IPC की धारा 79 — विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य –
कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत हो, या तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा न्यायानुमत है।
दृष्टांत –
क, य को ऐसा करते देखता है, जो क को हत्या प्रतीत होता है| क सद्भावपूर्वक काम में लाए गए अपने श्रेष्ठ निर्णय के अनुसार उस शक्ति को प्रयोग में लाते हुए, जो विधि ने हत्याकारियों को उस कार्य में पकड़ने के लिए समस्त व्यक्तियों को दे रखी है, य को उचित प्राधिकारियों के समक्ष ले जाने के लिए य को अभिगृहीत करता है। क ने कोई अपराध नहीं किया है चाहे तत्पश्चात् असल बात यह निकले कि य आत्म-प्रतिरक्षा में कार्य कर रहा था।
IPC की धारा 79 के प्रमुख अवयव क्या हैं ? |
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कोई बात अपराध नहीं है, जो- (1) तथ्य की भूल के अंतर्गत एक व्यक्ति द्वारा किया गया कोई कार्य । (2) भूल, तथ्य से सम्बन्धित होनी चाहिये, विधि से नहीं। (3) भूल सदभावना में कारित होनी चाहिये। (4) कर्ता या तो विधि द्वारा न्यायानुमत होना चाहिये या उसे करने में अपने आप को विधि द्वारा न्यायानुमत होना विश्वास करता है। |
IPC की धारा 79 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
चरन दास (1950) 52 पी.एल.आर.331
के वाद में नेशनल वालन्टीयर कोर के एक सिपाही ने अपने वरिष्ठ पदाधिकारी की आज्ञाओं का पालन करने हेतु गोली चलायी जिससे तम्बू (Tent), जिसके अन्दर जुआ खेला जा रहा था और जहाँ कोई हिंसात्मक भीड़ इकट्टी नहीं थी, अन्दर एक औरत घायल हो गयी। सिपाही को हत्या का दोषी करार दिया गया। वरिष्ठ पदाधिकारी का आदेश अवैध था और अवैध आदेश का पालन ऐसे आदेश का पालन करने में अपराध कारित करने वाले व्यक्ति को क्षमा नहीं करता। यदि आदेश प्रत्यक्षतः अवैध है तो ऐसे आदेश को निष्पादित करने से इन्कार करने में कनिष्ठ (निम्रवर्ती) अधिकारी न्यायोचित होगा परन्तु यदि वरिष्ठ पदाधिकारी का आदेश प्रत्यक्षतः इस देश की विधि के विरुद्ध नहीं है तो उस आदेश का पालन अवश्य होना चाहिये।
उड़ीसा राज्य बनाम भागवन बारिक, 1988 एस० सी० क्रि० रि0 957
जब मृतक तालाब पर अपना सामान लेने गया था, और इसके दौरान अपीलार्थी ने सर पर लाठी से प्रहार किया, तो परिस्थितियों के आधार पर अभियुक्त द्वारा उसे चोर मानना विश्वसनीय नहीं है। इसलिए, सदाशय का पूर्ण अभाव होने के कारण उसे आईपीसी धारा 79 का लाभ नहीं मिल सकता है। परिणामस्वरूप, प्रत्यर्थी अभियुक्त धारा 304 भाग II के तहत सदोष मानव होगा का दोषी साबित होगा।
नुरूल हुदा बनाम अभिताभ बच्चन, 1985 (1) क्रि० लॉ केसेज 135 ( इला० )
अभिकथन किया गया है कि फिल्म "अन्धा कानून" के नायक ने न्यायालय की निन्दा की है, लेकिन सेंसर बोर्ड ने "सिनेमा आटोग्राफी एक्ट" 1952 की धारा 5 (क) के तहत फिल्म को प्रदर्शन के बाद सामान्य प्रदर्शन के लिए मंजूरी दी है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह अभिमत प्रकट किया जाता है कि इस धारा की छूट के तहत फिल्म के नायक ने किसी भी रूप में न्यायालय की मानहानि नहीं की थी।
जोसेफ थोम्मेन बनाम जोसेफ एन्टोनी,1957
इस वाद में यह विनिश्चित हुआ कि पड़ोसी को ज़मीन में बढ़ते हुये पेड़ के उस भाग को जो उसकी अपनी जमीन के ऊपर लटक रहा है, काटने का हक़दार ज़मीन का मालिक है। अतः ऐसी शाखाओं का काटा जाना धारा 427 के अंतर्गत रिष्टि (mischief) का अपराध नहीं निर्मित करता।
राजकपूर बनाम लक्ष्मन,1980 CLJ436
इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि यदि अपनी अधिकारिता में कार्य करते हुये बोर्ड आफ सेन्सर्स किसी ऐसी फिल्म को प्रदर्शित किये जाने की अनुमति प्रदान कर देता है जिसके अश्लील होने का आरोप लगाया जाता है तो फिल्म निर्माता एवं अन्य सम्बन्धित एजेन्सियाँ संहिता की धारा 292 के अन्तर्गत अभियोजित नहीं किये जा सकते हैं क्योंकि IPC की धारा 79 उन्हें यह बचाव प्रदान करती है कि उन्होंने बोर्ड आफ सेन्सर्स से प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के पश्चात् इस विश्वास से कार्य किया है कि उनका कार्य न्यायानुमत (justifiable) है।
