IPC की धारा 76 — विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आपको विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य –
कोई बात अपराध नहीं है, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है।
दृष्टांत –
(क) विधि के समादेशों के अनुवर्तन में अपने वरिष्ठ ऑफिसर के आदेश से एक सैनिक क भीड़ पर गोली चलाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।
(ख) न्यायालय का ऑफिसर, क, म को गिरफ्तार करने के लिए उस न्यायालय द्वारा आदिष्ट किए जाने पर और सम्यक् जांच के पश्चात् यह विश्वास करके कि य, म है, य को गिरफ्तार कर लेता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।
IPC की धारा 76 के प्रमुख अवयव क्या हैं ? |
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1. एक व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कार्य जिसे करने के लिए वह विधि द्वारा बाध्य है, 2. कार्य जिसे करने के लिए उक्त व्यक्ति अपने को विधि द्वारा बाध्य समझता है; 3. यह विश्वास तथ्य की मूल से हो न कि विधि की भूल से 4. विश्वास यथार्थ तथा सद्भावपूर्वक होना चाहिए। |
IPC की धारा 76 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
आर० बनाम प्रिंस (1875)L.R.2 C.C.R.154
इस वाद में अभियुक्त पर आरोप था कि उसने एक अविवाहित लड़की, जो सोलह वर्ष से कम आयु की थी, को उसके पिता के कब्ज़े से उसकी इच्छा के विरुद्ध हटाया। यह पाया गया कि अभियुक्त ने यथार्थतः तथा समुचित आधार पर विश्वास किया कि लड़की सोलह वर्ष से अधिक आयु की है। अपहरण के लिये सजा से प्रतिरक्षा हेतु लड़की की उम्र के बारे में अभियुक्त के भ्रामक विश्वास को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि उसने एक दोषपूर्ण तथा अनैतिक कार्य करने की इच्छा की तथा उसे किया। उसने कोई निर्दोष कार्य नहीं किया था। व्यक्ति के विरुद्ध अपराध अधिनियम (The Offences Against Persons 1857 की धारा 55, जिसके अन्तर्गत अपहरण का अपराध निर्मित हुआ है, का आशय अपराधी को उसके दुराशय के अभाव में भी दण्डित करना था।
शेराज बनाम डी.रूटजेन (1895)1 Q.B.918
इस वाद में एक संविधि ने एक लाइसेन्सधारी शराब विक्रेता को किसी पुलिस कान्सटेबल को जब कि वह ड्यूटी पर हो शराब देने से प्रतिषिद्ध किया था। किन्तु विक्रेता ने उसे सद्भावपूर्ण विश्वास से उसे शराब दिया कि वह अपनी ड्यूटी समाप्त कर चुका है। यह निर्णीत हुआ कि उसने कोई अपराध नहीं किया है।
भाऊ जिवाजी बनाम मुली दयाल, 1888 (2) बाम्बे 377
यदि पुलिस कान्स्टेबल शिकायतकर्ता के पास चोरी के संदेह के आधार पर कपड़े की पकड़ करता है, तो ऐसी स्थिति में हेड कान्स्टेबल को दोषपूर्ण गिरफ्तारी के लिए न्यायिक रूप से सिद्ध नहीं माना जाएगा।
आर० बनाम टाल्सन (1889) 23Q.B.D.168
इस वाद में अभियुक्त को द्विविवाह के लिये सजा दी गई थी। उसने अपने पति द्वारा त्याग दिये जाने के पश्चात् सात साल के भीतर ही दूसरा विवाह कर लिया। उसने सद्भावपूर्वक तथा समुचित आधारों पर विश्वास किया कि उसके पति की मृत्यु हो गयी थी। यह निर्णीत हुआ कि समुचित आधारों पर सद्भावपूर्ण विश्वास उसे द्विविवाह के अपराध से उन्मुक्ति प्रदान करता है।
पश्चिम बंगाल राज्य बनाम शिव मंगल सिंह (1981)C.Lg 1683 (sc) इस वाद में पुलिस बल के एक सदस्य को भीड़ द्वारा हिंसा के फलस्वरूप उस समय उपहति कारित की गई जब वह गस्त लगा रहा था। डिप्टी पुलिस कमिश्नर ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया जिसके फलस्वरूप भीड़ के कुछ सदस्य मारे गये। उन पर हत्या के लिये अभियोजन चलाया गया। उच्चतम न्यायालय ने अभिनित किया कि सिपाहियों ने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश पर गोली चलाया था। इसलिये हत्या के लिये दोषसिद्धि नहीं प्रदान की जा सकती। इस वाद में वरिष्ठ अधिकारी के आदेश की वैधता को चुनौती नहीं दी गई थी। यह धारा वरिष्ठ अधिकारी के आदेशों के अनुपालन को सीमित रूप में सुरक्षा प्रदान करती है जैसा कि इस धारा में दिये गये दृष्टान्त से सुस्पष्ट है। वरिष्ठ अधिकारी के सभी आदेशों के अनुपालन के सन्दर्भ में यह धारा सुरक्षा नहीं प्रदान करती है। [READ full]
