IPC की धारा 80 — विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना –
कोई बात अपराध नहीं है, जो दुर्घटना या दुर्भाग्य से और किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना विधिपूर्ण प्रकार से विधिपूर्ण साधनों द्वारा और उचित सतर्कता और सावधानी के साथ विधिपूर्ण कार्य करने में ही हो जाती है।
दृष्टांत –
क कुल्हाड़ी से काम कर रहा है; कुल्हाड़ी का फल उसमें से निकल कर उछल जाता है और निकट खड़ा हुआ व्यक्ति उससे मारा जाता है। यहां यदि क की ओर से उचित सावधानी का कोई अभाव नहीं था तो उसका कार्य माफी योग्य है और अपराध नहीं है।
IPC की धारा 80 के प्रमुख अवयव क्या हैं ? |
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कोई बात अपराध नहीं है, जो- (1) कार्य एक दुर्घटना या दुर्भाग्य हो। (2) कार्य किसी आपराधिक आशय या ज्ञान के बिना किया गया हो। (3) दुर्घटना वैधिक साधनों द्वारा, वैधिक रीति से किये गये किसी विधिक कार्य का परिणाम हो (4) कार्य उचित सतर्कता एवं सावधानी से किया गया हो। |
IPC की धारा 80 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
आर० बनाम बाकर 1 सी० एण्ड पी० 320.
इस वाद में 'अ' एक जोड़ी घोड़ों को बिना लगाम के हाँक रहा था। ब सड़क पर टहल रहा था और वह नशे में था। 'अ' ने दो बार पुकार कर उसे सावधान किया कि वह सड़क छोड़ दे । परन्तु घोड़े तेजी से दौड़ रहे थे अतः 'ब' उनके नीचे आ गया और मारा गया। यह पाया गया कि वह नशे में था और उसने अ की बात पर ध्यान नहीं दिया। इसमें यह निर्णीत हुआ कि अ मानव वध का दोषी है क्योंकि उसका यह दायित्व था कि वह अपनी बग्घी को इस प्रकार चलाये ताकि दूसरों को कोई क्षति न पहुँचे यद्यपि यह सम्भव है कि वह दूसरा व्यक्ति भी किसी रूप में असावधान हो । यहाँ ब का उन्मत्त होना किसी प्रकार अ के दायित्व को कम नहीं करता।
मोहम्मद बनाम राज्य, ए0 आई0 आर0 1935 नागपुर 200]
जब एक मोटर चालक अपनी उपेक्षा और उतावलेपूर्ण कार्यवाही से किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है, तो उपेक्षा और उतावलेपन के कारण चालक द्वारा किया गया कार्य आईपीसी की धारा 80 के अधीन संरक्षित नहीं माना जाएगा।
महादेव बनाम स्टेट आफ एम0 पी0, 2006 (1) म0 प्र0 लॉ ज0 622
जहां मामले के अनेक साक्षी पक्षद्रोही घोषित हो गये थे, इन साक्षियों के प्रतिपरीक्षण में भी किसी ने यह नहीं बताया था कि अभियुक्त तेज एवं उपेक्षापूर्ण रीति से वाहन चला रहा था, मात्र एक साक्षी द्वारा यह बताया गया था कि वाहन की स्टेरिंग सी दशा में कार्यरत नहीं था जो मकैनिकल के रूप में कार्यरत था, अपराध प्रमाणित नहीं माना गया।
जगेश्वर बनाम इम्परर ए० आई० आर० 1924 अवध 228.
अभियुक्त घूँसे से एक व्यक्ति को मार रहा था। उसी समय बाद वाले व्यक्ति की पत्नी ने दो महीने के बच्चे को अपने कन्धे पर लिये हुये हस्तक्षेप किया। अभियुक्त ने उस औरत पर भी प्रहार किया किन्तु उसका प्रहार बच्चे के सिर पर लगा। उस चोट के फलस्वरूप बच्चे की मृत्यु हो गई। यह निर्णीत हुआ कि बच्चे को अकस्मात् ही चोट आयी। चूँकि अभियुक्त एक वैधिक कार्य वैधिक रीति से नहीं कर रहा था । अतः वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 80 के अन्तर्गतं दिये गये उपबन्धों का लाभ नहीं उठा सकता है।
राय सरकार बनाम रंगास्वामी, ए) आई0 आर0 1952 नागपुर 268 : 1952 सी0 आर0 एल0 जे0 1191]
जहाँ पर अभियुक्त विना लाइसेंस की बन्दूक से गोली चलाता है तो ऐसी दशा में वह आईपीसी की धारा 80 अधीन प्रतिरक्षा का अभिवाक् नहीं कर सकता है।
उड़ीसा राज्य बनाम खोरा घासी 1978 क्रि० लॉ ज० 1305.
क ने ख की मृत्यु एक तीर से मारकर इस सद्भावपूर्वक विश्वास कर कारित किया कि वह अपने खेत के अन्दर घुसे एक भालू पर तीर चला रहा है जो उसके मक्का के खेतों को नष्ट कर रहा है। इस मृत्यु को दुर्घटना का परिणाम निर्णीत किया गया।
राजाराम बनाम राज्य 1977 क्रि० लॉ ज० (एन० ओ० सी०) 85.