महाराष्ट्र राज्य बनाम एम० एच० जार्ज, ए0 आई0 आर0 1965 सु0 को0 722 : 1964 (1) क्रि० लॉ ज0 64]
विधि की अनभिज्ञता दोषमुक्ति का आधार नहीं मानी जायेगी किन्तु यह दण्ड के लघुकरण में सहायक मानी जायेगी।
राय सिंह मोहमिया बनाम राज्य, ए0 आई0 आर0 1962 गुजरात 203 : 1962 (1) क्रि० लॉ ज0 714
यदि एक गृहस्वामी को यह जानकर और उस पर विश्वास करके कि रात्रि में उसके घर में कोई अवैध आप्रवेश कर रहा है और वह नौकर को मार डालता है, तो उस स्थिति में स्वामी द्वारा किया गया कार्य इस धारा के तहत संरक्षित माना जाएगा।
IPC की धारा 79 FAQ
IPC की धारा 79 के अंतर्गत तथ्य की भूल का फायदा पाने के लिए यह बताना आवश्यक है कि उस व्यक्ति ने सद्भावपूर्वक विश्वास करके युक्तियुक्त आधारों पर कार्य किया था”। यह उच्चतम न्यायलय ने किस वाद में कहा था?
जसवंत राय मनीलाल अखाने बनाम मुम्बई राज्य में ।
‘प’ एक पुलिस अधिकारी युक्तियुक्त पूछताछ के पश्चात् ख को, जिसने कि कोई अपराध नहीं किया है. गिरफ्तार कर लिया ‘प’ का दायित्व क्या होगा ?
‘प’ IPC की धारा 79 के अधीन न्यायानुमत भूल का बचाव पाने का अधिकारी है।
IPC की धारा 79 किन कार्यों से सम्बन्धित है ?
यह धारा विधि द्वारा न्यायानुमत या तथ्य की भूल से अपने को विधि द्वारा न्यायानुमत होने के विश्वास करने वाले व्यक्तियों द्वारा किये गये कार्य से सम्बन्धित है।
IPC की धारा 79 में निहित सिद्धान्त के प्रमुख अवयव क्या है?
(i) तथ्य की भूल के अंतर्गत कोई व्यक्ति कोई कार्य करे।
(ii) भूल तथ्य से सम्बन्धित हो, न कि विधि से
(iii) भूल सद्भावपूर्वक कारित हो
(iv) कर्ता या तो विधि द्वारा न्यायानुमत हो या अपने को ऐसा विश्वास करता हो।
‘क’ ‘प’ को ऐसा कार्य करते हुए देखता है, जो उसे हत्या प्रतीत होता है, एक सद्भावपूर्वक ‘प’ को उचित प्राधिकारियों के समक्ष ले जाने के लिए पकड़ लेता है, वाद में यह बात साबित होती है कि ‘प’ आत्मरक्षा में कार्य कर रहा था। क ने कौन सा अपराध किया?
‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया क्योंकि वह धारा 79 द्वारा प्रतिरक्षित है।
राज कपूर बनाम लक्ष्मण 1980 CR LJ नामक वाद किस धारा से सम्बन्धित है?
IPC की धारा 79 से |
किस वाद में यह धारित किया गया कि वरिष्ठ पदाधिकारी के अवैध आदेश का पालन, ऐसे आदेश का पालन करने में अपराध करने वाले व्यक्ति को क्षमा नहीं करता ?
चरनदास 1950 के प्रकरण में।
आपराधिक विधि का यह सिद्धान्त कि “तथ्य की भूल क्षम्य है, विधि की भूल क्षम्य नहीं है,” संहिता की किन धाराओं में समाहित है?
धारा 76 एवं 79 में।
यह सिद्धान्त कि तथ्य की भूल क्षम्य है, किस सिद्धान्त का अनुकरण करता
मनःस्थिति के सिद्धान्त का
IPC Section 79 — Act done by a person justified, or by mistake of fact believing himself justified, by law –
Nothing is an offence which is done by any person who is justified by law, or who by reason of a mistake of fact and not by reason of a mistake of law in good faith, believes himself to be justified by law, in doing it.
Illustration –
A sees Z commit what appears to A to be a murder. A, in the exercise, to the best of his judgment exerted in good faith, of the power which the law gives to all persons of apprehending murderers in the fact, seizes Z, in order to bring Z before the proper authorities. A has committed no offence, though it may turn out that Z was acting in self-defence.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]