriptions, namely:-
(1) Rigorous, that is, with hard labour;
(2) Simple;
Fifthly — Forfeiture of property;
Sixthly – Fine.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]