क ने ख के हमले से अपने को बचाने के लिये बन्दूक से उस पर फायर किया जिससे ख बच गया परन्तु चार अन्य लोग घायल हो गये और उनमें से एक की मृत्यु हो गयी। इस साक्ष्य के अभाव में कि क का आशय घायलों एवं मृत व्यक्ति को चोट पहुँचाना था, यह निर्णय दिया गया कि वह IPC की धारा 80,96 एवं 100 के अन्तर्गत अपना बचाव प्रस्तुत कर सकता है।
शाकिर खान बनाम क्राउन ए० आई० आर० 1931 लाहौर 54.
लगभग सौ व्यक्तियों की एक पार्टी सूकरों का शिकार करने गई। एक नर शूकर अभियुक्त की तरफ दौड़ा जिसने उस पर गोली चला दी। किन्तु निशाना चूक गया और गोली शूकर को लगने के बजाय पार्टी के एक सदस्य के पैर को लग गई। यह निर्णीत हुआ कि मृत्यु दुर्घटना के कारण हुई, यह लापरवाही या उपेक्षापूर्ण ढंग से गोली चलाने का परिणाम नहीं था । अतः अभियुक्त को IPC की धारा 80 का लाभ मिला |
के एम नानावती बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र, ए0 आई0 आर0 1962 सु० को0 605]
यह तथ्य कि कार्य सम्यक् सतर्कता और सावधानी से किया गया था, साबित करने का भार अभियुक्त पर होगा, तथा वह अभिवाक् की दशा में इसे साबित करने के लिए आबद्ध माना जायेगा
अत्मेन्द्र बनाम स्टेट ऑफ कर्नाटक, 1998 (2) ईस्ट सी0 आर0 सी0 418 (एस0 सी0)
जब फायरिंग, आशयित रही हो तो आईपीसी की धारा 80 के अन्तर्गत लाभ उपलब्ध नहीं है तथा हत्या के लिये दोषसिद्धि कायम रहेगा।
IPC की धारा 80 FAQ
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एक कामगार उचित चेतावनी देकर छत से बर्फ फेंकता है। एक राहगीर की मृत्यु हो जाती है। कामगार किस अपराध का दोषी है?
मृत्यु आकस्मिक थी, इसलिए दोषी नहीं है। (IPC की धारा 80)
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‘ख’ कुल्हाड़ी से काम कर रहा था उसका सिरा निकल कर पास में खड़े व्यक्ति को लगता है, तो वह मर गया। कब ख ने कोई अपराध नहीं किया?
यदि कथित सावधानी का अभाव नहीं था ( IPC की धारा 80 का (दृष्टान्त) ।
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IPC की धारा 80 क्या है ?
IPC की धारा 80 विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना से संबंधित हैं |
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विधिपूर्ण कार्य करने में दुर्घटना, IPC की कौन सी धारा है ?
IPC की धारा 80
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क एक स्कूल मास्टर, एक छात्र को पूर्ण सतर्कता के साथ इस प्रकार सुधारता है ताकि छात्र को कोई क्षति न पहुंचे छात्र की मृत्यु हो जाती है। क ने क्या कोई अपराध किया?
‘क’ ने कोई अपराध नहीं किया क्योंकि मृत्यु आकस्मिक है, और क IPC की धारा 80 के अतंर्गत प्रतिरक्षित है।
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‘क’ और ‘ख जंगल में चूहे मारने गये दोनो ने अपना स्थान लेकर जाल बिछा दिया कुछ समय पश्चात सर सराहट की आवाज हुई, ‘क’ ने चूहा समझकर उस दिशा में गोली चलाई गोली से ‘ख की मृत्यु हो गयी ‘क’ का आपराधिक दायित्व क्या है?
क ने कोई अपराध नहीं किया क्योंकि ‘ख’ की मृत्यु दुर्घटना के कारण हुई और ‘क’ IPC की धारा 80 के अन्तर्गत प्रतिरक्षित है।
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दुर्घटना के मामलों का प्रमुख नियम क्या है?
दुर्घटना के मामलों का प्रमुख नियम यह है कि कर्ता तब तक दायी नहीं होगा जब तक कि प्रश्नगत कार्य तथा परिणामतः क्षति के बीच कारणात्मक सम्बन्ध न स्थापित हो जाय ।
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किस वाद में यह कहा गया कि “आपराधिक विधि में किसी आशय के लिए योगदायी उपेक्षा कोई बचाव नहीं है?
आर. बनाम स्विंडल और ओसबार्न के वाद में |
IPC Section 80 — Accident in doing a lawful act –
Nothing is an offence which is done by accident or misfortune, and without any criminal intention or knowledge in the doing of a lawful act in a lawful manner by lawful means and with proper care and caution.
Illustration –
A is at work with a hatchet; the head flies off and kills a man who is standing by. Here, if there was no want of proper caution on the part of A, his act is excusable and not an offence.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]