एन0 पी0 प्रताप कुमार बनाम रामदास, 2010 क्रि० लॉ ज० (एन० ओ० सी०) 991 (केरल)
जहां छात्र संघ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (Students Federation of India) का मुख्य उद्देश्य दोषपूर्ण ढंग से मंत्री को रोकना था, वहां अभियुक्त पुलिसकर्मियों ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर लाठीचार्ज किया। इस प्रकार की कार्रवाई को धारा 76 भारतीय दंड संहिता और धारा 129 दंड प्रक्रिया संहिता द्वारा संरक्षित माना गया। (आईपीसी धारा 76 का बचाव मिला)
श्रीराम दामोदर बनाम ठाकुर दास, 1977 महा0 लॉ० ज० 581
जहां म्युनिसिपल परिषद के एक ओवरसीयर ने अपने प्रधान अधिकारी के आदेशों का पालन करते हुए परिवादी के विनिर्माण को गिरवा देता है तथा विनिर्माण की सहायता सामग्रियों को परिसर से वापस कर देता है , तो इस प्रकार की स्थिति में ओवरसीयर द्वारा आदेशों का पालन करके किया गया कार्य विधि द्वारा मान्यता प्राप्त हुई। (आईपीसी धारा 76 का बचाव मिला)
IPC की धारा 76 FAQ
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भारतीय दण्ड संहिता का कौन सा अध्याय “सामान्य अपवादो” को उपबंधित करता है ?
अध्याय IV (धारा 76 से 106)
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यदि किसी व्यक्ति का कृत्य सामान्य अपवाद के अन्तर्गत आता है, तो उसे कितना दण्ड दिया जा सकता है ?
कोई दण्ड नहीं।
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कौन IPC की धारा 76 में के लागू होने के लिए एक आवश्यक शर्त नहीं है?
विश्वास तथ्य अथवा विधि की भूल के कारण भी हो सकता है।
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भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत तथ्य की भूल के बचाव के लिए कार्य कैसा होना चाहिए?
कार्य युक्तियुक्त तथा सद्भावपूर्वक किया जाना चाहिए।
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“विधि की अनभिज्ञता कोई प्रतिहेतु नहीं है “। का सूत्र भारतीय दण्ड संहिता की किस धारा में समावेश है ?
IPC की धारा 76 में
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किसी आपराधिक आरोप के विरुद्ध बचाव के लिए भूल को किससे सम्बन्धित होना चाहिए ?
केवल तथ्य से (IPC की धारा 76 में)
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कौन सा वाद तथ्य की भूल के आधार पर बचाव से सम्बन्धित है ?
आर. बनाम टाल्सन । (IPC की धारा 76 में)
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‘क’ ने सद्भावपूर्वक ख को एक प्रेत समझा तथा ऐसी चोटे कारित कि उसकी मृत्यु हो गयी क ने क्या अपराध किया?
क ने कोई अपराध नहीं किया है क्योंकि वह तथ्य की भूल पर बचाव का दावा करने का अधिकारी है।
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न्यायालय ने अपने एक अधिकारी क को आदेश दिया कि वह “च” को बन्दी बना ले। ‘क’ ने उचित जाँच करने के बाद यह विश्वास कर कि ट ही ‘च’ है. ट’ को बंदी बना लिया। क ने क्या अपराध किया?
‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया। तथ्य की भूल
IPC Section 76 — Act done by a person bound, or by mistake of fact believing himself bound, by law –
Nothing is an offence which is done by a person who is, or who by reason of a mistake of fact and not by reason of a mistake of law in good faith believes himself to be, bound by law to do it.
Illustrations –
(a) A, a soldier, fires on a mob by the order of his superior officer, in conformity with the commands of the law. A has committed no offence.
(b) A, an officer of a Court of Justice, being ordered by that Court to arrest Y, and, after due enquiry, believing Z to be Y, arrests Z. A has committed no offence.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]